किसानों के लिए वरदान साबित होगी केंद्र सरकार की नवीन अनाज भंडारण योजना।



बहुत अच्छी बात है कि सरकार अगले 5 वर्षों में सहकारी क्षेत्र में 700 लाख टन अनाज भंडारण क्षमता बनाने की योजना बना रही है। स्थानीय स्तर पर विकेंद्रीकृत भंडारण क्षमता के निर्माण से खाद्यान्न की बर्बादी बहुत ही कम अथवा न के बराबर होगी और इससे निश्चित ही हमारे देश की खाद्य सुरक्षा व्यवस्था मजबूत होगी। यहां तक कि इससे खरीद केंद्रों तक अनाज की ढुलाई और फिर गोदामों से राशन की दुकानों तक स्टॉक ले जाने में जो लागत आती है, उसमें भी भारी कमी आएगी। फूड स्टोरेज की पर्याप्त व्यवस्था होने से एक तरफ जहां किसानों की मेहनत को सम्मान मिलेगा, वहीं किसानों के लिए ट्रांसपोर्टेशन का खर्च भी बच सकेगा, इससे उनका मुनाफा बढ़ाने में मदद मिल सकेगी। फूड स्टोरेज की व्यवस्था से हमारे देश की खाद्य सुरक्षा मजबूत होगी और देश के हर इलाके में अनाज की समुचित आपूर्ति सुनिश्चित हो सकेगी। कहना ग़लत नहीं होगा कि सरकार का अनाज भंडारण के क्षेत्र में वर्तमान कदम निश्चित ही एक मील का पत्थर साबित होगा। 

अनाज उत्पादन के मामले में भारत अब आत्मनिर्भर देश है। भारत के किसान अपनी जरूरत से कहीं अधिक अनाज पैदा करते हैं‌। आर्थिक समीक्षा 2022-23 के अनुसार वर्ष  2021-22 में भारत में कुल अनाज उत्पादन रिकॉर्ड 315.7 मिलियन टन हुआ, जो पिछले पांच वर्षों (2016-17 से 2020-21) के औसत से बहुत अधिक है। दालों का उत्पादन भी पिछले पांच वर्षों के औसत 23.8 मिलियन टन से बहुत अधिक रहा है। एफएओ के अनुसार भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा खाद्य उत्पादक देश है। भारत दूध और दालों का दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक है जबकि चावल, गेहूं, गन्ना, मूंगफली, सब्जियां, फल और मछली उत्पादन के मामले में नंबर दो पर है। 

लेकिन कुछ तथ्य ध्यान देने योग्य हैं। आज हमारे देश में अनाज भंडारण की समस्या बहुत बड़ी समस्या है, वास्तव में फसलों की कटाई के बाद सबसे जरूरी काम अनाज भंडारण का ही होता है। हमारे यहां अनाज भंडारण व्यवस्थाओं हेतु इंफ्रास्ट्रक्चर की बेहद कमी है। वास्तव में, अनाज के सुरक्षित भंडारण के लिए वैज्ञानिक विधियां अपनाने की जरूरत होती है, जिससे अनाज को लंबे समय तक चूहे, कीटों, नमी, फफूंद आदि से बचाया जा सके। हर वर्ष भंडारण व्यवस्थाएं ठीक नहीं होने के कारण हमारे देश का बहुत सा अनाज बर्बाद हो जाता है। अनाज के मामले में आत्मनिर्भर होने के बावजूद भी यदि देश की बहुत बड़ी आबादी को पर्याप्त भोजन नहीं मिल पाता है तो इस बात पर चिंतन की आवश्यकता हो जाती है कि आखिर इसके पीछे कारण क्या हैं ? कारण दो ही हैं। एक सार्वजनिक वितरण प्रणाली और दूसरा अनाज का भंडारण। 

भारत में खाद्यान्नों की खरीद, संग्रहण, स्थानांतरण, सार्वजनिक वितरण तथा बफर स्टॉक के रख-रखाव की ज़िम्मेदारी भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) की है। एफसीआई भारत सरकार के उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग मंत्रालय के अधीन एक नोडल एजेंसी है। एफसीआई का उद्देश्य सार्वजनिक वितरण प्रणाली तथा अन्य कल्याणकारी योजनाओं के कार्यान्वयन हेतु अनाजों के स्टॉक की संग्रहण आवश्यकताओं को पूरा करना है। हमारे देश में एफसीआई के गोदाम ही अनाज को सुरक्षित रखने के स्थान हैं। 

