कबीर की जीवन गाथा के अचर्चित किस्से

SHARE:

कबीर ने रामानंद जी से गुरू मन्त्र तो ले लिया, लेकिन क्या हिन्दू क्या मुसलमान सभी उनके विरोधी हो गए | हिन्दू कह रहे थे, यह भी कोई तरीका हुआ, ...




कबीर ने रामानंद जी से गुरू मन्त्र तो ले लिया, लेकिन क्या हिन्दू क्या मुसलमान सभी उनके विरोधी हो गए | हिन्दू कह रहे थे, यह भी कोई तरीका हुआ, इतने बड़े संत से गुरू मन्त्र लेने का | एक मुसलमान रामानंद जी का शिष्य कैसे हो सकता है | हिन्दू तो जन्म से होते हैं, दूसरे धर्म में पैदा हुआ कोई व्यक्ति, हिन्दू हो ही नहीं सकता | मुसलमान तो नाराज होने को ही ठहरे, बमुश्किल मुसलमान बने एक काफ़िर परिवार का लड़का दुबारा हिन्दू बनने की कोशिश में जुटा है | मां बाप नीरू नीमा हैरान परेशान हैं, मुल्ला मौलवीयों की भीड़ जब देखो तब घर आ धमकती है, धमकाती है सो अलग और लड़का है कि अपनी ही धुन में मस्त है, कुछ सुनने को ही तैयार नहीं है | 

इन सबसे लापरवाह कबीर तो राम नाम जपते हुए अकाल पीड़ितों की सेवा में जुटे हुए थे | अकाल भी ऐसा कि फसलें चौपट होने से लोग पेड़ों की पत्तियाँ खाकर जिन्दा रहने को विवश थे | नीम की निम्बोली भी मीठी लगने लगी थीं | ऊपर से हैजा फ़ैल गया सो अलग | लोग मर रहे थे, लेकिन लाश उठाने को लोग नहीं मिल रहे | और कबीर हैं कि रोजगार छोड़कर सबको समझाते घूम रहे हैं दुखियों का दुःख दूर करना ही सबसे बड़ी भगवत पूजा है, धर्म का अंतिम लक्ष्य है सबको आनन्द देना, इसीलिए तो भगवान को सच्चिदानंदघन कहा गया है | अपने मुट्ठी भर सहयोगियों के साथ कबीर जुटे हैं, अन्न मांगकर उसे वितरित करने में | बीमारों की सेवा और मृतकों का अंतिम संस्कार करने में | स्नान हुआ है या नहीं, खुद के पेट में कुछ गया है या नहीं, इसकी भी कोई चिंता नहीं, बस रामनाम जपते पीड़ितों की सेवा करते कबीर को देखकर लोग प्रभावित होते गए | रात को कुछ अवकाश मिलता तो भजन कीर्तन होते, प्रभू को सच्चे मन से पुकार कर उनसे मदद मांगी जाती | सामान्य जन कबीर को उद्धारक मानने लगा, संतों के भंडारों, लंगरों ने ही जान बचाई | धीरे धीरे विरोध शांत होता गया और मान्यता बढ़ती गई | रामानंद जी ने भी स्पष्ट कर दिया – शूद्रों मुसलमानों को भी शिष्य बनाना समय की आवश्यकता है | रामानंद जी राम के निर्गुण और सगुण दोनों रूपों के उपासक हैं, किन्तु कबीर निर्गुण निराकार प्रभु के | मन्दिरों में उनका प्रवेश वर्जित है तो क्या हुआ, राम नाम लेने से तो कोई नहीं रोक सकता | 

एक दिन एक एक लम्पट के चंगुल से एक महिला को बचाया तो उसकी और उसके दो बच्चों की जिम्मेदारी सर आ पड़ी | निंदकों को एक और अवसर मिल गया, निंदा करने का | लड़का कमाल और लड़की कमाली | लोगों ने कहा ये दोनों संत कबीर के ही बच्चे हैं, और बच्चों की मां लोई, कबीर की पत्नी, कबीर जानते थे खंडन करने से कोई फायदा नहीं | उन्होंने न खंडन किया न मंडन | लोई सत्संग में भी आती, भंडारे के परोस में हाथ बंटाती | 

