मध्य प्रदेश चुनाव समाचार - शिवराज सिंह चौहान ही करेंगे भाजपा का नेतृत्व



अंग्रेजी वेव साइट स्वराज्य में आज वरिष्ठ उप-संपादक निष्ठा अनुश्री का एक आलेख प्रकाशित हुआ है। प्रस्तुत है उसका हिंदी रूपांतर -

मध्यप्रदेश में भाजपा के शिवराज सिंह चौहान 16 साल से अधिक समय तक पदासीन रहने वाले मुख्यमंत्री हैं और इसलिए विपक्ष उनकी सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर मानकर हवाई घोड़े पर सवार है। उनका मानना है कि इसी सत्ता विरोधी लहर के कारण 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की हार हुई थी। 

दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी का सोचना है कि उस समय की सत्ता विरोधी लहर स्थानीय विधायकों के खिलाफ थी, न कि मुख्यमंत्री के खिलाफ। राज्य में आज भी कमोबेश वैसी ही स्थिति है। और इसीलिए, भाजपा ने आगामी विधानसभा चुनाव चौहान के नेतृत्व में ही लड़ने का फैसला किया है।

एक तीसरा नजरिया भी है। बैतूल के वरिष्ठ राजनैतिक समालोचक श्री राजीव खंडेलवाल का मानना है कि "भले ही कोई बहुत अच्छा हो, लोग उससे ऊब जाते हैं।" इस दृष्टिकोण से सहमति जताते हुए देवास के राजनीतिक व्यंग्यकार भूपेन्द्र ने सुझाव दिया कि भाजपा को चुनाव जीतने के लिए अपनी कल्याणकारी योजनाओं पर भरोसा करने की जरूरत है। उनका मानना है कि लाडली बहना योजना "एक अच्छा कार्ड" है जिसे मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री ने खेला है "क्योंकि 50 प्रतिशत मतदाता महिलाएं हैं"।

स्मरणीय है कि 1.25 करोड़ से अधिक गरीब महिलाओं को हर महीने 1,000 रुपये की नकद सहायता देने वाली यह योजना मार्च 2023 में शुरू की गई थी और पहली किस्त जून 2023 में जमा की गई थी। माना जा रहा है कि अक्टूबर से यह राशि बढ़ाकर 1,250 रुपये प्रति माह कर दी जाएगी और चौहान रक्षाबंधन (31 अगस्त) के अवसर पर उपहार के रूप में इस अपडेट की घोषणा कर सकते हैं।

इतना ही नहीं, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री ने विधानसभा चुनाव में सत्ता बरकरार रखने पर सहायता राशि बढ़ाकर 3,000 रुपये प्रति माह करने का भी वादा किया है। हालांकि, चौहान का कहना है कि इस योजना का लक्ष्य चुनाव नहीं, बल्कि महिला सशक्तिकरण है। यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि कांग्रेस की पांच गारंटियों में से एक - महिलाओं को 1,500 रुपये का मासिक भुगतान है जो वर्तमान में चौहान की योजना से अधिक है। मध्य प्रदेश सरकार की एक और कोशिश युवाओं को लुभाने की है। बेरोजगारी की समस्या से निपटने के लिए चौहान ने एक लाख नौकरियाँ दी हैं। 50,000 और नौकरियाँ देने की तैयारी में हैं।

इसके साथ ही जून 2023 में सीखो और कमाओ योजना शुरू की गई, जिसके तहत कौशल सीखने के दौरान युवाओं को 8,000 रुपये से 10,000 रुपये तक का भत्ता मिलता है। इसका उद्देश्य उद्यमियों और नौकरी सृजनकर्ताओं का विकास करना है।चौहान की दूसरी कोशिश राज्य सरकार के कर्मचारियों को खुश करना है। उनका महंगाई भत्ता 4 प्रतिशत बढ़ाकर 42 फीसदी कर दिया गया है जो केंद्र सरकार के अनुरूप है। यह बढ़ोतरी जनवरी 2023 से पूर्वव्यापी प्रभाव से लागू होगी। संविदा कर्मचारियों को भी स्थायी सरकारी कर्मचारियों के समान नौकरी नियमितीकरण, समान वेतन, ग्रेच्युटी, स्वास्थ्य बीमा और अवकाश सुविधाओं जैसे लाभ का आश्वासन दिया गया है।

