आईये कल्पना के पंखों पर सवार होकर पाकिस्तान स्थित माता हिंगलाज मंदिर की यात्रा करें !




यह कथा तो सर्वज्ञात है कि भगवान शिव की पत्नी सती अपने पिता दक्ष के यज्ञ में अपने पति का अपमान सहन नहीं कर पाई और उसी यज्ञकुंड में कूदकर भस्म हो गई। क्रोधित शिवजी ने अपनी जटा से वीरभद्र को उत्पन्न किया, जिसने दक्ष यज्ञ का विध्वंस कर दक्ष का सिर भी काटकर यज्ञ कुंड में ही झोंक दिया। बाद में देवताओं की प्रार्थना पर भगवान भोलेनाथ ने दक्ष के धड पर बकरे का सर लगाकर उन्हें जीवित किया | दक्ष के अहंकार की परिणति, मैं मैं करने वाले बकरे के सर में हुई | दुखी भगवान शंकर भी सती के जले हुए शव को कंधे पर लिए यत्र तत्र घूमने लगे। उन्हें इस मोह से मुक्त करने के लिए भगवान विष्णू ने सुदर्शन चक्र से सती की देह को विखंडित कर दिया और जहां-जहां माता के अंग गिरे वहां-वहां शक्तिपीठ निर्मित हो गए। 

देवी भागवत पुराण में इन शक्तिपीठों की संख्या 108, कालिकापुराण में 26, शिवपुराण में 51 शक्ति पीठ बताये गए हैं। ऐसा ही एक शक्तिपीठ है हिंगलाज माता का मंदिर, जहां माता का ब्रह्मरंध (सिर) गिरा था। 

यह हिंगुला या हिंगलाज शक्तिपीठ अब बलूचिस्तान पाकिस्तान में है और कराची से 125 किमी उत्तर पूर्व में हिंगोल नदी के किनारे स्थित है | हिंगलाज माता को पांडवों की कुलदेवी कहा जाता है | स्थानीय बलूच लोग प्राचीन काल से इसे नानी मंदिर, हिंगलाज देवी या हिंगुला देवी के नाम से पुकारते आये है । मंदिर यदि भारत में होता तो शायद नवरात्रि के पावन अवसर पर लाखों तीर्थ यात्री वहां पहुंचते, किन्तु पाकिस्तान में हजारों ही सही, पर पहुंचते तो हैं ही ! इन श्रद्धालुओं में ज्यादातर संख्या थरपारकर के हिन्दुओं की होती है, क्योंकि पाकिस्तान में हिंदुओं की जनसंख्या थरपारकर में ही सबसे ज्यादा है, जहाँ लगभग तीन लाख हिन्दू रहते हैं । बहुत से श्रद्धालु मीठी और उम्रकोट से 550 किलोमीटर की यात्रा पैदल 22 दिनों में पूर्ण कर अपने गंतव्य तक पहुंचते हैं। शेष कारों और अन्य वाहनों से वहां जाते हैं । कराची और ग्वादर के बीच 2007 में निर्मित हुए मकरान तटीय राजमार्ग ने इस आवागमन को काफी हद तक सुगम कर दिया है । 

हम लोग वहां जा तो नहीं सकते, किन्तु स्थानीय हिन्दू बासिन्दे वहां कैसे जाते हैं, इसे पढ़कर मां भगवती की मानसिक पूजा तो कर ही सकते हैं | आईये कल्पना के पंख लगाकर हम इस यात्रा का दर्शन करें - 

जय माता दी की जयकार लगाते श्रद्धालु, धीरे धीरे मंथर गति से चन्द्रगुप्त नामक ज्वालामुखी की चढ़ाई पर नंगे पाँव जाते दिखाई देते हैं ! उखड़ी हुई साँसें और बदन से बहता हुआ पसीना, लेकिन उत्साह, श्रद्धा और भक्ति में कोई कमी नहीं ! 300 फुट की ऊंचाई पर स्थित इस ज्वालामुखी के मुहाने पर पहुंचते ही तीर्थ यात्री अपने साथ लाया नारियल ज्वालामुखी के विशाल गव्हर में सादर चढ़ा देते हैं ! हाथ जोड़कर देवताओं का स्मरण कर उन्हें प्रणाम निवेदन करते है, अपनी मनोकामना पूर्ण करने की प्रार्थना करते हैं ! 

