“विजयादशमी बस कुछ ही दिन दूर है। आसपास के गांवों की महिलाएं मंदिर में दर्शन करने जाएंगी। हम उनके बीच घुलमिल सकते हैं और किले के अंदर पहुंच स...

“विजयादशमी बस कुछ ही दिन दूर है। आसपास के गांवों की महिलाएं मंदिर में दर्शन करने जाएंगी। हम उनके बीच घुलमिल सकते हैं और किले के अंदर पहुंच सकते हैं। ”
रानी वेलु नचियार ने किले की ओर देखा ... उसकी आँखों में बदले की आग धधक उठी । ज्यादा समय नहीं बीता था, जब यह किला उन्ही के अधिकार में था। वे शिवगंगा की रानी थीं और उनके पति मुथु वदुगनाथ थेवर वहां शासन करते थे।
लेकिन एक दिन… वर्ष 1772 में… ईस्ट इंडिया कंपनी और अर्कोट के नवाब की सेनाओं की बाढ़ में शिवगंगा डूब गया । राजा थेवर अपने राज्य की रक्षा करते हुए शहीद हो गए और शिवगंगा अंग्रेजों की गिरफ्त में पहुँच गया । रानी वेलु अपनी नवजात बेटी के साथ जंगलों में छुपने को बाध्य हुईं।
और उसके बाद आठ वर्षों तक अनेक कठिनाईयों को झेलते हुए भी रानी ने अपनी आँखों में बदला लेने का सपना जीवित रखा। उन्होंने ठान रखा था कि एक न एक दिन अपनी प्रिय शिवगंगा को उत्पीड़कों के चंगुल से मुक्त कराना है।
रानी वेलु नाचियार रामनाथपुरम के राजा की एकमात्र संतान थीं। इसलिए उनका लालन पालन एक राजकुमार की तरह ही हुआ था। बचपन से ही उन्हें मार्शल आर्ट, घुड़सवारी, तीरंदाजी, सिलंबम (छडी युद्ध) का प्रशिक्षण दिया गया था। उनकी स्मरण शक्ति व सीखने की क्षमता अद्भुत थी, और वे तमिल, अंग्रेजी, फ्रेंच और उर्दू जैसी कई भाषाओं को समझ और बोल सकती थीं ।
अपने पति की शहादत और शिवगंगा के पतन के बाद, वह लंबे समय तक डिंडीगुल के जंगलों में रहीं और मैसूर के शासक हैदर अली की मदद से अपनी सेना का निर्माण शुरू किया।
उन्होंने युवतियों की एक सेना बनाई और उसका नाम उस बहादुर महिला उदियाल के नाम पर रखा, जिसने शिवगंगा से पलायन के समय उनकी प्राणरक्षा की थी। इन महिलाओं को विभिन्न प्रकार के युद्ध में प्रशिक्षित किया गया । इसके साथ साथ उनके विश्वासपात्र, मारुड़ भाईयों ने क्षेत्र के वफादारों की एक सेना का निर्माण शुरू किया।
रानी वेलु के नेतृत्व में इस सेना ने धीरे-धीरे शिवगंगा क्षेत्र को फिर से जीतना शुरू कर दिया और आखिरकार ये लोग उस किले तक पहुंच गये, जिस पर अंग्रेजों ने कब्जा जमाया हुआ था ।
लेकिन किला जीतना आसान नहीं था। उसके लिए आवश्यक संसाधन रानी वेलु के पास नहीं थे।
यही वह समय था जब उदियाल सेना की बहादुर सेनापति- कुइली आगे आई।
कुइली ने कुछ अन्य महिला सैनिकों के साथ पूजा करने के बहाने ग्रामीण महिलाओं के रूप में दुर्ग में प्रवेश किया। एक बार अंदर जाने के बाद, उन्होंने सही समय का इंतजार किया और फिर अपनी घातक तलवारों से मारकाट शुरू कर दी । अचानक हुए इस हमले से अंग्रेज स्तब्ध रह गए। कुछ ही समय में, इन निडर महिला योद्धाओं ने गार्डों को मारकर किले के द्वार खोलने में सफलता प्राप्त की।
इसी क्षण का तो रानी वेलु नचियार को इंतजार था। उनकी सेना ने बिजली की गति के साथ किले में प्रवेश किया और भीषण युद्ध शुरू हो गया ।
कहा जाता है कि इसी बीच कुइली का ध्यान ब्रिटिश गोला-बारूद के भण्डार की ओर गया । एक पल की देरी किये बिना, उन्होंने अपने शरीर के ऊपर मंदिर में रखा घी डाला और खुद को आग लगा ली। फिर हाथ में तलवार लेकर, वह गोला-बारूद भण्डार की ओर बढी, रक्षक सिपाहियों को छकाते हुए वह उस भण्डार पर कूद गई। एक विस्फोट के साथ, गोला बारूद का भण्डार आग की लपटों में घिर गया। मातृभूमि की रक्षा के लिए इस तरह आत्म-बलिदान करने की यह एक अनूठी और पहली घटना थी ।
अंततः अंग्रेज पराजित हुए और रानी वेलु ने आजादी के इस पहले युद्ध में विजय पाई और 1780 में अपने राज्य को मुक्त कराने में सफलता पाई ।
रानी वेलु नाचियार, शायद पहली भारतीय रानी हैं, जिन्होंने अंग्रेजों को हराकर अपने राज्य को वापस जीता था।
वह भारत की पहली 'झांसी की रानी' थीं। प्रत्येक भारतीय को उनके जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिए। उनकी प्रेरक कहानी को स्कूलों के पाठ्यक्रम और पाठ्य पुस्तकों में शामिल किया जाना चाहिए।
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