क्रांतिदूत

आज भी जिन्दा है बख्तियार, बाबर, औरंगजेब जैसे अनेक।



इस आलेख को क्रांतिदूत पर पढ़ने या सुनने के बाद निश्चित जानिये कि आप भी यही कहेंगे - मैंने डॉ. आनंद रंगनाथन के इस भाषण की तुलना में तथ्यों और आंकड़ों के साथ हिंदुओं के नरसंहार के बारे में अधिक स्पष्ट भाषण पहले कभी नहीं नहीं पढ़ा या सुना। मेरा दावा है कि अगर आपने इसे पूरा पढ़ा या सुना तो फिर इसे साझा कर वायरल करने से स्वयं को नहीं रोक पाएंगे। डॉ. रंगनाथन की इच्छा थी कि प्रत्येक भारतीय भाषा में यह अनुवादित हो कर यह विचार लाखों राष्ट्रप्रेमी लोगों तक पहुंचे, अतः मैं इसे आप लोगों तक पहुंचा रहा हूँ। लेकिन पहले संक्षेप में यह जान लें कि आखिर डॉ.आनंद रंगनाथन हैं कौन ?

आपको शायद यह जानकर थोड़ा अचम्भा हो और अच्छा भी लगे कि डॉ.आनंद रंगनाथन वर्तमान में बामपंथ के गढ़ माने जाने वाले जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में आणविक चिकित्सा के एक एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में कार्यरत हैं। इसके साथ ही वे एक जाने माने स्तंभकार, लेखक और वैज्ञानिक भी हैं। उन्होंने ऑनलाइन समाचार पोर्टल न्यूज़लॉन्ड्री के साथ काम किया है, और वर्तमान में स्वराज्य के सलाहकार संपादक और स्तंभकार हैं। आनंद रंगनाथन तपेदिक के लिए एक टीके के विकास में अपने योगदान के लिए भी जाने जाते हैं। इनके विषय में विस्तार से एक अन्य आलेख में जानकारी देने का प्रयास करेंगे, किन्तु फिलहाल तो अपना ध्यान उपरोक्त मूल विषय पर ही केंद्रित करते हैं। 

वे कहते हैं कि आज अपने स्वयं के देश भारत में अगर हिन्दू आठवें नंबर का नागरिक है तो उसके भी आठ कारण हैं। हम उन लोगों को भी सम्मान से याद करते हैं जिन्होंने लाखों हिन्दुओं का मारा या धर्मान्तरित किया। 

आपको ट्रैन द्वारा दिल्ली से नालंदा जाने के लिए पटना से 50 किलोमीटर दूर बख्तियार पुर जाना होगा। वही नालंदा जो निश्चय ही भारत की सबसे प्रमुख पुरातन सांस्कृतिक विरासत, शिक्षा और ज्ञान के प्रमुख केंद्र में से एक रहा। बख्तियार पुर से नालंदा बस कुछ ही दूर है। और जब आप इस पवित्र स्थान पर पहुंचेंगे और वहां के खँडहर को देखने के बाद जानेंगे कि ज्ञान और बुद्धि के इस अद्भुत मंदिर को किस प्रकार एक बर्बर आतताई द्वारा जला कर धूल में मिला दिया गया था। किस प्रकार हजारों विद्वानों को जिन्दा आग में झोंक दिया गया था, और यह आग महीनों तक जलती रही थी। किस प्रकार लाखों पुस्तकें जलाकर राख कर दी गई थीं। किस प्रकार एक सभ्यता जिसे विश्व गुरू के रूप में सम्मान दिया जाता था, ईर्ष्या की ज्वाला में दग्ध हुई, विलुप्त हो गई। और आप यह भी जानेंगे कि जिस आतताई ने यह बर्बरता पूर्ण कार्य किया वह और कोई नहीं बख्तियार था। जी हाँ वही बख्तियार जिसके नाम पर केवल रेलवे स्टेशन नहीं, बल्कि पूरा शहर उसके सम्मान में बसा हुआ है। 

