तात्या ने जहां बनाई थी व्यूह रचना वह गढ़ी क्या साजिशन नष्ट की जा रही है?

 




आज हम उन लेखकों को तो गरियाते हैं जिन्होंने स्वार्थ परत और कूटनीतिक विचारधारा से कदमताल मिलाकर यह प्रचारित किया कि 1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम अंग्रेजी मान्यता के विरुद्ध बर्बरता पूर्ण विद्रोह था परंतु प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के महानायक तात्या टोपे ने जहां ग्वालियर किले पर कब्जा करने की सफल रणनीति बनाई थी, उस गढ़ी की वर्तमान दुर्दशा को देखकर बरबस ही मन में आता है कि कहीं इस ऐतिहासिक गढ़ी को साजिशन नष्ट तो नहीं किया जा रहा है? 

हम बात कर रहे हैं मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले के पोहरी विधानसभा के गोपालपुर नामक ग्राम में स्थित राव रघुनाथ सिंह वशिष्ठ की गढ़ी की। शिवपुरी शहर से महज 40 किलोमीटर दूर बियाबान जंगलों के बीच गोपालपुर नामक ग्राम बसा हुआ है इसी ग्राम में स्थित गढ़ी उस ऐतिहासिक घटना की साक्षी है जिसके बारे में बहुत ही कम लोगों को जानकारी है। अंग्रेजों के विरुद्ध अट्ठारह सौ सत्तावन के स्वतंत्र समय में झांसी की पराजय के बाद नाना साहब और महारानी लक्ष्मीबाई जब कालपी में अंग्रेजों से आरपार की लड़ाई में व्यस्त थे, भविष्य की रणनीति बनाने को तात्या टोपे अपने बीमार पिता से मिलने के बहाने गोपालपुर आये थे, और यहाँ ही उन्होंने तत्कालीन सिंधिया राज्य के सरदारों के साथ मिलकर वह रणनीति बनाई थी, जिसके कारण ग्वालियर पर उनका कब्जा बिना किसी युद्ध के हो गया और सिंधिया को ग्वालियर छोड़ आगरा जाना पड़ा और ग्वालियर के खजांची अमर चंद्र बांठिया ने पूरा खजाना क्रांतिकारियों के लिए खोल दिया। ग्वालियर में जश्न मनाया गया पेशवा राव साहब को तोपों की सलामी दी गई और इसके बाद क्या क्या हुआ, वह महारानी लक्ष्मीबाई की बलिदानी गाथा तो हम सभी जानते हैं, बस नहीं जानते हैं तो केवल यह कि गोपालपुर के जागीरदार राव रघुनाथ सिंह क्रांतिकारियों के विश्वासपात्र थे एवं उन्होंने अपेक्षा के अनुसार पूरा सहयोग भी किया। गोपालपुर गढ़ी में रहते हुए ही तात्या टोपे ने ग्वालियर पहुंचकर वहां के सैनिकों, सेना नायकों से वार्ता स्थापित कर उन्हें अपनी ओर शामिल कर लिया। 


ग्वालियर में महारानी के बलिदान के बाद भी क्रांतिकारियों ने इस गढ़ी में शरण ली, किन्तु सूचना मिलने पर अंग्रेजों ने इस गढ़ी को चारों ओर से घेर लिया गया। इस दौरान राव रघुनाथ सिंह ने क्रांतिकारियों को गुप्त रास्ते से सुरक्षित गढ़ी से बाहर निकाला और स्वयं को परिवार सहित अंग्रेजी दमन और अत्याचार सहने के लिए अंग्रेज सेना और अधिकारियों के हवाले कर दिया। गोपालपुर स्थित गढ़ी पर अंग्रेजों के आक्रमण के सबूत आज भी गढ़ी की दीवारों पर स्पष्ट दिखाई देते हैं। गढ़ी की दीवारों में आज भी अंग्रेजों की तोपों से निकले गोले धंसे हुए हैं। स्थानीय नागरिक बताते हैं कि जब गढ़ी पर तोपों से गोले बरसाए गए तो यह गोले गढ़ी की दीवारों में धंस कर ही रह गए परंतु फटे नहीं यह चमत्कार नहीं तो क्या था? अंग्रेजों का कोई भी हथियार गढ़ी को नुकसान नहीं पहुंचा सका था। परंतु जिस गढ़ी का अंग्रेज बाल भी बांका नहीं कर सके थे, आजाद भारत में इस ऐतिहासिक स्थल की हालत जीर्ण शीर्ण है। अतिक्रमणकारियों ने इस ऐतिहासिक संपदा पर अतिक्रमण कर लिया है, गढ़ी में स्थित दामोदर महाराज मंदिर एवं बाउंड्री वॉल के जीर्णोद्धार हेतु ग्रामीणों के द्वारा शासन प्रशासन का ध्यान आकर्षण करने के बावजूद इस ओर शासन प्रशासन द्वारा कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। 


विचार करें कि आजादी के मतवालों ने जिस स्थान पर नष्ट हो चुके अस्त्र शस्त्रों और साधनों के अभाव में, मात्र साहस के बल पर ग्वालियर पर कब्जा करने की योजना बनाई, उस ऐतिहासिक स्थल की जानकारी भी अधिकांश लोगों को नहीं है। परंतु आज भी गोपालपुर की सोंधी मिट्टी में जीने वाले बुजुर्गों के होठों पर इस प्रसंग के चलते ही बरबस ही है गीत उभर आता है- 

मिट्टी और पत्थर थी उसने अपनी सेना गड़ी, 

केवल लकड़ियों से उसने तलवारे बनाई, 

पहाड़ को उसने घोड़े का रूप दिया, 

और रानी ग्वालियर की ओर बढ़ी।

एक टिप्पणी भेजें

एक टिप्पणी भेजें