आरएसएस संस्थापक डॉ. केशव बलीराम पन्त हेडगेवार


एक मातृपितृ विहीन देशभक्त की अन्गारवत तरुणाई 


यूं तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ निर्विवाद रूप से आज विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन माना जाता है, लेकिन देश में उसके आलोचकों की भी कमी नहीं है | दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि समर्थक और निंदक दोनों ही इस संगठन को समझे बिना केवल सतही आधारों पर अपना अभिमत बनाये रहते हैं | तो आईये आज इतिहास के झरोखे से संघ के संस्थापक आद्य सरसंघ चालक डॉ. केशव बलीराम पन्त हेडगेवार के जीवन पर नजर डालते हुए तत्कालीन स्थितियों परिस्थितियों को भी जानें समझें | 

सरस्वती की उपासना भी तभी संभव होती है, जब मां लक्ष्मी भी प्रसन्न हों | यही कारण रहा कि बंजरा और हरिद्रा नदियों के सुरम्य संगम पर बसे रमणीय ग्राम कुंदकुर्ती की प्राकृतिक छटा को छोडकर नरहरि शास्त्री नागपुर आये और अपनी विद्या बुद्धि से भोंसले राजघराने से उचित आदर सत्कार प्राप्त किया | लेकिन समय बदला, नरहरी शास्त्री के पोते बलीराम ने जिन दिनों परिवार की जिम्मेदारी संभाली, भोंसले राज परिवार का भाव भी बदल चुका था | वेद विद्या, ईश्वराराधन के स्थान पर अंग्रेजी की तरफ रुझान बढ़ गया था | छः बच्चों की जिम्मेदारी का बोझ बलीराम को भारी पड़ने लगा, लक्ष्मी ने साथ छोड़ा तो सरस्वती असहाय और विवश हो गई | लेकिन ध्यान रहा तो केवल याज्ञवल्क्य का आख्यान | कैसे गुरू से विद्या प्राप्त की, विश्व भर का ज्ञान आत्मसात कर लिया, किन्तु एक दिन गुरू का अहंकार मन में चुभ गया तो विनम्र भाव से संकल्प लिया कि आपका दिया हुआ सब ज्ञान आपको लौटाता हूँ, आपसे प्रशिक्षित एक शब्द का भी उच्चारण अब नहीं करूंगा | आगे चलकर उन्होंने एक नया पांचवा वेद लिखा “याज्ञवल्क्य यजुर्वेद” | निर्धनता में भी वही स्वाभिमान बलीराम जी के ह्रदय में जीवंत रहा | सुगठित शरीर, प्रमाद विहीन जीवन शैली और आचरण शुद्धता के तेज से दमकता उनका श्यामल मुखमंडल, सहज ही उन्हें संपर्क में आने वालों का प्रिय और सम्मान पात्र बना देता था | बड़े बेटे महादेव ने काशी से शास्त्री की उपाधि प्राप्त कर ली और पांडित्य कार्यों से उन्होंने भी परिवार की आय में योगदान देना शुरू कर दिया | तीनों बड़ी बेटियों के विवाह सानंद संपन्न हो गए | शेष दोनों बेटे सीताराम और केशव अपनी मां सरयू और पिता की छत्रछाया में परवान चढ़ रहे थे | 

पिता बलीराम जी की नजर में मुसलमान और अंग्रेज दोनों ही घुसपैठिये थे, जिन्होंने हिन्दुस्थान में जबरन कब्जा जमाकर यहाँ के शांतिप्रिय हिन्दुओं पर जुल्मो सितम ढाये थे | यही संस्कार उनसे केशव ने वाल्यावस्था से ही पाए | जब पांचवी कक्षा में ही थे, तब महारानी विक्टोरिया के जन्मदिवस पर स्कूल में बच्चों को मिष्ठान्न वितरण हुआ | बालक केशव ने वह दोना घर के आँगन में फेंक दिया | आखिर विदेशी शासकों के जन्मदिवस पर कोई स्वाभिमानी भारतीय क्यूं खुशी मनाये ? नागपुर के किले पर फहराते युनियन जेक को देखकर क्षुब्ध बालकों की टोली ने घर के एक खाली कमरे से किले तक सुरंग खोदने की योजना बना डाली, जैसे शिवाजी महाराज ने मुस्लिम आक्रान्ताओं से किले छीनकर उन पर भगवा लहराया था, हम लोग भी नागपुर किले से युनियन जेक हटाकर भगवा फहराएंगे | यही उन बच्चों का भाव था | पिता को ज्ञात हुआ, प्रसन्न तो हुए, किन्तु समझाया भी, युनियन जेक हट भी गया, मान लो भगवा एक बार फहर भी गया तो यह स्थाई कैसे होगा ? जब तक समाज संगठित नहीं है, यह पराधीनता समाप्त होने वाली नहीं है, बाल केशव ने बात गाँठ बाँध ली | यही वह संस्कार था, जिसने उनके जीवन का मार्ग निर्धारित कर दिया | 

तभी आसमान फटा और प्लेग की महामारी ने नागपुर में कहर मचाना प्रारंभ कर दिया | हर घर से रुदन और क्रन्दन के स्वर गूंजने लगे | हालत यह हो गई कि मृत देह को उठाने के लिए चार कंधे देने वाले मिलने भी कठिन हो गए | बलीराम जी ने मानो वृत ही ले लिया, सूचना मिलते ही अंतिम संस्कार में मदद देने जा पहुंचते | वृत कठिन था, छूत के रोग प्लेग की चपेट में आने से कहाँ तक बचते | एक दिन घर में भी चार चूहे मरे दिखे, तो बड़े बेटे महादेव ने अपने जीजा बिन्चुरे को सूचना दी और वे ज्वर से तपते बलीराम जी और पूरे परिवार को आग्रह पूर्वक अपने घर ले गए | लेकिन उससे कोई अंतर नहीं पड़ा, होनी नहीं टली और बलीराम जी अनंत पथ पर रवाना हो गए, उनकी जीवन संगिनी भी उनके साथ ही संसार छोड़ गईं | आश्चर्य की बात यह कि उन्हें प्लेग नहीं था, वे कोई बुखार ग्रस्त भी नहीं थी, था तो केवल संकल्प पति की सहचरी होने का | और इस संकल्प से ही उन्होंने मानो अपना नश्वर शरीर योग समाधि लेकर छोड़ दिया | 

