चंद्रयान –3 मिशन - देखें हमारा परिश्रम क्या रंग लाता है? - श्री संजय अवस्थी



6 –7 सितंबर 2019 के मध्य की वो रात जब  चन्द्रयान –2 मिशन इक्षित सफलता प्राप्त नहीं कर सका था, मैं उस रात इंडिया न्यूज चैनल में विशेषज्ञ के रूप में बैठ, सफलता का इंतजार कर रहा था, अगले दिन मैंने विस्तार से उस मिशन का विश्लेषण किया था।

आइए आज करें चंद्रयान –3 मिशन की बात, आप इस आलेख को पढ़ें तो आपका ज्ञान बढ़ेगा, और आप भी इस मिशन के एक समझदार सहयात्री बनेंगे, ऐसे जो निरंतर इस मिशन की सफलता की दुआ करेंगे।

चन्द्रयान -3, इसरो के पूर्णतः आजमाए और परखे विश्वासप्रद अंतरिक्ष यान LVM 3(लॉन्च वेहीकेल मार्क 3)से जैसा विश्वास था, 14 जुलाई को दोपहर सफलता पूर्वक लांच हो गया, ये तो पहले से ही तय था, इसके पहले भी ये कार्य LVM 3 कार्य कर चुका है, चंद्रयान  2 में भी आर्बिटर को हमने चंद्रमा के कक्षा में स्थापित कर दिया था, मंगलयान में भी इससे भी कठिन अभियान आर्बिटर को मंगल की कक्षा में स्थापित करने का कार्य पीएसएलवी कर चुका है।

पर मुख्य चुनौती अभी भी वही है कि हम लैंडर विक्रम को चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित उतार दे, याने ’सॉफ्ट लैंडिंग’  कर दें ’क्रैश लैंडिंग’ नहीं जैसे पहले हुई थी। अब तक केवल 3 राष्ट्र  इसमें सफल हुए हैं; चीन और रूस(पहली बार में ही) पर अमेरिका को कई प्रयास करने पड़े थे।

इस बार चंद्रयान 3 में प्रणोदन मॉड्यूल(प्रोपल्शन मॉड्यूल) और विक्रम लैंडर(लैंडर के अंदर ही प्रज्ञान रोवर होगा) ही होगा आर्बिटर नहीं।

प्रोपल्शन मॉड्यूल एक ट्रक के समान होगा जिसका काम होगा लैंडर को प्रक्षेपण यान से चंद्रमा की 100 किलोमीटर(चंद्रमा के ध्रुवों से दूरी) की वृतीय कक्षा में पहुंचा कर उसे मुक्त करना।

100 किमी के वृतीय कक्षा से विक्रम लैंडर मॉड्यूल को अकेले ही जाना होगा, वो खुद चंद्रमा के चारों और चक्कर लगाता हुआ, मेनोव्योर(कुशलता पूर्वक कक्षा में परिवर्तन) करता हुआ 100 x 30 कक्षा में पहुंचेगा जिसमें वह चांद से केवल 30 किलोमीटर दूर रह जायेगा, इसके बाद शुरू होगा वो कठिन कार्य ’सॉफ्ट लैंडिंग’ जिसे आतंक के 15 मिनट कहा गया है।

लैंडिंग को समझने से पहले समझ लें कि संचार पृथ्वी से कैसे होगा, हालांकि सब कुछ ऑन बोर्ड प्रौद्योगिकी पर निर्भर है, क्योंकि 384,400 कि मी दूर चंद्रमा से सीधे संपर्क में लगभग 3सेकंड लगेगा, इसलिए ऑन बोर्ड प्रणाली को ही सब करना है। वैसे प्रोपल्शन मॉड्यूल का संपर्क पृथ्वी से इंडियन डीप स्पेस नेटवर्क(IDSN) से करेगा और लैंडर IDSN से और आवश्यकता पड़ने पर चंद्रयान 2 से भी संपर्क करेगा, रोवर का संचार, लैंडर से होगा। बताते चलें की प्रोपल्शन मॉड्यूल में भी पेलोड (प्रायोगिक उपकरण) होगा।

आइए सॉफ्ट लैंडिंग की बात करें, जो सबसे अधिक चुनौती पूर्ण है, अगर हमने ये कर लिया तो समझिए एक नव क्षितिज को छू लिया।

100 x 30 कक्षा में लैंडर अपने चार थ्रस्टर्स(ऐसे इंजन जो विपरीत दिशा में फायर कर, लैंडर की गति को इतना कम करेंगे की चंद्रमा की सतह पर वो शून्य हो जाए), चांद से 30 किमी दूरी से उसकी सतह पर पहुंचने का प्रयास प्रारंभ करेगा। याने ब्रेक लगाना, 6000किमी/घंटा की गति से धीरे धीरे ’ब्रेक’ लगा गति लगभग शून्य(चांद की धरती को जब यह स्पर्श करेगा तब इसका लंबवत वेग 2 मी/से  होगा एवम सतही वेग होगा 0.5मी/से होगा) करना। कैसे इन थ्रस्टर्स को फायर करना और ब्रेक लगाना सब कुछ ऑन बोर्ड प्रौद्योगिकी को करना है, पृथ्वी से कुछ नहीं किया जा सकता, इसलिए ये 15 मिनट "आतंक का काल”है। अगर ब्रेक लगा भी दिया तो जो चांद की सतह पर धूल का गुबार उठेगा, जो लैंडर के कैमरों को लगभग अंधा कर देगा। चांद की धूल अपोलो की भी सता चुकी है, बहुत ही घातक है अंतरिक्ष अभियानों के लिए।

ये तो आप जानते ही हैं कि पृथ्वी से प्रक्षेपण के बाद हमारा चंद्रयान 3 पांच बार कक्षा परिवर्तन(मेनोवर्स)करेगा और पृथ्वी के गुरत्व से दूर जाएगा और फिर चंद्रमा के गुरुत्व क्षेत्र में प्रवेश करेगा, वहां पर चार बार  कक्षा परिवर्तन करेगा और हर बार चंद्रमा के निकट पहुंचेगा, 100किमी की कक्षा में प्रोपल्शन मॉड्यूल, आर्बिटर को अलग करेगा, आगे क्या होगा मैं बता चुका हूं।

मुख्य परीक्षा है सॉफ्ट लैंडिंग की, पहले भी चांद का दक्षिण ध्रुव हमारा लक्ष्य था, इस बार भी है, जिस क्षेत्र को अभी तक नहीं परखा गया, जहां जल की उपस्थिति परखी जा सकती है, क्योंकि इस ध्रुव पर सूरज की रोशनी बहुत कम पहुंचती है।

इस बार हमने पुरानी गलतियों को आधार बना कर योजना बनाई है, लैंडिंग साइट बढ़ा दी है।

मुख्य है सॉफ्ट लैंडिंग, देखिए हमारा परिश्रम क्या रंग लाता है। 

एक टिप्पणी भेजें

एक टिप्पणी भेजें