मोदी से जानें क्यों आवश्यक है स्वयं का इतिहास जानना - दिवाकर शर्मा

 

मानव सभ्यता के इतिहास को लेकर प्रत्येक व्यक्ति, विचार और दुनिया का नजरिया हमेशा समय सापेक्ष रहा है। किन्तु वास्तविकता यह है कि इतिहास से हम भारतीयों ने कभी कुछ नहीं सीखा है। जार्ज संतायन के शब्दों में "जो इतिहास को याद नहीं रखते, उनको इतिहास को दुहराने का दंड मिलता है। दरअसल इतिहास न सिर्फ बीते हुए समय का लेखा जोखा है बल्कि बीती हुई गलतियों को सुधारने, उनसे सीख लेने और वर्तमान को इतिहास में दर्ज नहीं होने देने का उपक्रम भी है। परन्तु दुर्भाग्य है कि वर्तमान में इतिहास को महज राजा रानी की कहानियां और कुछ घटनाओं का दस्तावेज मान लिया गया है। प्रायः सभी देशों में प्राचीन इतिहास के अध्ययन पर बहुत बल दिया जाता है, परन्तु जब हम प्राचीन भारत के इतिहास पर विचार करते है, तब हमारे सामने उस काल की अनेक श्रेष्ठ विशेषताएं उजागर होती है, जो किसी दूसरे देश की प्राचीन संस्कृति से हमें प्राप्त नहीं होती। किन्तु साथ ही वे कमियाँ भी समझ में आती हैं, जिनके कारण हमारी दुर्गति हुई ।

भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अनेकों बार कह चुके है कि वह एक नया भारत बनाना चाहते है। ऐसा नया भारत जिसमें हर भारतीय के पास घर हो, घर में बिजली, पानी एवं घरेलु गैस की सुविधाएँ हों। एक ऐसा नया भारत, जिसमें हर नवयुवक के पास रोजगार हो। नया भारत अर्थात एक ऐसा स्वप्न जिसमें हर आम भारतीय के पास बुनियादी वस्तुएं होंगी एवं भारत दुनियाँ की आर्थिक महाशक्तियों की श्रेणी में न सिर्फ शामिल होगा बल्कि सबसे आगे होगा। इसकी शुरुवात भी मोदी कर चुके है, जिसके प्रारंभिक दौर में भारत के गुमनाम इतिहास को सभी के सामने लाया जा रहा है। भारत के प्राचीन शहरों को उनके पुराने नाम वापस दिए जा रहे है ताकि लोग जान सकें कि इसका प्राचीन इतिहास क्या था। 

कुशल व सफल नेतृत्व के बारे में आचार्य चाणक्य ने कहा है कि "जब किसी काम को करना शुरू करो तो असफलता से मत डरो और उसे छोड़ो मत। शासन के अंदर असफलता का भय नहीं होना चाहिए। काम करते रहो परिणाम की चिंता मत करो।" इतिहास में अमर हो चुके आचार्य चाणक्य की इन पंक्तियों से लेकर मोदी ने जम्मू काश्मीर में अनुच्छेद ३७० और ३५ ए हटाने का निर्णय लिया। एक ऐसा मुद्दा जिससे देश पिछले सात दशकों से एक ही रास्ते पर चलते चलते बंद गली में पहुँच गया था। उस अकल्पनीय कार्य को मोदी ने इतिहास से सीख लेते हुए अंजाम दिया। आजाद भारत के इतिहास में इस ऐतिहासिक कार्य का कोई सानी नहीं है। मोदी मानते है अगर आपको पुनः अपने स्वर्णिम काल में खड़ा होना है तो अपनी पुरातन अस्मिता का स्मरण कीजिये। अगर अपनी अस्मिता को समझना चाहते है तो अपनी संस्कृति की और देखिये और अगर अपनी संस्कृति की गौरवशाली परंपरा को आत्मसात करना चाहते है तो अपने पुरातन ग्रंथों की ओर जाइये। 

