बात के धनी, प्रतापी और बलिदानी चारण भाट


खिलजी द्वारा चित्तौड़ विध्वंश के बाद चित्तौड़ को मुस्लिम कब्जे से मुक्त करने वाले राणा हमीर सिंह के पुत्र महाराणा क्षेत्रसिंह उपाख्य खेता का विवाह बूंदी के हाडा लालसिंह की बेटी के साथ तय हुआ | धूमधाम से बूंदी में ही विवाह संपन्न हुआ | विवाह उत्सव के बाद हुए दरवार में महाराणा खेता ने अपने ससुर का परिचय अपने कवि बारू बारहट से करवाया और कहा कि इन्हें हमारी पिताश्री महाराणा हमीरसिंह ने अपना बारहट बनाया था और इन्हीं की माता बरबड़ी तो साक्षात जगदम्बा का अवतार थीं | उन्हीं के आशीर्वाद से चितौड़ का उद्धार हुआ था |

इस पर बारू ने विनम्रता से उत्तर दिया कि मैं तो याचक हूँ | राजपूतों के सम्मुख हाथ फैलाने वाला | यह अलग बात है कि आज के दौर में चित्तौड़ के महाराणा के अलावा कोई राजपूत प्रथ्वी पर दिखाई ही नहीं देता, इसलिए केवल इनसे ही मांगता हूँ | इनके अतिरिक्त किसी और से नहीं लेता |

बात हाडा लालसिंह को चुभ गई, किन्तु उस समय तो खून का घूँट पीकर रह गए, किन्तु बाद में किसी बहाने से बारू को अपने महल में बुलाया और एक मकान में बंद करवा दिया | महाराणा जब अपनी नवपरिणीता पत्नी के साथ चित्तौड़ लौट गए, तब बूंदी नरेश हाडा लालसिंह ने बारू को अपने पास बुलवाया और कहा कि तुमने कहा कि तुम राजपूतों से ही लेते हो | हम भी राजपूत हैं, अतः तुम्हें हमसे भी कुछ लेना होगा | यदि नहीं लोगे तो तुम्हारी खैर नहीं है |

बारू ने कुछ सोचा, विचार किया और फिर कहा ठीक है महाराज मैं आपसे भी ले लूंगा लेकिन मेरी एक शर्त है कि पहले आप वह स्वीकार करें, जो मैं आपको दूंगा | लालसिंह ने कहा ठीक है, मुझे मंजूर है, लेकिन अब तो यह नाक का सवाल है, तुम्हें हमसे भी लेना ही होगा | तुमने यह कैसे कहा कि तुम्हारी नजर में केवल चित्तौड़ वाले ही राजपूत हैं |

बारू वापस उस मकान में पहुंचे, जहाँ उन्हें बंदी बनाकर रखा गया था और अपने सेवक भाट युवक से कहा कि मैं अपना सर काटकर तुम्हें दूंगा, तुम उसे ले जाकर हाडा राजा को दे देना | लड़का डर गया, तो बारू ने कहा यह हमारी कौम के मान सम्मान का सवाल है, तुझे यह काम करना ही होगा | भाट नौजवान विवश हो गया | उसके बाद बारू बारहट ने अपने हाथों से अपना सर काट दिया और वह युवक एक थाल में रखकर रेशमी कपडे से ढककर लालसिंह के पास ले गया | लालसिंह को काटो तो खून नहीं जैसी स्थिति हो गई | उन्हें बेहद शर्मिन्दगी महसूस हुई | किन्तु अब जो हो गया, उसे वह बदल तो सकते नहीं थे |

उधर महाराणा को जब यह वृतांत ज्ञात हुआ तो उन्हें बेहद गुस्सा आया, और उन्होंने बूंदी पर चढ़ाई कर दी | कई दिनों तक लड़ाई होती रही, लेकिन बूंदी के गढ़ को जीता न जा सका | इसपर महाराणा मुंह में तलवार दाब कर स्वयं किले की दीवार पर चढ़े | ऊपर पहुँच तो गए, लेकिन अकेले कर ही क्या सकते थे, वीरता पूर्वक युद्ध करते हुए स्वर्ग सिधारे | अपने चारण की खातिर उन्होंने अपने प्राण न्यौछावर कर दिए | यह प्रसंग दर्शाता है कि उस काल में चारण कवियों का राजाओं की नजर में कितना सम्मान था | सिसोदिया कुल दीपक अपनी ही ससुराल वालों के हाथों मारे गए | चित्तौड़ के सैनिकों के क्रोध का ठिकाना न रहा और उनकी क्रोधाग्नि से लालसिंह हाडा भी बच नहीं पाए, मारे गए | उनकी बेटी अर्थात महाराणा की पत्नी हाडी महारानी भी महाराणा के साथ सती हुई |

