विचार नवनीत के अंश भाग (4) - श्री माधव सदाशिव राव गोलवलकर "गुरूजी"


· आजकल जीवन के हर क्षेत्र में एक पागलपन सवार है कि व्यक्ति को कम से कम उत्तरदायित्व और खतरा उठाते हुए अधिक से अधिक लाभ और आनंद प्राप्त हो | यही कारण हैकि धनी परिवार में उत्पन्न व्यक्ति बहुत भाग्यशाली माना जाता है, क्योंकि उसे बिना किसी प्रयत्न के सभी आराम और उपभोग के साधन प्राप्त हो जाते हैं | उसका प्रत्येक छोटा काम करने के लिए भी नौकर होते हैं जो उसके इशारे पर नाचते हैं | उसका सम्पूर्ण समय भोगविलास के लिए मुक्त होता है | उपभोग के इस उन्माद को देखकर सामान्य मनुष्य भी चाहता हैकि उसे भी स्वयं कुछ करने की आवश्यकता नहीं होना चाहिए | परमात्मा प्रथ्वी पर आये और उसे विपत्तियों के भंवर से निकालकर किनारे लगा दे | वह उसके ऊपर सुख संपत्ति की वर्षा करे तथा अपना अवतारी जीवन समाप्त कर पुनः अपने स्थान को लौट जाए | हमें कहीं भी पौरुष की भावना नहीं दिखाई पड़ती, जिसके कारण व्यक्ति कहे कि हां मैं मनुष्य हूँ, चाहे जैसी परिस्थिति आ जाए, उसकी चिंता न करते हुए मैं मनुष्योचित प्रयत्न करूंगा और सम्पूर्ण शक्ति लगाकर अपने कर्तव्यों की पूर्ती करूंगा |
इस विषय में संघ के संस्थापक हँसी में कहा करते थे – “मैं परमात्मा से प्रार्थना करता हूँ कि वह अभी जन्म न ले, क्योंकि सम्पूर्ण समाज को आलस्य और स्वार्थ, अर्थात अधर्म में डूबा देखकर वह अधर्म का विनाश करने की अपनी प्रतिज्ञानुसार इसे पूरी तरह नष्ट कर देंगे | इसलिए पहले हम लोग साधू बनें, जिसका अर्थ है कि समाज के लिए परिश्रम और त्याग का जीवन बिताएं और तब सर्वशक्तिमान परमात्मा को पुकारें | तभी वह हमारी रक्षा और दुष्टों का संहार करेगा |

· हमारे देश में स्वतंत्रता के लिए बलिदान होने वाले वीरों की संख्या कम नहीं है | उनमें स्वधर्म व स्वसमाज के लिए हंसते हंसते मृत्यु का आलिंगन करने की शूरता थी | राजपूतों का इतिहास इस प्रकार की रोमांचकारी घटनाओं के स्फुलिंग के प्रकाश से आलोकित है | उन्होंने अपनी माताओं, बहिनों और पुत्रियों को जौहर की ज्वाला में कूदते देखा | फिर केसरिया बाना धारण कर अपनी चमकती तलवारों के साथ शत्रुसेना में घुस पड़े, कभी ना लौटने के लिए | उन्होंने पराजय और अपमान के घृणित जीवन की तुलना में सम्मानपूर्ण बलिदान को अधिक अच्छा समझा | यह ठीक है कि हम उनके प्रति अभिमान और आदर की भावना रखें, परन्तु यह भी सत्य है कि वे वीर रणक्षेत्र में मृत्यु का एकमात्र विचार लेकर घुसे थे, विजय की इच्छा लेकर नहीं |