चौदह वर्षीय केशव अब मात्रपित्र विहीन थे | बड़े भाई महादेव की जीवन शैली थी व्यायाम, पुरोहित्य और मित्रमंडली के साथ भंग की तरंग, स्वभाव में भी उग्रता थी, दोनों छोटे भाई अब परिवार में भोजन बनाने सहित अन्य जिम्मेदारियों का बोझ उठा रहे थे | कमाने का काम बड़े भाई के जिम्मे था | केशव सबसे छोटे थे और अध्ययन के लिए उन्हें एक अंग्रेजों द्वारा संचालित नील सिटी हाईस्कूल में भेजा गया | बड़े भाई की इच्छा थी कि वे युगानुकूल शिक्षा प्राप्त कर परिवार में उनका हाथ बटायें | लेकिन केशव तो कुछ और ही ठान चुके थे | वे तो अध्ययन से ज्यादा डॉ. मुंजे के सहयोगी बन चुके थे | अपने मित्रों के साथ मिलकर एक “पैसा फंड” गठित किया, जिसके माध्यम से पर्याप्त राशि संगठनात्मक कार्यों के लिए डॉ. मुंजे को प्राप्त हुई | तिलक जी नागपुर आये तो वे भी तेजस्वी तरुण केशव की पीठ थपथपा कर गए | तिलक जी के केसरी और शिवराम पन्त के काल जैसे समाचार पत्र की प्रसार संख्या बढाने में भी केशव ने अपना योगदान दिया, जो अंग्रेजों को साक्षात कराल काल ही प्रतीत होते थे | 

उन्हीं दिनों केशव दशहरे की छुट्टियों में अपने चाचा आबाजी के पास रामपायली गए | दशहरे के दिन रावण दहन के बाद जब सब लोग वापस जाने को उद्यत हुए, तभी केशव ने दग्ध रावण के निकट ऊंचाई पर खड़े होकर भाषण देना शुरू कर दिया | रावण का पुतला जलाने से कुछ नहीं होने वाला | मुख्य है दुष्ट प्रवृत्तियों का विनाश, जिनका आज शासन है | आज तो राज ही रावण की विचारधारा का है | अगर आपको मेरी बात सही लगती है तो मेरे साथ गाईये भारत माता का स्तुति गान – 

वन्दे मातरम, त्वं हि दुर्गा दश प्रहरण धारिणीं, कमला कमल दल विहारिणीं, वाणीं विद्या दायिनीम नमामि त्वां | इस भाषण का नतीजा यह हुआ कि चाचा आबा जी की सरकारी नौकरी छूट गई | दुर्भाग्य तो देखिये कि जन सामान्य के ह्रदय में अपना स्थान बना चुका, वही वन्दे मातरम आज स्वतंत्र भारत में विवाद का विषय बना दिया गया है | 

खैर तभी स्कूलों में रिस्ले सर्कुलर लागू हुआ, जिसके अनुसार सभा सम्मलेन और जलूसों पर प्रतिबन्ध लग गया | गणेशोत्सव, शिवाजी राज्यारोहण दिवस, रामदास नवमी जैसे आयोजनों पर भी प्रतिबन्ध लग गया | उसी सन्दर्भ में एक दिन एक अंग्रेज अधिकारी स्कूल के इंस्पेक्शन को आया | उसके स्वागत में पूरा स्कूल किसी वैवाहिक समारोह की तरह सजाया गया था | छात्रों को सख्त हिदायत दी गई थी कि सभी साफ़ सुथरे कपडे पहिनकर आयें | लेकिन यह क्या जैसे ही अधिकारी ने कक्षा में प्रवेश किया, पूरी क्लास ने वन्दे मातरम के उद्घोष से उसका स्वागत किया | स्कूल प्रबंधन के हाथ पैर फूल गए | इतने पर ही बस नहीं हुई सर्कुलर के विरोध में बच्चों ने स्कूल में हड़ताल कर दी, कक्षाओं का बहिष्कार, स्कूल जाना बंद | पंद्रह दिन यह आन्दोलन चला | जांच पड़ताल शुरू हुई कि इसके पीछे नेता कौन है | किसने भड़काया है सब विद्यार्थियों को | अभिभावकों को बुलाया गया, उन्हें फटकारा गया, अंग्रेज राज में उन सामान्य गृहस्थों की कहाँ हिम्मत थी उनसे टकराने की | हड़ताल तो टूट गई और साथ ही केशव विद्यालय से निष्कासित हो गए | 

बड़े भाई महादेव के गुस्से का कोई ठिकाना नहीं था, ऐसे में उनके रक्षक बनकर आये वही चाचा आबाजी, जिनकी नौकरी केशव के कारण जा चुकी थी | वे उन्हें अपने साथ रामपायली ले गए और साथ ही कह गए महादेव को – महादेव इसके और हम जैसे सामान्य लोगों के रास्ते बहुत अलग हैं | वे केशव को ले तो आये, लेकिन उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि अब किया क्या जाए | लेकिन तभी विधि का विधान तो देखिये कि लोकनायक के नाम से विख्यात बापूजी अणे भाषण देने रामपायली आये और जब आबाजी ने उन्हें केशव की स्वाभिमानी गाथा सुनाई, तो वे बोले – लगता है तुम्हें स्कूल से निकाला जाना, ईश्वरीय प्रेरणा से हुआ कार्य है, ताकि तुम आपटे गुरू जी का सानिध्य प्राप्त कर सको, उनके यवतमाल स्थित राष्ट्रीय विद्यागृह में जाकर अध्ययन कर सको | उसके बाद की पढाई केशव की यवतमाल में हुई और वहां से जब आगे डाक्टरी की पढाई के लिए कोलकता के लिए ट्रेन में बैठे, तब उन्हें छोड़ने बड़े भाई महादेव भी आये | आवाज रुद्ध थी, बस खिड़की पर रखे केशव के हाथ पर हाथ रखे डबडबाई आँखों से उन्हें निहार रहे थे | कोलकता में एक नया संसार केशव का इंतज़ार कर रहा था | 

युवा क्रांतिकारी 

कोलकता के नेशनल मेडिकल कोलेज के युवा विद्यार्थियों का रुझान सशस्त्र क्रांति की ओर था, प्रायः सभी छात्र अनुशीलन समिति के सदस्य थे, तो भला केशव कैसे दूर रह सकते थे, वे तो आये ही इसी योजना से थे | डॉ.मुंजे ने भी उनके हाथों पुलिनबिहारी घोष के नाम चिट्ठी भेजी थी | वे चिट्ठी लेकर पहुंचे भी लेकिन घोष बाबू ने मिलने से ही इंकार कर दिया और कहलवाया मुझसे तो वही मिल सकता है, जिसने पहले शपथ ग्रहण कर ली हो | केशव ने भी तुरंत जबाबी सन्देश दिया, जब आप कहें तब शपथ लेने को तत्पर हूँ | जल्द ही बुलावा आ गया, शपथ का स्थान और समय तय हुआ – रात ग्यारह बजे श्मशान में | रोंगटे खड़े हुए, कुछ विचित्र भी लगा, लेकिन पुलिन बिहारी घोष और शामबाबू चक्रवर्ती से मिलने की उत्कंठा भी थी, सो राम रक्षा स्तोत्र और हनुमान बाहुक का मनहीमन जाप करते हुए जा पहुंचे निर्धारित समय पर श्मशान | 

