क्या लगातार उपहास का पात्र बन रहे राहुल के स्थान पर प्रियंका को कमान सौंपने की रणनीति है राहुल प्रकरण ?

 

आजकल पूरे देश में केवल एक ही चर्चा सरगर्म है - मानहानि प्रकरण में राहुल गांधी को दो वर्ष की सजा तथा उसके बाद उनकी लोकसभा सदस्य्ता का निरस्त होना। राजनेता तो अपने अपने स्तर पर अपनी विचारधाराओं के आधार पर प्रतिक्रिया दे ही रहे हैं, किन्तु क्रांतिदूत ने अपने सुधी पाठकों से उनकी प्रतिक्रया जानने का प्रयत्न किया।

सबसे कम शब्दों में अत्यंत सारगर्भित प्रतिक्रिया दी ग्वालियर के श्री भारत दुबे ने। उन्होंने कहा - हमें लगता है कि यह कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति है। राहुल जी को प्रियंका जी से रिप्लेस किया जा रहा है ... शीघ्र ही इसकी आधिकारिक घोषणा भी हो जाएगी .... राहुल गांधी सिर्फ बलि के बकरे बने हैं।

ऐसा होना असंभव भी नहीं है। जिस प्रकार न्यायालय का फैसला आने के बाद उसकी अपील करने में विलम्ब किया गया, उससे श्री भारत दुबे के आंकलन को बल मिलता है। भाजपा प्रवक्ता भी लगातार कह ही रहे हैं कि यह नाखून कटाकर शहीद बनाने की कोशिश हो रही है। इसके अतिरिक्त सभी जान समझ रहे हैं कि निकट भविष्य में नॅशनल हेराल्ड केस में भी निर्णय संभावित है। तथ्य जो सामने हैं, उनके अनुसार पूरी संभावना है कि सोनिया गांधी जी और राहुल जी, जो पहले से ही उस प्रकरण में जमानत पर चल रहे हैं, सजा के हकदार भी हो सकते हैं। उसके बाद कांग्रेस के पास प्रियंका बाड्रा के अतिरिक्त और कोई विकल्प बचता ही कहाँ है। वंशवादी राजनीति ही तो उनका प्राण तत्व है। उसके बिना तो उसके बिखरने को कोई नहीं रोक सकता।

जो भी है क्रांतिदूत के अन्य पाठकों की प्रतिक्रिया भी मिली जुली है। कुछ बानगी देखिये। शिवपुरी की समाज सेविका श्रीमती चंदर मेहता के अनुसार -

राहुलजी का जन्म ऐसे परिवार में हुआ है कि उन्होेंने कभी महसूस नही किया कि उन्हें भारतीय संस्कृति संस्कार सीखने चाहिए। उन्हें भारतीय जनता के दिल में राज करने के लिए उनके दिल में जगह बनाना थी। वो हर समय ऐसे लोगों मे घिरे रहे जो केवल चाटुकारिता करने मे लगे रहे। अपना उल्लू साधने मे लगे रहे। इन की मंद बुद्धी कुछ भी समझने मे असमर्थ रही। यही इस राजा की हार के मुख्य कारण है।

शिवपुरी के युवा चिंतक अभिषेक दुबे के अनुसार -

मेरा मानना है की राहुल गांधी के ख़िलाफ़ शिकायत करने आरोप लगाने और कोर्ट के द्वारा फ़ैसला देने के बीच लंबी क़ानूनी प्रक्रिया रही होगी जिसमें राहुल गांधी को अपना पक्ष रखने का भरपूर मौक़ा दिया गया होगा. संसद सदस्यता से निष्कासन का फ़ैसला भाजपा द्वारा नहीं माननीय कोर्ट द्वारा दिया गया है, न्यायप्रणाली हमेशा उन्हें अपना पक्ष रखने का मौक़ा देती है. कांग्रेस को चाहिए की अपने नेता को बेवजह की बयानबाज़ी से बचने की सलाह दें एवं ग़ैरज़रूरी प्रदर्शन करके न्यायालय के आदेश की अवमानना करने से बचें!

