क्रांतिकारी चन्द्रसिंह गढ़वाली जिन्होंने आजाद भारत में भी काटी जेल !


आज़ादी के संघर्ष को मज़हबी रंग देने के लिए अंग्रेजों ने एक नीति बनाई थी कि जिन इलाकों में मुसलमान ज्यादा होते तो उनमे हिन्दू सैनिकों की तैनाती करते और जिन इलाकों में हिन्दू ज्यादा होते तो उनमें मुसलमान सैनिकों की तैनाती करते थे ! २२ अप्रैल १९३० को दोपहर के समय पेशावर के परेड मैदान में जमा सभी सैनिकों के समक्ष अंग्रेज अधिकारी ने आकर कहा कि हमे अभी पेशावर शहर में ड्यूटी के लिए जाना होगा ! पेशावर शहर में 98 प्रतिशत मुसलमान और मात्र 2 प्रतिशत हिन्दू थे !
इतना ही नहीं तो अंग्रेज सरकार ने सैनिकों के बैरकों पर पोस्टर चिपकाया हुआ था कि जो भी फौजी बगावत करेगा उसे सजा दी जाएगी और गोली से उड़ा दिया जायेगा, उसे फाँसी दे दी जाएगी, खती में चूना भरकर उसमें बागी सिपाही को खड़ा किया जायेगा और पानी डालकर जिन्दा ही भून दिया जायेगा, बागी सैनिकों को कुत्तों से नुचवा दिया जायेगा, उसकी सब जमीन जायदाद छीन ली जाएगी, आदि आदि ! इतने सख्त नियम के होने के बावजूद गड्वाली सैनिकों ने अंग्रेजों का साथ न देने का मन बना लिया !
पेशावर के किस्सा खानी बाज़ार में २० हज़ार के करीब खान अब्दुल गफ्फार खान सीमांत गांधी के लाल कुर्ती खुदाई खिदमत गार निहत्थे आन्दोलनकारियों की भीड़ विदेशी शराब और विलायती कपड़ों की दुकानों पर धरना देने के लिए आई ! एक गोरा सिपाही बड़ी तेज़ी से मोटर साइकिल पर भीड़ के बीच से निकलने लगा जिससे कई व्यक्तियों को चोटे आई ! भीड़ ने उत्तेजित होकर मोटर साइकिल में आग लगा दी ! अंग्रेज अधिकारी कैप्टिन रैकेट ने उत्तेजित होकर कहा गढ़वाली थ्री राउंड फायर ! जबाब में चन्द्र सिंह गढ़वाली की आवाज़ गूंजी ! गढ़वाली सीज फायर !
सभी गड्वाली सैनिकों ने हथियार भूमि पर रख दिए ! सभी सैनिकों को बंदी बनाकर वापिस बैरकों में लाया गया ! १३ जून १९३० को एबटाबाद मिलिटरी कोर्ट में हुए कोर्ट मार्शल में हवलदार मेजर चन्द्र सिंह को आजीवन कारावास, सारी जायदाद जब्त की सजा सुनाई गयी ! ७ सैनिक सरकारी गवाह बनकर छूट गए ! बाकी ६० में से ४३ सैनिकों की नौकरी, जमीन जायदाद जब्त कर ली गयी !
चन्द्र सिंह २६ अक्टूबर १९४१ को ११ साल ८ महीने की कैद काटकर ही छूटे ! लेकिन छूटते ही १९४२ के भारत छोड़ो आन्दोलन में फिर से जुड़ गए ! फिर सात साल की सजा इस केस में भी मिली ! अंततः २२ अक्टूबर १९४६ को गढ़वाल वापिस लौटे ! १६ साल की नौकरी के बदले मिली मात्र ३० रुपये पेंशन जिसे उन्होंने लेने से मना कर दिया। उनकी जमीन जायदाद तो पहले ही जब्त हो चुकी थी ! अपने बाकी साथियों को सम्मानजनक पेंशन दिलवाने के लिए वे आजीवन संघर्ष करते रहे ! इससे भी बड़ा अन्याय तो देखिये इस अहिंसक स्वतंत्रता सेनानी को आज़ादी के बाद स्थानीय चुनावों में इसलिए खड़ा नहीं होने दिया गया क्यूंकि वे फौजी कानून में सजा पाए हुए थे !
१९६२ में नेहरु ने उनसे कहा - बड़े भाई आप पेंशन क्यूँ नहीं लेते ! चन्द्र सिंह ने व्यंग से कहा आज आपके कांग्रेसियों की ७० और १०० रुपये पेंशन हैं जबकि मेरी ३० रुपये ! नेहरु जी सर झुकाकर चुप हो गए ! उसके बाद इतना अवश्य हुआ कि चन्द्र सिंह की फाइल उत्तर प्रदेश सरकार के पास भेज दी गयी ! पर सरकारे आती जाती रही उनको कोई न्याय नहीं मिला ! मिली तो आजाद भारत में सजा ! जी हाँ सजा।
सन् 1948 में टिहरी में राजशाही के खिलाफ लड़ने वाले अमर वीर नागेन्द्र दत्त सकलानी के शहीद हो जाने के बाद वीर चन्द्रसिंह गढ़वाली जी ने टिहरी आन्दोलन का नेतृत्व किया ! आजाद भारत में भी गढ़वाली जी को जेल में ड़ाल दिया गया ! कुछ माह बाद जेल से छूटे तो गढ़वाल में शराब के खिलाफ आन्दोलन में जुट गए !
१ अक्टूबर १९७९ को ८८ वर्ष की आयु में इस महान देशभक्त क्रांतिकारी चन्द्र सिंह गढ़वाली का स्वर्गवास अत्यंत विषम स्थितियों में हुआ ! प्रधानमंत्री नरसिंहाराव जी के कार्यकाल में १९९४ में उन पर एक डाकटिकिट अवश्य जारी हुआ। 
क्या ये प्रसंग यह गाथा सुनते समय आपके दिमाग में भी वही आ रहा है, जो मैं सोच रहा हूँ ? दे दी हमें आजादी बिना खड्ग बिना ढाल कहना, क्या ग़दर पार्टी, अनुशीलन समिति, एम.एन.एच., रास बिहारी बोस, राजा महेंदर प्रताप, कामागाटागारू कांड, दिल्ली लाहौर के मामले, दक्शाई कोर्ट मार्शल के बलिदान क्या इन सबका अपमान नहीं है ? क्या आजादी का श्रेय केवल कांग्रेस को मिलना चाहिए ? चोरा- चौरी कांड और नाविक विद्रोह क्या कांग्रेसियों ने दिए थे ? लाहौर कांड, चटगांव शस्त्रागार कांड, मद्रास बम केस, ऊटी कांड, काकोरी कांड, दिल्ली असेम्बली बम कांड , क्या यह सब कांग्रेसियों ने किये थे ? पेशावर कांड में क्या कहीं कांग्रेस की छाया थी ? अंग्रेज वायसराय की ट्रेन उड़ाने की कोशिश, हार्डिंग पर फेंका गया बम, सहारनपुर-मेरठ- बनारस- ग्वालियर- पूना-पेशावर सब कांड क्रांतिकारियों ने ही किये, जिससे दहशत में आये अंग्रेज भारत से अपना बोरिया बिस्तर बांधने को विवश हुए।
कांग्रेस से तो यह पूछा जाना चाहिए कि आजादी के बाद भी भारत को ब्रिटिश कुनबे अर्थात कॉमन वेल्थ में रखने को मंजूर क्यों किया गया ? आखिर गुलामी की छाया नहीं तो क्या है ?


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