जैसी इच्छा वैसाही परिणाम | जो केवल मृत्यु की कामना करता है, उसे अमृत कुंड में भी डाल दो तो भी वह अवश्य ही उसमें डूबकर मर जाएगा | उसे कोई बचा नहीं सकता | भावुकतापूर्ण स्वाभिमान धारण करने वाले वर्ग में बैसी शांत और स्थिर संकल्प शक्ति का अभाव होता है, जो परिस्थितियों की किंकर्तव्यविमूढ़ करने वाली कशमकश में भी अनउद्विग्न बनी रहे | बुद्धिमान और परिपक्व व्यक्ति केवल परिस्थितिजन्य प्रतिक्रया से संचालित नहीं होते, वरन सुविचारित मार्ग से अंतिम विजय की और चुपचाप बढ़ते हैं | ऐसे ही हमारे आदर्श हैं, जिन्होंने विजय की आराधना की तथा जीवन का उद्देश्य सफलता पूर्वक प्राप्त किया |
हमारे एक सर्वोच्च आदर्श श्रीराम विजय के इस दर्शन के एक ज्वलंत उदाहरण हैं | क्षात्र धर्म में स्त्रियों का वध करना अनुचित माना जाता है, किन्तु राम ने राक्षसी ताड़का का वध किया | श्रीराम को दुष्टों का नाश कर धर्मराज्य की पुनर्स्थापना करने के अपने परम कर्तव्य का भान था, इसलिए उन्होंने बाली पर पेड़ के पीछे से भी प्रहार किया |
यही स्थिति श्रीकृष्ण और अर्जुन के विषय में है | महाभारत के महायुद्ध में भीष्म, द्रोण आदि स्वजनों और गुरुजनों को विरोध में देखकर अर्जुन का उत्साह ठंडा पड़ गया, तब श्रीकृष्ण ने अधर्म को नष्ट करने का उपदेश दिया, फिर उसके समर्थक कोई भी हों | युद्ध के बीच जब कर्ण कीचड़ में फंसे अपने रथ के पहिये को निकालने नीचे उतरा, तब कृष्ण ने अर्जुन को उस पर बाण छोड़ने का आदेश दिया | कर्ण ने जब अर्जुन को धर्म की दुहाई दी, तब योगिराज कृष्ण ने गरज कर कहा – अरे कर्ण तुम्हारा धर्म तब कहाँ गया था, जब निशस्त्र बालक अभिमन्यु को घेरकर सात महारथियों ने निर्ममता पूर्वक ह्त्या की थी | जब निस्सहाय स्त्री द्रोपदी का भरी सभा में तुमने अपमान किया था | मैं एक ही धर्म जानता हूँ, वह है धर्म का राज्य |
आज भी पाप की दानवी शक्तियां, विश्व संहारक शस्त्रास्त्र लेकर विश्व रंगमंच पर शान के साथ चलाती दिखाई देती हैं | कई बार पश्चिम के सुविख्यात विचारक भी भविष्य के सम्बन्ध में निराश हो जाते हैं | उदाहरण के लिए बर्ट्रेड रसेल ने साम्यवादी शक्तियों संघर्ष की अवस्था में आणविक महाविध्वंस टालने के लिए कहा – मरने से अच्छा हैकि हम लाल (साम्यवादी) हो जाएँ | यह कैसा दर्शन है जो पौरुष का नहीं निराशा का उपदेश देता है | हमारे तत्वज्ञान ने और हमारे विचारकों ने तो अधर्म की शक्तियों के विरुद्ध संघर्ष में निराशा का उपदेश कभी नहीं किया | अधर्म की शक्तियों पर धर्म की शक्तियों की अंतिम विजय का विश्वास हमारे रक्त में दृढमूल है | क्या हम नही जानते कि अपने प्रारम्भिक दिनों में मनुष्य शारीरिक द्रष्टि से कहीं अधिक भयानक और शक्तिशाली जंगली जानवरों से परास्त नहीं हुआ | उसने उन्हें जीतकर अपनी श्रेष्ठता प्रतिपादित की | मनुष्य में अंतरजात अच्छाई की शक्ति दुष्ट शक्तियों को अवश्य एक दिन पराजित कर देगी | मानव इतिहास का सही अध्ययन तथा दर्शन के हमारे प्राचीन आचार्यों ने भी हमें यही शिक्षा दी है |
