आल्हा ने अपने बेटे इंदल की ह्त्या के आरोप में ऊदल को दिया मृत्युदंड।

 


बुखारा में धांधू का विवाह सानंद संपन्न हो गया, किन्तु एक नए घटनाचक्र का तानाबाना बुन गया। दरअसल बुखारा एक बड़ा राज्य था, उसके पूर्वी हिस्से पर तो धांधू के स्वसुर महाराज रणधीर का शासन था जबकि पश्चिमी भाग के राजा अरिनन्दन सिंह थे। विवाह समारोह में आल्हा के पुत्र इंदल को देखकर राजा अरिनन्दन सिंह की बेटी चित्र रेखा उन पर मोहित हो गई और उसने ठान लिया कि विवाह करूंगी तो इंदल से ही। उसने अपने मन की बात मन में ही रखी और समय बीतता रहा।

उधर गंगा दशहरे के पावन अवसर पर उदल की इच्छा हुई कि बिठूर जाकर गंगा स्नान किया जाए । किन्तु आल्हा ने कहा - रहने दो, तुम जाओ और बखेड़ा ना हो, यह हो नहीं सकता, इसलिए मत जाओ। इस पर वहां उपस्थित मामा माहिल ने ऊदल का पक्ष लेते हुए कहा कि गंगा स्नान जैसे पुण्य कार्य के लिए क्यूँ रोक रहे हो। तो आल्हा ने कहा - ठीक है, किन्तु ऊदल को शांत रखने को आप भी साथ जाओ। और अंततः ऊदल, उनके मित्र ढेवा पंडित, आल्हा के बेटे इंदल और मामा महिल ये सभी बिठूर को रवाना हुए, जहाँ एक अनोखा घटना चक्र उनका इंतज़ार कर रहा था ।

बिठूर में गंगा स्नान को बुखारे की राजकुमारी चित्र रेखा भी आई थी। उसने जब वहां इंदल को देखा तो उसकी तो मुंह माँगी मुराद पूरी हो गई और रात को चुपके से उसने अपने सहयोगियों की मदद से सोते हुए इंदल का अपहरण करवा लिया। जागने पर इंदल को अचंभा तो हुआ, किन्तु सर्वांग सुंदरी चित्ररेखा पर मोहित भी हो गए और उसके साथ ही बुखारा चले गए। यद्यपि कवि ने यहाँ इंदल को तोता बनाकर बुखारा ले जाया जाना वर्णित किया है। इधर इंदल को न पाकर महोबा के खेमे में बेचैनी फ़ैल गई। चारों तरफ उनकी खोजबीन होने लगी, किन्तु इंदल कहाँ मिलने थे। ऊदल तो दुःख से व्याकुल थे, किन्तु दुष्ट मामा माहिल के कुटिल दिमाग में तो अलग ही योजना बन रही थी। वह ऊदल से पहले महोबा जा पहुंचा और आल्हा से कहा -

गोता मारा जब इंदल ने, ऊदल दई तलवार चलाय,

शीश काटके उन इंदल को, सो गंगा में दियो बहाय।

बात हमारी सांची मानो, हम ना बोलत झूठ बनाय,

बहुत बतकही भई आल्हा ते, माहिल गंगा लई उठाय।

अब जब इकलौते बेटे की कसम खाकर हाथ में गंगाजल लेकर माहिल ने इंदल की ह्त्या का आरोप ऊदल पर लगाया तो आल्हा को भी भरोसा हो गया और फिर जैसे ही ऊदल उनके सामने आये -

बात न मानी कछु आल्हा ने, गुस्सा गई देह में छाय,

डंड बाँध के बघ उदन की, ओ खम्बा में दियो बँधाय।

हर्रे बांस आल्हा मंगवाए, ओ ऊदन को मारन लाग,

रुधिर बहिन लागो देही ते, पीठी लाल वरन हुई जाए।

मां देवल देवी, पत्नी सुनवां, ऊदल की पत्नी फुलवा सबने समझाया, पर क्रोध सोचने समझने की शक्ति छीन लेता है, आल्हा पर कोई असर नहीं हुआ और उन्होंने जल्लाद को बुलाकर आदेश दे दिया कि ऊदल को मारकर उनकी आँखें मुझे लाकर दिखाओ। जल्लाद जब ऊदल को वधस्थल पर ले गया, तब वहां सुनवां भी पहुँच गई और जल्लाद को समझाया कि मेरे पति अभी गुस्से में हैं, जब गुस्सा उतरेगा तो बहुत पछतायेंगे, इसलिए तुम ऊदल को तो छोड़ दो और किसी हरिण की आँख लेजाकर महाराज को दिखा दो। जल्लाद मान गया और ऊदल मुक्त होकर अपने मित्र ढेवा पंडित और साले मकरंद के साथ मिलकर इंदल को ढूंढने रवाना हुए। धीरे धीरे सुराग लगाते हुए, ये लोग अंततः इंदल को ढूंढने में सफल हुए और राजकुमारी चित्ररेखा ने इस आश्वासन पर कि उसका विवाह इंदल से करवा दिया जाएगा, इंदल इन लोगों को सौंप दिया।

बुखारा से वापस लौटकर ऊदल ने इंदल को तो ढेवा पंडित के साथ इस निर्देश के साथ महोबा भेज दिया कि उनके विषय में किसी को कुछ न बताया जाए और स्वयं अपने साले मकरंद के साथ ससुराल नरवर गढ़ चले गए। इंदल सो सकुशल देखकर आल्हा के दुःख का ठिकाना नहीं रहा। वे ऊदल को याद कर करके रोने लगे। यहाँ तक कि वे स्वयं को अपराधी मान आत्महत्या करने को आमादा हो गए, किन्तु मलखान ने किसी प्रकार समझा बुझा कर उन्हें रोका। उसके बाद बरात सजाकर सब लोग बुखारा को रवाना हुए इंदल का विवाह कराने। किन्तु जैसा हर विवाह के वर्णन में हमने देखा है, महाराज अरिनन्दन सहमत नहीं हुए। विवाह के पूर्व युद्ध हुआ और ऊदल की अनुपस्थिति के चलते पहले महोबियाओं की पराजय हुई। समाचार पाकर ऊदल को आना ही था, वे आये तो युद्ध में जीत भी हो ही गई। पराजित होकर राजा अरिनन्दन ने राजकुमारी चित्र रेखा का विवाह इंदल के साथ कर दिया। सब लोग महोबा लौटे और हँसी ख़ुशी दिन बीतने लगे। किन्तु जब तक मामा माहिल है, तब तक महोबा पर संकट तो आते ही रहेंगे। यह संकट कैसे आया, यह जानने के लिए देखते रहिये आपका अपना क्रांतिदूत।
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