डॉ हरीश चंद्र अपनी पुस्तक मोदी नीति में लिखते है कि - जरा सोचिये कि आखिर हाल के समय के मोदी सरकार के बड़े निर्णयों जैसे जी.एस.टी., उपभोक्ता संरक्षण जैसे समसामयिक विषयों और वेद, पुराण, रामायण, महाभारत से परिपूर्ण लगभग 5 हजार वर्ष पुरानी भारतीय संस्कृति के बीच क्या सम्बन्ध हो सकता है ? वर्तमान समय के हर चिंतन, हर समस्या का समाधान इन ग्रंथों में ढूँढा जा सकता है। मानवीय जीवन का शायद ही ऐसा कोई पक्ष हो, जिसकी पूर्व कल्पना इन ग्रंथों में उपलब्ध न हो। आज जब हम हर चिंता, हर चिंतन के लिए दुसरे देशों का मुंह जोतते है, उस समय केवल इतना ही करना आवश्यक होता है कि एक बार हम अपनी संस्कृति, अपनी परंपरा, अपने ग्रंथों की ओर नजर उठाकर देखें। आखिर वे कौन सी विशेषताएं है, जिनके चलते भारत को 'जगतगुरु' की पदवी मिली हुई है। मोदी भी पुरातन ग्रंथों से प्रेरणा ग्रहण कर उसका सफलतापूर्वक निर्वाह कर रहे है जो कि उनकी कार्यशैली से स्पष्ट दिखाई देता है।

मोदी का मानना है कि आतंकवाद जैसी विकराल समस्या का हल केवल और केवल भारतीय संस्कृति में निहित है। आतंकवाद जो कि मजहबी कट्टरता के कारण पैदा हो रहा है। मोदी ने इस समस्या का हल इन्हीं ग्रंथों के माध्यम से विश्व को ५ फरवरी २०१७ को विडियो कांफ्रेंस के माध्यम से एक कार्यक्रम के दौरान दिया था, तब उन्होने ऋग्वेद के माध्यम से इस समस्या का समाधान बताते हुए कहा था कि - 

"एकम सत विप्राः बहुधा वदन्ति।"

अर्थात सत्य एक है, संत इसे अलग अलग तरह से कहते है। हम बचपन से इन्ही गुणों के साथ रह रहे है और यही कारण है कि दया, करुणा, भाईचारा और सद्भाव स्वाभाविक रूप से हमारा हिस्सा है। हमने उन मूल्यों को देखा है, जिनके लिए हमारे पूर्वज जिए और मरे है। हम भारतियों ने सदियों से इस सभ्यता को जीवित रखा है। विविधता को हम केवल स्वीकार नहीं करते, उसका उत्सव भी मनाते है। हम "वसुधैव कुटुंबकम" के मन्त्र में आस्था रखते है और पूरी पृथ्वी को एक परिवार मानने वाले लोग है। हम कहते है - 

"सहनावबतु-सह नौ भुनत्तु।"

मोदी ने धर्म को कट्टरता से जोड़ने वालों को भी यह सन्देश देते हुए कि वे कहाँ और क्यों गलत है, कहा - "सभी का पोषण हो, सभी को शक्ति मिले, कोई किसी से द्वेष न करे। यही कट्टरता का समाधान है। आतंक का मूल ही यह कट्टरता है कि केवल मेरा मार्ग ही सही है, जबकि भारत में केवल सिद्धांत रूप में नहीं, अपितु व्यवहार में भी अनेक धर्म और मतों के उपासक सदियों से साथ रहते आये हैं। हम सर्वपंथ समभाव को मानने वाले लोग है।

वर्तमान में आतंकवाद के बाद दूसरी सबसे बड़ी समस्या पर्यावरण पर संकट है। प्रधानमंत्री मोदी ने पर्यावरण के विषय में वेद, उपनिषद से प्रेरणा लेकर भारत को लीडरशिप की भूमिका में ला खड़ा कर दिया है। मोदी की अगुवाई में भारत ने न सिर्फ इंटरनेशनल सोलर एलायंस बनाने का आव्हान किया, बल्कि यह वैश्विक संस्था वर्तमान में भारत से ही संचालित हो रही है। मोदी अक्सर वैश्विक मंचों के माध्यम से कहते है कि पर्यावरण को लेकर भारत की जो भूमिका है वह प्रारम्भ से ही प्रोग्रेसिव रही है। इससे सम्पूर्ण विश्व को सीखने की आवश्यकता है। पंचमहाभूतों से निर्मित मानव जीवन की उत्पत्ति प्रकृति के अंश का ही विस्तार है। प्रकृति के इसी महत्त्व को मोदी ने २५ सितम्बर २०१५ को यू. एन. शिखर सम्मलेन में अपने इस उद्बोद्धन में शामिल किया था - 