राजनीतिक कार्यवाहियाँ

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री इस बात पर जोर देते रहे हैं कि कल्याणकारी योजनाएं सत्ता विरोधी लहर से निपटने के लिए नहीं हैं, क्योंकि उसका मुकाबला तो उन विधायकों को हटाकर किया जा सकता है जिनके खिलाफ मतदाताओं में गुस्सा है । मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने हाल ही में एक साक्षात्कार में कहा, 'हम स्थिति का आकलन करेंगे और जिनके खिलाफ सत्ता विरोधी लहर है, उन्हें हटा देंगे।''

राज्य भाजपा द्वारा किए गए एक आंतरिक सर्वेक्षण में पाया गया कि 40 प्रतिशत मौजूदा भाजपा विधायकों का प्रदर्शन उम्मीदों से कम था, जिससे उनके आगामी चुनावों में टिकट मिलने की संभावना प्रभावित हो रही है। हालाँकि, यह संभव नहीं है कि उन सभी को हटा दिया जाए, क्योंकि अमित शाह ने स्पष्ट किया है कि टिकट वितरण में जीतने की क्षमता मुख्य मानदंड होगी और इसलिए, जातिगत समीकरणों या उनके प्रभाव के कारण कई अच्छा प्रदर्शन न करने वालों को भी टिकट मिल सकता है।

2018 के चुनावों में, जब बीजेपी के पास 165 विधायक थे, 70 से अधिक ऐसे थे, जिनके प्रति जनमत अच्छा नहीं था, फिर भी केवल 54 विधायकों के टिकट काटे गए और कुल 100 से अधिक नए चेहरों ने चुनाव लड़ा। हालांकि, इसके बाद भी बीजेपी को बहुमत नहीं मिल सका था। 

इस बार टिकट वितरण प्रक्रिया पिछली बार की तुलना में सख्त होने की उम्मीद है, 'टीम अमित शाह' और केंद्रीय नेतृत्व खुद इसकी निगरानी कर रहे हैं। एक बीजेपी कार्यकर्ता ने कहा, जो लोग 2018 के चुनाव में नहीं जीत सके उन्हें टिकट नहीं मिलेगा।

राज्य के भाजपा कार्यकर्ताओं के अनुसार राज्य की मौजूदा स्थिति से पता चलता है कि कांग्रेस और भाजपा दोनों के जीतने की समान संभावना है। कुछ लोगों ने तो यहां तक कह दिया कि किसी भी दल को बहुमत मिलने की संभावना नहीं है, बल्कि छोटे दलों या निर्दलीय विधायकों के साथ मिलकर सरकार बनानी होगी। इसका कारण यह बताया जाता है कि कार्यकर्ता भाजपा नेताओं के बीच की अंदरूनी कलह से तंग आ चुके हैं । हालांकि, उन्होंने उम्मीद जताई कि आने वाले दिनों में चीजें बेहतर हो सकती हैं क्योंकि पार्टी अपनी चुनावी मशीनरी को तैयार कर रही है।

गौरतलब है कि बीजेपी ने जुलाई में ही चुनाव की तैयारी शुरू कर दी थी। पिछले सप्ताह अमित शाह राज्य का दौरा कर कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ाने का प्रयास कर चुके हैं ।चुनाव प्रभारी भूपेन्द्र यादव, सह-प्रभारी अश्विनी वैष्णव और चुनाव प्रबंधन पैनल के संयोजक नरेंद्र सिंह तोमर की नियुक्तियां भी हाल ही में की गई हैं।

सीधी सी बात है कि अभी तो चुनावी रेल के पहिए पटरी पर आए हैं, रफ्तार अभी शुरू होनी बाकी है। इन नियुक्तियों का चुनावी समीकरणों पर क्या असर पड़ेगा इसकी चर्चा फिर कभी। 


एक टिप्पणी भेजें

एक टिप्पणी भेजें