मुगलों के विरुद्ध मराठा गुप्तचर अन्नाजी पन्त का सतारा विजय अभियान |



एक समय था जब देवकीनंदन खत्री लिखित भूतनाथ और चंद्रकांता संतति को पढ़ने के लिए अनेक अहिन्दी भाषी लोगों ने भी हिन्दी सीखी थी | ऐय्यारों की रोमांचक गाथा से लेकर सुरेन्द्र मोहन पाठक, इब्ने सफी या जेम्स हेडली चेज के जासूसी उपन्यासों को भी बाद के दौर में बड़े चाव से पढ़ा गया | लेकिन ये सब तो काल्पनिक कहानियाँ थीं, शत्रु देशों के भेद जानने के लिए गुप्तचरों का उपयोग हर देश में होता ही है | मुग़ल मराठा संघर्ष के दौर में ऐसे ही एक मराठा गुप्तचर अन्नाजी पन्त की चतुरता और सूझबूझ की यह रोमांचक कहानी है | 

हमने छत्रपति राजाराम महाराज की जिन्जी यात्रा की कहानी सुनी, यह भी जाना कि जनवरी १६९८ में औरंगजेब की सेनाओं ने जिन्जी किले को भी जीत लिया, किन्तु अपने बलिदानी सहायकों की मदद से महाराज राजाराम वहां से निकलने में सफल रहे और इस दौरान मराठा सेना के अनेक सैनिक किले में गिरफ्तार हो गए | उनके सामने मौत से बचने का एक ही उपाय था, इस्लाम कबूल करना | अधिकाँश ने नहीं किया और वे एक अंधेरी कोठरी में सीड मच्छर और अन्य कीड़े मकोड़ों के साथ रहते हुए, मौत का इंतज़ार कर रहे थे | चौबीस घंटे में एक बार कोई भोजन के नाम पर अधजली रोटियां दे जाता, मरने वालों पर फिजूल अन्न क्यों बर्बाद किया जाए भला | भूख से मरें अथवा जल्लाद के हाथों क्या अंतर है ? 

तो ऐसे दुर्भागी सेनानियों में से ही एक थे अन्ना जी पन्त | एक दिन जो प्रहरी खाना देने आता था, वह मुस्लिम की जगह कोई हिन्दू आया | तो उससे सहज चर्चा हो गई | मुस्लिम प्रहरी तो बात भी नहीं करता था | अन्नाजी ने उसके घर परिवार के विषय में पूछा तो उसने उदास स्वर में बताया कि बस पत्नी है, बच्चे कोई नहीं | अन्नाजी ने कहा ब्राह्मण हूँ, सो थोडा ज्योतिष का ज्ञान भी है, जरा हाथ तो बताओ | देखकर कहा कि भाई किस्मत में तो है, पर उपाय करना पड़ेगा | देवी पूजन करेंगे तो उनकी कृपा से जल्द ही घर में किलकारी गूंजेगी | प्रहरी की आँखें खुशी से छलछला आईं | उसने पूजन सामग्री के विषय में पूछा तो अन्नाजी ने रोली चावल फूल नारियल के साथ एक छुरी कुछ कीलें और एक हथौड़ी लाने को कहा | थोडा संकोच से प्रहरी ने पूछा छुरी कीलें हथौड़ी क्यों, तो अन्नाजी ने जबाब दिया भाई तांत्रिक उपासना में तो यह चीजें जरूरी ही हैं | 

अगले दिन ये सभी सामान उनके पास आ गए और यह तो आप समझ ही गए होंगे कि इनका क्या उपयोग हुआ होगा | जिन्जी किले का चप्पा चप्पा अन्नाजी का देखा भाला था, सो रात के अँधेरे में कोठडी से एक बार बाहर हुए तो किले के बाहर भी आसानी से निकल गए | जल्द ही जंगल में उनकी मुलाक़ात उस मावली दस्ते से हो गई, जिसके मुखिया मूल जी नायक थे | जब अन्नाजी ने भरपेट भोजन और जीभरकर विश्राम कर लिया, तब मूलजी ने अनुरोध किया – पंतजी कोई गाना और कहानी सुनाओ | पंतजी इस फन में माहिर माने जाते थे | उनका स्वर भी बहुत मीठा और अंदाज मनमोहक | गाना गाते और कहानी सुनते सुनाते ही एक योजना ने जन्म लिया | योजना भले ही दीर्घ कालिक थी, उसके लिए बहुत धैर्य और लगातार का श्रम भी अपेक्षित था, किन्तु उसके अलावा कोई मार्ग भी नहीं सूझ रहा था | अन्नाजी ने फकीरों जैसे वस्त्र धारण किये और दाढी व केश भी बढ़ा लिए | चिमटा कम्बल तुम्बा उठाये फिर निकल पड़े अभियान पर | वर्ष दर वर्ष बीतते गए | उनका अधिकाँश समय मुग़ल छावनियों के इर्द गिर्द बीतता | लहरा लहरा कर मीठे स्वर में गाते, नित्य नई कहानियां सुनाते, और इस तरह सैनिकों का फ़ोकट में मनोरंजन हो जाता | साधू बाबा को खाने की भी कोई समस्या नहीं रहती, क्योंकि उन पर रीझे सैनिक खूब सेवा करते | सन १७०० में महाराज राजाराम स्वर्ग सिधारे, और उसके एक माह बाद ही सतारा भी मुगलों के कब्जे में पहुँच गया | १७०५ में सेना की जिस टुकड़ी के साथ साधू वेशधारी अन्नाजी रहा करते थे, उसकी बदली सतारा हो गई | सिपाहियों के प्रबल अनुरोध के कारण फौजदार ने इस बाबा को भी सतारा में ठहरने की मंजूरी दे दी | उन पर बाहर आने जाने पर भी कोई प्रतिबन्ध नहीं था | 