निंदकों ने बात काजी तक पहुंचाई, यह औरत अपने दो बच्चों के साथ मुसलमान होना चाहती थी, कबीर ने नहीं होने दिया | लेकिन समस्या यह थी कि राजा वीरसिंह बघेल पर तो कबीर का प्रभाव था | इसके बावजूद काजी ने लोई को पकड़ मंगवाया | लोभ लालच दिए | धमकाया भी कि कबीर के खिलाफ शिकायत करे, लेकिन लोई ने साफ़ इनकार कर दिया | कहा संत ने तो उसे बचाया है, संत आदमी के भेष में फ़रिश्ता हैं | मैं तो चाहती हूँ कि वे मुझे अपनी पत्नी बना लें, लेकिन संत गृहस्थी बसाने के लिए तैयार नहीं, उनका जीवन तो धर्म को समर्पित है | निंदकों की बोलती बंद हो गई | सब तरफ संत कबीर की प्रशंसा होने लगी | 

कबीर जिस तरह से हिन्दू और मुसलमान दोनों के पाखंडों पर चोट कर रहे थे, उससे धर्म गुरू तिलमिलाए हुए थे | किसी को भी तो नहीं बख्श रहे थे वे | 

कांकड़ पाथर जोड़कर मस्जिद लई बनाय, ता चढ़ मुल्ला बांग दे, बहरा हुआ खुदाय | 

तो दूसरी तरफ – 

मूंड मुंडाए हरि मिले तो मैं भी लऊं मुडाये, बार बार के मूड़ते भेड़ न बैकुंठ जाए | 

शेख तकी नामक एक फकीर ने पहले तो कबीर से दोस्ती करनी चाही, ताकि इस्लाम के फैलाव में उनकी मदद मिल जाए, लेकिन असफल होने पर कबीर की शिकायत दिल्ली के तत्कालीन सुलतान सिकंदर लोदी तक पहुंचा दी | शहंशाह ने उन्हें बुलवाया तो पहले तो कबीर ने जाने से इनकार कर दिया | लोगों ने प्रार्थना की, आप नहीं गए तो क्रूर सुलतान का गुस्सा सब पर फूटेगा, पूरे इलाके पर मुसीबत आयेगी | कत्ले आम भी हो सकता है | लोगों का भय देखकर वे दिल्ली दरवार में पहुँच गए, भयानक सर्दी में भी नंगे बदन, केवल एक लंगोटी भर शरीर पर थी | दरबान ने द्वार पर ही रोक दिया | दरबार का एक कायदा होता है, कोई नंगे बदन कैसे बादशाह के सामने जा सकता है ? बादशाह को खबर की गई, अब बुलवाया था, तो अनुमति तो देना ही पड़ेगी, सो बादशाह ने बुलवा लिया | संत बेख़ौफ़ उसके सामने थे, कोई सिजदा भी नहीं किया | बादशाह भड़का, यह क्या बदतमीजी है ? हुकुम सुना दिया, इसे बांधकर दरिया में फेंक दो | 

सिपाहियों ने हुकुम की तामील की, लेकिन यह क्या ? संत तो जमुना किनारे एक पेड़ के नीचे समाधि लगाए दिखाई दे रहे थे | रियाया में कानाफूसी शुरू हो गई | सिद्ध साधू का अपमान हो रहा है | कुछ अनर्थ होने वाला है | अकाल महामारी कुछ भी हो सकता है | 

लेकिन वह सत्ता ही क्या, जो आसानी से हार मान ले | शेख तकी ने भड़काया तो इस बार कबीर को फूस की एक कुटिया में बंद कर आग लगा दी गई | झोंपड़ी जल गई, लेकिन संत का बाल भी बांका नहीं हुआ | शेख तकी ने बादशाह को समझाया, अरे ये कुछ नहीं, हिन्दू सिपाहियों की इससे मिली भगत है, इसे सबके सामने हाथी के पैरों तले कुचलवाओ | ऐसा ही हुआ | एक बड़े मैदान में मतवाले हाथी के सामने जंजीरों से बंधे हुए निर्भय खड़े थे कबीर | हैं न कमाल की बात | जिसे मारा जाने वाला था वह निर्भय था, जो मारने वाले थे, वे सब डरे हुए थे | क्या बादशाह, क्या शेख तकी, यहाँ तक कि महावत भी | 

