आपत्तिजनक टिप्पणी करने वालो के हमदर्दों अब इस टिप्पणी पर आपत्ति क्यों?

 शिवपुरी:शिवपुरी की राजनीति आपत्तिजनक बयानबाजियों का केंद्र बनती जा रही है,इसके मूल में नेताओ का विचारशून्य होकर व्यक्तिगत  स्वार्थ के लिए कार्य करना प्रमुख है।अर्थात आज की राजनीति केवल स्वयम की नेतागिरी को चमकाने का हेतु बनकर रह गयी है।आधी रात को शिवपुरी जिले नही बल्कि प्रदेश की वरिष्ठ नेत्री मध्यप्रदेश की कैबिनेट मंत्री और राजमाता साहब की पुण्याई की प्रतीक श्रीमन्त यशोधरा राजे जी सिंधिया के प्रति एक महिला के प्रति अनर्गल टिप्पणी कर शुरुआत किसने की?वह राजमाता जिनने जनसंघ से लेकर भाजपा तक को आधार प्रदान किया,वह अम्मा महाराज जिन्हें अटल जी आडवाणी जी ,कुशाभाऊ ठाकरे जी और स्वयम भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी पूरा आदर और सम्मान देते थे,और अम्मा महाराज जी का ही संबोधन देते थे,उन्ही की पुत्री भाजपा की वरिष्ठ नेत्री पर घटिया टिप्पणी करके किसने अपने संस्कारो को प्रदर्शित किया?

जो जैसा बोता है वैसा ही काटता है,घाट घाट का पानी पीकर अर्थात हर दल में सत्ता की चाशनी चाटने के आदि व्यक्ति जिसने मंडी की मंडी निपटा डाली।जिसका विचार से कभी कोई लेना देना ही नही रहा।वह पाखंडी सिद्धांतो की बात करे तो हजम नही हो सकती!

भारतीय संस्कृति पूज्यंते यंत्र नार्यस्तु रमन्ते तत्र देवता वाली रही है,अपने आपको ब्राह्मण समाज का प्रतिनिधि कहने वाले शराबी बताए तो सही ब्राह्मण समाज के लिए किया क्या है?ब्राह्मणों की संस्कृति कभी महिलाओं पर अभद्र टिप्पणी की नही रही है,वह तो महिलाओं की पूजा करते है,नवरात्र के प्रथम दिवस अगर कोई महिला किसी पुरुष में चप्पल मारने की बात कह रही है तो समझ लेना चाहिए कि बुरे दिन की शुरुआत हो गयी है।दुर्गा माँ के कोप को भोगना पड़ेगा।अंतरात्मा से पूछिए उस महिला की वह कितनी दुखी होगी जब उन्हें ये कहना पड़ा होगा कि में चप्पल मारूँगी।कोई महिला ऐसे ही तो नही कह देगी,वह भी नवरात्र के प्रथम दिवस माँ शैलपुत्री के पूजन के दिवस।जरूरी नही की केवल ब्राह्मण कुल में जन्म ले लेने से कोई ब्राह्मण हो जाये,कुल की मर्यादा तार तार करने वाले लोग तो किसी भी कुल में जन्म ले सकते है।बयानों की शरुआत किसने की,आधी रात को धुत्त होकर मोबाइल पर पहली टिप्पणी किसने की?और अब जब टिप्पणी कर ही दी तो हमदर्दो को इतना दर्द क्यों हो रहा है?पूजनीय दीनदयाल जी कहा करते थे कार्यकर्ता निर्माण रुकना नही चाहिए,ये सतत चलने वाली प्रक्रिया और संगठन को गतिशील बनाने की प्रक्रिया है।पर अब तो उधार का सिंदूर लेने की अर्थात दूसरे दलोंसे माल लेने की अपने दल के कार्यकर्ताओं को बोना समझने की जो परिपाटी चल पड़ी है वही इन बयानों के मूल में है।आगे भी अभी काफी कुछ देखने और सुनने को तैयार रहना चाहिए।

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