सिकंदर रह गया हक्का बक्का





तथाकथित विश्व विजेता सिकंदर की सेनाओं ने रावी के तट पर हथियार डाल दिए और सिकंदर से दो टूक कह दिया, हमें वापस लौटना है, और युद्ध नहीं करना। विवश सकंदर ने वापसी की राह पकड़ी। लेकिन वह भी कहाँ आसान थी ? उसे कदम कदम पर संघर्ष करना पड़ा। पंजाब की जमीन पर उन दिनों पंचायती राज्यों का बोलबाला था। अभिजात कुलों द्वारा संचालित इन राज्यों में से ही एक था सिंध क्षेत्र में स्थित मूषकों का राज्य। आत्म निर्भरता इनका प्रमुख गुण था, यहाँ तक कि कृषि कार्य के लिए भी ये लोग कोई कर्मचारी या दास नहीं रखते थे। बलिष्ठ और स्वाभिमानी इन लोगों ने आते समय भी और जाते समय भी सिकंदर का पुरजोर सामना किया। सिकंदर की सेना से ये लोग बार हारते किन्तु हार कर भी हार नहीं मानते। बार बार संगठित होकर पुनः जूझने आ धमकते। इनका नेतृत्व कर रहा था एक तेजस्वी नौजवान शंभू।

सिकंदर और मूषिकों को लेकर एक अनोखे प्रसंग का वर्णन ग्रीक इतिहासकार प्लूतार्क ने किया है। सिकंदर ने जानकारी ली तो ज्ञात हुआ कि इन जुझारू लोगों के प्रमुख प्रेरणा स्त्रोत इलाके में बसने वाले नागा साधू हैं। सिकंदर के साथ कुछ ग्रीक दार्शनिक भी थे, जो भारतीय तत्व ज्ञान को नजदीक से समझना चाहते थे, उनके आग्रह पर सिकंदर ने आदेश दिया और एक साधू को पकड़ लिया गया। केवल कौपीन धारी नंग धडंग साधू सिकंदर को देखकर ठठा कर हंसा और उसका मजाक उड़ाते हुए बोला - कैसे इंसान हो तुम ? हम लोग अपने अपने घरों में चैन से रहते हैं, जबकि तुम पागलों की तरह से अपना घर परिवार छोड़कर दूर दूर जाकर दूसरों के काम में दखल डालते फिरते हो। खुद भी परेशान होते हो और दूसरों को भी कष्ट देते हो।

सिकंदर जल भुन गया, उसे जानकारी थी ही कि विद्रोहियों की प्रमुख शक्ति ये साधू लोग ही हैं, अतः उसने इस साधू के साथ साथ शेष साधुओं को भी दण्डित करने का मन बनाया और उसके आदेश पर कुछ और साधू भी पकड़ मंगवाए गए।

सिकंदर ने पहले साधू को सम्बोधित करते हुए कहा - मैं इन साधुओं से एक एक सवाल पूछूंगा, तुम्हें यह बताना होगा कि इनमें से किसका जबाब सबसे अच्छा है। जिसका जबाब सबसे अच्छा बताओगे उसे सबसे पहले और उसी क्रम से शेष सब साधुओं को प्राण दंड मिलेगा।

किसी भी साधू के चेहरे पर भय का नामोनिशान नहीं था। पहला साधू ही निर्विकार भाव से मुस्कुराता हुआ किसी न्यायाधीश जैसी भाव भंगिमा के साथ आलथी पालथी मारकर एक शिला पर बैठ गया। उसके बाद शुरू हुआ साधुओं से सिकंदर का सवाल जबाब

सिकंदर ने एक से पूछा - दुनिया में जीवित मनुष्यों की संख्या अधिक है या मृत मनुष्यों की।

साधू ने जबाब दिया जीवितों की, मृत्यु के बाद तो वे रहते ही नहीं।

दूसरे साधू से पूछा गया - जीव प्रथ्वी पर अधिक हैं या समुद्र में ?

साधू ने तुरंत जबाब दिया - पृथ्वी पर, क्योंकि समुद्र भी तो पृथ्वी का ही अंग है।

अगले साधू से किये सवाल का जो जबाब मिला, उसने तो सिकंदर के गुस्से को सातवे आसमान पर पहुंचा दिया।

सिकंदर ने पूछा - जानवरों में सबसे बुद्धिमान कौन है ?

मुस्कुराते साधू का जबाब था - वह जो आज तक हिंसक इंसानों की नज़रों से बचा हुआ है।

अगले साधू से सिकंदर ने पुछा - तुम लोगों ने शंभू को लड़ने के लिए क्यों उकसाया।

साधू ने बेधड़क कहा - क्योंकि इंसान को इज्जत के साथ ही जीना और इज्जत के साथ ही मरना चाहिए।

सिकंदर का अगले साधू से सवाल था - पहले दिन बना या रात ?

साधू ने कहा - दिन, रात से एक दिन पहले।

सिकंदर चकराया और पूछ बैठा - क्या मतलब तो साधू बोलै, जैसा सवाल बैसा जबाब .

सिकंदर सोचने लगा कि कैसे विचित्र हैं ये लोग - नंग धडंग लेकिन मुझे भी तुच्छ समझते हैं।

कुछ सोचकर उसने अगले साधू से सवाल किया - इंसान सबका प्यारा कैसे बन सकता है।

साधू का जबाब था - ऐसी ताकत पाकर जिससे कोई डरे नहीं।

सिकंदर को लगा कि यह तो सीधे सीधे उसे ही सीख दी जा रही है। पर वह सीखने थोड़े ही आया था। उसने अगले साधू से सवाल किया - कब तक जीना चाहिए।

जबाब हाजिर था - जब तक यह न लगने लगे कि ऐसे जीवन से मृत्यु अधिक श्रेयस्कर है।

सिकंदर का धैर्य जबाब दे गया। उसने मन बना लिया सभी साधुओं को मारने का। इसलिए पहले किसे मारा जाए, इस दृष्टि से निर्णायक आने बैठे पहले साधू से पूछा - बताओ सबसे अच्छा जबाब किसका था।

जो जबाब मिला उसने सिकंदर को हक्का बक्का कर दिया। साधू बोला सब एक से बढ़कर एक। सिकंदर चाहता था कि किसको मारा जाए, ग्रीक दार्शनिकों के सामने इसका दोष उसके मत्थे न आये, किन्तु साधू के जबाब ने यह जिम्मेदारी उसके ही कंधे पर डाल दी थी। वहां उपस्थित ग्रीक दार्शनिक उन साधुओं का अभिवादन कर रहे थे और वे साधू रामधुन गाते, नाचते उसकी आँखों के सामने से सकुशल वापस जा रहे थे। उन्हें न मृत्यु का भय था, सुख दुःख से परे थे वे लोग। भारत के शूरवीरों से ही नहीं सिकंदर यहाँ की ज्ञान परंपरा के सम्मुख भी पराजित हुआ।

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