कांपते हुए महावत ने हाथी को अंकुश मारकर कबीर की तरफ बढ़ाने की कोशिश की | हाथी चिन्घाड़ा, और कुचलने के स्थान पर कबीर को सूंड पर उठाकर शेख तकी की तरफ दौड़ पड़ा | शेख डर के मारे चिल्ला उठा, महावत इसे रोको, यब मेरी तरफ क्यों आ रहा है | लेकिन महावत की हर कोशिश नाकाम हुई और हाथी ने संत कबीर को शेख तकी के सर पर बैठा दिया | और लौटकर दौड़ पड़ा आसपास खड़े सिपाहियों को कुचलते हुए | संत की जयजयकार गूंजने लगी, भीड़ बेकाबू हो गई,सब संत की चरण रज लेना चाहते थे | संत की ख्याति अब काशी से निकलकर सारे देश में फैलने लगी, जिससे मुस्लिम बादशाह डरता हो, वही तो हो सकता है अन्याय, अत्याचार और शोषण से मुक्ति दिलाने में समर्थ | राम नाम का मन्त्र लेने वालों की भीड़ बढ़ने लगी | समाज में एक नए आत्म विश्वास का जन्म हुआ | 

किन्तु कबीर परेशान हो गए क्योंकि आने वाले निस्वार्थ नहीं थे, किसी को संतान चाहिए, तो किसी को धन दौलत, किसी को पद प्रतिष्ठा | ऐसे लोगों के लिए संत ने कहा – 

कबीरा खड़ा बजार में लिए लकुटिया हाथ, जो घर फूंके आपनो, सो चले हमारे साथ | 

सांसारिक घर चार दिनों का, असली घर दूर है, वहां पहुँचने के लिए काम क्रोध मोह लोभ का यह घर पहले जलाना पड़ेगा | मेरे पास आना है, तो योग के लिए आओ भोग के लिए नहीं | यही था सन्देश कबीर का अपने अनुयाईयों को, जिन्हें उन्होंने समय समय पर साधो कहकर संबोधित किया | 

चिर समाधि 

संत का यश बढ़ा तो भीड़ बढी, साधना में विघ्न पड़ने लगा तो कबीर निकल पड़े देशाटन पर अपने कुछ थोड़े से शिष्यों के साथ | देखते क्या हैं कि सामने से एक शवयात्रा आ रही है, आमतौर पर केवल राम नाम सत्य का उच्चारण नहीं, बल्कि अबीर गुलाल उड़ाते, बाजे गाजे के साथ | कबीर ने पूछा क्या हुआ, किसी ने जबाब दिया, अवधूत रामगिरी ध्यान मग्न अवस्था में अचानक चल बसे | सन्यासी थे, सो बैठी हुई अवस्था में ही यात्रा निकालकर समाधि दी जायेगी | संत ने ध्यान से अवधूत को देखा और कहा कि क्या गजब करते हो, ये तो जिन्दा हैं, केवल समाधिस्थ है, योग के दौरान प्राणवायु को त्रिकुटी में चढ़ा तो लिया, उतारना संभव नहीं हुआ | योग बिना गुरू के करेंगे तो यही संभावना रहती है, इसीलिए गुरू आवश्यक है | 