लगभग यही भाव किन्तु तीखे तेवर के साथ नर्मदापुरम के युवा समाजसेवी श्री विशाल गोलानी के भी हैं -

मेरा मानना है कि राहुल गाँधी एक असभ्य व्यक्ति हैं। जिस तरह की भाषा शैली का उपयोग करते हैं वो अत्यंत निंदनीय हैं । दूसरे उनका विदेश जाकर हमेशा भारत की बुराई करना स्पष्ट संकेत देता है कि उन्हें देश से प्रेम नही , देश की मर्यादा की चिंता नही । इसी असभ्य भाषा एवं देश प्रेम की अल्पता की वजह से उनकी वाणी से ऐसे शब्द निकले जिससे एक वर्ग को , एक समाज को गहरा आघात पहुंचा । और अंततः कोर्ट ने 2 वर्ष की सजा दी। उसके बाद सर्वोच्च न्यायालय के पूर्ववर्ती निर्णय अनुसार असंसदीय भाषा का उपयोग करने वाले राहुल संसद से ही निलंबित हो गए। इस निर्णय का खुले हृदय से स्वागत करता हूँ।

शाजापुर के स्वदेशी कार्यकर्ता श्री हरिओम वर्मा ने लिखा -

जैसा कि वर्तमान में राहुल गांधी प्रकरण चल रहा है, मुझे ऐसा अभास लग रहा है कि भारतीय सविधान की न्याय प्रणाली ने जो फैसला दिया है, वह आमजन को आमतौर पर स्वीकार है। हमने गलत कार्य किया है तो सजा मिलेगी। मिलना भी चाहिए। देश में सर्वश्रेष्ठ उदाहरण आ रहा है। राहुल गांधी हो या अन्य, न्यायालय से बढ कर कोई नहीं। न्यायालय मे न्याय सबके लिए बराबर है। अगर इसमे भी गलत हो रहा हो तो उसके लिए आपको शांति पूर्वक आपनी बात रखना चाहिए। ओर अन्य विकल्प की ओर जाना चाहिए । जैसा कि हमारे संविधान मे है। रही बात राहुल गांधी की तो यह व्यक्ति देश हित में अभी गंभीर नहीं है। इस व्यक्ति के लिए हमे हमारा समय बर्बाद नहीं करना चाहिए। देश में अनेक करणीय कार्य है। हमे उस ओर ध्यान देना जरूरी है । राहुल गांधी का प्रकरण लोगों को बरगलाने का है। व्यक्ति विशेष का विषय है। कांग्रेस के पास टाईम पास के अलावा कुछ कार्य नहीं है। मुझे ऐसा लगता है।

किन्तु कुछ विपरीत मत भी पाठकों ने व्यक्त किये। शिवपुरी श्री मनोज शर्मा को इसमें सरकार की ताना शाही प्रतीत हो रही है। तो शिवपुरी के वरिष्ठ पत्रकार श्री अशोक कोचेटा के अनुसार -

य़ह प्रतिशोध और बदले की राजनीति का उदाहरण है। सब कुछ योजनाबध्द ढंग से किया गया है। विपक्ष को खत्म करना चाहती है मोदी सरकार। उनकी रणनीति है, विपक्षी नेताओं को झूठे सच्चे मामलों मे या तो जेल में डाल दो या उनके पीछे सीबीआई, ई डी या इंकम टैक्स वालों को लगा दो। पता नहीं सब कुछ अनुकूल होने के बाद भी य़ह सरकार इतना डर क्यों रही है। किसी को असहमति की स्वतंत्रता भी नहीं देना चाहती य़ह सरकार। उनके अनुसार जो असहमत हैं वे देश द्रोही हैं।

शिवपुरी के ही एक अन्य पत्रकार ध्रुव उपमन्यु के भी लगभग यही स्वर हैं। वे लिखते हैं -

लोकतंत्र में सबको अपनी बात रखने का अधिकार है । अच्छा नहीं है कि विचारधारा के विरोधी को शत्रु की तरह देखा जाए । यह गलत परिपाटी है जिसके गलत परिणाम सामने आएंगे। हमने जिस भारतीय जनता पार्टी के लिए प्रार्थनाएं की थी वह इतनी अभिमानी नही थी।

शिवपुरी के पत्रकार सौरभ दुबे न्यायपालिका में राजनीतिक प्रभाव देख रहे हैं। उनके अनुसार -

यदि न्यायिक व्यवस्था, जजों की नियुक्ति में सरकार का दखल होगा और पूर्व न्यायाधीशों को बड़े पदों से नवाजा जाएगा तो अदालतों के निर्णय से निराशा होगी और फैसलों को चुनौति दी जाती रहेगी। राहुल का मामला भी इतर नहीं।

लेकिन शिवपुरी के एक अन्य पत्रकार संजय आजाद सरकार का समर्थन करते हुए लिखते हैं -

न्यायपालिका ने अपना काम किया है 2 साल की सजा दी है उसके साथ ही उनकी लोकसभा सदस्यता यदि खत्म हुई है तो मेरे हिसाब से सरकार का इसमें कोई रोल नहीं है यह पूरी तरह न्याय संगत है। इस कार्यवाही के बाद देश में किसी भी धर्म या जाति के खिलाफ बोलने से पहले व्यक्ति को सौ बार सोचना पड़ेगा।

एक टिप्पणी भेजें

एक टिप्पणी भेजें