कांग्रेस शासन ने भारत रत्न दिया है, तो क्या कांग्रेस की गुलाम बनकर रहे देश की प्रतिभा ?


एक हैं सचिन तेंदुलकर। देश में कई लोग हैं, जो उन्हें क्रिकेट का भगवान कहते हैं | उस कालखंड में क्रिकेट के अनगिनत पुराने रिकॉर्ड उन्होंने ध्वस्त किये, नए कीर्तिमान स्थापित किये | देश में एक स्वर से मांग उठी कि वे भारत के कोहिनूर हैं, उन्हें भारत रत्न दिया जाना चाहिए और अंततः जनमत ने विवश किया तो फ़रवरी २०१४ को राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने राष्ट्रपति भवन में आयोजित समारोह में उन्हें भारत रत्न से सम्मनित किया | सभी जानते हैं कि उस समय कांग्रेस की ही सरकार थी | लेकिन उस मानसिकता को क्या कहें कि कांग्रेस ने मान लिया कि सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न देकर उसने खरीद लिया है। 

वह सचिन तेंदुलकर जो क्रिकेट भी कभी अपने लिये नहीं खेला। वह हमेशा ही अपनी टीम के लिये या उससे भी ज्यादा अपने देश के लिये खेले। उन्होंने आवेश में आकर कभी कोई टिप्पणी नहीं की। अगर किसी प्रतिद्वंदी खिलाड़ी ने उनके खिलाफ कभी कोई टिप्पणी की भी, तो उन्होंने उस टिप्पणी का जवाब जुबान से देने के बजाय अपने बल्ले से ही दिया।

लेकिन दुर्भाग्य तो देखिये कि उन्हीं सचिन ने जब भारत के आतंरिक मामलों में विदेशी दखलंदाजी की आलोचना की तो विपक्षी दल खासकर कांग्रेस उन पर टूट ही पड़ी | इतनी हिमाकत ? हमने भारत रत्न दिया और हमारे रुख के खिलाफ बोल रहे हो | भारत रत्न दिया है, कोई मजाक नहीं, कांग्रेस के जर खरीद गुलाम हो गए हो ।गुलाम को यह हक नहीं होता कि अपने मालिक की मर्जी के खिलाफ जाए। जरखरीद गुलाम अगर बागी हो जाय तो उसे सजा दी जानी चाहिए। सचिन ही क्यों स्वरसाम्राज्ञी लता मंगेशकर जिनके एक गीत को सुनकर स्वयं प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की आँखें छलछला आई थीं, जो शहीद हुए हैं उनकी जरा याद करो कुर्बानी, आज भी सुनने वाले को भाव विभोर कर देता है, उन लता जी ने भी सचिन के स्वर में स्वर क्या मिलाया, मानो घोर अपराध कर दिया, फिल्म स्टार अक्षय कुमार भी अपराधी हो गए कांग्रेस की नजर में । 

मतलब समझिए। कांग्रेस ने अपने शासनकाल में जिन महापुरुषों को सम्मान दिया, कांग्रेस मानती है कि उनका स्वयं का कोई बजूद नहीं था, हमने सम्मान दिया, अहसान किया, अब जिन्दगी भर हमारे इशारों पर नाचो | देश के प्रति नहीं कांग्रेस के प्रति निष्ठा रखो | इसलिए इन सभी की जांच होगी। यह जांच महाराष्ट्र सरकार कराएगी। जांच इस मुद्दे पर होगी कि क्या इन लोगों ने भाजपा के कहने पर किसान आंदोलन के बारे में ट्वीट किया है। 

अब मान भी लिया जाए, भाजपा के आग्रह पर ही इन प्रतिष्ठित लोगों ने ट्वीट किया। उसमें गुनाह क्या हो गया ? क़ानून की कौन सी धारा में इन्हें अपराधी घोषित किया जाएगा ?

किसी पार्टी के कहने पर ट्वीट करना गुनाह हो तो हमें भी बताइए। इस तरह तो स्वयं कांग्रेस के रणदीप सुरजेवाला और अन्य नेताओं ने रेहाना के ट्वीट को रीट्वीट करके भी गुनाह किया है। उसकी सजा कांग्रेस को पहले तय कर लेनी चाहिए। सचिन तेंदुलकर हो या लता मंगेशकर या अक्षय कुमार, ये लोग शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी की मेहरबानी से स्टार नहीं बने हैं। यह उनकी अपनी मेहनत की कमाई है। वे उद्धव ठाकरे नहीं हैं जिन्हें बाल ठाकरे का उत्तराधिकार मिला हो। यह सियासत में ही होता है कि कुर्सियां उत्तराधिकार में मिलती हैं। गांधी परिवार के राहुल बाबा, एनसीपी के अजीत पवार और शिवसेना के उद्धव ठाकरे को कुर्सी उसी परंपरा के तहत हासिल हुई है। लेकिन सचिन तेंदुलकर, लता मंगेशकर, अक्षय कुमार जैसे लोग अपनी दम पर महानता के शीर्ष पर पहुंचे हैं | चाहे जितना जोर लगा लो, जन मन में इनके प्रति नाराजगी पैदा होना असंभव है | आसमान पर थूकने वालों का खुद का चेहरा ही गंदा होता है, यह समझना चाहिए |

अब थोड़ी सी बात किसान आन्दोलन की भी | चमोली में भयानक आपदा आई। इस भयंकर दुर्घटना पर कोई किसान नेता एक शब्द भी नहीं बोला। शायद उन्हें अफसोस हुआ भी होगा तो केवल यह कि उसके कारण एक पूरे दिन किसी चेनल ने उनके जबरिया आंदोलन को महत्व नहीं दिया । देश में छोटी जोत वाले गरीब किसान 86 फीसदी हैं। 14 फीसदी किसान खूब धनी हैं। उन्हें आढ़तिए और दलाल कुछ भी कह लीजिए। यह आन्दोलन केवल उनका ही है | असली किसान तो अभी भी खेतों में पसीना बहा रहे हैं | लालकिले पर दंगा करने वाला दीप सिद्धू गिरफ्तार हो गया। जब तक वह नहीं गिरफ्तार हुआ था तब तक किसान नेता उसे भाजपा का एजेंट बता रहे थे। कह रहे थे कि उसे अब तक गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया? अब उसकी गिरफ्तारी हो गई तो सबके मुंह में दही जम गया है, सब चाईं माईं चुप हो गये हैं | अब उन्हें डर सता रहा है कि दीप सिंधू से भले कोई मतलब हो, न हो, लेकिन उसने भांडा फोड़ दिया तो क्या होगा, जैसा कि वह लगातार विडियो प्रसारित कर कहता रहा है | और २६ जनवरी को भारत की साख पर बट्टा लगाने वाले, बाक़ी जो फरार घोषित हैं, वे तो हैं ही उनके अपने लोग | वे भी पकडे ही जायेंगे | इधर संसद का सत्र ख़तम, उधर किसान आन्दोलन भी टांय टांय फिस्स | क्योंकि संसद में भी कोई सार्थक और तथ्यात्मक समर्थन तो उन्हें मिल ही नहीं रहा है | उलटे उनकी खिल्ली ही उड़ रही है |

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