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धड़ीचा प्रथा: मिथक और सच्चाई के बीच फंसा शिवपुरी – दिवाकर शर्मा

 

हाल ही में देश के कुछ प्रतिष्ठित मीडिया हाउसों ने शिवपुरी जिले को लेकर 'धड़ीचा प्रथा' से जुड़ी खबरें प्रकाशित की हैं, जिनमें दावा किया जा रहा है कि यहां एक साल के लिए महिलाओं को "किराए" पर लेने की प्रथा अभी भी प्रचलित है। इन खबरों ने शिवपुरी की छवि को धूमिल करने का काम किया है, जबकि स्थानीय नागरिकों का कहना है कि यह सब भ्रामक और झूठी जानकारी है। ऐसी कोई प्रथा वर्तमान में अस्तित्व में नहीं है, और यह आरोप महज सस्ती लोकप्रियता और व्यूज पाने के लिए लगाए जा रहे हैं।


धड़ीचा प्रथा: ऐतिहासिक पृष्ठभूमि


धड़ीचा प्रथा, एक ऐसा शब्द है, जो शायद पहले कुछ अलग रूप में मौजूद रहा हो, लेकिन इसका वर्तमान स्थिति से कोई संबंध नहीं है। यह प्रथा यदि कभी रही भी हो, तो इसका उद्देश्य संभवतः सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियों से जुड़ा था। पुराने समय में, भारत के कुछ हिस्सों में विशेष रूप से आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के बीच कुछ कुरीतियाँ पनपीं थीं। इनका आधार पारिवारिक या सामाजिक दवाब, या आर्थिक लाभ के लिए संबंध बनाना हो सकता था।


लेकिन इस बात के कोई ठोस प्रमाण नहीं हैं कि धड़ीचा प्रथा के नाम पर महिलाओं को 'किराए' पर दिया जाता था। यह एक संभावना है कि मीडिया हाउसों ने बिना किसी ऐतिहासिक और सामाजिक संदर्भ के इस मुद्दे को सनसनीखेज बनाकर प्रस्तुत किया है। इस तरह की खबरें न केवल भ्रामक हैं, बल्कि वे समाज की वास्तविक समस्याओं को नजरअंदाज करते हुए एक झूठी छवि भी प्रस्तुत करती हैं।


धड़ीचा प्रथा का उद्देश्य और उत्पत्ति


यदि धड़ीचा प्रथा का अस्तित्व था, तो सवाल उठता है कि यह प्रथा कैसे और क्यों शुरू हुई? क्या किसी समुदाय विशेष ने इसे लागू किया? क्या इसका उद्देश्य महिलाओं का शोषण था, या यह किसी अन्य सामाजिक व्यवस्था का हिस्सा था? इस तरह के सवालों के उत्तर प्राप्त करना आवश्यक है, लेकिन दुर्भाग्य से, मीडिया ने इन सवालों की जाँच किए बिना ही अपने मनमाने निष्कर्ष निकाल लिए हैं।


ऐतिहासिक रूप से, भारत में कई प्रथाएँ आर्थिक और सामाजिक असमानताओं की देन रही हैं। संभव है कि धड़ीचा प्रथा भी किसी समय का एक कुप्रथा रही हो, जो अब समय के साथ खत्म हो गई है। लेकिन इसका कोई ऐतिहासिक दस्तावेजी प्रमाण नहीं है, जो इसे साबित करता हो कि महिलाएं एक साल के लिए किराए पर दी जाती थीं। अगर ऐसा होता, तो यह प्रथा कड़ी आलोचना का विषय बन चुकी होती और इस पर कानून का शिकंजा कसता।


वर्तमान स्थिति


शिवपुरी के स्थानीय नागरिकों का कहना है कि धड़ीचा प्रथा को लेकर वर्तमान में फैलाई जा रही खबरें पूरी तरह से गलत और भ्रामक हैं। यहां इस प्रकार की कोई भी प्रथा न तो प्रचलित है और न ही इसके बारे में कोई जानकारी है। स्थानीय लोग इन खबरों को महज मीडिया की टीआरपी बढ़ाने की कोशिश मानते हैं। उनका कहना है कि मीडिया को अपनी खबरें प्रकाशित करने से पहले सही तथ्यों की जाँच-पड़ताल करनी चाहिए और किसी भी इलाके की छवि को खराब करने से बचना चाहिए।


मीडिया की जिम्मेदारी


मीडिया को हमेशा सत्य और निष्पक्षता की राह पर चलना चाहिए। खबरों को सनसनीखेज बनाकर प्रकाशित करना और समाज को गलत जानकारी देना न केवल अनैतिक है, बल्कि इससे सामाजिक ताना-बाना भी प्रभावित होता है। धड़ीचा प्रथा के संदर्भ में मीडिया को चाहिए था कि वह गहन शोध करके ऐतिहासिक और सामाजिक संदर्भों को समझने की कोशिश करता, ताकि सही जानकारी जनता तक पहुंचती।


इसके अलावा, मीडिया को यह भी ध्यान रखना चाहिए कि उसकी रिपोर्टिंग से किसी क्षेत्र या समुदाय की छवि को नुकसान न पहुँचे। जिम्मेदार पत्रकारिता का मतलब है कि तथ्यों की जाँच कर सटीक और निष्पक्ष खबरें दी जाएं, ताकि जनता को सही जानकारी मिल सके और समाज में किसी भी प्रकार की गलतफहमी न फैले।


धड़ीचा प्रथा के नाम पर फैलाई जा रही भ्रामक खबरें शिवपुरी जिले की छवि को नुकसान पहुंचा रही हैं। स्थानीय नागरिकों और समाजसेवियों का स्पष्ट कहना है कि ऐसी कोई प्रथा यहाँ मौजूद नहीं है। मीडिया को अपनी जिम्मेदारी समझते हुए सटीक और तथ्यपरक खबरें प्रकाशित करनी चाहिए। वहीं, समाज को भी इन खबरों की सत्यता पर सवाल उठाने की जरूरत है, ताकि झूठ और अफवाहों पर रोक लगाई जा सके।

दिवाकर शर्मा

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