वह विध्वंश जो बख्तियार अपने जीवनकाल में नहीं कर सका वह अब पूर्ण हुआ है। एक हजार साल बाद जब हम इस बर्बर आतताई को सम्मान देते हैं, उतना कष्टकर नहीं है, जो सबसे पीड़ादायक है, वह यह कि इससे भी असंतुष्ट और अतृप्त भयंकर आत्मपीड़क हमने इससे असहमति का प्रयास किया, इतिहास को विकृत किया और यह अफसाना गढ़ा कि यह अग्निकांड बख्तियार ने किया ही नहीं था। बख्तियार के स्थान पर दो हिन्दू भिखारियों के मत्थे यह दोष मढ़ा गया। यह भीषण अग्निकांड किसी बर्बर आक्रामक और उसकी हजारों की बर्बर फ़ौज ने नहीं, बल्कि दो भोंडे अदने हिन्दू भिखारियों ने उस समय के इस सबसे बडे पुरातन विश्वविद्यालय को विध्वंस किया । बामपंथी इतिहासकार डी एन झा के इस कल्पना लोक का विश्लेषण करने की मेरी कोई इच्छा नहीं है, लेकिन उन्होंने कभी अपने इस वर्णन का कोई छोटा सा भी स्त्रोत नहीं बताया। झा ने कभी उन दो हिन्दू भिखारियों के नाम भी नहीं बताये। लेकिन इसके बाद भी झा नेरेटिव की लड़ाई जीत गए। क्योंकि बख्तियार आज भी जिन्दा है। 

इस्लाम की नजर में, मैं आक्रांता हूँ, काफिरों और हिन्दुओं की तरफ से लड़ाई लड़ रहा हूँ, और मैं जबरदस्ती शहीद होना चाहता हूँ। अब मैं बाबरनामे से सीधे बाबर का वर्णन करता हूँ। मध्य दिल्ली में प्रधान मंत्री आवास से महज एक किलोमीटर दूर एक बाबर रोड भी है। बाबर जिन्दा है। हिन्दू देवता और उनकी मूर्तियां बैसी ही विकृत हैं, जैसे खौफनाक और विकृत वे दिखाई देते हैं। मंदिर की मूर्तियों को नष्ट होते हुए देखने में मुझे बहुत आनंद आता है। इसी प्रकार गोवा में हजारों हिन्दुओं को सताने और मारने वाला एक नाम सेंट फ्रांसिस जेवियर भी है। हर वर्ष लाखों भारतीय उसे सम्मानित करते हैं। सेंट फ्रांसिस जेवियर जिन्दा है। सिकंदर शाह मिरी जो 1389 से 1413 तक जामिया मस्जिद में नियुक्त रहा, उसकी कश्मीर में आज भी स्तुति की जाती है, उसे पूजा जाता है। उसने कश्मीरी हिन्दुओं को जलाने से पहले उनके 3 खिरवार अर्थात 210 किलोग्राम जनेऊ उतरवाए। एक जनेऊ का बजन 7 ग्राम होता है, इस हिसाब से नरसंहार का गणित आप लगाते रहिये। वह सिकंदर शाह मिरी जिन्दा है। 

मैं काफिरों के खिलाफ धर्मयुद्ध लड़ रहा हूँ। जिस आदमी ने यह लिखा, उसका नाम था ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती। हनाफी सूफी संत जो मोहम्मद गौरी की और से लड़ा, और जिसने निर्ममता पूर्वक असंख्य हिन्दुओं का बलात धर्म परिवर्तन कराया, हर साल हमारे प्रधान मंत्री मोदी जी सहित लाखों हिन्दू उसकी मजार पर जाते हैं, चादर चढ़ाते हैं, उसे सिजदा करते हैं।  मुईनुद्दीन चिश्ती जिन्दा है। 

हम अपने योद्धाओं की तुलना में मुगलों को ज्यादा जानते हैं। हम छत्रपति शिवाजी महाराज या महाराणा प्रताप या पृथ्वीराज चौहान की तुलना में मुगलों को ज्यादा जानते हैं। क्यों ? क्योंकि इतिहास विजेताओं द्वारा लिखा गया। पराजितों को पार्श्व में धकेल दिया गया। हम आज भी पराजित हैं। यह वह देश है जहाँ लोग आज भी निर्दयी औरंगजेब की मजार पर जाकर प्रार्थना करते हैं। औरंगजेब जिसने गुरु तेगबहादुर का सर कटवाया, संभाजी महाराज की नृशंसता पूर्ण ह्त्या करवाई, काशी विश्वनाथ मंदिर का विध्वंश करवाया, 4. 6 लाख हिन्दुओं की ह्त्या करवाई। यह वह देश है जहाँ मुग़ल बादशाह जहांगीर द्वारा गुरू अर्जुनदेव जी को गर्म तवे पर बैठने को विवश कर तड़पा तड़पा कर मारा गया। और हमने क्या किया। रोमांटिक सलीम के रूप में मुगले आजम फिल्म में जहांगीर को अमर कर दिया। यह वह देश है, जहाँ प्रसिद्ध इतिहासकार राम गुहा दिल्ली की एक रोड का नाम छत्रपति शिवाजी महाराज के नाम पर रखने का विरोध करते हैं।  शिवाजी महाराज जिन्होंने पेशावर से प्लासी तक अपने साम्राज्य की स्थापना की। क्योंकि गुहा के अनुसार वे एक अल्पज्ञात क्षेत्रीय व्यक्तित्व भर थे। वे जातिवाद के आधार पर बने एक छोटे से सामंत थे। 