महाराणा खेता के बाद उनके बेटे महाराणा लक्षसिंह उपाख्य लाखा गद्दी नसीन हुए | बूंदी के हाडा लालसिंह के मारे जाने के बाद उनका पूरा परिवार तितर बितर हो गया था | किसी तरह हिम्मत जुटाकर लालसिंह के पुत्र जैतसिंह और नौब्रह्म तथा हामा हाडा के बेटे बरसिंह महाराणा लाखा के पास पहुंचे और विनम्रता से निवेदन किया कि जो कुछ हुआ, उसमें हमारा तो कोई कसूर है नहीं, फिर भी अगर आप नाराज हैं, तो हम हाजिर हैं, यह जान आपकी ही है, आप चाहें तो स्वयं ले लें या अपने दुश्मनों से लड़वाकर ले लें | महाराणा लाखा उनकी बातों से बहुत प्रभावित हुए और बूंदी का राजपाट वापस उन्हें ही सोंप दिया |

आधुनिक इतिहासकार इन चरणों द्वारा लिखी गई प्रशस्तियों को इतिहास नहीं मानते, क्योंकि उनमें कल्पना का पुट रहता है | लेकिन हैरत की बात है कि वे उन शिलालेखों को मान्यता देते हैं, जिनका आलेख भी ऐसे ही चारणों ने लिखा हो सकता है | जबकि होना यह चाहिए कि उस दौर के इन सरस्वतीपुत्रों द्वारा लिखित इतिहास में से सत्य का अंश निकाला जाये, क्योंकि उसमें कल्पना और सत्य दोनों का मिश्रण रहता है | इसी विचार को मान्य करते हुए अंग्रेज इतिहासकार अलेग्जेंडर किनलौक फ़ोर्ब्स ने १८५७ में एक ग्रन्थ प्रकाशित किया था, जिसका नामकरण किया गया था रासलीला |

उक्त पुस्तक में भी इन्हीं चारणों की एक अद्भुत बलिदानी गाथा वर्णित है | गुजरात के महा प्रतापी चालुक्य राजाओं में से एक थे कुमारपाल | वे जैनाचार्य हेमचन्द्र जी से अत्याधिक प्रभावित थे | उनके अनेक विवाह हुए, किन्तु एक विवाह कुछ अलग कारण से चर्चित है, क्योंकि उसके साथ इन चारणों की बलिदानी गाथा भी जुडी है | हुआ कुछ यूं कि कुमारपाल ने मेवाड़ की राजकुमारी से विवाह हेतु अपना खांडा भेजा | किन्तु राजकुमारी को ज्ञात था कि चालुक्य राज की नववधू को विवाहोपरांत आचार्य हेमचन्द्र जी के सम्मुख जाकर पहले जैन धर्म की दीक्षा लेना होती है, उसके बाद ही उसका महल में प्रवेश होता है | शैव्य राजकुमारी को यह स्वीकार नहीं था | उसने विवाह से इनकार कर दिया | इस पर कुमार पाल के भाट जयदेव ने जमानत ली और कहा कि उन्हें इसके लिए विवश नहीं किया जाएगा | उसके बाद रानी ने अनहिलवाड पट्टन जाना स्वीकार किया | कुछ समय तक तो सब कुछ ठीकठाक रहा, किन्तु फिर जब स्वयं आचार्य हेमचन्द्र जी ने राजा को आग्रह किया तो राजा ने भी सिसोदिणी रानी से जैन उपासरे में चलने को विवश किया | रानी ने दुखी होकर खाना पीना छोड़ दिया और बीमार बन गईं | बात भाट जयदेव तक भी पहुंची, तो उसके दुःख और क्षोभ का ठिकाना नहीं रहा | उसने योजना बनाई और उसके बाद कुछ भाट महिलायें किसी प्रकार रानी को महल से निकाल लाईं और रात के अँधेरे में वे लोग रानी को उसके पीहर पहुंचाने के लिए रवाना हो गए |

