आर्य द्रविड़ भेद की बातें व्यर्थ –महान तमिल कवि तिरुवल्लुवर का जीवन वृत्त इसका प्रमाण है !




मन को निर्मल रखना ही वस्तुतः धर्म है | अन्य सभी कार्य बाह्याडम्बर मात्र हैं | 

ईर्ष्या, लोभ, क्रोध एवं कठोर वचन – इन चारों से बचते रहना ही धार्मिक कार्य है | 

बिना रुके सदा धर्म का पालन करो, यह मृत्यु के उपरांत भी निरंतर सहायक होता है | 

धर्म की इतनी सरल किन्तु सर्वांगपूर्ण व्याख्या की गई हैं उस तमिल ग्रन्थ तिरुक्कुरल में, जिसे रचा था उस युग के महान संत तिरुवल्लुवर ने | तिरुवल्लुवर के काल को लेकर विद्वानों में मतभेद हैं | उन्हें ईसा से दो सौ वर्ष पूर्व से लेकर आठवीं सदी तक का माना जाता है | लेकिन इसमें कोई दो मत नहीं हैं, कि उनकी इकलौती कृति तिरुक्कुरल की प्रशंसा विश्व के श्रेष्ठ विद्वान भी कर चुके हैं और इसका अनुवाद लेटिन, जर्मन, अंग्रेजी तथा फ्रेंच में भी हो चूका है | तमिल वेद कहे जाने वाले इस ग्रन्थ तिरुक्कुरल में मुख्यतः नीति वाक्य हैं, किसी धर्म या संप्रदाय का कोई उल्लेख न होने से इसे सभी के लिए उपयोगी माना गया | हिन्दू, जैन, बौद्ध, ईसाई, मुस्लिम सभी ने इसे आदर दिया | तो आईये उस महान तमिल कवि व विचारक तिरुवल्लुवर के विषय में कुछ जानें | 

तिरुवल्लुवर का वास्तविक नाम क्या है, इसका किसी को पता नहीं है | तमिल में तिरु एक आदरसूचक उपसर्ग मात्र है, जबकि बल्लुवर उनकी जाति का सूचक है, जिसे अत्यंत निम्न कोटि की माना जाता है | कबीर के समान ही उनके जन्म के विषय में भी अनेक किवदंतियां प्रचलित हैं | कबीर के ही समान एक जुलाहे का कार्य करते हुए उन्होंने मद्रास नगर के मयिलापुर में अपनी पत्नी के साथ सानंद जीवन व्यतीत किया | एक अत्यंत ही साधारण परिस्थिति में जीवन यापन करते हुए, इतने महान काव्य की रचना करना ही उनकी महानता का सबसे बड़ा प्रमाण है | कुरल का मूल अर्थ है, लघु अर्थात छोटे छंद | तिरुक्कुरल में १३३० कुरल हैं | ग्रन्थ में तीन खंड हैं, जिन्हें नाम दिया गया है – धर्म, अर्थ और काम | सनातन संकृति में जिन चार पुरुषार्थों का उल्लेख है, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष, उनमें से केवल तीन ही कवि ने प्रयोग किये हैं, संभवतः उन्होंने माना है कि अगर आदर्श के रूप में उन तीन पर ही आचरण कर लिया जाए, तो चौथा मोक्ष तो स्वतः प्राप्त हो जायेगा | 

अब जैसा कि पौराणिक आख्यानों में वर्णित होता है, महापुरुषों के साथ चमत्कारों का समावेश, बैसा ही इनके साथ भी है | इनके विवाह को लेकर भी कथा प्रचलित है | तिरुवल्लुवर के आदर्श जीवन से प्रभावित होकर इनके भावी श्वसुर ने इनसे अपनी पुत्री वासुकी के साथ विवाह का प्रस्ताव रखा | तिरुवल्लुवर ने एक बालू के ढेर की ओर इशारा करते हुए कहा कि अगर यह इसे पकाकर मुलायम कर दे तो मैं पाणिग्रहण के लिए सहमत हूँ | 

तिरुक्कुरल का एक छंद है – 

ईश न, नित उठ पूजे पति को, 

बरसों कह दे तो बरसे | 

अर्थात जो पत्नी इश्वर को बाद में, पहले पति का पूजन करती है, उसकी आज्ञा का पालन प्रकृति भी करती है, उसके कहने से ही वर्षा होती है | 

तो उसी अनुरूप कहा जाता है कि वासुकी ने बालू को भात के समान पका दिया | विवाहोपरांत एक व्यक्ति को संदेह था कि एक जुलाहा इतना महान कैसे हो सकता है, तो वह इनके पास आया और प्रश्न किया – गृहस्थ जीवन श्रेष्ठ है या संन्यास ? 

तिरुवल्लुवर ने कहा मेरे साथ रहकर मेरे रहन सहन को देखो, उत्तर खुद ब खुद मिल जाएगा | कुछ समय बाद, जब वासुकी कुए से जल भर रही थी, संत ने उन्हें आवाज लगाई, आधे खिचे पात्र को बीच में ही छोडकर वे पति के सम्मुख जा पहुंची | वासुकी के लौटने तक वह भरा हुआ पात्र, उसी स्थिति में हवा में निराधार लटका रहा | शीतकाल में तिरुवल्लुवर ने कहा बहुत गरमी लग रही है, तो वासुकी ने बिना कुछ कहे पंखा झलना शुरू कर दिया | प्रश्नकर्ता को समझ में आ गया कि ऐसी पत्नी हो, तो गृहस्थ जीवन श्रेष्ठ है, अन्यथा संन्यास | 

कविवर की अर्धांगिनी का अंतिम समय था, मृत्यु शैया पर वह उनकी ओर देख रही थीं, मानो उनके मन में कोई सवाल है, किन्तु पूछने में हिचक रही हैं | तिरुवल्लुवर ने उसका कारण पूछा | वासुकी ने सविनय अत्यंत मृदुल शब्द में कहा – विवाह के बाद आपने आज्ञा दी थी कि भोजन के समय एक सुई और एक छोटे पात्र में स्वच्छ जल भी साथ रख दिया करो – और मैं वैसा करती आई, पर मैं उसका कारण कभी नहीं समझ सकी | 

तिरुवल्लुवर ने उत्तर दिया – वह इसलिए था कि अगर कभी गलती से कोई चावल का कण प्रथ्वी पर गिर जाए, तो सुई से उसे उठाकर स्वच्छ जल से शुद्ध कर प्रयोग कर सकूं | 

यह घटनाएँ रूपक हो सकती है, किन्तु प्राचीन तमिल संस्कृति की श्रेष्ठता इनसे अवश्य सामने आती है | आर्य और द्रविड़ का बावेला मचाने वाले जरा सोचें तो कि नामभेद के अतिरिक्त क्या अंतर है दोनों संस्कृतियों में ? दोनों की मान्यताएं एक, दोनों की आदर्श की कल्पनाएँ एक, पाप और पुण्य की धारणाएं एक | 

विचार स्वातंत्र की भावना को अभिव्यक्त करते हुए कवि ने ग्रन्थ में कहा है – 

जो भी सुनें किसी भी जन से, 

उसमें सत्य निरखना ज्ञान | 

किसी बस्तु का गुण कुछ भी हो, 

उसमें सत्य निरखना ज्ञान | 

ज्ञान और ग्यानी की कितनी सुन्दर परिभाषा है | ज्ञान पिपासुओं को तिरुवल्लुवर रचित तिरुक्कुरल का अवश्य अध्ययन मनन करना चाहिए |
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