अकबर की सेना के भी छक्के छुड़ाने वाली वीर रानी दुर्गावती की बलिदानी गाथा |



कलिंजर के चंदेल राजा कीरत राय की बेटी दुर्गावती का विवाह गढ़ा कटंगा के गोंड राजा के साथ हुआ, किन्तु युवावस्था में ही वैधव्य ने दस्तक दे दी और विवश होकर उन्हें अपने अल्प बयस्क पुत्र वीरनारायण की अभिभाविका के रूप में शासन सूत्र संभालने पड़े | उनकी दूरदर्शिता और वीरता का बखान करते हुए मुस्लिम इतिहासकार अबुलफजल को भी लिखने को विवश होना पड़ा कि बाज बहादुर और मियानों के साथ जबरदस्त संघर्षों में भी वे सदा विजई होती रहीं | उनकी सेना में बीस हजार सिद्धहस्त और कुशल घुड़सवार तथा एक हजार प्रशिक्षित हाथी थे | स्वयं रानी भी वाण और बन्दूक चलाने में महारथी और अचूक निशानेबाज थीं | 

उनके शासन में राज्य बहुत सुखी और समृद्ध था और यही समृद्धि अकबर की आँख में खटकने लगी | अकबर का सेना नायक आसफ खां, पन्ना के राजा को पराजित करचुका था और मालवा भी जीता जा चुका था | अब अकबर ने आसफ खां को गढ़ा की ओर बढ़ने का हुकुम दिया | तब तक यह माना जाने लगा था कि अकबर की सेनायें अजेय हैं किन्तु इस बार उस सैन्य दल का बास्ता उन दुर्गावती से पड़ने वाला था, जो लक्ष्मीबाई से पूर्व बुंदेलखंड की सर्वाधिक चर्चित और वीर महारानी थीं | आसफ खां को पराजय का सामना करना पड़ा |

पराजित आसफ खां जब अकबर के दरबार में वापस पहुंचा तो उसकी पराजय के समाचार से क्रोधित अकबर ने अपने सभी दरबारियों को बुलाकर मंत्रणा की कि इस बहादुर रानी से कैसे पार पाया जाए ? गोंडवाना पर कैसे कब्ज़ा किया जाए ? राय बनी कि पहले तो युद्ध के स्थान पर संधि की इच्छा दर्शाई जाए और फिर पूरी तैयारी के साथ हमला हो | इसी योजना के तहत अकबर का सन्देश वाहक रानी से जाकर मिला और उन्हें सन्देश दिया कि शहंशाह अकबर आपसे बहुत प्रभावित हैं और स्थाई मित्रता चाहते हैं | वे इन दिनों काबुल की तरफ से फिक्रमंद हैं इसलिए उचित सलाह हेतु वे आपके बुद्धिमान मंत्री आधार सिंह जी से मिलना चाहते हैं | रानी को समझते देर नहीं लगी कि अकबर की नीयत क्या है | वह राज्य के प्रमुख योजनाकार को राज्य से दूर करना चाहता है | 

किन्तु आधार सिंह ने जाने की इच्छा प्रगट की | उन्होंने कहा कि आगरे जाकर वे अकबर से मिले हुए राज्य के गद्दारों की जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं | रानी ने पूछा किन्तु अगर आपको गिरफ्तार कर लिया गया तो क्या होगा ? आधार सिंह ने उन्हें विश्वास दिलाया कि वे पूरी तैयारी से जायेंगे और हर हाल में वापस आ जायेंगे |

