२६ दिसंबर 1530 को बाबर की मृत्यु हुई। उस समय तक उसे नहीं लगता था कि भारत में उसके वंशज लम्बे समय तक टिके रह पायेंगे, इसलिए उसने मृत्यु पूर्व...
२६ दिसंबर 1530 को बाबर की मृत्यु हुई। उस समय तक उसे नहीं लगता था कि भारत में उसके वंशज लम्बे समय तक टिके रह पायेंगे, इसलिए उसने मृत्यु पूर्व ही इच्छा जताई थी कि उसे काबुल ले जाकर दफनाया जाए। बैसा ही हुआ भी। उसकी मौत के बाद उसका बेटा हुमांयू गद्दी पर बैठा, किन्तु उसकी राह आसान कहाँ थी। बाबर के प्रधान मंत्री निजामुद्दीन अली मोहम्मद खलीफा ने हुमांयू को अयोग्य मानकर उस के स्थान पर बाबर के बहनोई मेंहदी ख्वाजा की ताजपोशी करना तय किया। लेकिन तभी एक छोटी सी घटना ने सब कुछ उलट पुलट कर दिया। हुआ कुछ यूं कि मेहंदी ख्वाजा जब अपने किसी विश्वस्त से प्रधान मंत्री को विश्वासघाती कह रहा था, उसके शब्द प्रधानमंत्री के पिता ने सुन लिए, और इस प्रकार बिना कुछ किये धरे हुमांयू का रास्ता साफ़ हो गया और ३० दिसंबर 1530 को हुमांयू ने सत्ता संभाली।उस समय लोदी वंश का महमूद लोदी और अफगान शेर खां ही नहीं तो बंगाल का नुसरत शाह और गुजरात का बहादुर शाह भी उसके धुर विरोधी थे ही, मुग़ल राजवंश के भी कई लोग स्वयं सत्ता पर काबिज होना चाहते थे। उसके अपने भाई कामरान, असकरी और हिन्दाल भी यही महत्वाकांक्षा पाले हुए थे। यह भी ध्यान देने योग्य तथ्य है कि दिसंबर 1530 में गद्दी पर बैठे हुमांयू को कालिंजर में अफगानों के हाथों नीचा देखना पड़ा तो चुनार में शेर खान सूरी से समझौते को विवश होना पड़ा। उसके बाद 1934 आते आते शेर खां शेरशाह सूरी के नाम से लगभग पूरे बिहार पर काबिज हो गया। इस सबसे बेखबर हुमांयू आगरा में रंगरेलियां मनाता रहा।
यह वही दौर था जब गुजरात के बहादुर शाह ने मेवाड़ पर आक्रमण किया और इतिहासकारों के अनुसार महारानी कर्णावती ने हुमांयू से मदद मांगी। इतिहासकार गपोड़ों ने तो यहाँ तक लिखा कि उन्होंने राखी भेजकर उसे अपना भाई बनाया। यह कैसा भाई था, जो सारंगपुर पहुंचकर इंतज़ार करता रहा कि मेवाड़ और गुजरात के बहादुर शाह लड़लड़ कर कब कमजोर हों और कब वह इन दोनों इलाकों पर अपना प्रभुत्व कायम कर सके। कुछ लोगों ने तो लिखा भी कि उसे काफिर हिन्दुओं से कोई सहानुभूति नहीं थी। इसलिए मेवाड़ के हिन्दुओं और गुजरात के मुस्लिम शासक के संघर्ष को वह दूर से देखता भर रहा। अंततः 8 मार्च १५३५ को मेवाड़ पराजित हुआ और एक बार फिर राजपूत ललनाओं ने जौहर किया चित्तौड़ तीन दिन तक लूट खसोट का सामना करता रहा। 18 वर्षीय राणा विक्रमादित्य को उनके वफादार सरदार बचाकर निकाल ले गए और कुछ समय बाद ही इन शूरमाओं ने चित्तौड़ वापस भी ले लिया। आगे की कहानी तो हम सब जानते ही हैं कि किस प्रकार दासी पुत्र बनवीर ने उनकी ह्त्या की और पन्ना धाय ने अपने बेटे का बलिदान देकर उनके छोटे भाई 14 वर्षीय उदय सिंह को बचाया।
कुल कथानक का लब्बोलुआब यह कि कहाँ की राखी और कहाँ के भाई। हुमांयू एक अयोग्य, नासमझ और अय्यास व्यक्ति था, वह युद्ध क्षेत्र में भी अपना हरम साथ लेकर चलता था। 26 जून 1539 को शेरशाह सूरी ने आठ हजार मुग़ल सैनिकों को मारकर हुमांयू को एक मशक के सहारे नदी पार करने और भागने पर विवश कर दिया, उसकी दो बेगमें और एक लड़की भी उसके साथ नदी पार करने के प्रयास में डूबकर मर गईं। उसकी पटरानी बेगा बेगम सहित कई मुग़ल महिलायें शेरशाह सूरी द्वारा बंदी बनाई गईं और बाद में उसने उन्हें ससम्मान आगरा पहुँचाया। १५ मई 1540 को कन्नौज के नजदीक भोजपुर नामक स्थान पर हुमांयू की दो लाख की विशाल सेना का विध्वंश करने के बाद शेरशाह सूरी ने 1540 में तो उसे सिंध भागने पर विवश कर दिया, जहाँ अमरकोट के हिन्दू राणा वीरसाल की मदद से उसने पैर जमाये, एक बार फिर बाबर की कर्मभूमि काबुल और कंधार का रुख किया।
यहाँ के कुछ प्रसंगों का उल्लेख करते हुए कथानक को समाप्त करते हैं। फारस के एक शिया धर्म गुरू मीरबाबा दोस्त की पुत्री हमीदा बेगम से उसने जबरन निकाह किया। इसी हमीदा बेगम से बाद में 15 अक्टूबर 1542 को अकबर का जन्म हुआ। यहाँ भी हुमांयू और उसके भाईयों में झगड़े होते रहे, जिसकी परिणति यह हुई कि 1553 में हुमांयू ने अपने एक भाई कामरान की आखें निकलवा दीं। कामरान और दूसरे भाई असकरी को उसने मक्का भेज दिया, जहाँ बाद में उनका देहांत हो गया। फारस के शाह ने इस शर्त पर उसकी मदद की कि वह शिया मत का प्रचार करेगा। इसी मदद के सहारे हुमांयू ने 23 जुलाई १५५५ को वापस दिल्ली पर अधिकार किया, जहाँ तब तक शेरशाह सूरी के बाद उसके बेटे इस्लाम शाह और उसके बाद हेमचन्द्र विक्रमादित्य का शासन चल रहा था । हेमचन्द्र विक्रमादित्य सम्बन्धी कथानक हम पूर्व में प्रसारित कर चुके हैं, लिंक वीडियो के अंत में देखी जा सकती है। २७ जनवरी 1556 को सीढ़ियों से गिरकर हुमांयू की मौत हो गई। इतिहासकार लेनपूल ने लिखा - हुमांयू गिरते पड़ते इस जीवन से मुक्त हो गया, ठीक बैसे ही जैसे जिंदगी भर वह गिरते पड़ते जिया।
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