राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विजयादशमी समारोह में सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत द्वारा दिए उद्बोधन के प्रमुख अंश।




इस वर्ष राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा मनाये जा विजयादशमी उत्सव के अवसर पर नागपुर में 5 अक्तूबर, 2022 बुधवार को जहाँ मुख्य वक्ता के रूप में सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी का उद्बोधन हुआ, वही प्रमुख अतिथि के रूप में सुप्रसिद्ध पर्वतारोही पद्मश्री संतोष यादव जी उपस्थित रही। यह पहला अवसर है जब कोई महिला संघ के इस प्रमुख समारोह में मंचासीन हुई हैं।

इस अवसर पर बोलते हुए श्रीमती संतोष यादव ने कहा कि लोग मुझसे पूछते थे कि क्या तुम संघी हो? यह मेरे व्यवहार के कारण था। तब मुझे नहीं पता था कि संघ क्या है। यह मेरा "प्रारब्ध है कि मैं आज यहां आपके साथ हूं।" हमारा सनातन धर्म और संस्कृति हमें सभी पंचतत्वों (5 तत्वों) का संतुलन बनाना सिखाती है। हमें स्वस्थ रहने की जरूरत है और इससे हम सभी के लाभ के लिए अच्छी चीजों को आगे बढ़ाने में सक्षम होंगे। RSS के स्वयंसेवक पूरी दुनिया के हित के लिए, सभी के हित के लिए काम कर रहे हैं। मेरी कामना है कि आपका काम बढ़े। पूरे भारत ही नहीं, पूरे विश्व के मानव समाज को मैं अनुरोध करना चाहती हूँ कि वो आये और संघ के कार्यकलापों को देखे। यह शोभनीय है, एवं प्रेरित करने वाला है।

प्रस्तुत है इस अवसर पर दिए गए सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत के उद्बोधन के प्रमुख अंश -

शक्ति हर बात का आधार है. शक्ति शांति और शुभ का भी आधार है. शुभ काम को करने के लिए भी शक्ति की जरूरत होती है. बिना शक्ति के शांति संभव नहीं है

संघ के कार्यक्रमों में अतिथि के नाते समाज की महिलाओं की उपस्थिति की परम्परा पुरानी है।व्यक्ति निर्माण की शाखा पद्धति पुरुष व महिला के लिए संघ तथा राष्ट्र सेविका समिति पृथक पृथक चलती है। बाकी सभी कार्यों में महिला पुरुष साथ में मिलकर ही कार्य संपन्न करते हैं।

सनातन संस्कृति–मेरे भारत की पवित्र भूमि पर जन्मी है.हिमालय से लेकर सागर तक.इसलिए हम सब भारतीयों की जिम्मेदारी है कि सनातन संस्कृति उदघोष,इसका प्रचार पूरे विश्व में,पूरी जागृत अवस्था के साथ स्वयं अपनाएं और मानवकल्याण के लिए इसके प्रचार-प्रसार में जुटना चाहिए।

समाज के विभिन्न वर्गों में स्वार्थ व द्वेष के आधार पर दूरियाँ और दुश्मनी बनाने का काम स्वतन्त्र भारत में भी चल रहा है। उनके बहकावे में न फ़सते हुए,उनकी भाषा,पंथ,प्रांत,नीति कोई भी हो,उनके प्रति निर्मोही होकर निर्भयतापूर्वक उनका निषेध व प्रतिकार करना चाहिए। शासन व प्रशासन के इन शक्तियों के नियंत्रण व निर्मूलन के प्रयासों में हमको सहायक बनना चाहिए। समाज का सबल व सफल सहयोग ही देश की सुरक्षा व एकात्मता को पूर्णत: निश्चित कर सकता है।

नयी शिक्षा नीति के कारण छात्र एक अच्छा मनुष्य बने, उसमें देशभक्ति की भावना जगे, वह सुसंस्कृत नागरिक बने यह सभी चाहते हैं। मातृभाषा में शिक्षा को बढ़ावा देने वाली नीति बननी चाहिए यह अत्यंत उचित विचार है, और नयी शिक्षा नीति के तहत उस ओर शासन/ प्रशासन पर्याप्त ध्यान भी दे रहा है।

