सर्वोच्च न्यायालय का ऐतिहासिक फैसला - 30 साल पहले हुए दोहरे हत्याकांड में बिहार के बरिष्ठ राजद नेता प्रभुनाथ सिंह को दोषी ठहराया।



सुप्रीम कोर्ट ने आज एक ऐतिहासिक फैसले में 1995 के दोहरे हत्याकांड मामले में राजद नेता प्रभुनाथ सिंह को हाई कोर्ट द्वारा बरी करने का फैसला पलट दिया। स्मरणीय है कि पर्याप्त सबूतों की कमी का हवाला देते हुए, दिसंबर 2008 में पटना HC ने प्रभुनाथ सिंह को सभी आरोपों से बरी कर दिया और 2012 में अपना फैसला बरकरार रखा। उक्त फैसले को राजेंद्र राय के भाई ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। सुनवाई के बाद जस्टिस संजय किशन कौल, एएस ओका और विक्रम नाथ के पैनल ने अब उन्हें दोहरे हत्याकांड में दोषी ठहराया है।

पूरी घटना इस प्रकार है कि मार्च 1995 में बिहार के छपरा में एक मतदान केंद्र के बाहर 18 वर्षीय राजेंद्र राय और 47 वर्षीय दरोगा राय की हत्या कर दी गई थी। दोनों को गोली इसलिए मारी गई क्योंकि उन्होंने राजद के दिग्गज नेता के आदेशों की अवहेलना की थी। बाद में गवाहों को धमकाने और प्रभावित करने की चिंताओं के कारण मामला छपरा से पटना उच्च न्यायालय में स्थानांतरित कर दिया गया था।

न्यायमूर्ति विक्रम नाथ ने फैसला सुनाया, “हमने पटना उच्च न्यायालय के आदेश को रद्द कर दिया और प्रतिवादी संख्या । 2 प्रभुनाथ सिंह को दरोगा राय और राजेंद्र राय की हत्या के लिए धारा 302 (हत्या) के तहत दोषी ठहराया। हम बिहार के गृह सचिव और राज्य के पुलिस महानिदेशक को प्रभुनाथ सिंह को गिरफ्तार करने और सजा पर बहस की अगली सुनवाई की तारीख पर हिरासत में इस अदालत के समक्ष पेश करने का निर्देश देते हैं।''

हालाँकि कोर्ट ने प्रभुनाथ सिंह को तो उत्तरदायी माना, किन्तु अन्य छह सह-अभियुक्तों की दोषमुक्ति को बरकरार रखा। यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि मानव वध के लिए सजा के रूप में आजीवन कारावास या मृत्युदंड दिया जा सकता है।

प्रभुनाथ सिंह राजनीति में कई अलग-अलग पार्टियों का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। वह 1995 में जनता दल में शामिल हो गए, बाद में उन्होंने अपनी संबद्धता बदलकर जनता दल (यूनाइटेड) कर ली और फिर 2010 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ विवाद के बाद राष्ट्रीय जनता दल में शामिल हो गए।

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय का हमारी न्याय प्रक्रिया में विशेष महत्व है। प्रभुनाथ सिंह जैसी प्रमुख राजनीतिक हस्ती को लगभग 30 साल पहले हुए दोहरे हत्याकांड में दोषी पाया जाना यह प्रमाणित करता है कि अपराधी कितना ही बड़ा आदमी क्यों न हो, अंततः कानून की गिरफ्त में आता ही है। भले ही उसका राजनीतिक कद या संबंध कुछ भी हो। यह आदेश यह भी दर्शाता है कि कानून का शासन बनाए रखने के लिए निष्पक्ष और निर्भीक न्यायपालिका कितनी आवश्यक और महत्वपूर्ण है।

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