धरतीपुत्र देवेंद्र बना सरस्वती पुत्र

 

बूढ़े पिता की आंसुओं से भरी आँखों के लिए यह विश्वास करना कठिन हो रहा था कि मंच पर खड़ा पढ़ा लिखा, सधी जुबान में बात करने वाला नौजवान उनका बेटा देवेंद्र आदिवासी है। आज उनका सीना गर्व से चौड़ा हो गया था देवेंद्र ने मंच से एक विद्यार्थी की पढाई का खर्च उठाने की घोषणा की थी। वो अभी तक नहीं भूले कि उनकी शराब की लत के कारण आये दिन अपमान का घूंट पीना न पड़े इसलिए देवेंद्र ने कुछ समय के लिए घर आना ही छोड़ दिया था। मन में आगे पढने की चाह रखने वाले शिवपुरी के नजदीक ममवानी गांव के इस वनवासी बालक का सहारा बना सेवा भारती शिवपुरी (मध्यप्रदेश) का वनवासी छात्रावास। यहाँ रहकर पिछड़ी जनजातियों के बच्चे 6वीं से लेकर 12वीं तक की पढ़ाई निःशुल्क करते हैं। यहीं रहकर उसने विवेकानंद महाविद्यालय से बी.ए. किया व अब शिवपुरी में शासकीय विभाग में चपरासी की नौकरी कर रहा है।

देवेंद्र की कहानी में सबसे सुखद क्षण तब आया जब पुराने विद्यार्थियों को छात्रावास के एनुअल फंक्शन में बुलाया गया इस बार फर्ज निभाने की बारी इस पुराने विद्यार्थी की थी। वही उसने किया।

अपनी पहली कमाई से देवेंद्र ने एक छात्र की पढ़ाई लिखाई का खर्च उठाने का संकल्प लिया। यानी छठी से बारहवीं तक इस बालक की प्रतिवर्ष वार्षिक फीस 5000 रू।

आज अपने माता-पिता बीवी बच्चों के साथ देवेंद्र एक खुशहाल जीवन व्यतीत कर रहे हैं और हां पिता हरिराम शराब पूरी तरह त्याग चुके हैं एवं एक ठाकुर जी के यहां मंदिर में नौकरी भी करते हैं।

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