कलिंग की एक बाला ने लिया सम्राट अशोक से भीषण प्रतिशोध




कई बार इतिहास की घटनाओं का केवल अनुमान के आधार पर भी आंकलन किया जाता है। आज से ढाई हजार वर्ष पूर्व की घटनाओं की सत्यता जानने और कारण समझने के लिए तो अनुमान प्रमाण ही एक साधन है। यही कारण है कि घटनाओं का वर्णन अलग अलग प्रकार से पढ़ने को मिलता है। जैसे कि तिष्यरक्षिता का प्रसंग।

कलिंग युद्ध के बाद सम्राट अशोक ने तिष्यरक्षता से विवाह किया। आगे के घटनाचक्र को लेकर एक मान्यता तो यह है कि अशोक जिस प्रकार बौद्ध धर्म के प्रचार में धन उलीच रहे थे, वह तिष्यरक्षिता को पसंद नहीं आया और उसने अपने पुत्र को राजा बनाने की महत्वाकाँक्षा के चलते अशोक के पुत्र कुणाल को नकली राजमुहर लगे पत्र से अँधा करवा दिया।

दूसरी धारणा कुछ विचित्र ही कहानी कहती है, उसके अनुसार तिष्यरक्षिता वृद्ध अशोक की युवा पत्नी थी, जो कुणाल पर आसक्त हो गई थी। लेकिन कुणाल ने उसके प्रणय निवेदन को अस्वीकार कर दिया और उसे मां कहकर ही सम्मान दिया। कुणाल का विवाह होने के बाद क्षुब्ध होकर उसने षडयंत्र पूर्वक कुणाल को अँधा करवा दिया।

यह दोनों ही मान्यताएं बौद्ध और जैन मतावलम्बी इतिहासकारों ने अपने अपने अनुसार लिखी हैं। लेकिन मैं एक तीसरे कारण की संभावना की ओर सुधी मित्रों का ध्यान दिलाना चाहता हूँ। आईये पहले कलिंग युद्ध से प्रारंभ करते हैं, जिसके कारण को लेकर भी एक मान्यता है कि कलिंग महारानी के सौंदर्य की प्रशंसा सुनसुन कर अशोक मुग्ध हो गया था, इसलिए उसने कलिंग पर आक्रमण किया। यही कारण है कि अपनी अस्मिता का प्रश्न मानकर कलिंग के उडू योद्धाओं ने ही नहीं बल्कि आमजन ने भी उसका कड़ा प्रतिकार किया। यहाँ तक कि नारी शक्ति भी पीछे नहीं रही। उनकी नजर में अशोक एक दुष्ट आक्रांता थे, जबकि उनके राजा अनंत पद्मनाभ एक शूरवीर, योग्य और दयालु राजा थे, विनम्र इतने कि भगवान जगन्नाथ की रथा यात्रा के अवसर पर आगे आगे सड़क पर झाड़ू लगाते चलते थे। ऐसे राजा की पटरानी को हथियाने का अगर कोई प्रयत्न करे तो प्रजा स्वाभाविक ही आक्रोशित होने को ठहरी।

रही सही कसर राजा और रानी के बलिदान ने पूरी कर दी। पराजित राजा ने जब देखा कि शत्रु सेना उसे जीवित पकड़ने का प्रयास कर रही है, तो वह युद्ध भूमि से पलायन कर गया और राजमहल में जाकर अपने हाथों से अपना सर काट लिया। विजयी अशोक ने जब राजमहल में प्रवेश किया, उस समय राजा की चिता जल रही थी और महारानी ने उसकी आँखों के सामने स्वयं को भी उसी चिता में स्वयं को दग्ध कर लिया। अशोक तो मर्माहत हुआ, किन्तु प्रजा ने तो विद्रोह ही कर दिया। यह जानकारी मिलने पर आबाल बृद्ध नर नारी मरने मारने को तत्पर हो गए। यह ऐसा युद्ध था, जिसमें कोई नेतृत्व सामने नहीं था, कोई सेनापति नहीं, फिर भी सेना लड़ रही थी, समस्त प्रजा ही सेना बन कर तन चुकी थी। मगध की सेना ने कठोरता से दमन किया। यही कारण है कि इतिहासकार उस युद्ध में भीषण रक्तपात हुआ मानते हैं।

मैं जिस तीसरी धारणा की बात कह रहा हूँ, वह यह कि तिष्यरक्षिता कलिंग की ही कन्या थी, जिससे अशोक ने कलिंग युद्ध के पश्चात विवाह किया। जिस कलिंग की जनता ने अशोक का प्रबल प्रतिकार किया, उसे नाकों चने चबबा दिए, उस माटी की ही पुत्री तिष्यरक्षिता ने बदला लेने की खातिर, अशोक का वंश नाश करने की इच्छा से ही कुणाल के विरुद्ध षडयंत्र रचा हो, क्या यह संभव नहीं है? और यह तो सभी जानते हैं कि अशोक के बाद मौर्य साम्राज्य का सूर्य अस्ताचल को जाने लगा। अगर इस नजरिये से विचार करें, तो तिष्यरक्षिता खल नायिका से नायिका प्रतीत होती है।

अंत में चलते चलते एक सवाल। क्या अशोक सच्चमुच कलिंग युद्ध के बाद अहिंसक बन गए थे ? इतिहास में दर्ज है कि उन्होंने कुणाल को अँधा करवाने के अपराध का जो दंड तिष्यरक्षिता को दिया वह कितना क्रूरता पूर्ण था। तिष्यरक्षिता को जिन्दा जला दिया गया।

हमारे यहाँ काम क्रोध मोह और लोभ को पाप माना गया है, क्या अपने सम्पूर्ण जीवनकाल में अशोक इन दोषों से मुक्त माने आ सकते हैं ? इसके बाद भी बौद्धों ने अशोक को देवानां प्रिय की उपाधि से सम्बोधित किया ।

कुणाल के पुत्र सम्प्रति ने पाटलीपुत्र के स्थान पर उज्जयिनी को अपनी राजधानी बनाया। मगध का सिंहासन अशोक के एक अन्य पौत्र दशरथ ने संभाला। दशरथ के बाद देववर्मन, सतधनुष व ब्रहद्रथ राजा हुए। ब्रहद्रथ को मारकर ईसा पूर्व 184 में ब्राह्मण पुष्यमित्र शृंग ने सनातन धर्म की पुनर्स्थापना की। जबकि उज्जयिनी में मौर्य वंश का शासन ईसा पूर्व 164 तक अर्थात मगध की तुलना में बीस वर्ष बाद तक चलता रहा। सम्प्रति को बौद्ध, जैन और सनातनी सभी ने अपना माना और उन्हें प्रियदर्शिन की उपाधि दी ।

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