कुमारपाल को यह ज्ञात होते ही वह दो हजार घुड़सवारों के साथ चढ़ दौड़ा | जयदेव ने रानी से कहा कि आप निश्चिन्त रहें हम लोग इस सेना को रोकेंगे और आप सुरक्षित ईडर पहुँच जायेंगी | लेकिन रानी को भरोसा नहीं हुआ कि ये दो सौ लोग कैसे दो हजार का मुकाबला करेंगे और उसने आत्मघात कर लिया, अपने कलेजे में खंजर मार लिया | कुमार पाल तो शर्मिन्दा भाव से वापस हुए, किन्तु जयदेव के दुःख का तो ठिकाना नहीं रहा | उसने अपने सभी सजातीयों को कुमकुमपत्री भेजी, जिसमें लिखा था – अपनी जाति की प्रतिष्ठा चली गई है, इसलिए जो मेरे साथ जल मरने को तैयार हों, वे आ जाएँ | उसके बाद तीन चिताएं सजीं, एक सिद्धपुर में, दूसरी पट्टन से एक तीर के फासले पर, और तीसरी नगरद्वार के बिलकुल पास | प्रत्येक चिता में सोलह सोलह भाट सपत्नीक जल मरे | पट्टन में आज जो भाट शेष हैं, वे एक गर्भवती होने के कारण जलने से बची भाट कुल की महिला के बाद में जन्मे पुत्र के वंशज हैं | तो ऐसे चारण भाटों के लिखे ग्रंथों को एकदम नकारना उचित नहीं है |
एक टिप्पणी भेजें

3 टिप्पणियाँ

  1. महोदय चारण ओर भाट दोनों अलग जातियां है
    चारण समाज मे देवी करणी ,खोडियार ,मोगल राजल,बिरवड़ी, आवड़, तनोट ,जैसी नो लाख देवियो ने जन्म लिया साथ ही चारणो ने अनेक युधो में अदम्य साहस दिखाया हल्दीघाटी युद्ध मे महाराणा प्रताप के साथ केसव जी चारण ओर जैसा जी चारण के नेतृत्व में 300 चारण अकबर से लड़े ऐसे कई उदाहरण है , कृपा करके चारणो के साथ भाट जाति को ना जोड़े दोनों अलग जातियां है
    चारणो ने समय-समय पर राष्ट्र के लिये अनेक बलिदान दिए चारण क्रांतिकारी केसरी सिह बारहठ ने सन 1903 ई. में अंग्रेज़ वायसराय लॉर्ड कर्ज़न द्वारा दिल्ली में इतिहास प्रसिद्ध \'दिल्ली दरबार\' आयोजित किया गया था। इस दरबार में मेवाड़ के महाराणा फ़तेह सिंह को सम्मिलित होने से रोकने के लिए प्रसिद्ध क्रांतिकारी बारहट केसरीसिंह ने उन्हें सम्बोधित कर \'चेतावनी रा चूंगट्या\' नामक कुछ उद्बोधक सोरठे लिखे थे| जिसे पढ़कर मेवाड़ महाराणा दिल्ली नही गए

    चारण कवि दुरसा जी आढा अकबर के दरबार मे महाराणा प्रताप की प्रशंसा ओर अकबर की निंदा करते थे
    दुरसा जी आढ़ा ने अकबर के सामने प्रताप की प्रशंसा के सोरठे विरुद्ध छतहरि अकबर को सुनाये ऐसे अनेक। उदाहरण मिल जाएंगे

    किंतु कुछ लोग अज्ञानता वश चारण समाज के साथ भाट जाति को जोड़ने का पाप करते है जबकि दोनों ही जातिया अलग-अलग हैं

    जवाब देंहटाएं
  2. महोदय चारण ओर भाट दोनों अलग जातियां है ,

    जवाब देंहटाएं
  3. अज्ञानी पहले अपना ज्ञान बढ़ा, चारण ओर भाट दोनो अलग अलग जातियां है, चारण सिर्फ राजस्थान गुजरात और मध्यप्रदेश में ही निवास करते हैं।ये देवी जाती है

    जवाब देंहटाएं