संविधान के कारण राजनीतिक तथा आर्थिक समता का पथ प्रशस्त हो गया, परन्तु सामाजिक समता को लाये बिना वास्तविक व टिकाऊ परिवर्तन नहीं आयेगा ऐसी चेतावनी पूज्य डॉ. बाबासाहब आंबेडकर जी ने हम सबको दी थी।

स्थानीय स्वयंसेवकों ने 275 जिलों में, आर्थिक क्षेत्र में काम करने वाले संगठन, स्वदेशी जागरण मंच के साथ मिलकर प्रयोग प्रारम्भ किया है। इस प्रारम्भिक अवस्था में ही रोज़गार सृजन में उल्लेखनीय योगदान देने में वे सफल हुए हैं ऐसी जानकारी मिल रही है।

जो सब काम मातृ शक्ति कर सकती है वह सब काम पुरुष नहीं कर सकते, इतनी उनकी शक्ति है और इसलिए उनको इस प्रकार प्रबुद्ध, सशक्त बनाना, उनका सशक्तिकरण करना, उनको काम करने की स्वतंत्रता देना व कार्यों में बराबरी की सहभागिता देना अहम है।

जनसंख्या नियंत्रण के साथ-साथ पांथिक आधार पर जनसंख्या संतुलन भी महत्व का विषय है जिसकी अनदेखी नहीं की जा सकती। एक भूभाग में जनसंख्या में संतुलन बिगड़ने का परिणाम है कि इंडोनेशिया से ईस्ट तिमोर, सुडान से दक्षिण सुडान व सर्बिया से कोसोवा नाम से नये देश बन गये।जब-जब किसी देश में जनसांख्यिकी असंतुलन होता है तब-तब उस देश की भौगोलिक सीमाओं में भी परिवर्तन आता है। जन्मदर में असमानता के साथ-साथ लोभ, लालच, जबरदस्ती से चलने वाला मतांतरण व देश में हुई घुसपैठ भी बड़े कारण है। जनसंख्या नीति सारी बातों का समग्र व एकात्म विचार करके बने, सभी पर समान रूप से लागू हो, लोकप्रबोधन द्वारा इसके पूर्ण पालन की मानसिकता बनानी होगी। तभी जनसंख्या नियंत्रण के नियम परिणाम ला सकेंगे।

स्व हम सबको जोड़ता है। क्योंकि वह हमारे प्राचीन पूर्वजों ने प्राप्त किये सत्य की प्रत्यक्षानुभूति का सीधा परिणाम है। जब देश के हित में या दुर्बलों के हित में अपने स्वार्थ को छोड़ना पड़े, वहाँ इस त्याग के लिए जनता सदैव तैयार रहे इसलिए समाज में स्व का बोध व गौरव जगाए रखने की आवश्यकता होती है। "ना भय देत काहू को ना भय जानत आप" ऐसा हिन्दू समाज खड़ा हो यह समय की आवश्यकता है। यह किसी के विरुद्ध नहीं है। संघ पूरे दृढ़ता के साथ आपसी भाईचारा, भद्रता व शांति के पक्ष में खडा है। संघ राष्ट्र विचार का प्रचार - प्रसार करते हुए सम्पूर्ण समाज को संगठित शक्ति के रूप में खड़ा करने का काम कर रहा है। यही हिंदू समाज के संगठन का काम है, क्योंकि उपरोक्त राष्ट्र विचार को हिंदुराष्ट्र का विचार कहते हैं। अज्ञान, असत्य, द्वेष, भय, अथवा स्वार्थ के कारण संघ के विरुद्ध जो अपप्रचार चलता है उसका प्रभाव कम हो रहा है। क्योंकि संघ की व्याप्ति व समाज संपर्क में - यानी संघ की शक्ति में लक्षणीय वृद्धि हुई है।

