स्वदेशी का अर्थ सर्वे भवन्तु सुखिनः, सबको सुख देने वाली, सबका हित करने वाली नीति - दिवाकर शर्मा

 

इन दिनों जब पूरे भारत में स्वदेशी-स्वदेशी की ही गूँज है, लोग आपस में मिलते हुए स्वदेशी के विषय पर अपने अपने विचार व्यक्त करते देखे जा रहे है, विभिन्न सामजिक संस्थाएं-संगठन स्वदेशी विषय पर संवाद करते नजर आ रहे है और तो और भारत सरकार के द्वारा दिया गया नारा ' आत्मनिर्भर भारत' भी स्वदेशी के भाव से प्रेरित है तो स्वदेशी के विषय में, स्वदेशी के मूल भाव को, स्वदेशी की वास्तविक परिभाषा तथा इसकी उपयोगिता को समझा जाना आवश्यक हो जाता है |

जब भी स्वदेशी के विषय में बात प्रारम्भ होती है तो अक्सर कहा जाता है कि स्वदेशी अर्थात स्वयं के देश में निर्मित उत्पाद जो सत्य तो है परन्तु पूर्णतः सत्य नहीं है, आधा सत्य है और यह स्वदेशी की पूर्ण परिभाषा नहीं है, यह स्वदेशी की संकुचित परिभाषा है |

क्योंकि हमारे पूर्वज ऋषियों ने तो कहा है –

स्वदेशो भुवनत्रयम | जब तीनों भुवन हमारे अपने देश हैं, तो आखिर पराया है ही कौन ? अतः स्वदेशी के विषय में यदि हम गंभीरता से विचार करें तो हम यह जान पाएंगे कि स्वदेशी का मूल अर्थ है पूर्णतः प्राकृतिक अर्थात जो प्रकृति के अनुकूल है, जो सम्पूर्ण सृष्टि के लिए हितकारी है, वह हर वस्तु-विचार स्वदेशी है | उदाहरण के तौर पर सूरज का उदय होना व अस्त होना, मनुष्य का जन्म लेना व मृत्यु होना, वृक्षों का फल-फूल-सब्जी एवं ऑक्सीजन देना, भूमि से अन्न का उपजना, नदियों का सतत प्रवाहित होना, यह सब स्वदेशी है | स्वदेशी का सम्बन्ध किसी एक प्रान्त-देश से न होकर समूची सृष्टि से होता है, जिसमें हर मनुष्य को समानता के आधार पर जीवन यापन करने का अधिकार होता है, प्राकृतिक संसाधनों का दोहन नहीं अपितु संरक्षण करना यह मूल भाव है और यही सभी कुछ स्वदेशी है | स्वदेशी के इस भाव को वही समझ सकता है जो प्रकृति के निकट हो, जिसे प्राकृतिक संसाधनों की उपयोगिता का ज्ञान हो | पूरी दुनिया में भारत ही ऐसा देश है जो वर्षों, दशकों, सदियों से ही नहीं वरन सृष्टि के आरम्भ से ही स्वदेशी के इस ज्ञान को आत्मसात कर समूची दुनिया को यह ज्ञान बांटता रहा है | इसका कारण है कि यहाँ के लोग जिस धर्म का पालन करते आये है उसे स्वयं परमात्मा के द्वारा दिया गया ज्ञान कहा जाता है जिसे यहाँ के महान ऋषि,मुनियों और तपस्वियों ने कठोर साधना और तप के माध्यम से प्राप्त किया एवं इसका प्रचार प्रसार मानव जीवन के कल्याण हेतु किया है | यह धर्म सदा से था और अनंत तक रहेगा इसी लिए इसका नाम सनातन है |