बड़ी देर तक जलती हुई चिताओं के समीप प्रतीक्षा करने के बाद पांच लोग वहां आये और शपथ का कार्य संपन्न हुआ | केशव ने शपथ ली मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए सशस्त्र क्रांति के पथ पर अग्रसर हो रहा हूँ | देश्धर्म को स्वीकार कर व्यक्तिगत स्वार्थभावना समाप्त कर रहा हूँ, मेरा धर्म, जाति, कर्तव्य एक ही है – मातृभूमि की स्वाधीनता | 

उसके बाद कोलेज की नियमित दिनचर्या के साथ साथ अनुशीलन समिति का कार्य भी शुरू हो गया | जनजागरण के लिए गाँव गाँव घूमते, स्वास्थ केन्द्रों में दवाओं के साथ देशप्रेम की घुट्टी भी पिलाते, जब कभी छुट्टियों में नागपुर लौटते तो डॉ. मुंजे के लिए रिवोल्वर भी लेकर जाते | नए लोगों से परिचय संपर्क हुआ, उनमें से एक थे मौलवी लियाकत हुसैन, लोकमान्य तिलक के पक्के अनुयाई, उम्र साठ से अधिक, लेकिन उत्साह नौजवानों से कहीं ज्यादा | सभाओं में स्वदेशी पर भाषण देते, देश की आजादी के लिए मर मिटने को सदा तत्पर | एक पाँव जेल में तो एक बाहर | दूसरे नए मित्र बने नारायण सावरकर, उनके माध्यम से उनके बड़े भी विनायक सावरकर के लोमहर्षक वृतांत सुनने को मिलते रहते | कैसे क्रांतिकारी कार्यों के कारण पकड़कर भारत लाये जाते समय वे समुद्र में कूद पड़े, महासागर तैर कर अंग्रेजों के चंगुल से बच निकलने का प्रयास किया, किन्तु कैसे फ़्रांस के तट पर पकडे गए और दो दो कालापानी की सजा उन्हें सुनाई गई | उनके तथा अन्य साथियों के मन में तीव्र प्रतिशोध का भाव जागृत होता | 

रत्नागिरी के एक छोटे से कसबे में रहने वाला नौजवान विदेश से बम बनाना सीख कर आया और वापस घर न जाकर कलकत्ता के नजदीक के छोटे से गाँव की अंधेरी काल कोठरी में में रहकर क्रांतिकारियों के लिए बम बनाने लगा | महीनों तक सूरज की रोशनी न देखने के कारण, बीमार हो गया, और अंततः चल बसा | उसने अपना जीवन अँधेरे में गुजारा ताकि देश में स्वतंत्रता का उजाला आ सके | उसकी इच्छानुसार देशभक्त नौजवानों की टोली ने ही उसका अंतिम संस्कार किया | उस समय हर युवक उसके जीवन को सफल हुआ मानकर अनुप्राणित हो रहा था | 

युवाओं की यह टोली जरूरत होने पर सेवा कार्यों में भी जुटती | दामोदर नदी में बाढ़ आई तो रामकृष्ण मिशन के कार्यकर्ता बनकर केशव, नलिनी गोखले, देशपांडे, सुर्वे, यादवराव, तेंडुलकर और बेंकट रमण आदि ने सहायता के हाथ बढाए | एक दिन नदी किनारे बैठे थे, तभी किसी के गाने की ध्वनि कानों में पड़ी | एक युवक गा रहा था – हे प्रियतमे, प्रतीक्षा मत करना मेरी | मत पुकारो मुझे सजनी, प्रतीक्षा मत करना मेरी | केशव पूर्व परिचित थे उस युवक से | क्रांतिवीर जो था वह | लेकिन उसके कंठ से फूटता यह करुण गीत पहली बार सूना था | पूछा तो नौजवान ने बताया – विवाह तय हो गया था, किन्तु उसने अपनी मंगेतर को स्पष्ट कर दिया, मैं तो पहले ही देश धर्म को समर्पित हो चुका हूँ, तुम्हारा साथ नहीं दे सकूंगा | अभिभूत मंगेतर ने कहा कोई बात नहीं, मैं आपकी याद दिल में समाये अकेली जी लूंगी पर विवाह आपसे ही करूंगी | विवाह हुआ, और उस गर्भवती को छोड़कर यह नौजवान कोलकता आ गया, क्रान्तिकार्य हेतु | तो ऐसे क्रांतिधर्मियों के साथ छः साल केशव कोलकता रहे और डॉ. की डिग्री लेकर वापस नागपुर लौटे, पहले से कहीं अधिक देश धर्म के लिए समर्पण का भाव मन में बसाए | 

नागपुर आते ही ज्ञात हुआ कि बड़े भाई महादेव के क्रोधित स्वभाव से परेशान होकर मंझले भाई सीताराम अलग हो चुके हैं और फडनवीस के यहाँ पुरोहिताई कर जीवन यापन कर रहे हैं | एकाध महीना तो सबसे मिलने जुलने में बीता, फिर बड़े भाई ने आग्रह किया भाई मध्यप्रदेश और विदर्भ में कुल मिलाकर बमुश्किल तमाम 75 डॉक्टर ही होंगे | तुम्हें समाज सेवा करना है, शौक से करो, पर कमाना भी शुरू करो | भूखे पेट तो समाज सेवा भी नहीं होगी | केशव को बात जमी भी, किन्तु अभी कुछ निश्चित कर पाते, तब तक एक बार फिर प्लेग की महामारी ने दस्तक दे दी | केशव का पूरा दिन रोगियों की देखभाल में बीतने लगा, सुबह छः बजे से रोग प्रतिरोधक टीके लगाने का काम शुरू होता और देर रात को थक कर चूर डॉ. केशव हेडगेवार घर पहुंचते | एक दिन जब घर पहुंचे तो वातावरण कुछ ज्यादा ही शांत प्रतीत हुआ | यह शांति अकारण नहीं थी, बड़े भाई महादेव भी प्लेग के शिकार बन चुके थे | महादेव शास्त्री ने व्यायाम और कसरत से शरीर को बलिष्ठ बनाया था, उनकी धारणा थी की प्लेग उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता, किन्तु उन्हें जाना ही पड़ा | 

