सनातन के नए अलमबरदार - संजय तिवारी


सनातन संस्कृति अजेय है। यह सृष्टि के साथ उपजी है। जब तक सृष्टि है तब तक अक्षुण्य रहेगी। यह अलग बात है कि इसको मिटाने और धूमिल करने की कोशिशें आरंभ से हो होती रही हैं । आगे भी होती रहेंगी। आज सनातन संस्कृति को लेकर केवल भारत मे ही नही बल्कि दुनिया भर में बहस हो रही है। भारत के वर्तमान परिवेश ने इस बहस को और बल दे दिया है। इस बहस का केंद्र वही है जिसे लेकर दुनिया आश्चर्यचकित भी होती है और हार थक कर स्वीकार भी करती है। हार थक कर इसलिए क्योंकि सनातन का कोई विकल्प संभव नही है। यही वह एक मात्र जीवन संस्कृति है जिसमे मानवता का कल्याण उपस्थित है। जिस मानवता के लिए दुनिया की सभ्यताएं केवल संघर्ष कर रही हैं वह केवल भारतीय सनातन संस्कृति के माध्यम से ही संभव है। 

आजकल भारतीय सनातन संस्कृति के कई प्रकार के अलंबरदार सामने आने लगे हैं। अभी कुछ समय पहले तक जिनको भारतीय मूल्य और परम्पराएं प्राचीन पोंगापंथी लगती थीं , वे ही आजकल संस्कृति और भारतीयता को लेकर सर्वाधिक शोर मचाने में लगे हैं । ये संभवतः वे ही वामपंथी टीम के ज्यादातर लोग हैं जो राष्ट्रीय , अंतरराष्ट्रीय गोष्ठियों, संगोष्ठियों, आयोजनों में पहले भी दिन में बहस और शाम होते ही मांस मदिरा से सजे टेबलों पर चर्चाएं किया करते थे । आजकल भी इनका वही रूटीन है। अंतर सिर्फ विषय का है। अब ये लोग खुद को भारतीयता और सनातन संस्कृति के संवाहक बनाकर स्थापित करने में जुटे हैं। यह कितनी बड़ी विसंगति है कि वे लोग जिनको शिखा धारण करने, यग्योपवीत धारण करने, तिलक लगाने, संस्कृत बोलने या सुनने, यज्ञादि में सहभागिता आदि से घोर परहेज है , अब ये लोग ही सनातन संस्कृति के मालिक और नीति निर्देशक बनने की जुगत में लगे हैं। सरकारें भी इन्ही को ज्यादा तवज्जो दी रहीं हैं क्योंकि सरकारी तंत्र में इनकी पैठ बहुत जबरदस्त है। चाहे कोई आयोजन हो या वदेशी दौरा, ऐसी ही टीम उसमें आगे हो जाती है और सनातन संस्कृति के लिए वास्तविक काम करने वाले बहुत पीछे छूट जाते हैं। 

वास्तव में सनातनता या सनातन संस्कृति को उन लोगो से उतना खतरा नही है जो घोषित तौर पर सनातन परंपरा के विरोधी हैं। वास्तविक संकट इन लोगो से है जो सनातनता के नए अलंबरदार बनकर स्थापित हो रहे हैं। सनातन संस्कृति अथवा भारतीय मूल्यों के इन नवप्रणेताओ से वास्तव में गंभीर खतरा हो गया है। सनातनता के मूल तत्वों से विमुख बिल्कुल वामपंथी परंपरा में सनातन संस्कृति को समझने और समझाने की यह चेष्टा बहुत ही घातक है। 

इन्हें समझने के लिए यह देखना बहुत जरूरी है कि जिन विरोधी शक्तियों से ये मुकाबले की बहस करते हैं उनसे भी ये कुछ सीखते नही हैं। उदाहरण के लिए यह लिखने में कोई संकोच नही है कि खुद को प्रगतिशील बताने वाले मुसलमान को टोपी पहनने, दाढ़ी रखने, नमाज पढ़ने, मस्जिद जाने और छोटा पजामा और बड़ा कुर्ता पहनने में कोई शर्म नही लेकिन इन नवसनातानियों में से किसी को आप सनातन संस्कृति का पालन करते नही पाएंगे। इन्हें हर बहस के बाद खानपान और रहन सहन में एक खास खुराक जरूर चाहिए। ऐसे में यह चिता का विषय है कि ऐसे लोगो से सनातन संस्कृति की रक्षा कैसे की जाय।

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