प्रीतम, अखिलेश और चंद्रशेखर की संयुक्त हुंकार, सावधान भाजपा सरकार।
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ग्वालियर / जब अकबरुद्दीन ओबेसी भड़काऊ तकरीरें करता है, तब उसके सामने खड़ी भीड़ तालियों की गड़गड़ाहट और अल्लाहो अकबर के नारों से उसका समर्थन करती है। आलोचक भी इसे यह कहकर नजर अंदाज करते हैं कि छोटे भाई का पाजामा और बड़े भाई का कुडता पहनने वाली बेपढ़ी लिखी भीड़ से और आशा ही क्या की जा सकती है। लेकिन जब राष्ट्रवाद और हिंदुत्व का सदैव से गढ़ रहा हमारा ग्वालियर चम्बल क्षेत्र, जातिवादी और वर्ग विभेदकारी स्वरों से गूंजे, तो यह सबके लिए चिंता का विषय होना चाहिए। लेकिन राजनीति जो न करा दे, वह कम है। अब प्रीतम लोदी एपीसोड की ही बात करें, तो उस शख्स ने ब्राह्मणों को लेकर जो जहर उगला, उसे क्या महज एक व्यक्ति की कुंठा माना जा सकता है ? कहा जा सकता है कि अपने गृह क्षेत्र जलालपुर में ही हुई करारी शिकस्त से बौखलाए प्रीतम ने अपनी खीझ निकाली। लेकिन उसके ऊलजलूल भाषण पर भी तालियां बजाने वाले खरै गाँव के लोगों को क्या कहेंगे ? अगर वे सब भी प्रीतम के विचारों से सहमत थे, तब यह गंभीर चिंतन का विषय होना चाहिए।
उसके बाद भाजपा ने प्रीतम को त्वरित ढंग से कार्यवाही करते हुए संगठन से बाहर का रास्ता दिखा दिया, यह तो स्वागत योग्य है, लेकिन उसके बाद प्रीतम लोदी के ग्वालियर आगमन पर फूलबाग में जिस तरह उसके समर्थन में भीड़ उमड़ी और भाजपा के ब्राह्मण नेताओं के खिलाफ नारेबाजी हुई, यह वर्ग संघर्ष की प्रारंभिक चिंगारी है, जिस पर समय रहते विचार किया जाना चाहिए। इस पूरे घटनाक्रम में पूर्व मुख्यमंत्री उमाश्री भारती की चुप्पी भी आश्चर्य जनक है। उन्हें अविलम्ब इस पर अपना रुख स्पष्ट करना चाहिए। प्रीतम उनके समर्थक माने जाते हैं, किन्तु अगर उमाजी भी प्रीतम की समर्थक हैं, तो यह न केवल उनकी प्रतिष्ठा के लिए, बल्कि सम्पूर्ण समाज के लिए बेहद नुकसानदेह साबित होने वाला है।
यह सब सुविचारित और राजनैतिक षडयंत्र का हिस्सा भी हो सकता है, इस संदेह को हवा इसी दौरान हुए अखिलेश यादव और चंद्रशेखर आजाद जैसे घोषित जातिवादी नेताओं के शक्ति प्रदर्शन के बाद और ज्यादा मिली है। देखते ही देखते ग्वालियर चंबल संभाग राजनीति का सबसे बड़ा केंद्र बन गया है।प्रदेश और देश की सत्ता का मार्ग अब यही बनता दिख रहा है। अखिलेश यादव के जातिवादी भाषणों पर जिस प्रकार भाजपा सांसद मुस्कुराते और सहमति जताते दिखे, वह भी चिंताजनक है। प्रदेश की राजनीति के हिसाब से देखे 34 विधानसभा और देश के हिसाब से 4 लोकसभा का प्रतिनिधित्व यही से होता है।लोकसभा की बात करे तो वर्तमान केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर,ज्योतिरादित्य सिंधिया तो सांसद विवेक नारायण शेजवलकर,संध्या राय और के पी यादव यहाँ का प्रतिनिधित्व करते है।
