शिव आदि देव हैं। शेष नाग जीवचार्य हैं। वासुकी जीवन संग्राम के आधार हैं। तक्षक कलियुग के आधार चिंतक को बल देते हैं। परमब्रह्म, नारायण के नि...
शिव आदि देव हैं। शेष नाग जीवचार्य हैं। वासुकी जीवन संग्राम के आधार हैं। तक्षक कलियुग के आधार चिंतक को बल देते हैं। परमब्रह्म, नारायण के निर्देशन में यह सब क्रमवार चलता है। सब स्पष्ट है। कहीं कोई संशय नही । विश्व का कल्याण। प्राणियों में सद्भावना। सभी का सुख। सभी का आरोग्य। सनातन जीवन संस्कृति का यही उद्घोष है और आधार भी । इन्ही आधारों को केंद्रित कर सनातन जीवन संस्कृति की संरचना बनाई गई है। सामान्य जन सभी आध्यात्मिक या तात्विक विंदु नही समझ पाएंगे या उन्हें जानने की आवश्यकता सामान्य गृहस्थ को नही है इसीलिए इन गूढ़ तत्वों को सनातन लोक जीवन मे पर्व, त्योहार और उत्सव के रूप में स्थापित किया गया है। इन सभी के पीछे के गूढ़ विज्ञान की व्याख्या देना और लोक को अभिसिंचित करना आचार्य कुल के कार्य हैं। यह सब सृष्टि के आरंभ से होता भी रहा है किंतु विगत लगभग एक हजार वर्षों में भूमंडल पर बहुत परिवर्तन हुए हैं। कबीलो से उपजी सभ्यताओं ने बड़े बदलाव किए हैं। इस कारण से विशुद्ध वैज्ञानिक सनातन लोक के सभी आयाम शिथिल और उपेक्षित पड़ते गए है।
आज अत्यंत महत्व का पर्व है नाग पंचमी। इसको सांपो का त्यौहार बताकर इस अतिशय महत्वपूर्ण पर्व को नष्ट कर दिया गया। इसमे हम किसी को दोष नही दे सकते, लेकिन अब जब कि दुनिया सनातन की शक्ति और इसके गूढ़ विज्ञान की समझने में जुटी है, ऐसे समय मे तो सक्रियता से सब कुछ उजागर करना ही चाहिए।
नाग पंचमी सनातन लोक जीवन का एक प्रमुख त्योहार है। हिन्दू पंचांग के अनुसार सावन माह की शुक्ल पक्ष के पंचमी को नाग पंचमी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन नाग देवता या सर्प की पूजा की जाती है और उन्हें दूध से स्नान कराया जाता है। लेकिन कहीं-कहीं दूध पिलाने की परम्परा चल पड़ी है। नाग को दूध पिलाने से पाचन नहीं हो पाने या प्रत्यूर्जता से उनकी मृत्यु हो जाती है। शास्त्रों में नागों को दूध पिलाने को नहीं बल्कि दूध से स्नान कराने को कहा गया है। नागपंचमी के ही दिन अनेक गांव व कस्बों में कुश्ती का आयोजन होता है जिसमें आसपास के पहलवान भाग लेते हैं। गाय, बैल आदि पशुओं को इस दिन नदी, तालाब में ले जाकर नहलाया जाता है। इस दिन अष्टनागों की पूजा की जाती है।
वासुकिः तक्षकश्चैव कालियो मणिभद्रकः।ऐरावतो धृतराष्ट्रः कार्कोटकधनंजयौ ॥एतेऽभयं प्रयच्छन्ति प्राणिनां प्राणजीविनाम् ॥ (भविष्योत्तरपुराण – ३२-२-७)
वासुकिः तक्षकश्चैव कालियो मणिभद्रकः।
ऐरावतो धृतराष्ट्रः कार्कोटकधनंजयौ ॥
एतेऽभयं प्रयच्छन्ति प्राणिनां प्राणजीविनाम् ॥ (भविष्योत्तरपुराण – ३२-२-७)
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