1975 में लगा आपातकाल - जैसा मैंने झेला



आईये आपातकाल के दौर पर एक नजर डालें और विचार करें कि आखिर कांग्रेस को अपने उस अपराध पर कोई पछतावा या अपराध बोध नहीं है, तो क्या यह सही है ?
श्री जय प्रकाश नारायण के नेतृत्व में प्रारम्भ हुआ छात्रों का नव निर्माण आन्दोलन गुजरात वा उसके बाद बिहार से होता हुआ पूरे देश में फ़ैल गया ! भ्रष्टाचार, कोटा परमिट राज, लाल फीताशाही के विरुद्ध पूरा देश उठ खड़ा हुआ ! विद्यार्थी परिषद् के शिवपुरी जिला संगठन मंत्री के रूप में मैंने भी इस आन्दोलन में भूमिका निर्वाह की !
तभी इलाहावाद उच्च न्यायालय ने अपने आदेश से श्रीमती इंदिरा गांधी का चुनाव अवैध घोषित कर दिया ! भ्रष्ट आचरण के आरोप में चुनाव निरस्त किये जाने से क्षुव्ध श्रीमती इंदिरा गांधी ने २५ जून १९७५ अर्द्ध रात्री में देश पर आपात काल थोपकर सभी दिग्गज राजनेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं को जेलों में ठूंस दिया ! विरोधी दलों के नेता ही नही वल्कि कांग्रेस में भी श्रीमती गांधी से मतभेद रखने बाले मोरार जी देसाई, चन्द्र शेखर, मोहन धारिया, राम धन, कृष्ण कान्त जैसे नेता भी मीसा के अंतर्गत जेलों में ठूंस दिए गए ! MISA अर्थात भारत रक्षा अधिनियम (Maintenance of Internal Security Act) ! गोया सभी लोग देश के लिये खतरा बन चुके हों ! देश भर में लाखों देशभक्त राष्ट्र वादी नेता इंदिरा जी की कुर्सी परस्ती की खातिर जेल में पहुँच गए !
शिवपुरी में गिरफ्तार किये गए लोगों ने शिवपुरी जेल में कैसा कष्टप्रद जीवन जिया उसकी बानगी देखिये | तीन लोगों के लिए उपयुक्त कमरे में 18 मीसाबंदी ठूंसे गए | रात को सोते समय यदि किसी को करबट लेना हो तो बगल वाले को कहना पड़ता था कि भैया जरा तू भी करबट ले ले | कुछ बुजुर्ग मीसाबंदियों के आग्रह के कारण जेल की मेस में बने भोजन के स्थान पर स्वयं भोजन बनाकर करने का तय हुआ | मेनुअल के अनुसार जो भोजन सामग्री मिलती थी, वह कितनी अपर्याप्त होती थी, इसका एक रोचक उदाहरण है | सबके हिस्से में चार रोटी और दाल आती थी | एक मीसाबंदी की खुराक कुछ अधिक जानकर सर्व श्री मुन्नालाल गुप्ता, गोपाल डंडोतिया व अशोक पांडे ने अपने हिस्से की एक एक रोटी उनको देना तय किया | कुछ समय पश्चात जब उक्त मीसाबंदी से पूछा कि भैया अब तो पेट भर जाता होगा न ? तो उन्होंने रूहांसे स्वर में जबाब दिया, भाई साहब इनसे क्या होता है, मैं तो इतनी ही और खा सकता हूँ | स्मरणीय है कि उस समय गोपाल जी की आयु भी मात्र 24 वर्ष ही थी |
जेल में समय बिताने के लिए नियमित दिनचर्या बनाई गई | सुबह नित्यकर्म उपरांत व्यायाम स्वाध्याय, गीता पाठ फिर भोजन बनाने की सामूहिक तैयारी | दोपहर में कुछ बौद्धिक कार्यक्रम, चर्चा, प्रतियोगिता आदि | यही क्रम मार्च 1976 तक चला | तब तक कई लोग माफी मांगकर छूट छाट गए और शेष लोग ग्वालियर सेन्ट्रल जेल शिफ्ट कर दिए गए, जहां का जीवन अपेक्षाकृत बेहतर था |
भय वा आतंक के एसे समय में जब सामान्य व्यक्ति मीसावंदियों के परिवार से दूर रहने में ही अपनी भलाई समझ रहा था, तब मीसावंदी परिवारों के सुख दुःख की चिंता करने, उन्हें दिलासा देने का काम संभाला सर्व श्री रमेश जी गुप्ता, प्रोफ़ेसर राम गोपाल जी त्रिवेदी, जगदीश गुप्ता, ओम खेमरिया, पुरुषोत्तम गुप्ता आदि स्वयं सेवकों ने !