इस समाजसेवी डॉ. की ख्याति बढ़ने लगी तो विवाह के प्रस्ताव आने शुरू हुए | स्वजनों ने समझाया भी कि महात्मा गांधी, लोकमान्य तिलक, यहाँ तक कि विनायक दामोदर सावरकर भी विवाहित हैं, तो सामाजिक कार्य में गृहस्थी बाधक नहीं है, विवाह कर लो | किन्तु केशव अडिग थे, भारतवासियों की फूट, अकर्मण्यता, लोलुपता और स्वार्थ भावना उन्हें खाए जा रही थी | उन्होंने लक्ष्य निर्धारित कर लिया था, जब तक समाज जागृत नहीं है, अगर स्वतंत्रता मिल भी गई तो वह स्थाई नहीं होगी | नई पीढी को सुसंस्कारित करना देश की प्राथमिक आवश्यकता है | अतः चाचा आबाजी को लिख भेजा कि बड़े भाई सीताराम के विवाह की चिंता करो, मेरा विवाह का कोई मन नहीं है | 

सीताराम का विवाह हुआ, भोली और सुन्दर किन्तु अनपढ़ रमा देवी से | अल्हड कंजे खेलने वाली रमा घर गृहस्थी की जिम्मेदारी उठाने लगी | यह जिम्मेदारी उन्होंने कैसे उठाई इसका एक उदाहरण कुछ इस प्रकार है | डॉ. साहब ने कम पढी लिखी होने का उलाहना दिया, तो वे आंसू बहाते एक कोने में बैठ गईं | केशव ने मनाने की कोशिश करते हुए कहा भाभी आज मैं खाना बनाकर तुम्हें खिलाऊंगा, तुम आराम करो | यह सुनते ही रोना छोड़कर रमा उठ बैठीं, बोलीं, यह नहीं होगा, खाना तो मैं ही बनाउंगी | केशव ने जिद्द की अरे मुझे बनाना आता है, आपके आने के पहले मैं ही तो बनाता था | आज तो मैं ही बनाऊंगा | रमा बोलीं – ठीक है, आपको बनाना है तो कल बना लेना, आज तो मैं ही बनाउंगी, आप ऊपर जाईये | इन दोनों में यह चकल्लस चल ही रही थी, तब तक सीताराम भैया भारी थैलियाँ उठाये हांफते हुए अन्दर आये और बोले घर में अनाज का दाना नहीं था, कहकर गया था कि मेरे आने के बाद खिचडी पका लेना | 

केशव की आखें छलछला आईं | उन्हें याद आया कि कल चार बाहर के लोगों का घर पर भोजन हुआ था, भैया भाभी ने पता नहीं कल भी बाद में कुछ खाया या नहीं, और आज भी मुझे पता नहीं चल जाए, इसलिए भाभी रसोई में नहीं जाने दे रही थीं | निर्धनता के इस पारिवारिक वातावरण में भी केशव उस राष्ट्रीय मंडल के सदस्य बने, जिसमें लोकमान्य तिलक के अनुयाई डॉ. बा. शि. मुंजे, नीलकंठराव उधोजी, नारायण राव अलेकर, नारायण राव वैद्य, डॉ. मोरूभाऊ अभ्यंकर, गोपालराव ओगले, भवानी शंकर नियोगी, डॉ. ना भा खरे, विश्वनाथ राव केलकर, डॉ. गोविन्दराव देशमुख, चोलकर और डॉ. परांजपे जैसे वरिष्ठ जन थे | नागपुर में श्री बोबडे, विश्वनाथ राव केलकर, बलबंतराव मंडलेकर, चोरघडे तथा ना भा खरे के साथ उन्होंने “नागपुर नॅशनल युनियन” की भी स्थापना की | इतना ही नहीं तो संकल्प नामक हिन्दी समाचार पत्र का प्रकाशन भी प्रारंभ कर दिया | केशव अब डॉ. केशव बलीराम पन्त के नाम से सार्वजनिक जीवन में ख्यात होने लगे | 

कांग्रेस के सत्याग्रही – जेल यात्रा – आरएसएस का शुभारम्भ 

कांग्रेस का अधिवेशन नागपुर में होना तय हुआ और लोकमान्य तिलक ने अध्यक्षता के लिए आने की स्वीकृति दी, तो डॉ. मुंजे, गणपतराव जोशी और बाबा साहब देशपांडे ने गाँव गाँव घूमकर उसकी तैयारी शुरू की | डॉ. मुंजे ने सूचना दी कि तिलक जी न केवल हेडगेवार जी के घर रुकेंगे, अपितु सभा में हेडगेवार जी का भाषण भी होगा | किन्तु तभी बज्राघात हुआ और लोकमान्य तिलक का स्वर्गवास हो गया | तिलक जी की अमोघ और स्पष्ट वाणी बंद हुई तो कांग्रेस में ऊष्णता का स्थान गांधी जी की शीतलता ने ले लिया | देखते ही देखते उनकी अहिंसावादी नीति ने जनमत को अपने पक्ष में कर लिया | डॉ. मुंजे और केशव कांग्रेस अधिवेशन की अध्यक्षता के लिए महर्षि अरविन्द घोष को निमंत्रण देने पांडिचेरी गए, जहाँ महान क्रांतिकारी सामाजिक जीवन से विरत होकर योग साधना में लीन थे | इन दोनों ने सामजिक परिस्थितियों का वर्णन उनसे किया, कैसे रोलेट एक्ट के कारण अंग्रेजों के अत्याचार सीआ पार कर रहे हैं और कैसे देश के मुसलमान तुर्किस्तान के हिमायती बनकर केवल खिलाफत पर जोर दे रहे हैं और कैसे उनके स्वर में स्वर मिलाकर महात्मा जी ने उसे असहयोग आन्दोलन का नाम दिया है | 

किन्तु महर्षि अरविन्द ने स्वीकृति नहीं दी, उन्होंने कहा कि मैंने अपना लक्ष्य निर्धारित कर लिया है और वह है धर्म और संस्कृति | आजादी मिल भी गई तो इसके बिना वह व्यर्थ होगी | वास्तविक स्वतंत्रता तो वह होगी जिसमें हमारी सनातन संस्कृति का दिग्दर्शन हो | सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयः | हमारा स्वतंत्र राष्ट्र मानव धर्म पर आधारित हो | चार दिनों के सानिध्य में केशव ने महर्षि अरविंद के मार्गदर्शन कू पूरी तरह हृदयंगम कर लिया | उन्हें समझ में आ गया कि देश के लिए स्वतंत्रता जितनी महत्वपूर्ण है, उतना ही महत्वपूर्ण है, परम्परागत संस्कारों और भारतीय मनीषियों महर्षियों वाली हमारी सांस्कृतिक विरासत को कायम रखना | लौटकर सब लोगों के साथ अधिवेशन की तैयारी में जुटे | उत्साहपूर्ण माहौल में अधिवेशन प्रारंभ हुआ | श्री बढे द्वारा प्रस्तावित गौवध बंदी का प्रस्ताव खारिज हो गया, तर्क दिया गया कि इससे मुसलमानों की भावना को ठेस पहुंचेगी और वर्तमान में हिन्दू मुस्लिम एकता आवश्यक है | नागपुर अधिवेशन में ही प्रजातंत्र को कांग्रेस का ध्येय घोषित किया गया | 