यह वह देश है, जहाँ हम उन आक्रमण कारियों की स्तुति करते हैं, जिन्होंने शतक के बाद शतक, कई सौ वर्षों तक मानव इतिहास का सर्वाधिक निर्ममतापूर्ण नरसंहार किया। अस्सी लाख की बड़ी तादाद में हमें मारा। यह संख्या अधिकृत रूप से प्रसिद्ध इतिहासकार के एस लाल और विल ड्यूरेंट के अनुसार है। यह वह देश है, जहाँ करीना कपूर और शैफ अली खान अपने बालक का नाम तैमूर रखने में गर्व अनुभव करते हैं। जहाँ अखिलेश यादव अपना निक नेम टीपू रखने में गौरव महसूस करते हैं। हमारा इतिहास उन लोगों ने लिखा जो हिन्दुओं, हिंदुत्व और हिंदुस्तान से नफ़रत करते थे। हमारा इतिहास उन लोगों द्वारा लिखा जा रहा है जो हिन्दुओं, हिंदुत्व और हिंदुस्तान से नफ़रत करते हैं। यूं तो सैकड़ों उदाहरण हैं, लेकिन एक का वर्णन ही पर्याप्त है - टीपू सुलतान। उसका स्वयं के द्वारा लिखित घोषणापत्र ही था -

यह समूचे मुसलमानों के लिए आव्हान है कि एक साथ मिलकर जिहाद में हिस्सा लें। काफिरों का विनाश हमारा धार्मिक कर्तव्य है। कूर्ग के हिन्दू जिनका सर्वाधिक निर्दयता पूर्वक क़त्ल किया गया, सताया गया, जबरन धर्मान्तरित किया गया, उनके विषय में उसने विशेष रूप से लिखा। उसने 800 से अधिक मंदिर, 27 चर्च नष्ट किये, पकड़े गए 60 हजार ईसाई धर्मान्तरित किये, 30 हजार का क़त्ल किया। क्रॉनिक्लर्स, लुइस राईस, और आर डी पालसोकर का मानना है कि नष्ट किये गए मंदिरों की संख्या 8000 से अधिक हो सकती है। मण्डयम पर आक्रमण की याद में आयंगर आज तक दीवाली नहीं मनाते। हैं न हैरत की बात ? आखिर क्यों ? टीपू ने इसी दिन उनका कत्ले आम किया था। बर्तोलोमेव का निजी अनुभव कथन है कि टीपू सुलतान ने कालीकट में आदमी औरत और बच्चों की निर्वस्त्र परेड करवाई और फिर उन्हें हाथियों के पैरों तले कुचलवा दिया। और इसके बाद भी हम टीपू को सामाजिक सद्भाव का प्रतीक बताते हैं। हम प्रसन्नता व्यक्त करते हैं जब बेल्जियम में दुर्दांत रेसिस्ट लिओपोल्ड के स्टेचू को नष्ट किया जाता है, लेकिन हम टीपू जयन्ती मनाते हैं। क्योंकि एक तानाशाह जिसने हिन्दुओं को मारा, तानाशाह नहीं नायक है। टीपू की प्रशंसा किंग लिओपोल्ड की प्रशंसा जैसी ही है। इसके बाद भी जो टीपू की स्तुति पर आमादा हैं, ऐसे लोगों को मानसिक चिकित्सक की अविलम्ब जरूरत है। 

आई एस आई एस से साढ़े तीन सौ साल पहले का औरंगजेब तो बगदादी से कहीं अधिक बुरा था। उस सिहरा देने वाले वाकये को याद कीजिये, जब 1675 में दिल्ली के चांदनी चौक में दिन की रोशनी में गुरु तेगबहादुर का औरंगजेब के आदेश पर सर कलम किया गया था। इसके बाद भी उसके नाम पर हमारे यहां शहर बसे हुए हैं, सड़कें हैं। उसकी मजार एक स्मारक बन चुकी है। 75 साल बीत चुके हैं, लेकिन आज भी हम दास्य भाव से स्वतंत्र नहीं हुए। समय बीतने दीजिये औरंगजेब की तरह ही, याकूब मेमन की कब्र भी पूजा स्थल बन जाएगी, जहाँ राजनेता और फिल्म स्टार सिजदा करने जाया करेंगे। याद रखें उसके जनाजे में हजारों लोग शामिल हुए थे, जिनकी आँखों से आंसू बह रहे थे। वे उसे मरने नहीं देंगे। 