कबीर ने पहले उन्हें बंधन मुक्त करवाया फिर उनके मस्तिष्क की किसी नस को दबाया, नाक पर हाथ रखा, कान के पास मुंह ले जाकर कुछ बुदबुदाए, कुण्डलिनी क्रिया ठीक हो गई और लोगों को अचम्भा लगा, अरे मुर्दा को जिन्दा कर दिया, संत ने | जागृत रामगिरी से कबीर ने कहा – योग सिद्धि दे सकता है, मुक्ति नहीं | मुक्ति के लिए तो भक्ति जरूरी है, क्योंकि योग में कर्म का अहंकार है, जबकि भक्ति में प्रभु की शरणागति है | बात रामगिरी की समझ में आ गई और आगे चलकर कबीर पंथ में उनका नाम बड़े सम्मान के साथ लिया गया | संत की प्रसिद्धि और फ़ैल गई, जहाँ से गुजरते, वहां लोग रुकने का आग्रह करते, धन सम्पदा उनके चरणों में अर्पित करने की आतुरता दिखाते, पर कबीर कहाँ इस माया प्रपंच में फंसने वाले थे | थोड़े से साधुओं के साथ उनकी यात्रा जारी रही | 

पंजाब में गुरू नानकदेव जी से भेंट हुई, दोनों एक दूसरे से प्रभावित हुए | काश्मीर, राजस्थान, गुजरात कर्नाटक, जहाँ गए, सब जगह शिष्य समुदाय बढ़ता गया | हद तो तब हुई, जब चम्बल के बीहड़ों का मशहूर डाकू अजीत सिंह भी उनका शिष्य बन गया | हुआ कुछ यूं कि जब वे नाव द्वारा यात्रा कर रहे थे, अजीत सिंह भी उस नाव पर साथ आ गया व मार्ग में उसने लूटने का प्रयत्न किया, इन साधुओं पर भला क्या रखा था, सिवा उपदेश के | कबीर ने गाया - 

सौदा करने या जग आया 

पूजी लाया मूल गँवाया 

प्रेमनगर का अन्त न पाया 

ज्यों आया त्यों जावेगा॥ 

रे दिल गाफिल गफलत मत कर 

एक दिना जम आवेगा॥ 

दास कबीर कहै समुझाई 

अन्त समय तेरा कौन सहाई 

चला अकेला संग न कोई 

जैसा किया फल पावेगा॥ 

रे दिल गाफिल गफलत मत कर 

एक दिना जम आवेगा॥ 

अजीत सिंह चरणों में गिर पड़ा और आगे अपना जीवन दीन दुखियों की सेवा में ही व्यतीत किया | लौटकर काशी आये और फिर वही दिनचर्या शुरू हो गई | उन्हीं दिनों द्रविड़ प्रदेश के सुरम्यपुरम में एक विद्वान सर्वजीत निवास करते थे | शास्त्रार्थ में बड़े बड़े पंडितों को हरा देने के कारण उनका यह नाम पड़ा था | सबको हराने वाला सर्वजीत | किन्तु गर्व से तना उनका मस्तक उस समय झुक जाता जब विदुषी माँ उन्हें उनके वास्तविक नाम से पुकारतीं | एक दिन उन्होंने मां से इसका कारण पूछ ही लिया | मां को उनका घमंड पसंद नहीं था, किन्तु अपने मनोभाव छुपाकर कहा, जिस दिन काशी के कबीर को हरा दोगे, उस दिन से मैं भी तुम्हें सर्वजीत कहने लगूंगी | बस फिर क्या था, सर्वजीत चल दिए काशी की ओर | साथ में थे सोलह सौ बैल, जिन पर पुस्तकें लदी हुई थीं | पूरा पुस्तकालय साथ लेकर वे पहुँच गए काशी | कबीर के आश्रम में पहुंचे तो कबीर ने स्वागत किया, छोटा सा भंडारा भी आयोजित हुआ | किन्तु सर्वजीत स्वागत कराने थोड़े ही आये थे, वे तो पराजित करने आये थे | उन्होंने अपनी इच्छा बताई, कबीर ने भी सहमति दे दी और भारी भीड़ जुट गई शास्त्रार्थ देखने | 

