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जिहाद की और बढ़ता यूरोप - इ. राजेश पाठक

 

लगता है जर्मन, फ्रांस ,स्वीडीन, डेनमार्क और धीरे-धीरे यूरोप के बड़े हिस्से में जिहादी घटनाएँ वहां के जीवन का अंग बन चुकीं हैं. पर ये सब किस सुनियोजित तरीके से हो रहा है , जरूरत ये देखने की है. जिहाद तत्व पहले घटना को अंजाम देते हैं, और पुलिस के आने पर भागकर अपनी बस्ती में जा घुसतें हैं . जहां पहले से ही इस प्रकार की आकस्मिक स्थिती से निपटने के लिए तैयार रहवासी एकजुट हो पुलिस कर्मियों को पत्थर मार-मार कर वापिस भागने के लिए मजबूर करते हैं. इसके बाद बारी आती है उन्हीं के बीच मौजूद तथा-कथित मानव अधिकारवादीयों की जो खूब हल्ला मचाकर ये स्थापित करने जुट जाते हैं कि अल्पसंख्यक होने के कारण उनके लोगों को पुलिस अपराधी बताने की कोशिश कर रही है . दूसरी और पत्रकार, लेखक, वकील तथा विवध क्षेत्र से जुड़े बुद्धिजीवी ये बताने का काम करते हैं कि जिहाद और उसका समर्थन करने वाले कुछ भटके हुए लोग हैं , जिनका आम ‘ शांतिप्रिय’ मुसलमानों से कुछ लेना देना नहीं.

पर तथ्य इन दावों से अलग कहानी बयां करते हैं. डेनमार्क को अपने यहाँ मस्जिद की फंडिंग पर बेन लगाना पड़ा है. और इस कदम के साथ सारे राजनेतिक दल एकजुट हो एक साथ उठ खड़े हुए हैं . जिन कारणों से डेनमार्क इसके लिए बाध्य हुआ उसके पीछे पिछले दिनों तुर्की का देश के अन्दर 6 शहरों में २५ मस्जिदें निर्माण करने के लिए फण्ड दिया जाना सामने आया है . और ये अकेला मामला नहीं, तलिबा मस्जिद को सऊदी अरब से ५७ करोड़ रूपए प्राप्त हुए हैं . सड़क के किसी किनारे पर खड़े हो एकल संगीत का प्रदशन डेनमार्क की संस्कृति का अनूठा हिस्सा है. लेकिन जैसे-जैसे मुस्लिम जनसँख्या में वृद्धि हुई उनके बीच ज्यादा कट्टरपंथियों को अब ये संगीत ‘परेशान’ करने लगा है, क्यूंकि ‘शरिया’ इसकी इज़ाज़त नहीं देता.

जहां 8% मुस्लिम आबादी है उस फ्रांस में पिछले वर्ष एंटी-सेपरेटिज्म लॉ पारित हुआ है. इंटीरियर मिनिस्टर (जेरार्ल्ड डरमनिन) पिछले दो साल में २४ मस्जिदें बंद करा चुके हैं . और फ्रांस की विपक्ष की पार्टी रस्सम्ब्लेमेंट की राष्ट्रिय नेता मरीन ली पेन इससे संतुष्ट नहीं.उनका का कहना है कि जितनी भी आतंकवाद को पोषित करने वाली मस्जिदें हैं वो सभी बंद हों ; ऐसे जितने भी जिहादी तत्व हैं उन्हें वापस अपने मूल देश deport किया जाये. ली पेन इस बात की वकालत कर चुकी हैं कि जो मुसलमान सार्वजनिक स्थलों पर हिजाब (headscarve) पहनें उस पर अर्थदंड लगाया जाए . जबकि आगे बढ़ते हुए ऑस्ट्रिया ने इस कानून को अपने यहाँ लागु भी कर दिया है.

सीरिया, अफगानिस्तान और इराक की जंग से विस्थापित जिहादी शरणार्थीयों का जर्मन में कभी खूब स्वागत किया गया . इस उदारता के चलते चांसलर एंजेला मोर्केल को तब खूब प्रशंसा मिली थी . लेकिन आगे चलकर इसी कदम को लेकर देश के अन्दर उनके हटाये जाने के नारे भी दुनिया ने देखे . क्यूंकि जल्दी ही ‘सलाफी’ मत के उन्माद में इन्ही शरणार्थीयों के द्वारा ‘अल्लाह हु अकबर’ के नारे लगाना, महिलाओं को छेड़ना, पुलिस पर हमले करना और कायर्वाही होने पर अपने बच्चों और महिलाओं को आगे कर देना और फिर उनकी तस्वीर दुनिया में फैला कर दिखाना कि उन पर कैसे -कैसे अत्याचार हो रहे हैं- ये सब जर्मनी में सामान्य बात हो गयी . लेकिन आग में घी डालने का काम कोलोन की योंन उत्पीड़न की घटना ने किया. घटना को अंजाम देकर जिहादियों ने जो कारण बताया वो ये कि लड़कियां कम कपड़े पहनी थीं जो शरिया के खिलाफ है. और वो ये कैसे बर्दास्त कर सकते थे.

लेकिन ब्रिटेन की स्थिती ज्यादा जटिल स्थानीय राजनीति ने बना डाली है . क्यूँकि जिहादी तत्वों को बीबीसी के संग वहां की लेबर पार्टी का खुला समर्थन प्राप्त है . ब्रिटेन के प्रधान मंत्री मार्गरेट थेचर ने बी बी सी को उसके वामपंथी झुकाव के कारण बोल्शेविक ब्राडकास्टिंग कारपोरेशन बताया था. और कहा था कि उन्होंने अपने तीन चुनाव लेबर पार्टी के विरुद्ध नहीं, बीबीसी के विरुद्ध लड़ें हैं (नवदुनिया). ब्रिटेन की लेबर पार्टी का रुझान वामपंथी है, और ब्रिटेन में मुस्लिमों की बढ़ती आबादी जिसके लिए अनुकूल है. लेस्टर में पिछले दिनों हुए दंगों में बीबीसी का प्रसारण मुसलमानों के पक्ष में रहा इसे दुनिया नें देखा. बी बी सी डॉक्यूमेंटरी में लेबर पार्टी के जिन पूर्व विदेश मंत्री जैक स्ट्रा ने नरेन्द्र मोदी पर गुजरात दंगे को लेकर आरोप लगाये थे , वो स्वयं अपने संसदीय क्षेत्र में उस मुस्लिम आबादी के भरोसे हैं, जो कि ३० % है.

लेखक -

इ. राजेश पाठक

३११,डीके सुरभि ,नेहरु नगर
भोपाल मप्र

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