जनसंख्या नियंत्रण : एक नजर इधर भी - राजेन्द्र तिवारी

 

जनसंख्या नियंत्रण कानून की सर्वत्र प्रशंसा हो रही है। मैं भी समर्थक हूं। इस सोच में किसी भी प्रकार का कोई संशय नहीं होना चाहिए कि प्रत्येक माता-पिता एक या अधिक से अधिक दो बच्चों का  ही पालन-पोषण, शिक्षा अच्छी तरह कर सकते हैं।

प्रत्येक व्यक्ति को देश के एक नेक नागरिक के तौर पर यह सोचना होगा कि १०-१२ बच्चे पैदा कर के देश के संसाधनों पर अनावश्यक बोझ नहीं डालना चाहिए। 

फिर प्रश्न यह भी है कि देश का कर-दाता आखिर क्यों, अपने पैसे से सब्सिडी की सुविधाएं उन्हें दे, जो १०-१२ बच्चे पैदा कर रहे हैं ?

परन्तु एक पेंच पर ध्यान देना होगा: - फ़र्ज़ करें कि देश के नासमझ, कमदिमाग मुसलमान इस कानून का पालन नहीं करते हैं, तो ज्यादा से ज्यादा उनकी सरकारी सुविधाएं ही तो बन्द हो जाएंगी। कर दो बन्द, इससे क्या होगा ? ऐसे लोगों का एक ही उद्देश्य है और यही उन्हें पढ़ाया गया है कि उन्हें तो अपनी जनसंख्या बढ़ाना ही है, हथियार रखना है, काफिरों को मारना ही है। शरीयत का कवच साथ में भी है। इसीलिए ऐसे लोग कभी फेमिली प्लानिंग को तवज्या नहीं देते हैं। बिडम्बना तो यह है कि सामान्यतयाः उन्हें मदरसों में भी यही पढ़ाया गया है और सच तो यह है कि उनकी गरीबी का कारण भी यही है। जनसंख्या नियंत्रण कानून से ऐसे नासमझ लोगों पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है। परिणामस्वरुप मुसलमानों की जनसंख्या तो बढ़ती ही जाएगी।

और हिन्दू ? 

हिन्दू ईमानदारी से इसका पालन करेगा। फिलहाल इस क़ानून का विरोध नहीं कर रहे हैं। 

और सच तो यह है कि अधिकांशतः हिन्दू पूर्व से ही परिवार नियोजन का पालन कर रहे हैं। ध्यान करना होगा और सर्वे होना चाहिए कि हिन्दू परिवारों की महिलाओं में गर्भधारण नहीं होना एक समस्या हो रही है। विवाह को ८-१० वर्ष हो जाते हैं, लेकिन बच्चे नहीं हो रहै हैं।आईवीएफ सेन्टर में हिन्दु महिलाओं की ही भीड़ मची हुई है। जनसंख्या नियंत्रण कानून का एक पक्ष यह भी है और इससे इन्कार नहीं किया जा सकता कि इससे हिन्दुओं की जनसंख्या घटेगी और मुसलमानों के लिए यह "बाबा जी का ठुल्लू"

जनसंख्या यदि नियन्त्रित ही करना है, तो घुसपैठि एवं रोहिंग्याओं, बंग्लादेशियों को निकाल बाहर करो। गौर करना होगा कि पश्चिम बंगाल में हिन्दुओं का कत्लेआम रोहिंग्या मुसलमान कर रहे हैं। एक टीवी चैनल (जी न्यूज) के अनुसार एक गांव से एक हजार हिन्दू गायब हैं जिनमें से 45 के शव बरामद हुए हैं। आशंका तो यह है कि ऐसा समय किसी भी शहर, गांव, कस्बे में कभी भी आ सकता है। सरकार सियासत के गलियारों में सत्ता के नशे का हनीमून मनाना बन्द करें। सी.ए.ए. कानून तो बन गया, लेकिन जमीनी स्तर पर उसका इम्प्लीमेण्टेशन भी तो हो। देश के लगभग अधिकांश शहरों, गांव में घुसपैठिए डेरा जामाए हुए हैं और ताज्जुब तो यह है कि जिला प्रशासन व पुलिस विभाग के पास इसके कोई आंकड़े नहीं है। फर्ज करें देश में ऑफ दि रिकॉर्ड बीस लाख घुसपैठिए हैं, तो अगली साल ये चालीस लाख हो जाएंगे। इनके लिए बच्चे पैदा करना एक मशीनी काम है। दिन दूनी रात चौगुनी जनसंख्या तो बढ़नी ही है।

अतः जनसंख्या नियंत्रण करना है तो हर शहर, गांव-गांव में घुसपैठियों का सर्वे करने हेतु सरकारी मशीनरी को लगा देना चाहिए और आम जनता व एनजीओ का सहयोग लेकर घुसपैठियों को चिन्हित कर उन्हें डिटेंशन सेन्टर में बन्द करना चाहिए। और फिर उन्हें देश से बाहर करना चाहिए। इस कार्य में किसी भी प्रकार का राजनीतिक विरोध हो, तो होने दीजिए। इससे देश के हिन्दुओं और मुसलमानो को राहत मिलेगी। जो तथाकथित सेक्युलर इसका विरोध करें, तो समझिए कि उन्हें इस देश की जनता से कोई लगाव नहीं है।


लेखक - राजेन्द्र तिवारी, अभिभाषक,दतिया, मध्य प्रदेश, फोन-9425116738, email- rajendra.rt.tiwari@gmail.com


नोट - लेखक एक पूर्व शासकीय एवं वरिष्ठ अभिभाषक व राजनीतिक, सामाजिक, प्रशासनिक, आध्यात्मिक विषयों के चिंतक व समालोचक हैं।

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