· एक बार माओत्सेतुंग ने इच्छा व्यक्त की थी कि वह संसार में एक ऐसा युद्ध देखना चाहता है, जिसमें सभी आणविक अस्त्रों का पूर्ण और खुलकर प्रयोग हो | उसका तर्क था कि अमरीका, रूस और यूरोप के अन्य सभी देशों के अधिकाँश लोगों का पूर्ण विनाश हो जाएगा | यदि इस उपद्रव में चालीस करोड़ चीनी भी समाप्त हो जाएँ, तो भी संसार पर शासन करने के लिए पच्चीस करोड़ बचे रहेंगे | (उस समय चीन की जनसंख्या पेंसठ करोड़ ही थी) | उन्हें मानव जीवन की हानि की कोई चिंता नहीं है | उनके लिए वह घांस के सामान है, जो काटी जाती है और पुनः लगाई जाती है |
कहा गया हैकि मनुष्य जैसा भोजन करता है, वैसा ही हो जाता है | चीनियों के लिए कहा जाता है कि वे द्विपादों में केवल मनुष्य को और चौपायों में केवल मेज को नहीं खाते | वे चूहे, बिल्ली, सूअर, कुत्ते, सांप, तिलचट्टे आदि सब कुछ खा लेते हैं | ऐसे लोगों से यह आशा नहीं की जा सकती कि उनमें मानवोचित गुण होंगे | हमें यह भी स्मरण रखना होगा कि आज सम्पूर्ण चीन एक सशस्त्र शिविर है | प्रत्येक वयस्क शस्त्रास्त्र चलाने में प्रशिक्षित है | उनके नेता गत कई शताव्दियों से लगातार खूनी युद्ध के वातावरण में पैदा हुए और पले हैं |
इन प्रतिकूल तत्वों को ठीक करने के लिए द्रढतापूर्वक सही दिशा में प्रयास आवश्यक है | हमारे स्वर्गीय सम्मान्य राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद ने ठीक ही कहा था कि शत्रु के प्रदेश में युद्ध को बिना ले जाए हम अपनी सीमाओं की रक्षा नहीं कर सकते | आज दलाई लामा हमारे बीच में हैं | तिब्बती जन अपने देश में चीनी सेनाओं से लोहा ले रहे हैं | तिब्बत की मुक्ति के लिए यह तथ्य हमारे पक्ष में है | दलाई लामा को हम उसकी अपनी देशांतर सरकार की स्थापना करके तिब्बत की स्वतंत्रता की घोषणा करने दें | हम उन्हें स्वाधीनता के लिए संघर्ष चलाने में सभी आवश्यक सहायता दें | बिना स्वाधीन और मैत्रीपूर्ण तिब्बत के हमारी सम्पूर्ण उत्तरी सुरक्षा केवल उपहास मात्र है | किन्तु हमारे प्रधान मंत्री कहते हैं कि यह पग स्पष्ट मूर्खता है | हम यह समझने में नितांत समर्थ हैं कि वे इस प्रकार के उदात्त कार्य का विरोध क्यों कर रहे हैं, जिससे दलित जनों की स्वाधीनता प्राप्ति में सहायता प्राप्त होती है और जो हमारे राष्ट्र की सुरक्षा की द्रष्टि से भी सर्वाधिक अपरिहार्य है |
एक प्रकार से हमने सर्वभक्षी चीन के सामने थाली में रखकर तिब्बत भेंट कर दिया | वास्तव में हमने तिब्बत के साथ विश्वासघात किया | वर्तमान कम्युनिस्ट सरकार ने जब चीन में सत्ता ग्रहण की, तो उन्होंने अपने शासन के प्रति विरोध रखने वाले ९६ लाख लोगों को समाप्त कर दिया | अतएव हमें यह बात भलीभांति समझ लेना चाहिए कि ऐसी निर्दयी चुनौतियों का सामना करने तथा उनपर विजय प्राप्त करने के लिए शक्ति चाहिए | एक ठोस अजेय राष्ट्र शक्ति ही हमारी सहायता कर सकती है |

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