अभी हाल ही में यादव महासभा के कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री समाजवादी पार्टी सुप्रीमो अखिलेश यादव,उत्तर प्रदेश की ही राजनीति के बड़े खिलाड़ी चंद्रशेखर और अभी हाल ही में भाजपा से निष्काषित किये गए प्रीतम लोधी इन तीनो के शक्ति प्रदर्शन से ग्वालियर चंबल की राजनीति में एक बार फिर से चर्चाओं का बाजार गर्म हो गया है। अखिलेश यादव राष्ट्रीय नेता है समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष होने के साथ साथ सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले के लिए पहचान बना चुके है। उन्ही के साथ चंद्रशेखर उत्तर प्रदेश की राजनीति में अपने उग्र तेवरों भड़काऊ बयानों की वजह से पूरे देश मे चर्चित है।तो प्रीतम लोधी जिन्हें अभी हाल ही में ब्राह्मणों के विरुद्ध दिए एक बयान की वजह से भाजपा ने निष्कासित किया है।इन तीनो के ही शक्ति प्रदर्शन से एक नया समीकरण प्रदेश खासकर ग्वालियर चंबल संभाग में बना है।अखिलेश यादव का पिछड़ा और मुस्लिम कार्ड एम वाय समीकरण उत्तर प्रदेश में काफी समय तक प्रभावी रहा तो मायावती के बाद दलित वर्ग में खासकर युवाओं में चंद्रशेखर की काफी अच्छी पकड़ बनी है,इसी तरह प्रीतम लोधी ने अभी हाल ही में दिए बयान के बाद अपनी कुछ अलग उपस्थिति दर्ज कराई है।
अखिलेश यादव के साथ सामाजिक आयोजन के नाम पर मंच साझा करने वाले गुना सांसद के पी यादव की उपस्थिति ने राजनीतिक जानकारों को एक नए समीकरण की सुगबुगाहट तो प्रदान की ही है।अखिलेश यादव के बयान पर जब यादव की बांसुरी बजती है तब अच्छे खासे चित्त हो जाते है गुना इसका उदाहरण है। इस बयान ने संकेत तो दिए ही है।भविष्य में संभावनाओं के द्वार खुले है और खुलेंगे।2023 का विधानसभा और 2024 का लोकसभा चुनाव इस लिहाज से काफी महत्वपूर्ण होने जा रहा है,और ग्वालियर चंबल संभाग सोशल इंजीनियरिंग का नया बड़ा केंद्र बनने जा रहा है,इसमें अब किसी को भी कोई शक नही है, नही तो इस तरह अखिलेश,चंद्रशेखर यहां नही आते।ग्वालियर की 57 वर्ष पुरानी परम्परागत महापौर सीट हार जाने के बाद राजनीति के एक नए अध्याय का प्रारम्भ तो हुआ ही है।भाजपा में बड़े नेताओं के आपसी झगड़े अनूप मिश्रा का मंच छोड़ जाने के बाद बयान देना,माया सिंह का टिकिट काटना जैसी वजह यहां नए समीकरण बना रही है।जनता के बीच मे तीसरे मोर्चे की मौजूदगी दर्ज कराने के लिए सुनियोजित प्रयास प्रारम्भ हो चुके है,जिसके प्रारंभिक चरण में अखिलेश और चद्रशेखर ने आमद दर्ज कराई है,लेकिन आने वाले समय मे आम आदमी पार्टी के साथ साथ अन्य बड़े नेताओं का भी यहां जमीन तलाशने का क्रम प्रारम्भ होने वाला है।2023 और 2024 के चुनाव में सबसे बड़ी राजनीतिक प्रयोगशाला के रूप में ग्वालियर चंबल उभर कर आने वाली है या उभर कर आ चुकी है,जहां बड़े बड़े राजनेता जनता की नब्ज टटोलने अभी से आने लगे है। ये खासकर भाजपा के लिए खतरे की घंटी तो है ही साथ ही तीसरे मोर्चे के प्रदेश में प्रकट होने की सुगबुगाहट भी है।सारे राजनीतिक जानकार अब इस पर गहरी नजर जमाये हुए है,लेकिन ये तय है कि आने वाले प्रदेश और देश के चुनाव में किसी भी तरह का समीकरण स्थापित करने में ग्वालियर चंबल संभाग का रोल महत्वपूर्ण होने जा रहा है।
अब देखना यह है कि क्या समाज विघटन के ये विषबीज इस अंचल में भी उग पाएंगे या इस राष्ट्रवादी जमीन में ही सड़गल जाएंगे ? जो भी हो भाजपा के लिए यह एक बड़ी चुनौती है। उसे अपनी गुटबाजी पर लगाम लगानी होगी, चहेतों को रेबड़ी बांटने वाली अंधी नीति के स्थान पर सुयोग्य हाथों को चुनावी कमान सौंपने का विचार करना होगा, अन्यथा चक्रव्यूह तो बिछ ही चुका है।
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