पारसी सभ्यता और हिंदू धर्म: जब ईरान था भारतीय संस्कृति का अंग - दिवाकर शर्मा
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प्राचीनकाल में ईरान को "पारस्य" देश के नाम से जाना जाता था, जिसका नाम आर्याण से उत्पन्न हुआ। यह वह भूमि थी जहाँ वैदिक संस्कृति का गहरा प्रभाव था। यह लेख पारसी सभ्यता और हिंदू धर्म के बीच संबंधों को समझाने का प्रयास करेगा, विशेष रूप से जरथुष्ट्र और उनके पारसी धर्म, की चर्चा के माध्यम से।
ईरान की प्राचीनता
ईरान, जो आज के समय में एक आधुनिक देश है, प्राचीन काल में एक महत्वपूर्ण सभ्यता का केंद्र था। यहाँ आर्य लोगों का एक समूह निवास करता था, जिन्होंने अपने सांस्कृतिक और धार्मिक मूल्यों को विकसित किया।
जरथुष्ट्र का योगदान
जरथुष्ट्र, जिन्हें ज़ोरोआस्टर भी कहा जाता है, का जन्म लगभग 1700 से 1500 ईसा पूर्व के बीच हुआ था। वे ईरानी आर्यों के स्पीतमा कुटुम्ब के पौरुषहस्प के पुत्र थे। इतिहासकार मानते हैं कि उनका कार्य ऋग्वेद के ऋषियों जैसे अंगिरा और बृहस्पति के समकालिक था।
जब इस्लामी खलीफाओं का आक्रमण हुआ, तब अधिकतर पारसी लोगों को इस्लाम अपनाना पड़ा। जो लोग धर्म परिवर्तन नहीं करना चाहते थे, उन्हें अपने देश को छोड़कर भागना पड़ा। इस प्रकार, पारसी धर्म का विकास वैदिक धर्म के मूल सिद्धांतों से प्रभावित हुआ।
पारसी धर्म का आधार
पारसी समुदाय का प्रमुख धर्मग्रंथ "जेंद अवेस्ता" है, जो अवेस्ता भाषा में लिखा गया है। अवेस्ता और ऋग्वेद में बहुत से शब्दों की समानता देखने को मिलती है, जो दर्शाता है कि दोनों के बीच गहरा संबंध है।
धार्मिक प्रथाएँ
पारसी लोग अग्नि, सूर्य, वायु आदि प्राकृतिक तत्वों की उपासना करते हैं। उनके देवताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:
मिथ्र (मित्रासूर्य), वयु (वायु), होम (सोम), अरमइति (अमति)
वे भी बड़े यज्ञ (यश्न) करते हैं और सोमपान की प्रथा का पालन करते हैं। अथ्रवन् (अथर्वन्) नामक याजक (ब्राह्मण) काठ से काठ रगड़कर अग्नि उत्पन्न करते थे।, जो वैदिक यज्ञों में भी देखी जाती है।
सांस्कृतिक समानताएँ
प्राचीन पारसी और वैदिक आर्यों की प्रार्थना, उपासना, और कर्मकांड में कोई भेद नहीं था। उनकी भाषा भी एक मूल आर्य भाषा से उत्पन्न हुई, जो वैदिक और लौकिक संस्कृत के विकास का आधार बनी।
अवेस्ता में भारतीय प्रदेशों और नदियों के नाम भी दर्ज हैं, जैसे: हफ्तहिन्दु (सप्तसिन्धु), हरव्वेती (सरस्वती), हरयू (सरयू)
यह सब दर्शाता है कि प्राचीन काल में भारतीय उपमहाद्वीप और ईरान के बीच गहरा सांस्कृतिक और धार्मिक संबंध था।
पारसी और हिंदू सभ्यता के बीच का संबंध न केवल ऐतिहासिक है, बल्कि यह सांस्कृतिक और धार्मिक समानताओं से भी भरा हुआ है। दोनों समुदायों ने समय के साथ अपने-अपने मूल सिद्धांतों को बनाए रखा है, जबकि वे एक-दूसरे से प्रभावित भी हुए हैं। पारसी समुदाय की जड़ों में भी वैदिक धर्म की गहरी छाप है, और यह हमें यह समझने में मदद करता है कि कैसे एक साझा सांस्कृतिक विरासत ने दोनों समुदायों को आकार दिया।
यह अध्ययन आज के संदर्भ में भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह हमें समझाता है कि हमारी विविधता में एकता कैसे निहित है।
Tags :
इतिहास
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