श्रुति, स्मृति, उपनिषद और संस्कृत के शब्दों को समझने को सरल बनाने का सफल प्रयास आधुनिक परिवेश में नई शब्द व्याख्या और संपादन कर डॉ अजय मणि न...
अमरकोष का वास्तविक नाम अमर सिंह के अनुसार नामलिंगानुशासन है, नाम का अर्थ यहाँ संज्ञा शब्द है। अमरकोष में संज्ञा और उसके लिंगभेद का अनुशासन या शिक्षा है। अव्यय भी दिए गए हैं, किंतु धातु नहीं हैं। धातुओं के कोष भिन्न होते थे। हलायुध ने अपना कोष लिखने का प्रयोजन कविकंठविभूषणार्थम् बताया है। धनंजय ने अपने कोष के विषय में लिखा है, "'मैं इसे कवियों के लाभ के लिए लिख रहा हूं'", (कवीनां हितकाम्यया), अमर सिंह इस विषय पर मौन हैं, किंतु उनका उद्देश्य भी यही रहा होगा। अमरकोष में साधारण संस्कृत शब्दों के साथ-साथ असाधारण नामों की भरमार है। आरंभ ही देखिए- देवताओं के नामों में 'लेखा' शब्द का प्रयोग अमरसिंह ने कहाँ देखा, पता नहीं। ऐसे भारी भरकम और नाममात्र के लिए प्रयोग में आए शब्द इस कोश में संगृहीत हैं, जैसे- देवद्र्यंग या विश्वद्र्यंग।
इस ग्रंथ के पुरोवाक में संपादक और व्याख्याकार ने स्पष्ट भी कर दिया है कि साहित्य में कोषों का प्राकट्य उतना ही प्राचीन है जितने प्राचीन उनसे संबंधित वांग्मय हैं। विश्व के सभी वांगमयों में सर्वाधिक प्राचीन संस्कृत है जिसका आरंभिक स्वरूप वेद अर्थात श्रुति स्वरूप उद्घाटित होता है। ऐसे वांगमयों को सभी लोग जिस संसाधन से समझ सकें और यह सरसुगम बने, इसके लिए इनकी टीकाओं और भाष्यों की रचना समय समय पर होती रही है। वांगमयों का सर्वजन वेद्य होना सुगमतापूर्वक उनके अर्थावबोध पर निर्भर करता है। इसके लिए ऐसे शास्त्र की आवश्यकता होती है जो कि उनमें गुम्फित शब्दों के अर्थ को सरलता से सुलभ करा सके। डॉ अजय कुमार मणि त्रिपाठी का यह ग्रंथ यही कर रहा है।

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