"समृद्धि की ओर जाने का मार्ग चिरस्थाई हो, इसके लिए हम कटिबद्ध है। इस कटिबद्धता का मूल निश्चित रूप से हमारी परंपरा और संस्कृति से जुड़ा होना है, लेकिन साथ ही यह भविष्य के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को भी दर्शाता है। में उस संस्कृति का प्रतिनिधित्व करता हूँ, जहाँ धरती को 'माँ' कहते है।" 

वेदों में कहा गया है कि - 

"माता भूमिः पुत्रो अहं पृथिव्याः।

अर्थात यह धरती हमारी माता है और हम इसके पुत्र है। इस माँ के संरक्षण में ही इसके सभी बालकों का हित छिपा है। पर्यावरण का संरक्षण करना स्वयं अपने जीवन को बचाना है। ३० नवम्बर २०१५ को जब मोदी पैरिस में COP-21 में इण्डिया पवेलियन का उद्घाटन कर रहे थे, तब उन्होंने ऋग्वेद का उद्धरण दिया था - 

क्षेत्रस्य पते मधुमन्तमूर्मिं धेनुरिव पयो अस्मासु धुक्ष्व । मधुश्चुतं घृतमिव सुपूतमृतस्य नः पतयो मृळयन्तु।।

अर्थात - हे पृथ्वी के देवता, प्रकृति माँ के आशीर्वाद के साथ गाय दुग्ध के समान हमारी पृथ्वी को दुग्धमय करें। माँ प्रकृति की प्रचुरता के साथ मक्खन के समान हम पर कृपा करें।

२७ जुलाई २०१४ को एक कार्यक्रम में मोदी ने भारत की सांस्कृतिक विरासत और प्रकृति के सहजीवन के विषय में कहा था - 

हमारे जो १८ पुराण है, उनमें से एक पुराण है - गरुड पुराण। हमारे पूर्वजों ने, हमारे शास्त्रों ने पक्षी को क्या महत्त्व दिया है, यह श्री विष्णु और गरुड की चर्चा के माध्यम में इस पूरे पुराण में विस्तारपूर्वक बताया गया है। जब लोग गरुड पुराण की कथा करते है तो आठ-नौ दिन तक इसकी चर्चा होती है। गरुड पुराण में मानवीय मूल्यों में पंछी के जीवन से प्रेरणा की इतनी गहन चर्चा है, अर्थात हमारे पूर्वजों ने हजारों वर्षों पूर्व पंछियों के सामर्थ्य को कैसे पहचाना था, उससे अनुभव मिलता है।"

महिला सशक्तिकरण के माध्यम से अधिक से अधिक महिलाओं के नेतृत्व में विकास को मोदी प्रोत्साहित करते है। २४ फरवरी २०१७ को एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा था - मानवता की प्रगति महिला सशक्तिकरण के बिना अधूरी है। स्वभाविक ही महिला विकास को लेकर यह एक ऐसी बात है, जिस पर कोई भी राष्ट्र गर्व कर सकता है, परन्तु इस नए विचार की प्रेरणा भी वे अपने पुरातन ग्रंथों से ग्रहण करते है। २ सितम्बर २०१४ को टोक्यो की एक यूनिवर्सिटी में उन्होंने कहा था कि - 

