क्या सिंधिया के समान बड़ा दिल कर पाएंगे उनके समर्थक ?




कभी कॉंग्रेस के बड़े नेता रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया अब भाजपा के न सिर्फ राज्यसभा सांसद है, बल्कि भाजपा में भी उन्हें उचित सम्मान प्राप्त हो रहा है | और हो भी क्यों न क्योंकि वह इसके योग्य भी है | कॉंग्रेस में रहते हुए भी वह बेदाग रहे, उनके ऊपर किसी भी तरह के भ्रष्टाचार का आरोप नहीं लगा यह एक बड़ी बात है | इसके अतिरिक्त जिस प्रकार तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ जी ने उन्हें सड़क पर उतरने की अहंकार पूर्ण चुनौती दी, उसके बाद तो ग्वालियर चम्बल अंचल की जनता में उनके प्रति सहज सहानुभूति का अंडर करेंट भी है | कांग्रेसी चाहे जितना चिल्लपों मचाएं, उनकी छवि धूमिल करने का प्रयास करें, किन्तु सिंधिया का कॉंग्रेस छोड कर भाजपा में आना, जनता को पसंद ही आया है, उनके इस कार्य में स्वाभिमान की जो अभिव्यक्ति है, उसने जनता की नजर में उन्हें नायक बना दिया है |

भाजपा में आने के साथ ही ज्योतिरादित्य सिंधिया भाजपा में घुलते मिलते दिखाई दे रहे है, और यह उनके लिए ज्यादा कठिन भी नहीं था, क्योंकि उनकी दादी स्वर्गीय राजमाता सिंधिया भाजपा के संस्थापक सदस्यों में से एक थी, उनकी बड़ी वसुंधरा राजे सिंधिया एवं यशोधरा राजे सिंधिया भी भाजपा की वरिष्ठ नेता है | अतः भाजपा में न रहते हुए भी सिंधिया भाजपा संगठन एवं उसकी कार्यप्रणाली से अच्छे से परिचित है यह वह दिखा भी रहे है | इसीलिए सिंधिया का तो आमतौर पर भाजपा कार्यकर्ताओं ने भी पलक पांवड़े बिछाकर स्वागत किया है, लेकिन समस्या सिंधिया के साथ आये उनके समर्थकों के साथ आम भाजपा कार्यकर्त्ता की पटरी कितनी बैठ पायेगी, यह देखने बाली बात है, जो कि हजारों की संख्या में अब भाजपाई बन चुके हैं |

एक और कॉंग्रेस एक परिवार की पार्टी मानी जाती है तो भाजपा की विशेषता उसका कार्यकर्ताओं की पार्टी वाला स्वरुप है, जहाँ एक सामान्य सा चाय बेचने वाला भी देश का प्रधानमंत्री बन सकता है| सिंधिया इस बात को अच्छी तरह जानते हैं, इसीलिए भाजपा में आते ही उन्होंने अशोकनगर विधानसभा के जनसंवाद कार्यक्रम के दौरान क्षेत्रीय सांसद केपी यादव के साथ अपने सभी मतभेदों को भुलाते हुए कहा कि केपी को मेरे साथ काम करने का बहुत अच्छा अनुभव है, हम पहले भी एक थे और आज भी हम एक है, बीच में चाहे जो भी हुआ हो | अब हम साथ में लड़ेंगे और हर संकट का सामना करेंगे | सिंधिया के द्वारा इससे पूर्व कभी केपी यादव का नाम तक नहीं लिया गया था, परन्तु उक्त कार्यक्रम में उनके द्वारा केपी यादव के बारे में कही गयी यह बात, सिंधिया के बड़े ह्रदय वाला होने का प्रमाण है |

परन्तु क्या सिंधिया जैसा बड़ा ह्रदय सिंधिया समर्थक कर पायेंगे ? यह सर्वविदित है कि सिंधिया जी की विगत लोकसभा चुनाव में पराजय का एक बड़ा कारण, उनके समर्थकों के द्वारा स्थानीय जनता की अनदेखी कर अति आत्म विश्वास से लबरेज होना भी था, यह अलग बात है कि सबसे बड़ा कारण तो मोदी लहर ही थी| सिंधिया समर्थकों को भी अपने नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया की भांति भाजपा संगठन के अनुसार कार्य करने की आदत डालनी होगी, क्योंकि भाजपा और कॉंग्रेस संगठन की कार्यशैली में जमीन आसमान का अंतर है | भाजपा को सिंधिया एवं सिंधिया को भाजपा की आवश्यकता थी अतः दोनों ने एक दूसरे को न सिर्फ स्वीकार किया बल्कि एक दूसरे का पूरा सम्मान किया, परन्तु भाजपा के मूल कार्यकर्ता सिंधिया के उन समर्थकों को कितना सर माथे बैठा पायेंगे, जो स्वयं पूर्व में सिंधिया के लिए अनुपयोगी सिद्ध होकर, सरदर्द रह चुके है | हालांकि अनेक सिंधिया निष्ठ पहले भी भाजपा में आते जाते रहे हैं, यहाँ तक कि भाजपा में उनके समर्थकों की बड़ी तादाद सदा से रही है, जो उनके कांग्रेसी रहते भी हर चुनाव में उनका समर्थन करते व उनके लिए काम करते दिखाई देते थे | उनकी यह फ़ौज हमेशा से रही है जो कभी किसी नाव पर तो कभी किसी नाव पर सवारी कर अपने स्वार्थ की पूर्ती करती रही है | स्वाभाविक ही अब भाजपा के स्वार्थी तत्वों की यह फ़ौज कॉंग्रेस से भाजपा में आये सिंधिया समर्थकों के साथ गठजोड़ करने में लगी दिखाई दे रही है |

एक तटस्थ विश्लेषक के रूप में मेरा तो यह मानना है कि भाजपा के सामने अब सबसे बड़ी समस्या अपने तत्व निष्ठ कार्यकर्ताओं को संभालना रहने वाली है | अगर इस नए समीकरण के कारण वे हतोत्साहित हुए तो भाजपा की जड़ों में मट्ठा स्वतः डल जाएगा | आज जो कांग्रेस शून्य दिखाई दे रही है, स्थिति उसके एकदम उलट होते देर नहीं लगेगी |

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