जेल जीवन से घवराये अनेक नेताओं ने येन केन प्रकारेण, माफी मांगकर मुक्त होने में ही भलाई समझी, तब भी संघ के आदर्श स्वयं सेवकों ने हिम्मत नहीं हारी ! राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने इस आपाधापी का मुखर विरोध किया ! १४ नवम्बर १९७५ से देशव्यापी सत्याग्रह आन्दोलन का श्री गणेश हुआ ! जवाहरलाल नेहरू के जन्म दिवस से देश में नारे गूंजने लगे " नरक से नेहरू करे पुकार, मत कर बेटी अत्याचार" और जो हिटलर की चाल चलेगा, वो कुत्ते की मौत मरेगा" आदि आदि ! जहां एक ओर आम जन में अत्याधिक भय वा आतंक का साम्राज्य तो दूसरी ओर आत्माहुति की भावना से ओतप्रोत एसे स्वर !
व्यूह रचना हेतु शिवपुरी में संघ के विभाग प्रचारक श्री लक्ष्मण राव तराणेकर जी, जनसंघ के संगठन मंत्री श्री बसंत राव निगुडीकर, संघ प्रचारक अपारवल सिंह जी कुशवाह आदि लोगो का आना जाना शुरू हुआ ! २२ वर्षीय किशोर इस हरिहर को भूमिगत सत्याग्रह आन्दोलन का संयोजक बनाया गया ! मोहना के नजदीक स्थित सुल्तानगढ़ के जंगल में एक गोपनीय बैठक हुई, जिसमें सत्याग्रह की व्यूह रचना बनी ! ग्वालियर के एक कार्यकर्ता श्री सुधाकर गोखले की शिंदे की छावनी स्थित दूकान विविध बस्तु भण्डार को सूचनाओं के आदान प्रदान के लिए नियत किया गया ! वहां से ही बाद में एक डुप्लीकेटिंग मशीन प्राप्त हुई ! श्री विमलेश गोयल को सह संयोजक बनाया गया, किन्तु मार्ग दर्शक की भूमिका में परदे के पीछे से वरिष्ठ प्रचारक श्री अपारबल सिंह कुशवाह, महाविद्यालय में व्याख्याता श्री डा. राम गोपाल जी त्रिवेदी वा भारतीय खाद्य निगम कर्मचारी श्री रमेश जी गुप्ता रहे !
मूलतः भिंड निवासी अपारबल सिंह जी उन दिनों अलग अलग घरों में रहा करते थे ! वे किसी परिवार में बच्चों के मामा तो कहीं ताऊ तो कहीं भाई बनकर रहे ! दिनेश स्वयं मीसाबंदी के रूप में जेल में थे, किन्तु उनके परिवार ने अद्भुत साहस दिखाया, व भूमिगत आन्दोलन में पूर्ण सहयोग किया ! डुप्लीकेटिंग मशीन पिपरसमा गाँव में श्री दिनेश गौतम के खलिहान में ही छुपाकर रखी गई ! जहाँ से हस्त लिखित पेम्पलेट छापकर रात के समय घरों में और दुकानों में डाल दिए जाते थे ! इन पर्चों ने जन जागरण में बड़ा योगदान दिया !