यह वह दौर था, जब रानी दुर्गावती के राज्य में प्रजा तो सुखी थी, किन्तु कुछ जागीरदार असंतुष्ट | उदाहरण के लिए एक प्रसंग देखते हैं | एक जागीरदार था राव गिरधारी सिंह | ऊपर से तो बहुत सात्विक और धर्मपरायण किन्तु अतिशय झक्की, स्वार्थी और अहंकारी | उसने नियम बनाया हुआ था कि, राजपरिवार और अधिकारियों के अलावा कोई जूता न पहिने, वर्षाकाल में भी कोई छाता न लगाए | उसका सोच यह था कि सामान्य प्रजा और राज्याधिकारियों में कुछ तो अंतर दिखना चाहिए | यह उस दौर की आम समस्या थी | रानी दुर्गावती ने ऐसे लोगों को सबक सिखाया और उनकी जागीरें जब्त कर लीं | जिन्हें ज्यादा उद्दंड माना, उन्हें नजरबन्द कर दिया | लेकिन कुछ लोग राज्य छोड़कर सीधे अकबर से जा मिले | राज्य के मंत्री आधार सिंह इसीलिए आगरा जाना चाहते थे, ताकि उन्हें ऐसे देशद्रोहियों की जानकारी प्राप्त हो जाए |

खैर आधार सिंह अकबर के दरबार में आगरा पहुंचे | प्रत्यक्षतः तो उनका बड़ा स्वागत हुआ | लेकिन अकबर ने जैसे ही अपनी इच्छा प्रदर्शित की कि जैसे राजस्थान के अन्य राजपूत राजाओं ने उनकी अधीनता स्वीकार कर ली है, रानी दुर्गावती भी करें, आधार सिंह ने महारानी की और से उन्हें एक सूखा करेला भेंट स्वरुप प्रदान किया | अकबर की त्योरियां चढ़ गईं | उसने पूछा इसका क्या मतलब है ? आधार सिंह ने विनम्रता से कहा – जहाँपनाह करेले में जो ऊंचे ऊंचे से दीखते हैं, सो पहाड़ियां हैं, और उनके नीचे की लकीरों को आप नदियाँ मानो | महारानी जी ने बड़े आदर के साथ यह भेंट आपको भेजी है | 

दरबार में उपस्थित आसफ खां ने हंसकर कहा कि चूंकि मंत्री जी बूढ़े हो चुके हैं, पूरा राज्य तो उठाकर ला नहीं सकते थे, इसलिए उसकी आकृति भर भेजी है | 

मुस्कुराते हुए आधारसिंह बोले महाराज मैं तो केवल सन्देशवाहक हूँ, अर्थ आप जानें या महारानी साहिबा समझें | अकबर ने उन्हें अपने स्वागत भवन में ले जाने का हुकुम दिया | वस्तुतः यह उनकी नजरबंदी का आदेश था |

उनके जाने के बाद बीरबल ने इस भेंट का अर्थ लगाया – जैसे सूखा करेला खा लेना कठिन है, बैसे ही हमारे राज्य को हड़प लेना भी कठिन है | 

आधार सिंह कुछ दिन नजरबंद रहे, और इस दौरान उनके साथ आये सहयोगी नगर में सुनगुन लेते रहे | जैसे ही मतलब की बातें ज्ञात हुईं, एक रात मंत्री महोदय वहां से नौ दो ग्यारह हो गए | और रानी दुर्गावती को जाकर सावधान कर दिया कि सेनापति सुमेर सिंह के बहनोई बदन सिंह अकबर से मिले हुए हैं तथा किसी भी समय आक्रमण हो सकता है | उन्होंने तो राय दी कि बदन सिंह के पूरे परिवार और अन्य गद्दार जागीरदारों को मृत्युदंड दिया जाए | किन्तु उदार रानी ने ऐसा करना उचित न मानकर ऐसे लोगों को केवल नजरबन्द किया | उसके बाद सेनापति के मार्गदर्शन में आमजन को प्रेरित किया गया कि विधर्मी आतताई हमारी इस पावन धरा पर अधिकार जमाने आ रहा है, सब लोग सेना में भर्ती हों | और फिर बड़े पैमाने पर भर्ती अभियान शुरू हुआ | गद्दारों द्वारा जैसे ही इसकी जानकारी अकबर को प्राप्त हुई, जयपुर नरेश मानसिंह के बफादार राजपूत भी इस दौरान योजना पूर्वक रानी दुर्गावती की सेना में प्रवेश पा गए, ताकि समय आने पर अकबर की फ़ौज की मदद कर पायें | 

