सिद्धपीठ हथियाराम - संघ प्रमुख श्री मोहन भागवत को पसंद है जहाँ ध्यान करना - श्री संजय तिवारी



राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघ चालक मोहन भागवत जी आज सिद्धपीठ हथियाराम पहुँच रहे हैं। यह संघ प्रमुख की इस पीठ की दूसरी यात्रा है। पीठ के महंत और जूना अखाड़े के मंडलेश्वर आचार्य भवानी नंदन जी यति से दूसरी बार गहन विमर्श का यह संयोग बना है। पिछली बार भी मोहन भागवत जी ने यहां प्रवास कर ध्यान और चिंतन किया था। 

हथियाराम की महत्ता

गाजीपुर जिले के जखनिया में स्थित हथियाराम मठ की अत्यंत आध्यात्मिक महत्ता है। इस मठ में मां वृद्धिका अम्बा अर्थात वृद्धा अम्बिका देवी की सिद्धि है जिनको लोक मानस बुढियामाई कहता है। हथियाराम नाम के पीछे की लोक श्रुति कहती है कि अब से लगभग 800 वर्ष पूर्व एक साधक संत ने यहां अम्बा जी की स्थापना कर घने जंगल मे साधना शुरू की थी। उनकी विशाल काया के आधार पर उन्हें लोक में हाथी संत कहा जाता था और लोक में उनकी मान्यता हथियाराम के रूप में स्थापित हो गयी। ऐसी लोकश्रुति है कि बेसो नदी के किनारे घनघोर जंगल में तपस्या कर रहे  संत  लोगों को कभी-कभी हाथी के रूप में भी दर्शन देते थे । ऐसे हाथी वाला बाबा के नाम से इस स्थान  का नाम हथियाराम पड़ा। उपलब्ध प्रमाण कहते हैं कि संत मुरार नाथ महाराज इस सिद्धपीठ के संस्थापक बने, जिनके द्वारा स्थापना के बाद यह पीठ निरंतर अध्यात्म व सामाजिक कार्यों के क्षेत्र में कार्य कर रहा है। 

सन्यासियों की यति परंपरा

हथियाराम सिद्ध पीठ पर आसीन होने वाले संत यति सन्यासी कहे जाते हैं। इस गद्दी की परंपरा दत्तात्रेय, शुकदेव तथा शंकराचार्य से प्रारंभ होती है। इस मठ का प्रमाण सामान्य जनश्रुति, प्राचीन हस्तलिपि, लिखित पुस्तक तथा भारतीय इतिहास में मिलता हैै। ऐसा बताया जाता है कि संत श्याम सिंह यति से इस पीठ की संत परंपरा प्रारंभ हुई। बालकृष्ण यति 1954 में हथियाराम मठ के 25 वें महंत बने। उत्तराखंड में जन्मे बालकृष्ण यति बाल ब्रह्मचारी रहे। बाल्यकाल से ही अलौकिक प्रतिभा के धनी यति जी ने कठिन साधना, हठयोग, समाधि तथा तपस्या से अध्यात्म जगत में महत्वपूर्ण स्थान बनाया। 

जूना अखाड़े के पाँच महामंडलेश्वर हथियाराम से ही

इस सिद्धपीठ की महत्ता इतनी है कि भारतीय संत परंपरा में सबसे बड़े जूना अखाड़े में पांच महामंडलेश्वर बालकृष्ण यति, भवानीनंदन यति, परेशानंद यति, आत्मप्रकाश यति तथा सोमेश्वर यति हाथियाराम मठ से है। मठ की शाखाएं देशभर में फैली हुई है। हरिद्वार के ज्वालापुर में शंकर आश्रम, इंदौर में विश्वनाथ धाम, हल्द्वानी में महालक्ष्मी अष्टादास का विख्यात मंदिर, वाराणसी में चार, बलिया, मऊ के साथ ही हरियाणा, दिल्ली, पश्चिम बंगाल, मध्यप्रदेश, बिहार आदि प्रांतों के साथ ही विदेशों में भी आश्रमों में बड़ी संख्या में शिष्य है। धर्माथ संदेश को लेकर यति जी ने कई बार विदेश दौरा भी किया। अत्यंत व्यस्तता के बाद भी वह नियमित दिनचर्या के लिए प्रसिद्ध थे। नवरात्रि महोत्सव, शिवरात्रि महोत्सव तथा चातुर्मास महायज्ञ आदि को वह काफी महत्व देते थे। इस दौरान जहां आमजन अपने गुरु सिद्धपीठ के वर्तमान पीठाधीश्वर का पूजन अर्चन कर आशीर्वाद ग्रहण करते हैं वही पीठाधीश्वर महाराज द्वारा ब्रह्मलीन गुरुजनों के समाधि स्थल पर पूजन अर्चन कर आशीर्वाद ग्रहण किया जाता है।  

महामंडलेश्वर आचार्य भवानी नंदन जी यति

सिद्धपीठ के 26 में पीठाधिपति के रूप में महामंडलेश्वर स्वामी भवानीनंदन यति जी महाराज आज इस सिद्धपीठ का नेतृत्व कर रहे हैं। सिद्धपीठ के महत्ता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जूना अखाड़े में आज इस पीठ से  सम्बद्ध स्वामी महामंडलेश्वर भवानीनंदन यति, महामंडलेश्वर सोमेश्वर यति, महामंडलेश्वर परेशानन्द यति, महामंडलेश्वर मोहनानंद यति के साथ ही आधा दर्जन से अधिक महामंडलेश्वर हैं। वहीं सिद्ध पीठ के 25 में महंत ब्रह्मलीन महामंडलेश्वर स्वामी बालकृष्ण यति जी महाराज के तप बल से समूचा अध्यात्म जगत आज भी उनको नमन करता नजर आता है। 

प्रधानमंत्री मोदी के परिवार के लोग भी दर्शन के लिए आये

देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बड़े भाई सोम भाई मोदी भी सपरिवार इस पीठ को नमन करने यहां पहुंचे। वहीं महज एक पखवारे पूर्व ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री व गोरक्षपीठ के महंत योगी आदित्यनाथ जी महाराज ने भी सिद्धपीठ के गुरुकुल में अध्ययनरत वैदिक बटुक के ज्ञान की प्रशंसा करते नहीं अघाये। यहां सिद्धपीठ परिसर में स्थित वृद्धाअंबिका देवी (बुढ़िया माई), सिद्धेश्वरी माता व सिद्धेश्वर महादेव मंदिर में वर्ष पर्यंत श्रद्धालुओं का रेला लगा रहता है। वही समय समय पर तमाम धार्मिक अनुष्ठान भी संपादित होते हैं जिसमें शामिल होने के लिए देश के कोने-कोने से लोगों का आना जाना लगा रहता है।

संघ प्रमुख को बहुत पसंद है यह स्थान

संघ प्रमुख मोहन भागवत जी को हथियाराम सिद्ध पीठ में रात्रि विश्राम करना और ध्यान करना बहुत पसंद है। भवानी नंदन यति जी उनके सिद्ध सखा हैं। आधुनिक प्रचार प्रचुर संतो की भीड़ से इतर भवानी नंदन जी की साधना और उनकी ज्ञान की गहराई मोहन भागवत जी को यहां खींच लाती है। इस यात्रा में भी संघ प्रमुख यहीं रात्रि विश्राम करेंगे।

एक टिप्पणी भेजें

एक टिप्पणी भेजें