पुरातत्ववेत्ता पद्मश्री डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणकर जन्मदिवस विशेष



डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणकर का जन्म 4 मई, 1919 को मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र के एक शहर नीमच में हुआ था। वह भारत में शैल चित्र अध्ययन के अग्रणी हैं। शैल चित्रों के लिए भीमबेटका विश्व स्तर पर प्रचारित हो चुका है ! भीमबेटका गुफ़ाओं में बनी चित्रकारियाँ यहाँ रहने वाले पाषाणकालीन मनुष्यों के जीवन को दर्शाती है। भीमबेटका स्थित शैल चित्रों की खोज वर्ष १९५७-५८ में प्रसिद्ध पुरातत्ववेत्ता 'डॉक्टर विष्णु श्रीधर वाकणकर' द्वारा ही की गई थी। 

भीमबेटका गुफ़ाओं की सबसे प्राचीन चित्रकारी को 12000 साल पुरानी माना जाता है। भीमबेटका गुफ़ाओं में क़रीब 500 गुफ़ाएँ हैं। भीमबेटका गुफ़ाओं में अधिकांश तस्‍वीरें लाल और सफ़ेद रंग के है और इस के साथ कभी कभार पीले और हरे रंग के बिन्‍दुओं से सजी हुई है, जिनमें दैनिक जीवन की घटनाओं से ली गई विषय वस्‍तुएँ चित्रित हैं, जो हज़ारों साल पहले का जीवन दर्शाती हैं। इन चित्रों को पुरापाषाण काल से मध्यपाषाण काल के समय का माना जाता है। अन्य पुरावशेषों में प्राचीन क़िले की दीवार, लघुस्तूप, पाषाण निर्मित भवन, शुंग-गुप्त कालीन अभिलेख, शंख अभिलेख और परमार कालीन मंदिर के अवशेष भी यहाँ मिले हैं। टीक और साक पेड़ों से घिरी भीमबेटका गुफ़ाओं को यूनेस्को द्वारा विश्‍व विरासत स्‍थल के रूप में मान्‍यता दी गई है जो मध्य प्रदेश राज्‍य के मध्‍य भारतीय पठार के दक्षिण सिरे पर स्थित विंध्‍याचल पर्वत की तराई में मौजूद हैं। भीमबेटका क्षेत्र को 1970 के दशक में यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल के रूप में अंकित किया गया था। भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण, भोपाल मंडल ने अगस्त 1990 में राष्ट्रीय महत्त्व का स्थल घोषित किया। भीमबेटका गुफ़ा भारत में मानव जीवन के प्राचीनतम चिह्न हैं।

डॉ. वाकणकर जी अनेकों पुरातात्विक सर्वेक्षणों और अन्वेषणों में शामिल रहे, जिसमें चंबल और नर्मदा नदियों के खंडहर शामिल हैं, साथ ही अब सूख चुकी सरस्वती नदी के बेसिन का पता लगाना भी शामिल है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यह भारतीय सभ्यता के अधिकांश रहस्यों को समेटे हुए है।

उन्हें भारत सरकार द्वारा वर्ष 1975 में पदमश्री सहित कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया ।


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