बाटला हाउस मुठभेड़ एक बार फिर चर्चाओं में।



18 अगस्त को, दिल्ली उच्च न्यायालय ने 2008 के बाटला हाउस मुठभेड़ मामले में आतंकवादी आरिज खान को दी गई मौत की सजा की पुष्टि पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। इस घटना में दिल्ली पुलिस के इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा की जान चली गई।

इसके पूर्व मार्च 2021 में दिल्ली के साकेत कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश संदीप यादव ने आतंकवादी आरिज खान को एक पुलिस अधिकारी की हत्या का दोषी पाए जाने के बाद मौत की सजा दी थी। खान ने जुलाई 2021 में सेशन कोर्ट के फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी। जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल और जस्टिस अमित शर्मा की बेंच ने मामले की सुनवाई की।

सत्र अदालत में सुनवाई के दौरान, खान के वकील ने तर्क दिया कि इस मामले में एक अन्य दोषी मोहम्मद शहजाद को आजीवन कारावास की सजा दी गई थी और चूंकि दोनों दोषियों की भूमिका समान थी, इसलिए खान को भी आजीवन कारावास की सजा दी जानी चाहिए। इसके अलावा, उन्होंने दावा किया कि खान की हरकतें "पूर्व-निर्धारित" नहीं थीं, और यह अचानक हुआ। वकील ने उम्र का कार्ड खेलने की भी कोशिश की और कहा कि खान उस समय 24 साल का था, जिससे संकेत मिलता है कि अपराध के समय वह बहुत छोटा था।

किन्तु अदालत ने इन सब दलीलों को ख़ारिज करते हुए स्पष्ट रूप से कहा कि क्रूरता की डिग्री और अपराध के पीछे गलत काम करने वाले की मानसिकता सहित कारकों पर विचार करने से खान द्वारा किया गया अपराध बहुत गंभीर हो गया है। मामले में न्याय तभी मिलेगा जब खान को अपराध की गंभीरता के अनुसार सजा दी जाएगी, जो मौत की सजा से कम नहीं होगी। अदालत ने आगे कहा कि बिना किसी उकसावे के पुलिस पार्टी पर गोलीबारी के घृणित और क्रूर कृत्य से पता चलता है कि खान समाज के लिए खतरा था, अतः उसे राज्य का दुश्मन माना जाता है।

इसके अलावा, खान पर 11 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया गया, जिसमें से 10 लाख रुपये मृतक पुलिस अधिकारी की पत्नी को देने का निर्देश दिया गया। सत्र अदालत ने कहा कि खान जुर्माना भर सकने की स्थिति में है, क्योंकि उसकी मां के पास उत्तर प्रदेश के आज़मगढ़ जिले के तेंसिल सगरी के हरिपुर गांव में 1,380 वर्ग मीटर जमीन है।

बाटला हाउस एनकाउंटर वाले दिन क्या हुआ था?

बाटला हाउस मुठभेड़ 2008 में दिल्ली के डालमिया नगर में 19 सितंबर 2008 को दिल्ली पुलिस और इंडियन मुजाहिदीन के आतंकवादियों के बीच हुई थी। आपको स्मरण ही होगा 13 सितंबर 2008 का वह मनहूस दिन, जब पांच सिलसिलेवार विस्फोटों ने राष्ट्रीय राजधानी को हिलाकर रख दिया था। इस आतंकी घटना में कम से कम 30 लोग मारे गए और 100 से अधिक घायल हो गए। इसी सीरियल ब्लास्ट के दोषी आतंकवादियों के बारे में एक गुप्त सूचना के आधार पर दिल्ली पुलिस की एक टीम बाटला हाउस गई थी। पुलिस को देखकर वहां छुपे आतंकियों ने गोलियां चलाना शुरू कर दिया, जिसमें इंस्पेक्टर मोहन चंद्र शर्मा शहीद हो गए। 

मुठभेड़ में आतिफ अमीन और मोहम्मद साजिद नाम के दो आतंकी मारे गए जबकि आरिज समेत 3 भाग निकले थे। आरिज को 2018 में नेपाल सीमा के पास से गिरफ्तार किया गया था। उसकी गिरफ्तारी के लिए किसी भी सूचना पर एनआईए से 10 लाख रुपये और दिल्ली पुलिस से 5 लाख का इनाम था। एक अन्य आतंकवादी शहजाद को इस मामले में आजीवन कारावास की सजा भुगतनी पड़ रही है। एक अन्य आतंकवादी जुनैद जो भाग गया था, अभी भी फरार है।

सत्र अदालत के फैसले के अनुसार, मृतक इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा के नेतृत्व में एक पुलिस टीम दिल्ली विस्फोट मामले में शामिल व्यक्तियों को गिरफ्तार करने के लिए बटला हाउस गई थी। उनका फ्लैट में रहने वालों को मारने का कोई इरादा नहीं था, जो इस तथ्य से स्पष्ट था कि दिवंगत इंस्पेक्टर शर्मा ने फ्लैट का दरवाजा खटखटाया और अपनी पहचान बताते हुए कहा, "दरवाजा खोलो पुलिस है"।

टीम के कुछ सदस्यों के पास तो हथियार भी नहीं थे। इसके अलावा, पुलिस ने उस मोहम्मद सैफ पर गोली नहीं चलाई, जिसने खुद को शौचालय के अंदर बंद कर लिया था और बाद में पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था।

अदालत में रिकॉर्ड पर साबित की गई जानकारी के आधार पर, अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि आरिज खान और उसके साथियों ने बिना किसी उकसावे के, अकारण पुलिस अधिकारियों पर गोलियां चला दीं, जिसके कारण छापेमारी करने आये पुलिस अधिकारियों में से एक की मौत हो गई। गोली लगने से हेड कांस्टेबल बलवंत भी घायल हो गए।

