आज हम जिसे अहमदाबाद के नाम से जानते हैं, उसका वास्तविक नाम है कर्णावती। कर्णावती के जन्म की भी एक अनूठी कहानी है। गुजरात के परम प्रतापी पाटन...
लेकिन समय बदला और डेढ़ सौ वर्ष बाद 1296 में अलाउद्दीन खिलजी ने गुजरात पर आक्रमण कर पाटण को उजाड़ दिया। इसके साथ ही गुजरात पर मुस्लिम प्रभाव की शुरूआत हुई। इसके साथ ही शुरू हुए बड़े पैमाने पर धर्मांतरण। ऐसा ही एक धर्मान्तरित राजपूत मुसलमान था मुजफ्फरशाह, जिसके पोते अहमद शाह ने कर्णावती का नाम बदलकर अहमदाबाद कर उसे अपनी राजधानी बनाया।
छोड़िये इस रूखे इतिहास को और आज की गाथा पर ध्यान केंद्रित करें। मीनल देवी जिस समय बालक राजा जयसिंह की परवरिश करते हुए उसके नाम पर शासन व्यवस्था संभाल रही थीं, उस समय उन्होंने अनेक मंदिर, धर्मशालाएं, कुए बाबड़ी तालाब इत्यादि बनवाये। ऐसा ही एक तालाब उन्होंने धोलके में भी बनवाने का विचार किया। तालाब खुदवाने के लिए जब सीमांकन किया गया तो मालूम हुआ कि उसके एक कोने पर एक वैश्या का मकान था। उसे हटाए बिना चौकोर तालाब बनाना संभव नहीं था। किन्तु वैश्या कीमत लेकर भी अपना मकान देने को तैयार नहीं थी। जब अधिकारी गण प्रयत्न कर हार गए, तब स्वयं राजमाता मीनल देवी उसके पास पहुंची और उसे मकान विक्रय करने का आग्रह किया। राजमाता मीनल देवी ने उसे समझाया कि इस तालाब से आमजन का कितना लाभ होगा, किन्तु वैश्य के कानों पर जूं भी नहीं रेंगी। वह टस से मस नहीं हुई। राजमाता ने उससे मुंह मांगी रकम लेने को कहा, किन्तु वैश्या बोली कि उसके पास धन की कोई कमी नहीं है, वह मकान नहीं बेचेगी, क्योंकि उस मकान में ही उसका बचपन बीता है, माकन से उसकी अनेक खट्टी मीठी यादें जुडी हैं।
उसने कहा अपनी मर्जी से तो वह मकान नहीं बेचेगी, जबरदस्ती लेना चाहें तो महारानी स्वतंत्र हैं। ले सकती हैं। लेकिन जबरदस्ती लेने को मीनल देवी तैयार नहीं हुईं। इस पर चतुर वैश्या ने हंसकर उलटा उन्हें समझाया - महारानी साहिबा तालाब के इस कोने को तिरछा ही रहने दीजिये। तालाब का यह तिरछा किनारा युगों तक आपकी न्याय प्रियता की याद लोगों को दिलाता रहेगा। इतना ही नहीं तो भविष्य में जब भी कोई राजा अन्याय करेगा तो लोग उसे आपकी न्याय प्रियता का उदाहरण बताकर न्याय करने को नैतिक रूप से विवश करेंगे।
और ऐसा ही हुआ भी और अंततः तालाब का वह किनारा तिरछा ही छोड़ दिया गया, वैश्या का मकान नहीं तोड़ा गया। और इस प्रकार उस चतुर सुजान वैश्या ने न्यायप्रिय महारानी मीनल देवी के साथ साथ स्वयं को भी इतिहास में अमर कर लिया। वह तिरछे कोने वाला धोलके का तालाब आज भी है और उसे मनाल कहा जाता है।
आज हम भी कह सकते हैं, कहाँ वे न्यायप्रिय राज परिवार, जो जबरदस्ती तो दूर की बात है, मुंह मांगी कीमत देकर एक वैश्या से भी उसका मकान नहीं लेते थे और कहाँ आज का आज की तथाकथित जनता की सरकारें, जो महज एक अखबार में विज्ञप्ति प्रकाशित कर अंधे विकास के नाम पर गरीबों को उनकी जमीनों से वंचित कर देते हैं।
COMMENTS