भारत के विरूद्ध विदेशी षडयंत्र और मुंगेरीलाल



कुछ दिन पूर्व, समाचार पत्र नई दुनिया में, समाचार प्रकाशित हुआ, जिसका हैडिंग था - मोदी को सत्ता से हटाने, इंग्लैंड और अमेरिका चला रहे अभियान। समाचार में, सेंटर फॉर रिसर्च ऑन ग्लेबलाईजेशन के, ऍफ़ विलियम एंगडाहल के हवाले से लिखा है कि, यूरोपीय देशों ने, रूस यूक्रेन युद्ध को लेकर, रूस पर अभूतपूर्व आर्थिक प्रतिबन्ध लगा रखे हैं, किन्तु भारत, रूस का महत्वपूर्ण, आर्थिक साझीदार बना हुआ है, जिसके चलते, वे प्रतिबन्ध, कोई प्रभाव ही नहीं छोड़ पा रहे हैं। बार बार परिणाम भुगतने की चेतावनियों के बाद भी, भारत ने, रूस से तेल खरीदना, बंद नहीं किया है। इतना ही नहीं तो, संयुक्त राष्ट्र में भी, भारत ने, वाशिंगटन का साथ देने से, परहेज रखा है। 

एंगडाहल की उक्त रिपोर्ट के अनुसार, इसी कारण, मोदी और उनके समर्थकों पर, जनवरी में हमले शुरू हुए। जिस हिंडनवर्ग रिसर्च का इतना शोर है, उस पर,अमरीकी गुप्तचर एजेंसी के साथ, सम्बन्ध होने का संदेह है। उसी क्रम में, बानवे वर्षीय अमरीकी उद्योगपति, जॉर्ज सोरोस ने, 17 फरवरी को, म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन में, एक प्रकार से, घोषणा ही कर दी कि, मोदी सरकार के दिन, अब गिने चुने रह गए हैं। 

स्वाभाविक ही, हमारे पप्पू भैया उत्साह में आ गए, और लपक लिए पश्चिम की यात्रा पर। उन्हें लगा कि बस, अब तो उनकी दसों उंगलियां घी में, और सर कड़ाही में पहुंचने ही वाला है। 

लेकिन लेकिन लेकिन 

भले ही उन्होंने कन्याकुमारी से कश्मीर तक की पद यात्रा कर ली हो, उन्हें भारत की समझ, रत्ती भर नहीं आई। वे विदेश में जाकर, और उनका ईको सिस्टम देश में, लाख कहें, कि मोदी जी के नेतृत्व में, भारत में प्रजातंत्र को खतरा है, उन्हें बोलने नहीं दिया जाता। कौन मानेगा भला ? आप रात दिन प्रधान मंत्री को बिना किसी रोकटोक के कोसते हो, क्या जनता को आपका झूठ समझ में नहीं आएगा ?

और फिर जनता यह भी भली प्रकार जानती है कि, अगर देश में डीजल पेट्रोल के भाव कंट्रोल में हैं, तो मोदी सरकार की तटस्थ और दूरदर्शी नीतियों के कारण ही। यदि रूस से तेल आयात नहीं हो रहा होता, तो क्या इनके भाव आसमान नहीं छू रहे होते ?

भारत की जनता विदेशी षडयंत्रों को कभी सफल नहीं होने देगी, और विदेशियों की मदद से सत्ता पर काबिज होने का मंसूबा बाँध रहे, पप्पुओं के मुंगेरीलाल के हसीन सपने, 2024 में भी, सपने ही रहने वाले हैं। 

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