बिन्ध्य की राजनैतिक हलचल - डॉ. उमेश सिंह



(लेखक परिचय - साहित्य अकादमी के निदेशक रहे शिक्षाविद डॉ. उमेश सिंह शासकीय सेवा से मुक्त होने के बाद अब साहित्य सृजन के साथ राजनैतिक समालोचक की भूमिका में भी हैं। उनके समसामयिक आलेख अब समय समय पर क्रांतिदूत पर भी प्रसारित होंगे। )

कमलेश्वर पटेल का ए आई सी सी में चयन हुआ, तो पहले तो बधाई। लेकिन उनके इस स्थान पर बैठाये जाने की मीमांशा भी हो रही है। कुछ लोगों का मानना है कि अभी तक विंध्य से ब्राह्मण, क्षत्रिय ही राजनीति करते आए हैं। यह धारणा वास्तव में अर्जुन सिंह जी और श्रीनिवास तिवारी जी को लेकर लगाई जाती है।

यह भी सही है कि प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से लेकर कांग्रेस के कार्यकाल तक इन्हीं का बोलबाला था। 

किन्तु आपातकाल के बाद क्षेत्र की राजनीति ने करवट ली। कुछ विधानसभा सीटों में पिछड़ा वर्ग के प्रत्यासी भी सफल हुए। उनमें जनसंघ -भाजपा में गुढ से खाता खुला तो सीधी से कमलेश्वर जी के पिता जी ने खम्भा ही गाड़ दिया। अर्जुन सिंह जी ने पिछड़ा, अनुसूचित जाति, जनजाति को भी साधा और बड़े नेता बन गये, वहीं श्रीनिवास तिवारी जी सीमित जातीय दायरे में रहे, किंतु दिग्विजय सिंह जी की ढाई घर की राजनीति ने उन्हें काफी ताकतवर दिखाया। 

समझना होगा यहीं से विंध्य में ठाकुर -ब्राह्मण के राजनीतिक नेतृत्व का पराभव प्रारंभ हुआ।

समय ने करवट बदली और अजय सिंह राहुल का इन्द्रजीत पटेल जी से ही नहीं तो अन्य कांग्रेसी नेताओ से समीकरण जो बिगड़ा, उसका ही खामियाजा है कि आज कमलेश्वर बड़े जनाधार बाले नेता न होते हुए भी ए आई सी सी में पहुंच गए।

वैसे इसे कांग्रेस की अदूरदर्शिता ही माना जाएगा।

इन्द्रजीत पटेल को फायदा भाजपा की पिछड़ों की राजनीति और रीवा में राजमणि पटेल के प्रभाव कम होने के कारण भी मिला।

फिर भी एक बात विचारणीय है कि कांग्रेस पार्टी में बिन्ध्य को लेकर अभी भी कोई कारगर रणनीति है ही नहीं।

बिन्ध्य का सामान्य सा राजनीतिक कार्यकर्ता भी जानता है कि कमलेश्वर का सीमित जनाधार कांग्रेस का बेड़ा पार नहीं करेगा। 

बल्कि अजय सिंह राहुल और कमलेश्वर पटेल की खींचतान इस बार वोटकटवा राजनीति के तहत दोनों को न डुबो दे।

कारण भाजपा सजग ही नहीं है, बल्कि एक - एक कदम साध कर चल रही है।

उसके पास अमूमन हर जिले में प्रभावी ठाकुर, ब्राह्मण नेता तो हैं ही, बल्कि पिछड़ा,अन्य पिछड़ा, अनुसूचित जाति, जनजाति के सक्षम नेता भी हैं। बस आवश्यकता है इनको आपस में बांधें रखने की। 

अधिक आत्मविश्वास और पलड़े के असंतुलन से भाजपा को भी सचेष्ट रहना होगा। बसपा अभी मरी नहीं और आप ने भी दस्तक बिन्ध्य में ही दी है। भगदड़ में किसको फायदा नुकसान होगा,समय ही बताएगा।👌