यदि हम अतीत में जाएंगे तो देखेंगे कि सदैव से भारत पर विदेशी आक्रांताओं ने यहाँ की सम्पन्नता एवं वैभव से आकर्षित होकर आक्रमण किये है | आक्रमण कर देश के कई भूभाग पर जमकर उत्पात,उपद्रव और लूटपाट करते हुए शासन किया | उन विदेशी आक्रांताओं के शासन के दौरान उन भूभागों में सांस्कृतिक बदलाव भी किये गए, कुछ सांस्कृतिक बदलाव तात्कालिक थे जिन्हें समय रहते सुधार लिया गया परन्तु कुछ सांस्कृतिक बदलाव स्थाई हो गए जिन्हें सुधारा जाना आवश्यक है | विदेशी आक्रांताओं के द्वारा भारतीय समाज में किये गए वे सांस्कृतिक बदलाव जो आज भी भारतीय समाज में विद्यमान है उसी का परिणाम है कि स्वदेशी जैसे महत्वपूर्ण विषय की व्यापक परिभाषा तो जाने दीजिये, स्वदेशी की संकुचित परिभाषा तक से हम परिचित नहीं है |

पंडित दीनदयाल उपाध्याय स्वदेशी के विषय पर अपने विचार रखते हुए कुछ सवाल रखते थे कि स्वदेशी क्या है ? क्या स्वदेशी कोई वस्तु है ? या स्वदेशी कोई मंत्र है ? उनके सवालों की और उनके समाधानों की निम्नलिखित शृंखला है -

स्वदेशी कोई वस्तु नहीं एक चिंतन है |
स्वदेशी भारत के जीवन दर्शन का एक तंत्र है |
स्वदेशी मंत्र है सुखी जीवन का |
आज स्वदेशी एक शस्त्र है युग परिवर्तन का, भारत के विकास का |
स्वदेशी समाधान है भारत की बेरोजगारी का |
स्वदेशी कवच है शोषित होने से बचने का |
स्वदेशी स्वाभिमान है श्रमशीलता का |
स्वदेशी संरक्षक है प्रकृति, पर्यावरण व जीव जंतुओं का |
स्वदेशी एक आंदोलन है सादगी और सम्मान का |
स्वदेशी संग्राम है जीवन और मरण का |
स्वदेशी आधार है समाज की सेवा का |
स्वदेशी उपचार है मानवता के विकास का |
स्वदेशी उत्थान है समाज व राष्ट्र के सम्मान और स्वाभिमान का |

हर एक भारत वासी को यह समझना होगा कि देश में जो भी विकास अभी तक हुआ है, वह वास्तव में स्वदेशी के आधार पर ही टिका हुआ है | स्वदेशी में भाषा, भेषज (औषधि), शिक्षा, रीति रिवाज, भौतिक उपयोग की वस्तुएं, कृषि, लघु व कुटीर उद्योग, व्यवसाय, कार्यकौशल व न्याय व्यवस्था आदि | भारत को अगर हमें सामजिक, आर्थिक, राजनैतिक, विज्ञान, तकनीकी, उत्पादन और सुरक्षा आदि क्षेत्र में समर्थ और शक्तिशाली बनाना है तो हमें स्वदेशी के मूल मंत्र को अपनाना ही पड़ेगा और कोई दूसरा विकल्प हमारे पास नहीं है | आज समय है जब भारत की नब्ज को पहचान कर, महसूस करके, उसके अनुरूप अब नीतियां बननी चाहिए | भारत में अब एक ऐसा मॉडल बनना चाहिए जिसमें व्यक्ति, परिवार, समाज, राज्य और देश की जरूरतों को ध्यान में रखा जा सके, जिसमें सबके बारे में विचार हो सके | स्वदेशी और सर्वस्पर्शी मॉडल के माध्यम से ही हम विश्व के सामने एक समृद्धशाली राष्ट्र के रूप में स्थापित हो सकते है | हमारे देश में फिर कोई असहाय और मजबूर नहीं होगा | देश स्वाभिमान और स्वावलम्बन के साथ आत्मनिर्भर होकर विश्व का मार्गदर्शन करेगा |

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