अधिवेशन के बाद असहयोग आन्दोलन के नेता के रूप में स्थान स्थान पर डॉ. साहब के भाषण शुरू हुए – एक देश के लोगों का दूसरे देश पर शासन करना जुल्म है, अन्याय है, अत्याचार है | अंग्रेजों को क्या हक़ है, हमारे देश पर शासन करने का ? इस पावन हिन्दूभूमि के पुत्रों को गुलाम बनाकर उनका यह कहना कि हम हिन्दुस्तान के मालिक हैं, न्याय नीति और धर्म की हत्या नहीं तो क्या है ? चेचक के दागों से भरा घनी मूछों वाला सांवला चेहरा, जरी किनारे वाली धोती, काला कोट पहने, सर पर ऊंची गोल टोपी, हाथ में छडी और बोलते समय एक एक वाक्य से झरता ओज, लोग मंत्रमुग्ध हो जाते | जल्द ही शासन की वक्र दृष्टि हुई | वारंट निकला, गिरफ्तारी हुई और शुरू हुआ नागपुर के न्यायाधीश सिराज अहमद की अदालत में मुक़दमा | डॉ. साहब ने अपना पक्ष स्वयं रखा | ३१ मई से १९ अगस्त तक मुक़दमा चला | आरोपी से कठघरे से अपना पक्ष रखते हुए डॉ. साहब के जो भाषण हुए, उन्हें सुनकर और उनके द्वारा प्रस्तुत लिखित बयान अधकार न्यायाधीश ने टिप्पणी की कि आरोपी का बचाव मूल अपराध से कहीं ज्यादा संगीन है | डॉ. साहब को एक वर्ष सश्रम कारावास का दंड सुनाया गया | 

जेल में अन्य आन्दोलनकारियों के साथ एक काजी इनामुल्ला भी थे | वह प्रतिदिन ऊंची आवाज में कुरआन की आयतें पढ़ते, एक दिन डॉ. साहब ने उनसे कहा भाई कमसेकम जो बोलते हो उसका अर्थ भी तो बता दो, जिससे हमें भी अच्छा लगे | उसने कटु स्वर में जबाब दिया, ना तो मुझे अपने धर्म का ज्ञान देना और न तुम्हारे धर्म का ज्ञान लेना | बात आई गई हो गई | डॉ. साहब अपने को दिया गया काम पूरी लगन से करते, रात को कैदियों को रामायण महाभारत की कथाएं सुनाते, जेलर नीलकंठराव जठार उनसे सहज प्रभावित होते चले गए | वे अक्सर समय निकालकर उनसे सहज चर्चा करने आ जाते | उन्होंने डॉ. साहब को पढने के लिए पुस्तकें भी उपलब्ध कराईं | औरों की बात जाने दें, हर समय सबसे झगड़े पर आमादा रहने वाला काजी इनमुल्ला भी बोला – मैं बहुत ध्यान से आपकी बातें सुनता रहा हूँ | मेरे मन में कृष्ण को लेकर यह भाव था कि यह कैसा व्यक्ति था, जो कहता था, मेरी शरण में आ जाओ, अपने आप को खुद बड़ा कहता है, लेकिन जैसे जैसे आपको सुना तो बात समझ मैं आई | कृष्ण स्वयं को बड़ा नहीं कहते, वे जब कहते हैं कि मैं सर्वत्र हूँ, सबमें हूँ, तब उस परमात्मा के विषय में कहते हैं | शायद इसीलिए रसखान श्रीकृष्ण को अपना पति और स्वयं को उनकी पत्नी कहते थे | उसने कबीर का एक पद भी गाया – अंतरजामी एक तुम, आलम के आधार, जो तुम छोडो कबीरा, तो कौन उतारे पर | तो इस प्रकार सबको अपना बनाते बीता डॉ. साहब का जेल जीवन | 

बाहर निकल्रे तव तक गांधी जी का असहयोग आन्दोलन उनके पकडे जाने के बाद अपने आप बंद हो चुका था, उसे समाज ने कोई मान्यता नहीं दी | डॉ. साहब सोचने लगे कि इतना बड़ा आन्दोलन क्या एक व्यक्ति के कारण चल रहा था, हमारे समाज में स्वतः स्फूर्ति क्यों नहीं है ? उन्हें असहयोग आन्दोलन के नाम पर केरल में हुए मोपला विद्रोह की भी जानकारी मिली, कैसे वहां हिन्दुओं पर अत्याचार हुए, पंद्रह सौ हिन्दुओं का कत्ले आम हुआ, बीस हजार लोगों का बलात धर्म परिवर्तन करवाया गया, हिन्दू महिलाओं के साथ पाशविक बलात्कार हुए, और कांग्रेस ने इन सब घटनाओं को नकारते हुए, सामान्य माना | यह कैसी हिन्दू मुस्लिम एकता है ? उन्होंने एक दिन समीउल्ला से पूछा – सब कांग्रेसी खादी की सफ़ेद टोपी पहनते हैं, यहाँ तक कि मैंने भी अपनी काली टोपी छोडकर उसे ही पहनना शुरू कर दिया है, फिर आप कांग्रेसी होते हुए भी जालीदार तुर्की टोपी क्यों पहनते हैं ? 

उसके जबाब ने उन्हें चोंका दिया | वह बोला – मैं पहले मुसलमान हूँ, बाद में कांग्रेसी | यह टोपी हमारी राष्ट्रीयता की पहचान है | डॉ. साहब ने सोचा, जो लोग भारत में रहकर तुर्की टोपी को राष्ट्रीयता का प्रतीक मानते हैं, उनकी दम पर स्वाधीनता संभव नहीं ! नागपुर की एक सभा में मेंढक छूटे तो लोग सांप सांप चिल्लाकर भागने लगे ! भगदड़ मच गई ! डाक्टर साहब ने सोचा सब साथ में फिर भी अकेलेपन का भाव क्यों ? एक गली में आठ लोग जा रहे थे ! सामने से दो मुसलमानों को आते देखकर पीछे लौटने लगे ! ये आठ भी अकेले और वो दो पूरे मुसलमान ! हिन्दू स्वयं को अकेला समझता है, इसे कैसे दूर किया जाये ? 