अदालत ने कहा कि फ्लैट से एके47 और दो पिस्तौल समेत घातक हथियार बरामद हुए थे। बचाव पक्ष यह स्पष्ट करने में विफल रहा कि दोषी और उसके साथियों ने हथियार क्यों रखे थे। अदालत ने राज्य के सरकारी वकील की दलील में दम पाया कि खान और उसके सहयोगी किसी को मारने के उद्देश्य से घातक हथियार ले जा रहे थे।

विशेष रूप से, गोलीबारी के बाद आरिज खान अपराध स्थल से भागने में सफल रहा। उसे 2009 में अपराधी घोषित कर दिया गया था हुए अंततः 2018 में गिरफ्तार कर लिया गया। अदालत ने कहा कि खान ने सुधार के कोई संकेत नहीं दिखाए। जांच और परीक्षण के दौरान पाया गया कि उसे अपने किये पर कोई पश्चाताप भी नहीं है ।

अदालत ने कहा कि आरिज न केवल समाज के लिए खतरा था बल्कि राज्य का दुश्मन भी था। वह दिल्ली, जयपुर, अहमदाबाद और यूपी सहित विभिन्न विस्फोट मामलों में शामिल था, जिसमें सैकड़ों निर्दोष लोगों की मौत हो गई और कई घायल हो गए।

बाटला हाउस एनकाउंटर के 'विजुअल्स' पर रो पड़ीं सोनिया गांधी

इस घटना के बाद तथाकथित सेक्यूलर नेताओं की प्रतिक्रिया ध्यान देने योग्य है। 2012 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान अपनी एक रैली में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सलमान खुर्शीद ने कहा था कि तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी मारे गए आतंकवादियों की तस्वीरें देखकर फूट-फूटकर रोई थीं।

खुर्शीद ने कहा था, ''जब हमने सोनिया गांधी को 'घटना' की तस्वीरें दिखाईं तो वह फूट-फूटकर रोने लगीं और हाथ जोड़कर बोलीं, कृपया मुझे ये तस्वीरें न दिखाएं। तुरंत जाकर वज़ीर-ए-आज़म (डॉ. मनमोहन सिंह) से बात करें और मामले पर चर्चा करें। मैंने पीएम से बात की और यह निर्णय लिया गया कि मामले की आगे जांच की जाएगी।

राजनीतिक अवसरवादिता भारतीय राजनीति के लिए नई बात नहीं है, बटला हाउस मुठभेड़ पर आईं राजनेताओं की प्रतिक्रिया, देश के हितों पर वोट बैंक की राजनीति को ऊपर रखने का एक ज्वलंत उदाहरण था। आतंकवादियों के प्रति सहानुभूति जताकर, कांग्रेस, आप और टीएमसी ने एमसी शर्मा की शहादत का मज़ाक उड़ाया और मुठभेड़ की वास्तविकता पर सवाल उठाकर देश को नीचा दिखाया।

सुरक्षा बलों की कार्रवाई पर सवाल उठाना अरविंद केजरीवाल की आदत है. यह आदत उस समय से चली आ रही है जब वह दिल्ली के मुख्यमंत्री नहीं थे। 2013 में अरविंद केजरीवाल ने बाटला हाउस मुठभेड़ की 'स्वतंत्र जांच' की मांग की। मुठभेड़ की प्रामाणिकता पर सवाल उठाते हुए उन्होंने कहा, “अदालत ने कहा है कि बाटला हाउस घटना में मारे गए युवा आतंकवादी थे। मेरा कहना है कि भले ही वे आतंकवादी हों, लेकिन उनके असली आका कौन थे, यह जानने के लिए उन्हें जिंदा पकड़ना बेहद जरूरी था। अतः यह जानने के लिए एक स्वतंत्र जांच की जरूरत है कि क्या उन्हें मारना जरूरी था।”

उन्होंने यह भी कहा था कि मोहन चंद शर्मा की शहादत अंदरुनी साजिश थी। केजरीवाल ने जोर देकर कहा, "इसकी भी जांच होनी चाहिए कि पुलिस अधिकारी (मोहन चंद) की हत्या किन परिस्थितियों में हुई।" मुस्लिम मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए उन्होंने कहा कि प्रशांत भूषण जैसे उनकी पार्टी के सदस्य 'फर्जी बटला हाउस मुठभेड़' को लेकर मुसलमानों के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं।

2008 में, तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) सुप्रीमो ममता बनर्जी ने तो यहां तक ​​कहा था कि “मुठभेड़ फर्जी थी, अगर उनका दावा कि 'बटला हाउस मुठभेड़ फर्जी थी' झूठा निकला तो वह अपना राजनीतिक करियर छोड़ देंगी। अगर यह झूठ निकला तो मैं राजनीति छोड़ दूंगी।''

जुलाई 2013 में अपनी इंदौर यात्रा के दौरान मीडिया को संबोधित करते हुए, कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह ने बटला हाउस मुठभेड़ को फर्जी बताने के अपने दावे पर भाजपा से माफी मांगने से इनकार कर दिया। सिंह ने कहा, ''मैं कभी माफी नहीं मांगूंगा। मैं अब भी इस बात पर कायम हूं कि मुठभेड़ फर्जी थी।'' 

अब जबकि न्यायालयों के निर्णय आ चुके हैं, उपरोक्त में से किसी नेता ने अपने झूठ पर कोई पछतावा नहीं जताया है। अपनी घोषणा के अनुसार बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी को तो क्या राजनीति छोड़ नहीं देना चाहिए ? 

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