दोनों आमने सामने बैठ गए और सर्वजीत ने संस्कृत में धाराप्रवाह बोलकर निर्गुण भक्ति का खंडन शुरू कर दिया | पण्डे पुरोहित सभी चाह रहे थे कि कबीर हार जाए | हार ही जायेंगे, उन्हें कहाँ संस्कृत आती है | सर्वजीत बोलते रहे, कबीर शांत भाव से सुनते रहे | शायद सुन भी नहीं रहे थे, वे तो आँखें बंदकर शायद वहां विचरण कर रहे थे, जहाँ सर्वजीत का किताबी ज्ञान नहीं पहुँच सकता | बोलबोलकर सर्वजीत थक गए और चुप होकर निर्णायक आचार्य की ओर प्रश्नवाचक निगाहों से देखा | आचार्य श्री ने कबीर से कहा – संत जी कुछ तो बोलो, आपने शास्त्रार्थ की चुनौती स्वीकार की है, नहीं बोलोगे तो इसका अर्थ होगा कि आप पराजय स्वीकार कर रहे हो | संत ने चुप्पी तोडी और कहा – मैं तो जबाब दे चुका, आप सुन भी चुके | आचार्य जी सभी शास्त्रों का मूलाधार मौन है, शास्त्र बाह्य विद्या हैं, तर्क तो किसी रट्टू तोते के समान है, वह भी तो अनुभूति रहित विद्या बोलता है | तुम कागज़ की लेखी कहते हो, मैं आंखन की देखी कहता हूँ | 

पारब्रह्म के तेज का कैसा है उनमान, 

कहने की शोभा नहीं, देख्या ही परमाण | 

सर्वजीत की विद्या बैलों पर लदी है, ये बैल किसी किसान के पास होते, तो अधिक उपयोगी होते | अगर राम प्रेम का अक्षर नहीं पढ़ा तो सब किताबी ज्ञान व्यर्थ है | पुस्तकों का ज्ञान तुम्हारा नहीं है, दूसरों के ज्ञान से ज्ञानी नहीं हुआ जा सकता | दूसरों को जीतने के स्थान पर इन्होने स्वयं को जीता होता, तो वास्तविक ग्यानी होते | सर्वजीत की बात केवल संस्कृत जानने वाले पंडितों ने समझी थी किन्तु कबीर बोल रहे थे तो आमजनों के मनोमस्तिष्क को प्रभावित कर रही थीं | और सर्वजीत भी विनम्र भाव से संत के चरणों में झुक गए | बोले मैं ब्राहमण होकर भी हिंसक क्रोध से उन्मत्त हो गया था | महात्मा कबीर जैसे निश्छल और निर्मल साधू को हराने के लिए आना मेरा अहंकार ही तो था | उन्होंने कबीर को अपना गुरू स्वीकार किया तो मां कल्याणी देवी भी काशी आईं और पुत्र को आशीर्वाद देकर कहा – बेटा तुम्हारा वास्तविक नाम सर्वानंद ही ठीक है, सबको आनंद दो, तभी आनंदघन परमात्मा का सानिध्य मिलेगा | बाद में यही सर्वानन्द गोपाल दास के नाम से कबीरचौरा मठ के आचार्य बने और लाखों नरनारी इस भक्त के भक्त बने | 

एक दिन गंगा के उस पार बसे मगध से एक बीमार बुजुर्ग उनके दर्शन को आये | अंतिम समय था, बोलना भी कठिन हो रहा था, बस दर्शन को ये थे | साथ आये लोगों ने बताया कि मगध उपाख्य मगहर में मान्यता है कि वहां मरने वाले का अगला जन्म गधे के रूप में होता, इसलिए अपना अंतिम समय नजदीक जान काशी करबट लेने ये काशी जी आ गए हैं | यहाँ मरने से मुक्ति मिलती है | 

संत ने कहा कि कोई नगर मुक्ति नहीं दे सकता | मगहर का ईश्वर क्या कोई दूसरा है ? भगवान के सच्चे भक्त को तो मुक्ति कहीं भी मिल सकती है | बुजुर्ग तो प्रभु चरणों में विलीन हो गए, किन्तु जीवन भर पाखण्ड के खिलाफ अलख जगाये रहने वाले कबीर का मन काशी से उचट गया | और एक दिन लोगों ने देखा कि उनका दल मगहर की ओर ही जा रहा है | अपनी अंतिम सांस वे मगहर में ही लेना चाहते हैं | वे काशी को चुनौती नहीं दे रहे, किन्तु इस प्रकार अपनी प्रभु भक्ति को कसौटी पर कसना चाहते हैं | 