तभी एक और घटना घटी | गणेश पैठ के गणेश उत्सव मंडल के सामने ही एक मस्जिद का निर्माण हुआ | किसी ने आपत्ति भी नहीं की, उलटे भोंसले राजपरिवार सहित अन्य हिन्दुओं ने मदद ही की | किन्तु मस्जिद बनते ही, मुसलमानों ने जिद्द की कि मस्जिद के सामने से कोई जुलूस न निकले, कोई वाद्य न बजे | सामने ही गणेश मन्दिर है, वहां पूजा के समय वाद्य घन्टे मंजीरे न बजें, भला यह कैसे संभव था | राजे लक्ष्मण राव भोंसले ने भी समझाने की कोशिश की, पर वे मानने को तैयार ही नहीं हुए | एक सभा मंच से डॉ. साहब ने गरजकर हिन्दुओं से कहा – तुम्हारे संयम और धैर्य के कारण ही यह स्थिति निर्मित हुई है | हम अपने ही घर में पराये होते जा रहे हैं | आप संगठित नहीं है और होना भी नहीं चाहते | तो फिर इन्तजार क्यों, अपने पुरखों का धर्म छोडो और आज ही इस्लाम या ईसाई मत स्वीकार कर लो | हिन्दू निर्वीर्य हो चुके हैं | 

यह कहते हुए जैसे ही डॉ. साहब जैसे ही सभामंच से नीचे उतरने को उद्यत हुए, सभा में कोलाहल हो गया | कई लोग आगे बढे और कहने लगे, हमसे भूल हुई है, किन्तु अब हम दिखा देंगे कि हम कायर नहीं हैं, आप जैसा कहेंगे, अब बैसा ही होगा | और उसके बाद जब गणेश विसर्जन के चल समारोह में समूचा नागपुर मानो सडकों पर उमड़ आया, तो किसी की हिम्मत ही नहीं हुई उसे रोकने टोकने की | देश भर में ऐसे माहौल का समाचार पाकर महात्मा गांधी ने जेल में ही हिन्दू मुस्लिम एकता के लिए उपवास प्रारंभ कर दिया | देश में कई लोग हैरत में थे कि जिन लोगों ने इतनी अमानुष हत्याएं कीं, उन्हें दण्डित करने की मांग के स्थान पर उनके ह्रदय परिवर्तन हेतु स्वयं को सजा देना और जो हिन्दू महात्मा जी को प्रेम करते हैं, उनका जीवन संकट में डालना कहाँ की समझदारी है, कैसी न्याय बुद्धि है यह ? ऐसी अहिंसा का क्या अर्थ निकलेगा ? यह सत्याग्रह है अथवा दुराग्रह ? डॉ. साहब को भी अप्रिय तो लगा, किन्तु गांधीजी के प्रति उनका श्रद्धाभाव कम नहीं हुआ, किन्तु उन्होंने कांग्रेस कार्यकर्ता बने रहते हुए ही हिन्दुओं को संगठित करने के लिए काम करने का मानस बना लिया | सभी समविचारी साथियों के साथ विचार विमर्श के बाद अंततः सन १९२५ में दशहरे के दिन भाऊ जी काबरे, अन्ना सोहनी, विश्वनाथ राव, बालाजी हुद्दार, बापूराव सहित तीस चालीस युवक घर के कमरे में एकत्रित हुए | किसी ने गणेश स्तवन गाया, किसी में मातृभूमि की वंदना का गीत गाया, फिर डॉक्टर साहब का उद्बोधन हुआ | 

आज हम सभी अपनी संगठना का शुभारम्भ कर रहे हैं | दुर्बल शरीर में विचार भी दुर्बल ही होते हैं | एक ज्योति से घर का अँधेरा दूर होता है, हर घर में ज्योति जले तो पूरे गाँव या शहर, प्रांत या देश का अँधेरा दूर होता है | हम आज अपने सांस्कृतिक जीवन मूल्यों के समक्ष अखंड नंदा दीप प्रज्वलित कर रहे हैं | प्रिय मित्रो, युवको, साथियो, सेवाभावी स्वयंसेवको, क्या यह नंदा दीप आपके हाथों में सोंप सकता हूँ ? जहाँ तक मेरा सवाल है, अपनी अंतिम सांस तक, प्राणों की बाजी लगाकर सारे तूफानों, बवंडरों में इसे प्रज्वलित रखूंगा | कहते कहते डॉक्टर साहब भावुक हो गए | 

संघ कार्य ईश्वरीय कार्य - महामानव का महाप्रयाण 

संगठन बन तो गया, लोग जुड़ने भी लगे, किन्तु अब संगठन का नाम क्या रखा जाए, इस पर विचार शुरू हुआ | कुछ दिनों बाद डॉक्टर साहब के घर पर विचार विमर्श हेतु छब्बीस लोग एकत्रित हुए | अनेक नाम सुझाए गए, किसी ने कहा महाराष्ट्र स्वयंसेवक संघ, तो किसी ने जरीपटका मंडल तो किसी ने भारतोद्धारक मंडल | डॉक्टर साहब न मुस्कुराते हुए सभी के अभिमत सुने और फिर कहा, महाराष्ट्र स्वयंसेवक संघ क्यूं, हिन्दू संगठन की आवश्यकता क्या केवल महाराष्ट्र में है ? यह तो पूरे देश में करणीय कार्य है | जरी पटका से भी पेशवाई और केवल शनिवार वाडे पर लहराते जरी पटके का बोध होता है | मुझे लगता है आसेतु हिमाचल संगठन खड़ा करने के लिए स्वयं की इच्छा से राष्ट्रसेवा का पथ अंगीकार करने वाले स्वयंसेवकों का संगठन अर्थात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नाम अधिक उचित होगा | सभी ने इस नाम पर सहमति जताई | 

धीरे धीरे युवकों में संघ का आकर्षण बढ़ने लगा | उन्हें लाठी तलवार जम्बिया चलाने का प्रशिक्षण व अनुशासन की शिक्षा दी जाने लगी | आदितवार दरवाजा स्कूल का मैदान कम पड़ने लगा तो छोटे किले के समान मोहिते की हवेली डॉ. परांजपे ने प्रदान कर दी | तभी एक प्रसंग ने डॉक्टर साहब को द्रवित कर दिया | अधिकाँश स्वयंसेवक ब्राह्मण ही थे | एक नौजवान दूर दूर से इनको देखता रहता, सुगठित शरीर, सौम्य मुखाकृति | मोहिते की हवेली का मैदान जब साफ़ किया जा रहा था, तब वह पास आया और बोला, आप यह काम न करें, यह मैं ज्यादा अच्छे से कर सकता हूँ | डॉक्टर साहब ने प्रसन्नता पूर्वक अनुमति दी और कार्य समाप्त हो जाने के बाद उसे गले लगाना चाहा तो वह दूर छिटक गया, बोला मुझे पाप न चढ़ाएं, मैं अछूत हूँ, सफाई कर्मी हूँ | डॉक्टर साहब ने कहा, तुम पूरे शहर को स्वच्छ करते हो, तुम अछूत कैसे हो सकते हो ? तुम्हारा नाम क्या है ? 

