राहुल की भारत जोड़ो यात्रा और केजरीवाल की मेक इंडिया नम्बर वन यात्रा की समीक्षा:श्री शेषाद्रि चारी।

 

'ऑर्गनाइजर' के पूर्व संपादक श्री शेषाद्रि चारी का एक आलेख आज अंग्रेजी समाचार पत्र "द हिन्दू" में प्रकाशित हुआ है, जिसमें कांग्रेस के राहुल गांधी और आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल की एक ही समय प्रारम्भ की गई यात्राओं की समीक्षा की है। उनके अनुसार दोनों यात्राएं गलत और पूरी तरह से अनियोजित लगती हैं। उनके अनुसार कांग्रेस पार्टी की यात्रा तो लगातार जारी स्तीफ़ों की बाढ़ और पार्टी के भीतर बढ़ते असंतोष की प्रतिक्रिया के रूप में अधिक प्रतीत होती है। स्मरणीय है कि राहुल गांधी के नेतृत्व में जारी चुनावी हार और पार्टी के भविष्य के प्रति उनकी पूर्ण उदासीनता की पार्टी के ही कई नेता कड़ी आलोचना करते रहे है। यहां तक कि सोशल मीडिया पर तो व्यंग्य के साथ यह भी कहा जाता है कि वह भारतीय जनता पार्टी के लिए सबसे अच्छे चुनाव प्रचारक हैं। हाल ही में पार्टी छोड़ने वाले गुलाम नबी आजाद ने भी कमोबेश यही बात दोहराई है ।

दूसरी ओर आप प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने भी हरियाणा के हिसार में अपने जन्मस्थान से 'मेक इंडिया नंबर 1' यात्रा शुरू की है। राहुल गांधी की यात्रा को इस मायने में केजरीवाल से अधिक अंक दिए जा सकते हैं कि उनकी यात्रा का कमसेकम रुट तो ज्ञात है, जबकि केजरीवाल की यात्रा का तो अंतिम गंतव्य भी ज्ञात नहीं है। राहुल गांधी की यात्रा तमिलनाडु के कन्याकुमारी से शुरू हुई है, एक ऐसा राज्य जहां कांग्रेस 1967 से सत्ता में नहीं है। संयोग से, कांग्रेस के अंतिम मुख्यमंत्री एम. भक्तवत्सलम ने श्रीपेरंबुदूर सीट से चुनाव जीता था। राहुल गांधी के लिए यहीं से यात्रा शुरू की होती तो बात समझ में भी आती । सभवतः कन्याकुमारी से राहुल जी की यात्रा का एकमात्र कारण "कन्याकुमारी से कश्मीर" वाक्यांश है, जो राष्ट्रीय एकता और अखंडता का संदेश दे सकता है। सचाई यह है कि कांग्रेस का कार्यबल बहुत तेजी से समाप्त हो रहा है। भाजपा के पास द्रविड़ दलों के दिग्गजों के विकल्प के रूप में स्वीकार्य राज्य स्तर का कोई नेता नहीं था, फिर भी, कन्याकुमारी उन कुछ सीटों में से थी, जिन्हें भाजपा जीतने में सफल रही। 

राहुल जी की 150 दिनों से अधिक समय तक चलने वाली 3,570 किलोमीटर लंबी 'भारत जोड़ो यात्रा गांधी वंश को खबरों में रखने के उद्देश्य से अधिक प्रतीत होती है ताकि उन पर लगने वाले उदासीन नेता के आरोप को शांत किया जा सके। आखिर उस आलोचना के चलते उन्हें कांग्रेस को संचालित कर सकने में समर्थ कैसे माना जा सकता है ? केवल गांधी नेहरू परिवार में जन्म भर ले लेने से नेतृत्व के गुण तो आने से रहे । यह यात्रा निश्चित रूप से उनके लिए एक महान उपलब्धि होगी कि उन्हें सीखने का अवसर प्राप्त होगा, बशर्ते कांग्रेस नेता सफलतापूर्वक अपनी यात्रा को पूरा कर पायें ।