इतना सब होने के बाद शुरू हुआ अकबर की और से आसफ खां का आक्रमण | उसके साथ में गद्दार बदन सिंह भी था | रानी दुर्गावती की सेना से तीन गुनी सेना अकबर की थी | लेकिन इसके बाद भी युवराज देव नारायण के नेतृत्व में गोंड सेना ने उनके छक्के छुड़ा दिए | कहाँ आत्मोत्सर्ग की भावना से ओतप्रोत देशभक्त सैनिक कहाँ लूटपाट करने आये डकैत | मुग़ल सेना के पैर उखड गए और वह भागने लगी | लेकिन अब बारी थी, सेना में योजनाबद्ध भर्ती हुए मानसिंह के राजपूतों की | देव नारायण ने आदेश दिया कि भागते हुए शत्रुओं का पीछा कर उनका खात्मा कर दो, लेकिन इन लोगों ने पीछा करने के स्थान पर अन्य सैनिकों को डराना शुरू कर दिया कि उधर मत जाओ, तोपखाना आ गया है, वह हमें भून डालेगा | जबकि उस समय तक तोपखाना आया नहीं था, अगर देवनारायण की आज्ञा का पालन हुआ होता, तो इतिहास कुछ और ही होता | 

उसके बाद तोपखाना आया और लड़ाई का नक्षा ही बदल गया | मंत्री आधार सिंह सेनापति सुमेर सिंह मारे गए और युवराज देव नारायण भी गंभीर घायल हो गए | अब रानी ने स्वयं कमान संभाली | उनका रणचंडी सा रूप देखकर सेना में उत्साह की लहर दौड़ गई | रानी ने तोपखाना कब्जाने की ब्यूह रचना की | उसे तीन तरफ से घेर लिया किन्तु तभी एक जहर बुझा तीर उनकी आँख में आकर लगा | घायल रानी पर चारों और से प्रहार होने लगे और घायल अवस्था में विवश होकर उन्हें युद्ध भूमि से हटना पड़ा | वे जिस स्थान को सुरक्षित समझकर उपचार हेतु पहुंची गद्दार बदनसिंह फ़ौज लेकर बहां भी पहुँच गया | अपने को घिरा देखकर रानी ने पास पड़े अंकुश से अपनी जीवनलीला समाप्त कर ली | उस समय बदनसिंह की पत्नी सुमति ही उनकी सेवा सुश्रुषा कर रही थी | उसे देखकर बदनसिंह फूला नहीं समाया और बोला बस अब तू जल्द ही इस पूरे राज्य की महारानी बनेगी |

लेकिन सुमति की आँखें क्रोध से धधक उठीं | उसने कड़क कर कहा – रे नीच विश्वासघाती, देश द्रोही, ले भस्म होजा अपनी ही लगाई आग में | और इतना कहते हुए उसने तमंचा निकाल कर बदन सिंह के सीने में गोली मार दी |

इसके आगे की कहानी तो बही है, जो हर जगह की हम कह सुन चुके हैं | गढ़ के बंद दरबाजों के पीछे धधकती हुई चिताएं उनमें दग्ध होती हिन्दू वीरांगनाएं | आतताईयों के क्रूर अट्टहास, लूटपाट विध्वंश | हाँ एक अंतर अवश्य रहा कि मुस्लिम सेना ने यहाँ के स्थानीय गद्दारों को भी नहीं बख्शा | उन्हें भी जिन्दा नहीं छोड़ा | शायद इसके पीछे दो सोच रहे होंगे | एक तो यही कि जिसका नमक खाकर बड़े हुए, जब उनके सगे नहीं हुए, तो हमारे क्या होंगे और दूसरा शायद यह कि आसफ खां को यह शंका रही होगी कि कहीं शहंशाह अकबर इनमें से ही किसी को यहाँ का सूबेदार न बना दें |

यश सौरभ से दिव्य धाम को पावन कर महकाया,

स्वतंत्रता की खातिर अपना, तन मन प्राण चढ़ाया,

बड़े बड़े उठ गए भूमि से बली काल ने खाया,

किन्तु धन्य हैं रानी, जिनने दिव्य अमर पद पाया |
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