चंद्रगुप्त के मुहाने पर अदा की जाने वाली यह रस्म, इस पवित्र हिन्दू तीर्थ माता हिंगलाज देवी यात्रा का प्रथम चरण है । उसके उपरांत वहां की पवित्र भभूत अपने चेहरे पर लगाए श्रद्धालु वापस नीचे उतरते हैं और वहां से 35 किमी दूर किर्थार पहाड़ों की तलहटी में स्थित मुख्य हिंगलाज देवी मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं । 

सड़क के किनारे लगे स्टालों में नारियल, अगरबत्ती, देवी-देवताओं की मूर्तियां, गुलाब और गेंदा के फूल, भजन की किताबें, सूखे फल और यात्रियों के लिए अन्य खाद्य वस्तुओं का विक्रय होता है । 

हिंगलाज भवानी शक्तिपीठ कल्याण ट्रस्ट द्वारा विगत अनेक वर्षों से इस समारोह का आयोजन किया जा रहा है ! जिन मुसलमानों को तीर्थ यात्रा के आयोजक नही जानते उन्हें प्रवेश नहीं करने दिया जाता । बैसे कई स्थानीय मुसलमान भी इसे नानी का हज और मंदिर को नानी मंदिर कहकर सम्मान देते हैं ! 

एक बात ध्यान देने योग्य है कि बलूच नेताओं ने घोषणा की है कि अगर बलूचिस्तान पाकिस्तान के कब्जे से आजाद होता है, तो भारत के हिन्दुओं को मंदिर दर्शन के लिए बिना शर्त बीसा दिया जाएगा ! आईये आज हम भी माँ हिंगलाज की कृपा हेतु प्रार्थना करें ताकि जल्द से जल्द बलूचिस्तान आजाद हो ! ध्यान रहे कि भारत की अधिकाँश समस्याओं का समाधान भी पाकिस्तान के बिखंडन में ही निहित है ! 

जब हिंगलाज माता का वर्णन शुरू किया है तो यह तनोट माता के स्मरण के बिना अधूरा है | तनोट माँ या तन्नोट माँ का यह मन्दिर जैसलमेर जिले से लगभग एक सौ तीस कि॰मी॰ की दूरी पर स्थित हैं। भाटी राजपूत नरेश तणुराव ने वि॰सं॰ 828 में तनोट का मंदिर बनवाकर मूर्ति को स्थापित किया था। तबसे ही भाटी तथा जैसलमेर के पड़ौसी इलाकों के लोग आज भी इस माता को पूजते आ रहे हैं। 

यहाँ मामड़िया चारण की पुत्री देवी आवड़ को तणोट माता नाम से पूजा जाता है, जिन्हें हिंगलाज माँ का ही एक रूप माना जाता है। उसकी कथा इस प्रकार बताई जाती है कि बहुत समय पहले एक मामड़िया नामक चारण ने संतान प्राप्ति के लिए सात बार हिंगलाज माता की पूरी तरह पैदल यात्रा की। एक रात उस चारण को स्वप्न में आकर माता ने पूछा कि तुम्हें बेटा चाहिए या बेटी , तो चारण ने प्रार्थना की कि मेरे घर तो आप ही जन्म लो। 

हिंगलाज माता की कृपा से उस चारण के घर पर सात पुत्रियों और एक पुत्र ने जन्म लिया। इनमें से एक आवड मा थी जिनको तनोट माता के नाम से जाना जाता है। मंदिर की प्रसिद्धि सितम्बर 1965 में हुए भारत पाकिस्तान के युद्ध के बाद तब और बढ़ गई, जब पाकिस्तान के जहाज़ों ने मंदिर पर और उसके आसपास कई बम गिराए, लेकिन माँ की कृपा से एक भी बम नहीं फटा। तभी से सीमा सुरक्षा बल के जवान इस मन्दिर के प्रति काफी श्रद्धा भाव रखते हैं। मंदिर परिसर में आज भी उन बिना फटे साढ़े चार सौ पाकिस्तानी बमों को श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ रखा गया है | इतना ही नहीं तो युद्ध समाप्ति के बाद इस चमत्कार से प्रभावित होकर पाकिस्तानी ब्रिगेडियर शाहनवाज खान ने भारत सरकार से मंदिर दर्शन की अनुमति माँगी, जो उसे तीन साल बाद प्राप्त हुई | उसने मंदिर दर्शन के बाद यहाँ चांदी का छत्र भी चढ़ाया, जो आज भी मंदिर में है | 

पाकिस्तान की सीमा से मात्र बीस किलोमीटर दूरी पर स्थित इस देवी मंदिर का रखरखाव सीमा सुरक्षा बल ही करता है | भारत पाकिस्तान युद्ध में भारत की विजय की स्मृति में यहाँ एक विजय स्तम्भ का निर्माण भी किया गया है |
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