कांग्रेस यात्रा की बेहतर योजना बनाएं

यह यात्रा कांग्रेस को 2024 में अच्छी संख्या में सीटें जीतने में कितनी मदद करेगी, इसका अनुमान लगाना मुश्किल है। यात्रा सभी पड़ावों पर न सही किन्तु निश्चित रूप से कम से कम कुछ स्थानों पर तो भीड़ को आकर्षित करेगी ही । लेकिन जनता की याददाश्त बहुत कमजोर होती है। इसके अलावा, कांग्रेस के पास कोई नेता या कैडर नहीं है जो भीड़ को वोट में बदलने में सक्षम हो। पार्टी चुनावी दृष्टि से यात्रा के हर पहलू की रणनीति बना सकती थी। यह स्पष्ट रूप से नहीं हुआ।

कांग्रेस को जिस चीज की तत्काल आवश्यकता है, वह है शीर्ष पर एक गैर-गांधी नेता जो एक साफ स्लेट के साथ शुरुआत कर सकता है।  इससे 2014 के बाद से चुनावों में हो रही लगातार हार का अपमान उसे नहीं झेलना पड़ेगा । अगर यात्रा को केवल राहुल की यात्रा प्रचारित करने के स्थान पर इस दौरान सामूहिक नेतृत्व की भावना पर जोर डाला जाता तो संभवतः कांग्रेस के अधिक हित में होता । लेकिन कांग्रेस का यह  'प्रथम परिवार' स्पष्ट रूप से पार्टी और उसके खजाने पर अपनी पकड़ ढीली करने को तैयार नहीं है। नतीजतन, 150 दिनों के बाद, (बशर्ते यात्रा निर्बाध रूप से जारी रहे) पार्टी वापस वहीं पहुँच जाएगी जहां वह आज है। यहां तक कि कुछ और नेता इसे टाटा बाय बाय कर जाएंगे।

अब अगर बात करें केजरीवाल की यात्रा का तो उसका उद्देश्य हिमाचल प्रदेश और गुजरात में निकट भविष्य में होने वाले चुनाव ही प्रतीत होते हैं। इसलिए, यात्रा का उद्देश्य "मेक इंडिया नंबर 1" की घोषणा से तो बहुत दूर है।

दिल्ली में लगातार जीत और पंजाब में एक भाग्यशाली जीत केजरीवाल की यात्रा के प्रमुख कारण प्रतीत होते हैं। बिहार के सीएम नीतीश कुमार, जिन्होंने हाल ही में भाजपा से अपना नाता तोड़ लिया था, केजरीवाल की यात्रा को हरी झंडी दिखाने के लिए वहां थे। यह संदिग्ध है कि क्या वह आप को बिहार में चुनाव लड़ने देंगे या जनता दल (यूनाइटेड) के साथ गठजोड़ भी करेंगे। गैर-भाजपा, गैर-कांग्रेसी दल जैसे जद (यू), टीएमसी और द्रमुक अन्य सभी दलों को अपने-अपने राज्यों में पहुंच से बाहर रखना चाहते हैं और फिर भी विपक्षी दलों का एक महागठबंधन बनाने का सपना देखते हैं। इन पार्टियों के पास कुछ क्षेत्रों में समर्थन तो है जिसके परिणामस्वरूप उनकी जीत होती है और सरकारें बनती हैं। लेकिन ये पार्टियां भाजपा के विकल्प के रूप में विकसित होने के करीब नहीं हैं।

विडंबना यह है कि इन दलों की अभी भी यह धारणा बनी हुई है कि गैर-गांधी नेता के नेतृत्व में कांग्रेस का एक नया अवतार शायद भाजपा की जीत की संभावना को कम कर सकता है और 2024 में भाजपा को कड़ी टक्कर दे सकता है। मजा यह कि सभी दल अपने अपने प्रभाव के राज्यों में एक-दूसरे के विरोध में हैं और आपस में एक दूसरे के खिलाफ चुनाव भी लड़ रहे हैं । स्वाभाविक ही 2024 आते आते यह न केवल उनके उद्देश्यों को पराजित करेगा, बल्कि विपक्षी दलों के महागठबंधन को बनाने के सभी प्रयासों को भी विफल कर देगा। अंततः इन दलों की भाजपा को पराजित करने की इच्छा एक मृगतृष्णा ही प्रमाणित होगी जो हर चुनाव से पहले प्रकट होती है।

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