आर्यों से औरंगजेब तक, सेंट जेवियर से शिवाजी तक, हमारे इतिहासकारों ने क्या छुपाना चाहा, क्या शोध किया और क्या बताया ? सैद्धांतिक रूप से राष्ट्रभक्ति की तीब्र लालसा, शासन तंत्र, ईको सिस्टम या गिरोह ? खलनायकों को नायक बताया गया और नायकों को खलनायक। और हमने इसे पसंद किया। इतिहास मिथक बनकर रह गया। इतिहास को हमें बताना चाहिए था कि हम वस्तुतः क्या थे, क्या हैं और भविष्य की चुनौतियां क्या हैं। जबकि पूरा देश बुझे हुए कोयले से चलती वोट की तरह फकफक कर रहा है। विदेशी मृतप्राय आईडियोलॉजी ने हमें धीमा, थका हुआ, रुका हुआ बना दिया है। आक्रामकों को उल्लेखनीय और अपने नायकों को भुलाने के पीछे पूरी योजना क्या है ? इसकी हम कैसे व्याख्या करें ? विदेशी विनाशकारी आईडियोलॉजी और उनके समर्थक जैसे कार्ल मार्क्स, माओ, शेख गुआरा, 

क्या आप ऐसे विशिष्ट इतिहास को पढ़ने और स्वीकार करने की कल्पना कर सकते हैं जो राष्ट्र को कमजोर करे ? क्योंकि जब आप शे, माओ और पोलपाट जैसे राक्षसों की स्तुति करते हैं, तो आप उनके मार्ग पर चलने का भी निर्णय लेते हैं। आप देश को कमजोर करते हैं। देखिये कम्यूनिस्टों ने बंगाल में क्या किया ? उन्होंने जिसको भी छुआ, उसका क्या हाल बना दिया ? और वे आज भी स्टालिन और माओ की शान में कसीदे पढ़ते हैं। माओ जिसने तिरेसठ लाख अपने ही लोगों की ह्त्या की। अगर आपको यह लगता है कि यह कुछ तो भी बकबास है, तो याद करें कि इंडो यू एस न्यूक्लियर डील को कौन विफल करना चाहता था ? हरित क्रान्ति के विरुद्ध कौन था ? नदी जोड़ने, बाँध आदि के विरुद्ध कौन था ? 1962 के चीन युद्ध के समय रक्तदान शिविर लगाने से किसने मना किया ? याद कीजिये थियानमेन चौक नर संहार की जयजयकार करने वाला कौन था ? उदारीकरण का विरोधी कौन था ? वे सब हमारे बीच के ही लोग थे, हममें से ही थे, हमारे ही समाज के, हमारे ही विश्व विद्यालयों के, हमारी ही संसद के थे। 

जितना हम अपने इतिहास के प्रति अनभिज्ञ रहेंगे, जितना हम इसे गलत पढ़ेंगे, उतना ही हम उनके सत्ता में वापस आने का मार्ग प्रशस्त करेंगे। इतिहास हमारे लिए छुपाने का विषय है या शोध का ? हम जो पसंद करते हैं, वही बोलते हैं, बार बार बोलते हैं। और जिसे हम पसंद नहीं करते उसे नकार देते हैं, या छुपा देते हैं।  इतिहास लेखन के लिए कलम विजेताओं के हाथ में थी, और पराजित उनकी गप्प स्वीकार करने को विवश थे। लेकिन हम भूल जाते हैं कि इतिहास होम्योपैथी नहीं है, जो डाइल्यूट किये जाने पर प्रभावी हो। यह अदृश्य हो जाएगा। 

प्रत्येक शहर जिसमें हिन्दू रहते हैं, प्रत्येक स्कूल, प्रत्येक यूनिवर्सिटी जहाँ वे जाते हैं, प्रत्येक सड़क जिस पर वे चलते हैं, कोई स्थान ऐसा नहीं है, जहाँ उनका सामना अपने भीषण अतीत से न हो। वे उससे अपना अपना पीछा नहीं छुड़ा सकते, जो बलात्कार, प्रताड़ना, नरसंहार और बलात धर्मान्तरण का है। वे कहते हैं यह हिन्दू राष्ट्र है। मैं उनसे पूछता हूँ, तेल अबीब में कोई हिटलर रोड है ? 

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