और फिर बनी अन्नाजी पन्त और मूलजी नायक की सतारा विजय योजना | पन्त प्रधान परशुराम त्रिम्ब्यक को भी जानकारी दे दी गई और वे भी सहायता को सन्नद्ध हो गए | अन्नाजी से पूछा गया, कितने लोग लगेंगे ? अन्नाजी ने जबाब दिया एक मन और एक प्राण वाले दो सौ सेनानी पर्याप्त होंगे | पूछा गया, इतने कम क्यों तो जबाब मिला चील क्या झुण्ड बनाकर झपट्टा मारती है ? 

फिर आई वह रात जब सतारा के किले में अन्नाजी के गायन की विशाल महफ़िल सजी | फकीर मस्ती पर था. उसने घुँघरू बांधकर नाचने का भी वचन दिया था | इतनी बड़ी बड़ी दाढी ओर मूंछ वाला जटाजूटधारी घुँघरू बांधकर नाचेगा, तो कैसा लगेगा, सबको कौतुहल था, अतः लगभग पूरी सेना ही वहां मौजूद थी | उस दृश्य की कल्पना मात्र से सबको हँसी आ रही थी | आखिर टेलीवीजन का जमाना तो था नहीं, मनोरंजन के ऐसे विचित्र साधन भी बमुश्किल कभी कभार ही मिलते थे | ठूंस ठांसकर पांच हजार सैनिक उस सभाकक्ष में आ जमे | मदक, हुक्का और शराब, सब कुछ वहां था, लेकिन बड़े अफसरों के लिए | छोटे तो बाहर से ही टुन्न होकर अन्दर आये थे | 

मशालें पकडने के लिए साधू बाबा ने अपने सौ चेलों को विशेष रूप से बुलाया था | तम्बूरे और पखाबज पर अन्नाजी का सुमधुर गायन चलता रहा, पर सिपाही तो आज उनका नृत्य देखने को इकट्ठे हुए थे, सो शोर शराबा होने लगा | अन्नाजी ने विनीत भाव से कहा – मैं कपडे बदलकर और नाच के कपडे पहिनकर आता हूँ | सभी खिलखिलाकर हंस पड़े | अरे वाह, यह दाढी मूंछ वाला जटाधारी अब लहंगा पहिनकर आयेगा | अन्नाजी के बाहर जाते ही, चेलों की मशालें और भी दीप्त हो उठीं और सौ मावले नंगी तलवारें लिए हुए सभागृह में घुस पड़े | सौ तलवारें जहाँ रक्त स्नान कर रही थीं तो सौ मशालें उनके अंगरखों और वस्त्रों को जला रही थीं, थोबडों को भून रही थीं | बहुत से मुग़ल सैनिकों के पास छुरियाँ और कटारियां थीं, उन्होंने लड़ने का प्रयास भी किया, किन्तु असावधानी और नशा उनके सबसे बड़े शत्रु साबित हुए, कोई नहीं बचा | कुछ मावले भी मारे गए, लेकिन सतारा पर भगवा ध्वज फहरा गया | शीघ्र ही ताराबाई की सेना वहां आ पहुंची | 

जब पन्त प्रधान परशुराम त्र्यम्ब्यक के सामने विजेता को पुरष्कार देने का सवाल आया तो बड़ा बखेड़ा खड़ा हो गया | मूलजी कह रहे थे कि सारी योजना अन्नाजी की है, अतः पुरष्कार के हकदार वे ही हैं, तो अन्नाजी का कथन था, मैं तो मर ही जाता, अगर मूलजी ने सहारा न दिया होता | उनके सहयोग के बिना कहीं कुछ भी संभव नहीं था | इस विजय का सारा पुण्य मूलजी और उनकी मावली टुकड़ी को मिलना चाहिए | उस विजय का सूत्रधार कौन था, इसका निर्णय तो शायद पन्त प्रधान ने यही किया होगा कि दोनों के कंठ में विजय माल डाली होगी | 

लेकिन औरंगजेब के इतिहास लेखक खफीखां ने लिखा – उस क्रूर ब्राह्मण अन्नाजी पन्त ने किले के सारे सैनिकों का वध कर डाला | 

यह गाथा ग्रांट डफ़ द्वारा लिखित हिस्ट्री ऑफ़ मराठाज पर आधारित है |
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