कहीं भारत को अराजकता की आग में झोंकने का षडयंत्र तो नहीं रचा जा रहा ? - दिवाकर शर्मा

क्या आपने विगत दो दिनों के दो समाचारों पर गौर किया है ? पहला समाचार है बाबरी के याचिकाकर्ता हाजी महबूब के भडकाऊ बयान का जिसमें महबूब मियाँ फरमाते हैं कि अगर ज्ञानवापी का फैसला मुसलमानों के खिलाफ हुआ तो देश में खून-खराबा होगा। स्मरणीय है कि विगत मंगलवार को उत्तर प्रदेश के वाराणसी की जिला अदालत ने श्रृंगार गौरी-ज्ञानवापी मस्जिद विवाद में  अहम फैसला सुनाया है, जिसे हिंदुओं के पक्ष में कहा जा सकता है। कोर्ट ने मस्जिद परिसर में विद्यमान हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियों की पूजा करने सम्बन्धी याचिका को स्वीकार करते हुए अंजुमन समिति द्वारा की गई याचिका को खारिज करने की मांग ठुकरा दी है। ध्यान दीजिये तथाकथित मस्जिद परिसर में हिन्दुओं के आराध्य देवी देवताओं की मूर्तियां हैं और अभी पूजा की अनुमति नैन दी गई है, केवल मांग को सुनने योग्य माना गया है, तब ये खून खराबे के भड़काऊ बयान आना शुरू हो गए हैं। स्पष्ट ही मंसूबे खतरनाक हैं। 

हाजी महबूब ने कहा है कि अगर ज्ञानवापी का फैसला भी बाबरी के फैसले की तरह निकला तो यह अच्छा नहीं होगा। इसकी कीमत देश को चुकानी पड़ेगी और देश में रक्तपात और हत्याओं के अलावा कुछ नहीं बचेगा। उसने आगे कहा कि ज्ञानवापी में जो हो रहा है, वह सही नहीं है, और मुस्लिम अदालत के अपने खिलाफ किसी फैसले को स्वीकार नहीं करेंगे। हाजी महबूब ने कहा कि मुसलमानों ने बाबरी प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध करने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई और इसलिए मामला शांत हो गया, लेकिन ज्ञानवापी के साथ ऐसा नहीं होगा।

हाजी महबूब ने अपने बयान में आरएसएस को भी घसीटा और आगे कहा कि अगर सरकार और आरएसएस कुछ भी गलत करते हैं, तो देश को व्यापक हिंसा का सामना करना पड़ेगा। उन्होंने यह भी कहा कि ज्ञानवापी एक मस्जिद है और रहेगी। 

हाजी महबूब हमेशा विवादित बयान ही देते रहे हैं।  इस साल मई के महीने में, जब वाराणसी अदालत ने सर्वेक्षण के बाद ज्ञानवापी मस्जिद के अंदर महल को सील करने का आदेश दिया था जहाँ  एक शिवलिंग जैसी संरचना मिली थी, उस समय भी हाजी महबूब ने आरोप लगाया था कि ज्ञानवापी और मथुरा के घटनाक्रम और नहीं बल्कि आरएसएस और बीजेपी की साजिश है। उन्होंने तब "देशव्यापी आंदोलन" की धमकी भी दी थी। 

अब आते हैं दूसरे समाचार की ओर। एक हैं वामन मेश्राम। स्व. कांसीराम द्वारा गठित कर्मचारी संगठन बैकवर्ड एंड माइनॉरिटी कम्यूनिटीज एम्प्लाई फेडरेशन के मुखिया हैं ये वामन मेश्राम। इस संगठन के अलावा भारत मुक्ति मोर्चा, राष्ट्रीय मूलनिवासी बहुजन कर्मचारी संघ, बहुजन क्रांति मोर्चा, राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग मोर्चा, बुद्धिष्ट इंटरनेशनल नेटवर्क आदि लगभग एक दर्जन से अधिक संस्थाओं के ये स्वयंभू अध्यक्ष हैं। जनाधार कितना है, इसका उदाहरण है कि 2014 से इनकी पार्टी लगातार चुनाव लड़ती रही है और उसके प्रत्यासी अपनी जमानत गंवाते रहे हैं। लेकिन इससे क्या फर्क पड़ता है, अराजकता फैलाने को, उपद्रव करने को तो मुट्ठी भर लोग ही काफी होते हैं। 


इन साहब ने घोषणा की है कि आगामी छः अक्टूबर को नागपुर में आरएसएस मुख्यालय का घेराव किया जाएगा। लेकिन जो पोस्टर ऑनलाइन प्रचारित किये जा रहे हैं, उससे यह स्पष्ट होता है कि इनका मुख्य उद्देश्य आरएसएस का विरोध नहीं है, बल्कि ये वर्ग संघर्ष उत्पन्न करना चाहते हैं। इस पोस्टर को देखकर आप भी मेरी बात से सहमत हो जाएंगे। 

अब आप ही बताईये, जब देश में हिन्दू मुस्लिम संघर्ष और सवर्ण दलित संघर्ष की आग भड़काने की साजिश रची जा रही हो, तो क्या स्थिति की गंभीरता समझ में नहीं आती ? अगर ये आग भड़कती है, तो निश्चित जानिये, यह केवल भारत भूमि में रहने वाले लोगों द्वारा व्यक्त असंतोष नहीं होगा, इसके पीछे निश्चित ही विदेशी षडयंत्रकारी भी होंगे। यह देश को अराजकता की आग में झोंकने की देशद्रोही और विदेशी शत्रुओं की संयुक्त मुहीम होगी। इसलिए सभी राष्ट्रभक्त देशवासियों को भी सजग और सावधान रहना होगा। यही समय की मांग है। 

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