युवक ने जबाब दिया – डॉक्टर साहब मेरा नाम दगडू है, मेरा कोई नहीं है, न मां न पिता | आप भले छुआछूत न मानें, किन्तु यह संस्कार मेरी नस नस में समाया हुआ है | मैं स्वयं ही घुलमिल नहीं सकता | आप मुझे अपना मानें, मेरे लिए यही बहुत है | डॉक्टर साहब गदगद हो गए | वह युवक नहीं रुका, चला गया | 

उसके बाद आठ दस दिन वह नहीं दिखा तो, डॉक्टर साहब उससे मिलने को आतुर हो उठे, कहीं बीमार तो नहीं पड़ गया दगडू ? वे उसके विषय में पूछते ताछते मस्कासाथ स्थित झोंपड पट्टी जा पहुंचे | एक स्त्री ने बताया कि आठ दस दिन पूर्व सांप के काटने से उसकी मृत्यु हो गई | उसका कोई नजदीकी था नहीं, केवल एक कुत्ता था | उसके मरने के बाद कुत्ते ने भी कुछ नहीं खाया पिया और आज सबेरे वह भी मर गया | आगे कुछ सुनने के लिए डॉक्टर साहब वहां नहीं रुके | आख्नें छलछला रही थीं और सोच रहे थे कि दगडू सांप के काटने से मरा, या उसका मन ही जात पांत के बंधनों से ऊब गया था ? और यहीं से वह बीज पड़ गया, हम सब हिन्दू एक | न हिन्दू पतितो भवेत | कोई हिन्दू पतित नहीं, सबमें उसी ईश्वर का वास, सब समान, जाती गौण, हिंदुत्व प्रमुख | 

उन्हीं दिनों में स्वामी श्रद्धानंद की दिल्ली में जघन्य हत्या हो गई | उसका दोष केवल इतना था कि जबरन मुसलमान बनाए गए हिन्दुओं को उन्होंने पुनः हिन्दू बनाने का अभियान चलाया हुआ था | जन जागरण द्वारा उन्हें समाज मान्य भी करवा रहे थे | डॉक्टर साहब को यह दुःख इसलिए भी अधिक कष्ट दे रहा था, क्योंकि हिन्दू समाज में तो उस ह्त्या के विरुद्ध कोई उबाल नहीं आया था | इसके विपरीत उनके हत्यारों के चित्र दिल्ली के हर चौक हर बाजार में विजय प्रतीक के रूप में बेचे जा रहे थे | उन्हें लगा कि नागपुर में भले ही संघ द्वारा खड़े किये गए हिन्दू संगठन के कारण काफी हद तक हिन्दू निर्भय हो गए हैं, किन्तु अब इस कार्य की आवश्यकता शेष भारत में भी है | फिर आयोजित हुआ प्रथम ग्रीष्मकालीन अधिकारी प्रशिक्षण वर्ग, जिसमें सोलह स्वयंसेवकों ने आत्मरक्षा के साथ दूसरों की रक्षा करने में भी सिद्धता पाने का प्रशिक्षण लिया | अन्ना सोहनी तथा मार्तंडराव जोग ने इसके लिए भागीरथ प्रयत्न किये | आज इन वर्गों को संघ शिक्षा वर्ग कहा जाता है | 

यह हिन्दू संगठन कार्य आतताईयों को पसंद नहीं आ रहा था, एक दिन जब डॉक्टर साहब गणेशोत्सव के भाषण के सिलसिले में चांदा और वणी इलाके में गए थे, उनके घर पर हमला हो गया | अटारी के खप्पर, घर के दरवाजे और खिड़कियाँ सब तोड़ दी गईं | गरीबी में गीला आटा | अतिशय निर्धनता में जीवन यापन कर रहे सीताराम भैया और भाभी रमा के माथे पर इसके बाद भी सिकन नहीं आई | डॉक्टर साहब घर पहुंचे तो खाने के लिए और कुछ भी नहीं था, भाभी दूध में घोलकर सत्तू और गुड ले आईं | भावुक डॉक्टर साहब का संकल्प और दृढ हो गया | कभी किसी का घर न लुटे, टूटे या उजड़े, इसके लिए हिन्दू संगठन ही एकमात्र उपाय है | 

संघ कार्य प्रारंभ होने के बाद भी डॉक्टर साहब मध्यप्रदेश कांग्रेस की कार्यकारिणी के सदस्य थे | अतः उन्हें कांग्रेस के कोलकाता अधिवेशन का आमंत्रण मिला और वे गए भी | कोलकता में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के साथ गंगा तट पर लम्बी वार्ता हुई | नेताजी की विदेशी शक्तियों से सहायता लेकर देश को आजाद कराने की योजना उनके गले नहीं उतरी | देश को स्वाधीनता तो देशवासियों के संगठन से ही प्राप्त हो सकती है, अपना यह मत उन्होंने नेताजी के सामने स्पष्टता से रखा | जबकि नेताजी यह मानने को तैयार नहीं थे कि भारत के हिन्दू कभी संगठित भी हो सकते हैं | अंत में दोनों इस बात पर एकमत हुए कि अपने अपने ढंग से दोनों कार्य चलते रहें, जिससे भी सफलता मिल जाए | 

डॉक्टर साहब के संपर्क में आये अच्छे घरों के योग्य बच्चे प्रचारक बने ! भैयाजी दाणी और भाऊ साहब देवरस को पढ़ने के लिए वनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में काशी भेजा तो मूल उद्देश्य संघकार्य ही था | प. मदन मोहन मालवीय जी का आशीर्वाद साथ था ! बाला साहब कलकत्ता गए तो दादाराव परमार्थ दक्षिण ! उन्हें तमिल नहीं आती थी ! अब कार्य प्रारम्भ कैसे किया जाए तो एक दिन जानबूझकर किराए की साईकिल लेकर एक अन्य साईकिल सवार से भिडा दी ! जब तक वो ठीक नहीं हुआ रोज उसके घर मिलने जाते रहे और इस बहाने उसे संघ कार्य की घुट्टी पिला दी ! 