अभी पिछले दिनों उदयपुर (राजस्थान) में एक अत्यंत ही जघन्य एवं दिल दहला देने वाली घटना घटी। सारा समाज स्तब्ध रह गया। अधिकांश समाज दु:खी एवं आक्रोशित था। ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो यह सुनिश्चित करना होगा। उदयपुर घटना के बाद मुस्लिम समाज में से भी कुछ प्रमुख व्यक्तियों ने अपना निषेध प्रगट किया।यह निषेध अपवाद बन कर ना रह जाए अपितु अधिकांश मुस्लिम समाज का यह स्वभाव बनना चाहिए। हिन्दू समाज का एक बड़ा वर्ग ऐसी घटना घटने पर हिंदू पर आरोप लगे तो भी मुखरता से विरोध और निषेध प्रगट करता है। " भाई टूटे धरती खोयी मिटे धर्मसंस्थान " यह विभाजन का ज़हरीला अनुभव लेकर कोई भी सुखी तो नहीं हुआ। हम भारत के हैं, भारतीय पूर्वजों के हैं, भारत की सनातन संस्कृति के हैं, समाज व राष्ट्रीयता के नाते एक हैं, यही हमारा तारक मंत्र है।

तथाकथित अल्पसंख्यकों के बीच कुछ लोगों द्वारा डरा-धमका कर कहा जाता है कि हमारे या संगठित हिंदुओं के कारण उन्हें खतरा है। यह न तो संघ का स्वभाव है और न ही हिंदुओं का। संघ का भाईचारे और शांति के पक्ष में खड़े होने का दृढ़ संकल्प है। तथाकथित अल्पसंख्यकों के कुछ सज्जन हमसे मिलते रहे हैं, संघ के पदाधिकारियों के साथ विचार-विमर्श कर रहे हैं और यह जारी रहेगा। यह नया नहीं है। इसकी शुरुआत श्री गुरुजी के समय में ही हुई थी।

हिंदू राष्ट्र की अवधारणा की चर्चा हर तरफ हो रही है। कई लोग अवधारणा से सहमत हैं लेकिन 'हिंदू' शब्द के विरोध में हैं और दूसरे शब्दों का उपयोग करना पसंद करते हैं। हमें इससे कोई दिक्कत नहीं है। अवधारणा की स्पष्टता के लिए - हम अपने लिए हिंदू शब्द पर जोर देते रहेंगे। हमें सुख-दुःख में सहभागी होना चाहिए, भारत को समझना चाहिए और उसका सम्मान करना चाहिए, हमें भारत का होना चाहिए, यही राष्ट्रीय एकता और सद्भाव की संघ दृष्टि है। इसमें संघ की और कोई प्रेरणा या निहित स्वार्थ नहीं है।

हम अपनी आजादी के 75 साल पूरे कर रहे हैं। हमारे राष्ट्रीय पुनरुत्थान की शुरुआत में, स्वामी विवेकानंद ने हमें भारत माता और उनकी सेवा के लिए खुद को समर्पित करने का आह्वान किया था। यह ऋषि अरबिंदो की 150वीं जयंती भी है। 15 अगस्त 1947 को पहले स्वतंत्रता दिवस तथा स्वयं के वर्धापन दिवस पर महर्षि अरविन्द ने भारतवासियों को संदेश दिया। उसमें उनके पांच सपनों का उल्लेख है। ऋषि अरबिंदो के 5 सपनों में भारत की स्वतंत्रता और एकजुटता, अखंड भारत का विभाजन और पुन: स्थापना, एशियाई देशों की मुक्ति, दुनिया में एकता, दुनिया को भारत के आध्यात्मिक ज्ञान का उपहार और उच्च चेतना के लिए मनुष्य का विकास शामिल है।

राष्ट्र के इतिहास में ऐसा समय आता है जब नियति उसके सामने ऐसा एक ही कार्य, एक ही लक्ष्य रख देती है, जिसपर अन्य सबकुछ, चाहे वह कितना भी उन्नत या उदात्त क्यों न हो, न्यौछावर करना ही पड़ता है - महर्षि अरविंद ।

गांव गांव में सज्जन शक्ति। रोम रोम में भारत भक्ति।

यही विजय का महामंत्र है। दसों दिशा से करें प्रयाण।

जय-जय मेरे देश महान ।।
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