१४ नवम्बर को पहला सत्याग्रही जत्था श्री महावीर प्रसाद जैन के नेतृत्व में निकला ! इसमें सर्व श्री महावीर प्रसाद जैन, लक्ष्मीनारायण गुप्ता, रमेश उदैया वा अशोक शर्मा शामिल थे ! अशोक शर्मा की आयु तो महज १६ वर्ष ही थी बही लक्ष्मीनारायण गुप्ता की अगले ही दिन सगाई होने बाली थी ! जत्थे में शामिल महावीर प्रसाद जैन, लक्ष्मीनारायण गुप्ता, अशोक शर्मा को मीसावंदी के रूप में शिवपुरी जेल भेज दिया गया ! तब तक एक मुखबिर के कारण प्रशासन को जानकारी मिल गई कि इस आन्दोलन का सूत्रधार कौन है | परिणाम स्वरुप मुझे भूमिगत होना पडा | यह वह समय था जब सहयोगियों का पूर्णतः अभाव था | कोई अपने घर में ठहराने को तैयार नहीं होता था | मेरे चाचाजी स्व. श्यामसुंदर जी त्रिवेदी कांग्रेस के नेता हुआ करते थे | कुछ समय तो उनके यहाँ रहा, किन्तु आन्दोलन का संचालन उनके यहाँ से करना कठिन मानकर अधिकाँश समय पिपरसमा, तानपूर आदि गाँवों में तो कई बार रात जंगलों में भी गुजारनी पडी |
अब उन लोगों का उल्लेख जिन्होंने भूमिगत काल में मुझे शरण दी। वर्तमान वरिष्ठ भाजपा नेता श्री धैर्य वर्धन शर्मा के पूज्य पिताजी शासकीय सेवा में थे, इसके बाद भी पिछोर प्रवास के दौरान उनके यहाँ परिवार जैसा ही माहौल मिला। पिपरसमा और तानपुर का गौतम परिवार तो सहयोगी था ही, किन्तु सुरक्षा की दृष्टि से उनके घर में रुकना उचित नहीं था, क्योंकि परिवार के दो सदस्य मीसा में निरुद्ध थे, अतः तानपुर में रुकने की व्यवस्था पूज्य स्व. मुरारीलाल लाल गौतम काकाजी ने स्व. रामजीलाल कपूर के यहाँ की। कपूर साहब वैचारिक दृष्टि से तो पूर्ण जनसंघी थे, बस उन्हें शराब की लत थी। स्थिति यह थी कि उनके कमरे में जलने वाली चिमनी भी शराब से ही जलती थी। लेकिन आत्मीयता बेमिशाल थी। उनके हाथ के बने मंगोड़ों का स्वाद आज भी स्मरण है।
ऐसे में तत्कालीन राज्यपाल का कार्यक्रम शिवपुरी में तय हुआ | आन्दोलन के उस दौर में प्रशासन के हाथ पाँव फूल गए, कि कहीं ऐसा न हो कि राज्यपाल के कार्यक्रम में प्रदर्शन हो जाए | उन्हें जानकारी मिल ही चुकी थी कि मैं इस आन्दोलन का संयोजक हूँ |
मेरे वृद्ध पिताजी को पुलिस कोतवाली में बैठा लिया गया, इकलौता पुत्र होने के कारण पुलिस को आशा थी कि मैं स्वतः गिरफ्तारी के लिये स्वयं को प्रस्तुत कर दूंगा ! पिताजी बैसे ही तो वृद्ध ऊपर से एक प्राचीन शिव मंदिर के पुजारी ! उन्होंने कोतवाली में कुछ भी आहार नहीं लिया ! अंततः २४ घंटे में ही पिताजी की भूख हड़ताल के चलते प्रशासन में भी कुछ इंसानियत जगी और राज्यपाल के कार्यक्रम के बाद पिताजी मुक्त हुए ! मैंने भी राहत की सांस ली और दूने मनोयोग से सत्याग्रह की तैयारियों में जुट गया !
इस गिरफ्तारी के कारण इतना अवश्य हुआ कि राज्यपाल के कार्यक्रम में हम कोई व्यवधान नहीं डाल पाए | उनके जाने के बाद श्री गुलाब चन्द्र शर्मा के नेतृत्व में दूसरा जत्था शहर की सडकों पर "नरक से नेहरू करे पुकार, मत कर बेटी अत्याचार" का नारा गुंजाते निकला ! इस जत्थे में शामिल गुलाब चन्द्र शर्मा, लक्ष्मण व्यास, महेश गौतम वा ओमप्रकाश शर्मा'गुरू' को भी मीसा के अंतर्गत गिरफ्तार कर शिवपुरी जेल भेज दिया गया ! २० दिसंबर को अंतिम सत्याग्रही जत्था श्री कामता प्रसाद बेमटे, श्री मोहन जोशी वा श्री सीताराम राठोर का निकला ! पुलिस ने कामता जी के साथ बेरहमी से मारपीट भी की !
