माँ धूमावती जयंती विशेष।



आज मां धूमावती जयंती है। दतिया स्थित माँ पीताम्बरा शक्तिपीठ में प्रत्येक शनिवार को माँ धूमावती के दिव्य दर्शन प्राप्त होते हैं, शेष दिनों में मंदिर के द्वार पर केवल एक काला पर्दा टंगा होता है। मां धूमावती दस तांत्रिक देवियों का एक समूह है। आज ही के दिन देवी धूमावती के शक्ति रूप का अवतार पृथ्वी पर हुआ था। यह देवी दुर्गा का सबसे उग्र रूप है। मां धूमावती को एक ऐसे शिक्षक के रूप में वर्णित किया गया है जोकि ब्रह्मांड को भ्रामक प्रभावों से बचाने के लिए प्रेरित करती हैं। उनका बदसूरत रूप भक्त को जीवन की आंतरिक सच्चाई को तलाशने की प्रेरणा देता है। देवी को अलौकिक शक्ति के रूप में वर्णित किया गया है। उनकी पूजा भी शत्रुओं के विनाश के लिए की जाती है।

धूमावती माता की कथा

हिंदू पौराणिक कथाओं में से एक कथा के अनुसार भगवान शिव जी की पत्नी पार्वती ने उनसे भूख लगने पर कुछ खाने की मांग की। जिसके बाद शिव जी ने उन्हें आश्वस्त किया कि वो कुछ खाने का प्रबंध करते हैं, लेकिन जब शिव कुछ देर तक भोजन की व्यवस्था नहीं कर पाते हैं, तब पार्वती ने भूख से बेचैन होकर शिव को ही निगल लिया। इसके बाद भगवान शिव के गले में विष होने की वजह से पार्वती जी के शरीर से धुआं निकलने लगा। जहर के प्रभाव से वह भयंकर दिखने लगी। उसके बाद भगवान शिव ने उनसे कहा कि तुम्हारे इस रूप को धूमावती के नाम से जाना जाएगा। उन्हें एक विधवा के रूप में पूजा जाता है क्योंकि उन्होंने अपने पति शिव को ही निगल लिया था। इस रूप में वह बहुत क्रूर दिखती हैं।

दूसरी पौराणिक कथा के अनुसार जब शिव जी की पत्नी सती के पिता राजा दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया तो उसमें उनको और उनके पति भगवान शंकर को आमंत्रित नहीं किया। उस यज्ञ में जाने से भगवान शिव ने उन्हें बहुत रोका लेकिन उनके विरोध के बावजूद भी वह यज्ञ में गई। वहां स्वयं को बहुत अपमानित महसूस करने लगीं और उग्र होकर यज्ञ की हवन कुंड में कूद कर उन्होंने आत्महत्या कर ली। इसके कुछ क्षण के बाद ही देवी की उत्पत्ति हुई, जिसे धूमावती के नाम से जाना जाता है।

धूमावती देवी को एक रथ की सवारी करते हुए उस पर लगे ध्वजा में कौवा के प्रतीक को दिखाते हुए एक बदसूरत बुजुर्ग विधवा महिला के रूप में दर्शित किया गया है। जिसके बाल सफेद होते हैं और वह सफेद साड़ी में दिखाई देती हैं। उनका रूप भले ही खतरनाक और डरावना है लेकिन वो हमेशा पापियों और राक्षसों का विनाश करती हैं। जोकि इस बात का प्रतीक है कि सच्चाई में विश्वास और सदाचार हर दुख को मिटा देता है। इस दिन पूजा करने से भक्तों के सारे पाप और समस्याएं खत्म हो जाती हैं।

वैसे विवाहित लोगों को धूमावती की पूजा नहीं करने के लिए कहा जाता है, ऐसा इसलिए कहा जाता है कि उनकी पूजा से एकांत की इच्छा जागृत होती है। सांसारिक चीजों से मोह भंग होने लगता है। भौतिक धन और सुख की प्राप्ति के लिए भक्त पूरी भक्ति और मनोयोग से देवी धूमावती की पूजा करते हैं। विवाहित महिलाओं को परम्परा के अनुसार माता धूमावती की पूजा करना निषेध है। ऐसी मान्यता है कि इस परम्परा को वो अपने पति और बच्चों की सुरक्षा के लिए मानती है या पालन करती है।

मां धूमावती ने पापियों के नाश के लिए अवतार लिया था इसलिए वह ज्येष्ठा भी कहलाती हैं। उनकी पूजा करना काफी फलकारी है। मां की पूजा धन प्राप्ति के लिए भी की जाती है। उनकी साधनाएं साधारण नहीं बल्कि उग्र होती हैं। मध्य प्रदेश के दतिया में मां धूमावती के मंदिर में देवी को भोग में मीठा नहीं बल्कि नमकीन चढ़ाया जाता है। दतिया पीठ में मां को कचौड़ी और पकोड़े का भोग लगाया जाता है।

धूमावती जयंती आज 28 मई 2023 रविवार को मनाई जाएगी। पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि की शुरुआत 27 मई 2023 को सुबह 07.43 मिनट पर होगी और अगले दिन 28 मई 2023 को सुबह 09.57 मिनट पर इसका समापन होगा। 

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