संसद भवन का लोकार्पण - उदात्त मानसिकता बनाम रूठे हुए फूफा



एक ही विषय से सम्बन्धित आज के दो समाचार ध्यान देने योग्य हैं। पहला तो यह कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी नए संसद भवन का लोकार्पण करेंगे।और दूसरा यह कि भारत की अठारह विपक्षी पार्टियां इस कार्यक्रम का बहिष्कार करेंगी। यद्यपि सभी राजनैतिक पार्टियों को इस कार्यक्रम में सम्मिलित होने के लिए विधिवत आमंत्रण पत्र भेजे गए हैं। लगता है विपक्षी पार्टियां इस नव निर्मित संसद भवन के उदघाटन को प्रधानमंत्री का निजी कार्यक्रम मान रही हैं। उनकी हालत विवाह समारोहों के उस फूफा जैसी है, जो हर बात में नुक्स निकालकर रूठने की नौटंकी कर चर्चित रहते हैं। क्या विपक्षी नेता उस संसद भवन में कभी पैर न रखने की कसम खा सकते हैं ? जब उसी संसद भवन में संसद के हर सत्र में जाकर बैठना ही है, तब उद्घाटन के बहिष्कार का औचित्य समझ से परे है। ये लोग देश की हर उपलब्धि को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बैयक्तिक उपलब्धि मानकर कुढने का स्वभाव बना चुके हैं। इन्हें लगता है कि आम जनता भी उनके इन नौटंकी नुमा कृत्यों को पसंद करेगी। जबकि सचाई यह है कि जनता में इनकी साख लगातार गिरती जा रही है। 

भारतीय जनता पार्टी को तो बैठे बिठाये ऐसे मुद्दे मिलते जा रहे हैं, जो उन्हें लाभकारक भी होते हैं और आनंद भी देते हैं। उक्त कार्यक्रम में संसद भवन बनाने में जुटे साठ हजार कारीगरों को सम्मानित करने की घोषणा एक ऐसा ही प्रहसन है, जो इस उदघाटन कार्यक्रम को मेगा ईबेंट बना देगा। इसके अतिरिक्त रविवार को नवनिर्मित संसद भवन के उद्घाटन समारोह का मुख्य आकर्षण लोकसभा अध्यक्ष की सीट के बगल में स्थित ऐतिहासिक राजदंड 'सेंगोल' होगा।

क्या है यह राजदंड 'सेंगोल' ?

गृहमंत्री अमित शाह ने आज कहा कि 'सेंगोल' ने हमारे देश के इतिहास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

यह राजदंड अंग्रेजों द्वारा भारतीयों को सत्ता हस्तांतरण के समय भारत के प्रथम प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू को सौंपा गया था।

उसके बाद चोल राजवंश की इस अनूठी कलाकृति स्वर्ण राजदंड 'सेंगोल' को एक जुलूस के रूप में संविधान सभा हॉल में ले जाया गया।

परंपरा के अनुसार 'सेन्गोल' को स्वीकार करने वाले से एक न्यायपूर्ण और निष्पक्ष शासन प्रदान करने की अपेक्षा की जाती है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रविवार को नवनिर्मित संसद भवन का उद्घाटन करते समय लोकसभा अध्यक्ष की सीट के बगल में 'सेंगोल' रखेंगे।

एक तरफ इतनी उदात्त मानसिकता का प्रगटीकरण और दूसरी तरफ रूठे हुए फूफा। 

एक सीधा सवाल -

जनता किससे प्रभावित होगी ?

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