लोका मति के भोरा रे 

जो काशी तन तजै कबीरा तौ रामहि कौन निहोरा रे 

मगहर में तीन वर्ष बीत गए | माघ शुक्ल पक्ष की एकादशी, सन 1518 ई0 की रात अपनी कुटिया में उन्होंने पद्मासन खोला और भक्तों द्वारा चढ़ाए गए फूलों की सेज पर शांत भाव से लेट गए | शिष्यगण कुटिया का द्वार बंद कर बाहर निकल गए | सुबह हुई, चिड़ियों ने चहचहाना शुरू किया, कुटी का द्वार खोला गया तो ११९ वर्षीय संत साहब जा चुके थे | हिन्दु और मुस्लिम के बीच शव को जलाने और दफनाने को लेकर कलह शुरु हो गई, क्योंकि कबीर जन्म से मुसलमान, किन्तु निर्गुण राम के उपासक | कहा जाता है कि तभी चमत्कार हुआ और शव अदृश्य हो गया, केवल वे फूल शेष बचे, जिन्हें बांटकर हिन्दुओं ने समाधि बनायी और मुसलमानों ने मजार बनाया। दोनों स्मारक अगल बगल विद्यमान है।

COMMENTS

नाम

अखबारों की कतरन,40,अपराध,3,अशोकनगर,24,आंतरिक सुरक्षा,15,इतिहास,158,उत्तराखंड,4,ओशोवाणी,16,कहानियां,40,काव्य सुधा,64,खाना खजाना,21,खेल,19,गुना,3,ग्वालियर,1,चिकटे जी,25,चिकटे जी काव्य रूपांतर,5,जनसंपर्क विभाग म.प्र.,6,तकनीक,85,दतिया,2,दुनिया रंगविरंगी,32,देश,162,धर्म और अध्यात्म,244,पर्यटन,15,पुस्तक सार,59,प्रेरक प्रसंग,80,फिल्मी दुनिया,10,बीजेपी,38,बुरा न मानो होली है,2,भगत सिंह,5,भारत संस्कृति न्यास,30,भोपाल,26,मध्यप्रदेश,504,मनुस्मृति,14,मनोरंजन,53,महापुरुष जीवन गाथा,130,मेरा भारत महान,308,मेरी राम कहानी,23,राजनीति,89,राजीव जी दीक्षित,18,राष्ट्रनीति,51,लेख,1126,विज्ञापन,4,विडियो,24,विदेश,47,विवेकानंद साहित्य,10,वीडियो,1,वैदिक ज्ञान,70,व्यंग,7,व्यक्ति परिचय,29,व्यापार,1,शिवपुरी,902,शिवपुरी समाचार,322,संघगाथा,57,संस्मरण,37,समाचार,1050,समाचार समीक्षा,762,साक्षात्कार,8,सोशल मीडिया,3,स्वास्थ्य,26,हमारा यूट्यूब चैनल,10,election 2019,24,shivpuri,2,
ltr
item
क्रांतिदूत : कबीर की जीवन गाथा के अचर्चित किस्से
कबीर की जीवन गाथा के अचर्चित किस्से
https://1.bp.blogspot.com/-rKPc-buYAdc/X_a3nU1iHHI/AAAAAAAAJrg/gjfTRU7LFDINEFp7vv-yPrQHoXrAeJaRACLcBGAsYHQ/w400-h238/6.jpg
https://1.bp.blogspot.com/-rKPc-buYAdc/X_a3nU1iHHI/AAAAAAAAJrg/gjfTRU7LFDINEFp7vv-yPrQHoXrAeJaRACLcBGAsYHQ/s72-w400-c-h238/6.jpg
क्रांतिदूत
https://www.krantidoot.in/2021/01/Life-story-of-Kabir.html
https://www.krantidoot.in/
https://www.krantidoot.in/
https://www.krantidoot.in/2021/01/Life-story-of-Kabir.html
true
8510248389967890617
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS CONTENT IS PREMIUM Please share to unlock Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy