इन्फ़ोसिस के संस्थापक दंपत्ति नारायण मूर्ती व सुधा मूर्ति की बेटी अक्षता - ब्रिटैन के प्रधान मंत्री ऋषि सुनक की पत्नी।

 


1981 में एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर एनआर नारायण मूर्ति ने अपनी पत्नी से 250 डॉलर उधार लेकर एक आईटी कंपनी "इन्फ़ोसिस" शुरू की। हम सभी जानते हैं कि कैसे इन चार दशकों में इंटरनेट ने दुनिया को बदल दिया, और वह छोटी सी फर्म विशाल से और विशाल होती गई। आज लगभग 50 देशों में तीस लाख से अधिक कर्मचारी उसमें काम करते हैं। ब्रिटैन के नव निर्वाचित प्रधान मंत्री ऋषि सुनक की पत्नी और मूर्ती दंपत्ति की इकलौती बेटी अक्षता के इन्फ़ोसिस में शेयरों की कीमत लगभग सात सौ मिलियन डॉलर है।

कंपनी की सफलता ने श्री मूर्ति को उस देश के सबसे अमीर लोगों में से एक बना दिया है । यह परिवार अकूत सपत्ति का मालिक है, इससे अधिक कहीं महत्वपूर्ण है उनकी जीवन शैली। मूर्ती दंपत्ति को नजदीक से जानने वाले भारतीय विपणन विशेषज्ञ सुहैल सेठ के अनुसार "वे जिस तरह से व्यवहार करते हैं और जिस तरह से रहते हैं, उसमें बहुत सादगी है, वह कॉर्पोरेट भारत के महात्मा गांधी हैं।" उनकी सादगी का अनुमान इस बात से ही लगाया जा सकता है कि उनके घर में टीवी भी नहीं है।

स्पष्ट ही परिवार की सफलता का मूल आधार  श्रीमती सुधा मूर्ती हैं, जिनका जन्म 19 अगस्त 1950 को कर्नाटक के शिगगांव में रहने वाले एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता डॉ आरएच कुलकर्णी एक सर्जन थे और उनकी मां विमला कुलकर्णी एक सहृदय गृहिणी। परिवार के शिक्षित माहौल ने सुधा जी में बचपन से ही कुछ असाधारण करने का जुनून पैदा कर दिया। सुधा मूर्ति के भाई श्रीनिवास कुलकर्णी एक प्रसिद्ध खगोलशास्त्री हैं, जिन्हें 2017 में डैन डेविड पुरस्कार मिला था।

सुधा मूर्ति ने बीवीबी कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, हुबली से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में बीई किया, वह भी स्वर्ण पदक के साथ । 1974 में भारतीय विज्ञान संस्थान, बैंगलोर से कंप्यूटर विज्ञान में एमई करने के लिए प्रवेश लिया और बाद में कर्नाटक के तत्कालीन मुख्यमंत्री से दोनों अंतिम परीक्षाओं में टॉप करते हुए स्वर्ण पदक प्राप्त किया।

भारत भारतीयता और देशप्रेम की भावना से सुधा मूर्ति कितनी ओतप्रोत हैं, यह उनके आलेखों, पुस्तकों व संस्मरणों में स्पष्ट दिखाई देता है। तो प्रस्तुत है उनकी मास्को यात्रा का संस्मरण -

अभी कुछ दिन पहले मुझे मास्को (रूस) जाने का अवसर मिला | मास्को शहर में कई युद्ध स्मारक है। रूस ने तीन युद्धों में ऐतिहासिक महान विजय प्राप्त की, जो उनके लिए गर्व और गौरव का विषय है । युद्ध में विजय के कारक रहे महान जनरलों की मूर्तियाँ इन स्मारकों में स्थापित हैं । पहला युद्ध पीटर महान और स्वीडन के बीच था। दूसरा युद्ध ज़ार सिकंदर और फ्रांस के नेपोलियन के बीच हुआ । और तीसरा 1945 के द्वितीय विश्वयुद्ध में हिटलर के खिलाफ ।

मास्को में एक विशाल पार्क है जिसे शांति पार्क के नाम से जाना जाता है। इस शांति पार्क के बीच में एक बड़ा स्मारक है। वहाँ एक स्तंभ है, और स्तंभ पर रूस द्वारा लडी गईं विभिन्न लड़ाइयों का तारीखों और स्थानों के साथ उल्लेख किया गया है। पार्क में खूबसूरत फव्वारे है। गर्मियों में यहाँ कई रंग के फूल खिलते हैं | बड़ा ही नयनाभिराम दृश्य होता है। रात में इसे रोशनी के साथ सजाया जाता है। हर रूसी इस पार्क पर गर्व करता है | जो भी पर्यटक मास्को आते हैं, यह पार्क देखने अवश्य आते हैं ।

वह रविवार का दिन था जब मैं पार्क घूमने पहुंची । गर्मी के मौसम में भी यह स्थान सुहावना और ठंडा था। मैं एक छतरी के नीचे खड़े होकर वहां की सुंदरता का आनंद ले रही थी । अचानक, मेरी आँखें एक नव विवाहित युवा जोड़ी पर टिकीं । भूरे बालों और नीली आंखों वाली उस लड़की की आयु लगभग बीस के आसपास होगी । वह बहुत सुंदर थी। लड़का भी लगभग उसके हमउम्र ही था | बहुत ही सुन्दर जोडी थी | ख़ास बात यह कि लड़का सैन्य वर्दी पहने हुए था। दुल्हन मोती और सुंदर लेस के साथ सजाये गए सफेद साटन के कपड़े पहने हुए थी। दो युवा लड़कियां उसके गाउन के सिरों को पीछे से पकड़े हुए थीं, ताकि वह गन्दा न हो । वे वारिश की हलकी फुहारों में भीग न जाएँ इसलिए दो युवा लड़के छतरी लेकर उनके साथ थे । मुझे कुछ हैरत हुई कि शादी के तुरंत बाद ये लोग बारिश में भीगते हुए इस पार्क में क्यों आये हैं । मैंने देखा कि उन लोगों ने स्मारक के पास पहुँच कर डायस पर गुलदस्ता रखा, मौन खड़े रहकर सिर झुकाया और धीरे धीरे वापस चले गये ।

मैं यह जानने को बहुत उत्सुक थी कि आखिर यह हो क्या हो रहा था । मैंने पास खड़े एक बुजुर्ग व्यक्ति से पूछा -

'क्या आप मुझे बता सकते हैं कि वह युवा दंपती अपनी शादी के दिन इस युद्ध स्मारक पर क्यों आये?'

'ओह, यह रूसी परिपाटी है। यहाँ शादी अमूमन शनिवार या रविवार को होती हैं । चाहे मौसम कोई भी हो, वैवाहिक कार्यालय में रजिस्टर पर हस्ताक्षर करने के बाद, शादीशुदा जोड़े सबसे पहले महत्वपूर्ण राष्ट्रीय स्मारकों पर जाते हैं ।

'यह कृतज्ञता का प्रतीक है। हमारे पूर्वजों ने रूस द्वारा लडे गए विभिन्न युद्धों में अपनी कुर्बानी दी है। उनमें से कुछमें हम जीते, तो कुछ में हमारी पराजय हुई, लेकिन उनके बलिदान सदैव देश के लिए हुए । नवविवाहित जोड़ों को यह स्मरण रखना जरूरी है कि वे अपने पूर्वजों के बलिदान के कारण एक शांतिपूर्ण, स्वतंत्र रूस में रह रहे हैं । अतः उनका आशीर्वाद लेने वे यहाँ आते हैं । फिर चाहे विवाह मास्को, सेंट पीटर्सबर्ग या रूस के किसी भी अन्य हिस्से में क्यों न हो । शादी के दिन नवविवाहित युगल आसपास के किसी युद्ध स्मारक पर अवश्य जाते है। '

उस अवसर पर मुझे यह सोचकर हैरानी हुई कि हम भारतीय अपने बच्चों को क्या शिक्षा दे रहे हैं । हम तो इस दिन साड़ियां व आभूषण खरीदने में व्यस्त रहते हैं, भोजन का विशाल मेनू तैयार करते हैं और डिस्को में जश्न मनाते हैं। कभी कभी तो इंसान अपने जीवन भर की कमाई शादी पर खर्च कर देता है । शादी समारोह युवक और युवतियों के परस्पर हँसी मजाक का स्थान होते हैं, तो बुजुर्गों के लिए अपनी समस्याओं पर चर्चा करने का स्थान | महिलाओं के लिए अपनी रेशमी साड़ियाँ और बेहतरीन आभूषण प्रदर्शित करने का अवसर होते हैं शादी समारोह । क्या हम भारतीय भी हमारे जीवन के इस सबसे महत्वपूर्ण दिवस पर हमारे शहीदों को याद करने का सौजन्य दिखा सकते हैं ?

 

आशा की जानी चाहिए कि ऐसे विशुद्ध भारतीय परिवेश में पली बढ़ी, पद्म श्री सुधा मूर्ती जैसी विदुषी मां व सादगी परस्त कारपोरेट जगत के गांधी कहलाने वाले नारायण मूर्ती जैसे पिता की संतान अक्षता मूर्ती व उनके पति श्री ऋषि सुनक भारत और पश्चिमी जगत के बीच ऐसे सेतु बन सकेंगे, जिसकी कल्पना कभी स्वामी विववेकानंद ने की थी। भारत की आध्यात्मिक चेतना व पश्चिम की भौतिक समृद्धि मिलकर सम्पूर्ण विश्व से दुःख, दरिद्रता और दुष्टता को समाप्त कर सकेगी।

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