"भारत एकमात्र ऐसा देश है, जहाँ 'स्त्री भगवान' की कल्पना की गयी है। शिक्षा में सरस्वती, धन की कल्पना में लक्ष्मी, सुरक्षा में महाकाली और भोजन में देवी अन्नपूर्णा की कल्पना की जाती है। अर्थात सभी प्रमुख क्षेत्रों की जिम्मेदारी महिलाओं के हाथों में ही रही है। आज जब पूरा विश्व महिलाओं के अस्तित्व व सुरक्षा को लेकर चिंतित है उन्हें भारतीय संस्कृति का अनुशरण करना चाहिए। महिलाओं का सम्मान और समानता हमारे महान ग्रंथों में चिर पुरातन रही है।

वर्तमान में जब राजनैतिक दल अपनी संस्कृति को दीन हीन समझ कर पाश्चात्य सभ्यता के गुणगान में मग्न है और स्वयं के देश की परम्पराओं और संस्कृति को पिछड़ेपन की निशानी समझते है, तब राजनैतिक कटुता, व्यंग या फिर राजनीती में शालीनता की स्थापना के लिए भी मोदी अपने पौराणिक ग्रंथों का ही सहारा लेते है ।

१ दिसंबर २०१५ को संविधान दिवस को लेकर राज्य सभा में चर्चा के दौरान ऊपरी सदन का महत्त्व बताते हुए उन्होंने कहा था - 

न सा सभा यत्र न सन्ति वृद्धा:,न ते वृद्धा:ये न वदन्ति धर्मम्। नासौ धर्मो यत्र न सत्यमस्ति,न तत् सत्यम् यच्छलेनाभ्युपेतम्।। 

अर्थात वह उत्तम सभा नहीं हो सकती जिसमें अनुभवी लोग न हों। वे वरिष्ठ श्रेष्ठ नहीं हो सकते जो धर्म की बात न कहें। वह धर्म नहीं हो सकता जो सत्य से शून्य हो। वह सत्य नहीं हो सकता जो धोखे से युक्त हो।

जहाँ एक ओर मोदी पुरातन ग्रथों का सहारा लेकर विपक्ष को अपना कर्तव्य याद दिलाते है वहीँ वह सत्ता पक्ष को भी उसका आचरण स्मरण कराना नहीं भूलते है। २६ नवम्बर २०१७ को 'राष्ट्रीय कानून दिवस' पर १२०० कानून समाप्त किये जाने पर उन्होंने बृहदारण्यक उपनिषद के सूत्र का सहारा लेते हुए कहा - 

तदेतत क्षत्रस्य क्षत्रं यदधर्मः
तस्मादधर्मात परं नास्ति 
अथो अबलीयान बलियांसमाशंसते धर्मेण 
यथा राजा एवम 

अर्थात - कानून सम्राटों का भी सम्राट है। कानून से ऊपर कुछ नहीं। कानून में ही राजा की शक्ति निहित है और कानून ही गरीबों को सक्षम बनाता है। इसी मंत्र पर चलते हुए हमारी सरकार ने भी नए कानून बनाकर और पुराने कानून ख़त्म करके Ease of Living को बढ़ाने का काम किया है। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने योग और भारतीय संस्कृति, पूर्वोत्तर के राज्यों को भी समान महत्त्व, आधुनिक विज्ञान और तकनीक, मीडिया का सामाजिक दायित्व, सोशल मीडिया की ताकत, पत्रकारिता के इतिहास का महत्त्व आदि विषयों को समझाने हेतु समय समय पर पौराणिक ग्रंथों का सहारा लिया है। इससे स्पष्ट होता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारतीय संस्कृति, सभ्यता और इतिहास के गहरे जानकार है जो उनकी विशिष्टताहै। मोदी हर विषय पर इतिहास में झाँकने का प्रयास अवश्य करते है, उससे सीख लेते है या फिर उन गलतियों की और ध्यान आकृष्ट कर उससे सीखने का आग्रह करते है। 

देश को लम्बे समयांतराल के बाद मोदी के रूप में ऐसा प्रधानमंत्री मिला है जो सन्देश देता है कि भारत के पास दुनिया को देने के लिए काफी कुछ है। यही कारण है कि मोदी को भारतीय संस्कृति और परंपरा का 'ध्वजवाहक' बताया जा रहा है जो गलत नहीं है। 


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