शिवपुरी नगर में श्री विमलेश गोयल के साथ मैं स्व. भगवती भैया के बाड़े में किराये से रह कर कालेज में अध्ययन कर रहे खातोली श्योपुर निवासी श्री कैलाश नारायण शर्मा के कमरे में ठिकाना बनाये हुए थे। कैलाश जी बाद में पुलिस डी एस पी के पद से रिटायर हुए। २५ दिसंबर को विमलेश गोयल पुलिस की पकड़ में आगये ! अकेले रह जाने के बाद मैने पेम्पलेट छापने वा वितरित करने भर तक स्वयं को सीमित कर लिया ! कालेज में दिन दहाड़े खुले आम पेम्पलेट वितरण करने पर मेरे खिलाफ डी आई आर में मुक़दमा कायम कर दिया गया ! अंततः मुझे भी ६ जनवरी १९७६ को साइकिल द्वारा पिपरसमा गाँव से लौटते समय एक कांस्टेबल ने देख लिया और मेरा पीछा किया ! मुझसे गलती यह हुई कि मैं कस्टम गेट के पास स्थित प्रेम जी शर्मा के घर में छुपा, किन्तु साईकिल घर के दरवाजे पर ही छोड़ दी ! पीछे पीछे आये कांस्टेबिल अशोक तथा एस आई राजेन्द्र सिंह रघुबंशी ने साइकिल पहचान ली और मैं भी ग्वालियर केन्द्रीय काराग्रह में भेज दिया गया ! मुझे गिरफ्तार करने बाले कांस्टेबल अशोक सिंह तथा ऐ एस आई राजेन्द्र सिंह रघुवंशी को दो दो इन्क्रीमेंट मिले, मानो मैं ना हुआ कोई डकैत हो गया ! मध्य भारत का मैं इकलौता शख्स था जिस पर मीसा में निरुद्ध करने के साथ साथ डी आई आर का मुक़दमा भी चलाया गया !
मेरे पूज्य पिताजी नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर के पुजारी थे और मैं मीसा में निरुद्ध हुआ ! उन दिनों जब भी पिताजी अस्वस्थ हुए, उनके उपचार का सम्पूर्ण व्यय भार शिवपुरी के प्रमुख दवा व्यवसाई स्व. महावीर प्रसाद अग्रवाल उपाख्य "काका" ने वहन किया।
इसी प्रकार स्व. पुरुषोत्तम दास गुप्ता ने भी अम्मा बाबूजी की बहुत सेवा की | शासकीय सेवा में होते हुए भी स्व. डॉ रामगोपाल जी त्रिवेदी व्याख्याता,. श्री रमेश जी गुप्ता (भारतीय खाद्य निगम), श्री जगदीश जी गुप्ता (बैंक अधिकारी), श्री ओम प्रकाश खेमरिया (पीडब्लूडी) ने परिवार से सतत संपर्क रखा | मेरी धर्मपत्नी ने भी अपना धर्म निभाया और एक दिन के लिए भी अपने पीहर नहीं गईं। उन्होंने ससुराल में रहकर वृद्ध सास ससुर की सेवा करना ही उचित माना।
आखिरकार चुनाव घोषित हुए और छतरी बाजार ग्वालियर की विशाल जनसभा में स्व. अटल बिहारी वाजपेई जी ने कुछ नामों का उल्लेख किया कि इन लोगों के जेल में रहते चुनाव एक नौटंकी भर है। चूंकि उन्होंने एक नाम मेरा भी लिया था, फलस्वरूप अन्य लोगों से दस पंद्रह दिन पूर्व 14 अप्रैल 1977 को मेरे जेल जीवन का भी समापन हुआ।
यूट्यूब लिंक - https://youtu.be/15jLHhwGwUI 
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