करैरा में भाजपा तो पोहरी में कांग्रेस की जीत को माना जाएगा चमत्कार




2020 के उपचुनाव ट्वंटी ट्वंटी क्रिकेट की तर्ज पर रोमांच लिए हुए हैं। शिवपुरी जिले की पोहरी और करैरा विधानसभा सीटों पर यूं तो चुनाव शांतिपूर्वक निबट गए हैं, लेकिन ऊँट किस करबट बैठेगा यह तो दस नवम्बर को ही पता चलेगा, जब ईव्हीएम से परिणाम सामने आयेगा, लेकिन पिछले चुनाव परिणाम काफी हद तक तस्वीर साफ़ कर रहे हैं । 2008 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने करैरा और पोहरी दोनों सीटों पर जीत हांसिल की थी। उसी प्रकार 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने पोहरी और करैरा दोनों सीटों पर विजय पताका फहराई थी। किन्तु 2013 में दोनों ही दलों को एक एक सीट मिली थी । 2020 के विधानसभा उपचुनाव में भी क्या ऐसा ही होगा? मतदान के पश्चात राजनैतिक समीक्षकों का आंकलन है कि हो सकता यह संभावना 10 नबंवर को वास्तविकता में बदल जाए। हालांकि एक संभावना यह भी जताई जा रही है कि बहुत संभव है पोहरी सीट पर बसपा इतिहास में पहली बार कब्जा जमा ले। इसका सबसे बड़ा कारण यह माना जा रहा है कि भाजपा प्रत्यासी सुरेश राठखेडा हो या कांग्रेस प्रत्यासी हरिवल्लभ शुक्ला, दोनों ही अपनी टक्कर बसपा के कैलाश कुशवाह से बता रहे हैं। भाजपा कांग्रेस को तीसरे नंबर पर बता रही है, तो कांग्रेस भाजपा को, अर्थात बसपा को सबल दोनों हूँ प्रमुख दल मान रहे हैं । ऐसे में क्यों न यह माना जाए कि बसपा भी छुपा रुस्तम साबित हो सकती है। 

लेकिन यह दूर की कौड़ी है, जमीनी हकीकत यह है कि पोहरी विधानसभा में चुनाव परिणाम पर जातीयता हावी रहती है। और फिर जब किसी दल विशेष के प्रति कोई भावनात्मक लगाव न हो तो मतदाता भी जाति को वरीयता दे दें, तो क्या अचम्भा । पोहरी में किरार मतदाताओं की संख्या लगभग 40 हजार है। इन मतों का अधिसंख्यक ध्रुवीकरण सजातीय उम्मीदवार के पक्ष में होगा, इसे सहज माना जा सकता है, उसी प्रकार आदिवासी मतदाताओं के खाते में आई केंद्र सरकार व प्रदेश सरकार की एकमुश्त धनराशी, इस चुनाव का अहम मास्टर स्ट्रोक है, साथ ही आदिवासियों की परंपरागत सिंधिया भक्ति तो है ही । पहली बार आदिवासी वोट थोक में भाजपा के पाले में जाते दिखाई दे रहे हैं । इसके अतिरिक्त पोहरी में कोई स्थानीय भाजपा नेता इतना सबल भी नहीं होने के कारण भितरघात की न के बराबर संभावना है । अतः इस बार के चुनाव परिणाम भाजपा के पक्ष में आने की संभावना अधिक प्रबल है और कांग्रेस की जीत को चमत्कार कहा जाएगा । 

दूसरी और करैरा में स्थिति भाजपा के लिए नितांत प्रतिकूल है। वहां भले ही बसपा भी मैदान में है, किन्तु मुकाबला सीधे कांग्रेस और भाजपा के बीच है। जो समाचार मिले हैं, उसके अनुसार अनुसूचित जाति के वोट भी एक मुश्त कांग्रेस को मिले हैं, उसका मुख्य कारण यह है कि कांग्रेस प्रत्यासी प्रागीलाल जाटव लगातार पिछले तीन चुनाव बसपा टिकिट पर लड़कर बहुत कम अंतर से पराजित होते रहे हैं। इस कारण उनके प्रति न केवल सजातीय, बल्कि आम मतदाता में भी सहज अपनेपन व सहानुभूति का भाव है। इसके अतिरिक्त गुर्जर मतदाताओं का भी रुझान राजस्थान के वरिष्ठ नेता पायलट की सभा के बाद अधिकाँश उनके प्रति ही देखा जा रहा है। तीसरा और सबसे बड़ा कारण है स्थानीय वरिष्ठ भाजपा नेता, जिन्हें या तो अपने भविष्य की चिंता सता रही थी, या जिनके प्रति जनाक्रोश था । अतः स्वाभाविक ही करैरा में भाजपा की विजय को चमत्कार ही कहा जाएगा।
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