वर्धा के दिगंबर राव तिजारे उज्जैन आये ! महाकाल मंदिर में दर्शन किये ! भंडारे में प्रसाद ग्रहण किया ! पर मुख्य बात शाखा लगना कैसे शुरू हो ? मंदिर के सामने मैदान में कुछ बच्चे फ़ुटबाल खेलते दिखे ! पर समस्या यह कि उनसे बातचीत कैसे शुरू हो ? इन्हें हिन्दी नही आती और खिलाड़ियों को मराठी का ज्ञान नही था ! अचानक फ़ुटबाल इनकी तरफ आई ! इन्होने उसे पकड़ लिया ! सब बच्चे आये और फुटबाल माँगी ! इन्होने कहा नहीं दूंगा, पहले मेरी बात सुनो ! बच्चों ने मारना शुरू कर दिया ! बच्चों की मार से तिजारे जी के वलिष्ठ शरीर पर क्या असर होता ? चुपचाप पिटते रहे और कहते रहे कि भले मार लो, पर फुटबाल तभी मिलेगी, जब मेरी बात सुन लोगे ! थक कर बच्चों ने कहा, कहो क्या कहना चाहते हो ! बस तिजारे जी फूट पड़े ! भारत माता जंजीरों में जकड़ी हुई है और तुम खेल खेलने में लगे हुए हो ! क्या तुम्हे माँ की मुक्ति का प्रयत्न नही करना चाहिए ? बच्चों ने पूछा भला हम लोग क्या कर सकते हैं ! इन्होने जबाब दिया संगठित होकर देशसेवा करना चाहिए ! संघ की शाखा लगाना चाहिए ! फिर क्या था हो गई उज्जैन में शाखा शुरू ! जो वालक पहला स्वयंसेवक बना बह थे राजाभाऊ महाकाल ! जो आगे चलकर संघ के प्रचारक बने और गोआ मुक्ति आंदोलन में शहीद हुए ! 

जिन दिनों संघ के शिक्षा वर्ग प्रारंभ होने थे, उन्हीं दिनों गांधी जी का नमक सत्याग्रह शुरू हुआ | डॉक्टर साहब ने स्वयं भी भाग लेना तय किया | हर जगह नमक तो होता नहीं है, अतः महाराष्ट्र में यह सत्याग्रह जंगल सत्याग्रह कहलाया | हाथ में गंडासा लिए डॉक्टर साहब ने यवतमाल के जंगल में प्रवेश किया तो जीवन में दूसरी बार उन्हें कारवास मिला | २१ महीने जेल की सजा सुनाई गई ! अनेक परिचित लोग मिले तो आनंद हुआ | अनेक नए मित्र भी बनाए और संघ का मन्त्र सबके मनों में उतारकर रिहा हुए | विरोधियों को भी अपना बना लेना उन्हें आता था ! छूटने के बाद लौटे तो घर तो जैसा था बैसा ही था, ढहती दीवारें, हिलती चौखटें, चरमराती सीढियां, खाली पड़े कनस्तर, जर्जर गाय, ठिठुराती सर्दियों में अटारी की टूटी खिड़की से आती वर्फीली हवाएं, लालटेन की फडफडाती लौ | ऐसी निर्धनता में भी अथक परिश्रम करते डॉक्टर साहब का स्वास्थ्य बिगडने लगा | टांगों में दर्द बढ़ने लगा | मन में केवल एक ही कसक थी, मेरे बाद कौन संघ कार्य को बढ़ाएगा | फिर सोचते यह तो ईश्वरीय कार्य है, गीता में स्वयं श्रीकृष्ण ने कहा है - परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम, धर्म संस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे | संघ भी तो वही कर रहा है, तो हुआ ना उनका ही कार्य, क्या वे चिंता नहीं करेंगे | और एक दिन जब सुबह घूमने निकले तो हाथ में पकड़ी छडी छूट गई, लडखडाये, लेकिन गिरने के पहले ही किसी ने संभाल लिया | सामने एक गौरवर्णी तेजस्वी युवक खड़ा था | डॉक्टर साहब ने तुरंत पहचान लिया, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में जब महामना मालवीय से मिलने गए थे, तभी माधव गोलवलकर से परिचय हुआ था | उस दौरान डॉक्टर साहब कुछ नामचीन लोगों को संघ की प्रतिज्ञा संबंधी जानकारी दे रहे थे, तब कुछ लोगों ने तन मन धनपूर्वक के स्थान पर यथाशक्ति करने का सुझाव दिया | बैठक में उपस्थित गोलवलकर जी ने तुरंत डॉक्टर साहब के स्थान पर आपत्ति कर्ताओं से कहा – यह एक संगठन की प्रतिज्ञा है, स्वीकार है तो “हाँ” कहिये अन्यथा “ना” करिए | बैसे भी यथासंभव में टालमटोल की गुंजाईश होती है, अतः अगर विचार के प्रति पूर्ण समर्पण है तो यथासंभव का क्या औचित्य | डॉक्टर साहब बहुत प्रभावित हुए थे और अकस्मात् माधव को सामने देखकर उन्हें लगा कि यही हो सकता है उनके स्थान पर संघ कार्य संभालने वाला | लेकिन माधव के मन में तो संन्यास बसा था, वे सारगाछी जाकर गुरूजी कहलाने लगे ! उनके गुरू अखंडानंद जी ने कहा इसको हिमालय मत जाने देना, रामकृष्ण मिशन भी मत जाने देना, यह तो डाक्टर साहब के साथ जनता को जनार्दन मान सेवा करेगा ! डाक्टर साहब उच्च रक्तचाप से पीड़ित हुए ! रीढ़ की हड्डी में लम्बर पंक्चर कर उसे नियंत्रित किया जाता ! बाद में तबियत ज्यादा खराब होने लगी ! साथ में श्री गुरूजी ! अचेतावस्था में भी डाक्टर साहब बुदबुदाते – देरी हो गई, देरी हो गई ! बहां शाखा खुलनी थी, नहीं खुल सकी ! बीमारी के सन्निपात में भी उनका बडबडाना गुरूजी आँखों में अश्रु लिए सुनते ! तब गुरूजी को संघ समझ आया और वे भी संघमय हो गए ! 

भगवान श्री कृष्ण को अर्जुन के केश धोता देख नारद अचंभित हुए ! भगवान ने नारद से उन केशों से कान लगाने को कहा ! केशों से भी कृष्ण कृष्ण की ध्वनि निकल रही थी ! डाक्टर साहब के भी रोम रोम से संघ बोलता था ! बह देखकर गुरूजी ने भी स्वयं को पूर्णतः समर्पित कर दिया ! अंतिम क्षणों में भी भाव अंतरण ! उसी दिन रात को डाक्टर साहब ने गुरूजी से कहा – यह शरीर अब ज्यादा टिकने बाला नहीं ! स्वीकार करो कि संघ कार्य करोगे, फिर शरीर के साथ जो करना हो करो ! 

थे अकेले आप लेकिन, 

बीज का था भाव पाया ! 

बो दिया निज को, 

अमरवट संघ भारत में उगाया ! 

राष्ट्र ही क्या अखिल जग का, 

आसरा बन जाए ! 

और उसकी हम टहनियाँ, 

पत्तियाँ बन जाएँ !
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