हमारे देश में सार्वजनिक वितरण प्रणाली यानी कि पीडीएस के जरिए गरीबों तक अनाज पहुंचता है।आज देखने में आता है कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली में भ्रष्टाचार व्याप्त है, जिससे गरीबों को अनाज नहीं मिल पाता है। भंडारण व्यवस्थाएं ठीक नहीं होने से अनाज बर्बाद होता है और गरीबों को नहीं मिलता। यह विडंबना ही है कि आज तक हम अपनी अनाज भंडारण क्षमता को इतना दुरुस्त नहीं कर पाए हैं कि देश में अनाज की बर्बादी को रोका जा सके। यहां मसला सिर्फ अनाज के भंडारण का ही नहीं है। अनाज के अलावा भी जल्दी खराब होने वाले दूसरे खाद्य उत्पादों जैसे कि फल और सब्जियां इत्यादि के सुरक्षित भंडारण की उससे भी ज्यादा जरूरत पड़ती है। हमारे पास कोल्ड स्टोरेज की कमी है। कहीं पर गोदाम हैं तो उन पर छत नहीं है। अनाज को खुले में रखना पड़ता है। आज बहुत से अनाज को खुले आसमान के नीचे चबूतरों पर बोरों के कट्टे लगाकर और उन्हें तिरपाल या पॉलीथिन से ढक कर रखने की हमारी मजबूरी है। सच तो यह है कि हमारी खाद्य भंडारण व्यवस्था निर्धारित मानकों से बहुत निचले स्तर की है। 

ब्रिटेन की आबादी का पेट भरने के लिए जितने अनाज की जरूरत पड़ती है, उतना अनाज तो हमारे देश में बर्बाद चला जाता है। उचित भंडारण व्यवस्थाएं न होने के कारण किसानों को बहुत बार ओने पौने दामों में अपनी फसलों को बेचना पड़ता है।आज अनाज के भंडारण के साथ ही अनाज के प्रबंधन की व्यवस्थाओं में काफी खामियां हैं, प्रबंधन की कमी की वजह से भंडारों में अनाज को उसके शेल्फ लाइफ से भी अधिक समय तक रखा जाता है जिससे कीड़े, चूहे, पक्षियों आदि द्वारा नुकसान होने की संभावना बढ़ जाती है। जानकारी मिलती है कि विभिन्न राज्यों में उपलब्ध भंडारण क्षमता 75% से भी कम की है जिसकी वजह से उसमें ताज़े अनाजों को रखने के लिये जगह नहीं होती है। हमारे यहां आज भी अनाज संग्रहण के लिए अधिकतर स्थितियों में अवैज्ञानिक विधियों को ही अपनाया जाता है। प्रतिकूल मौसमी दशाओं जैसे- तेज़ बारिश, बाढ़, तूफान आदि की स्थिति में अनाजों के नष्ट होने की संभावना अधिक रहती है। 

आज देश में खाद्य सुरक्षा को मजबूत करने के लिए स्थानीय स्तर पर भंडारण क्षमता विकसित करने की जरूरत है, क्यों कि अनाज को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाकर भंडारण करने पर अनाज की बहुत बर्बादी होती है। अगर हम इस भंडारण क्षमता को प्राथमिकता देकर बढ़ा पाने में कामयाब हो जाते  हैं तो इस बर्बादी से हमारे देश के सकल घरेलू उत्पादन का जो एक प्रतिशत बर्बाद हो रहा है, वह नहीं होगा। अतः यह स्वागत योग्य है कि हाल ही में भारत में विश्व की सबसे बड़ी अनाज भंडारण योजना एक लाख करोड़ रुपये के कार्यक्रम को मंजूरी दी गई है। इस योजना के तहत अब प्रत्येक प्रखंड(प्रत्येक ब्लाक में) में 2000 टन क्षमता का गोदाम स्थापित किया जाएगा।वास्तव में,अनाज भंडारण की दिशा में यह बहुत ही काबिलेतारिफ अहम और अति महत्वपूर्ण कदम कहा जा सकता है। वास्तव में,इस योजना का मकसद देश की खाद्य सुरक्षा को मजबूत करना, फसल नुकसान को कम करना और किसानों को संकट के समय में की जाने वाली बिक्री पर रोक लगाना है। 


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