शिवपुरी में अव्यवस्थाओं पर प्रशासन की लचर कार्यवाही: दोहरे मानदंड या असमर्थता?
शिवपुरी जिले में हालिया घटनाओं ने प्रशासन की भूमिका और उसकी कार्यवाही पर सवाल खड़े कर दिए हैं। एक तरफ प्रशासन द्वारा जिले में अवैध रूप से रखी जा रहीं मूर्तियों को लेकर कलेक्ट्रेट में बैठक बुलाई गई, जहां कुछ लोगों को मूर्तियां स्थापित करने की प्रक्रिया समझाई गई। यह कदम सामाजिक सौहार्द बनाए रखने के नाम पर उठाया गया, परंतु यह सवाल बरकरार है कि अगर प्रशासन जानता है कि जिले में कौन लोग अवैध रूप से मूर्तियां स्थापित कर रहे हैं, तो इन पर अभी तक कानूनी कार्यवाही क्यों नहीं की गई?
क्या समझाने से अवैध कार्य रुकेंगे?
अवैध रूप से मूर्तियां रखने का कार्य न केवल धार्मिक भावनाओं का दुरुपयोग है, बल्कि यह सामाजिक सौहार्द को भी बिगाड़ने का कारण बन सकता है। जब प्रशासन को यह ज्ञात है कि कौन लोग ऐसी गतिविधियों में संलिप्त हैं, तो समझाने की प्रक्रिया से उन्हें कैसे रोका जा सकता है? क्या ऐसे लोग सचमुच समझाइस से मान जाएंगे? अगर प्रशासन पहले से ही इन्हें पहचान चुका है, तो कानूनी कार्यवाही क्यों नहीं हो रही? बार-बार बैठकें और समझाइस के दौर कब तक चलते रहेंगे?
प्रशासन की इस प्रकार की निष्क्रियता एक बड़ा सवाल खड़ा करती है कि क्या वे ऐसे मामलों को लेकर गंभीर हैं या फिर केवल औपचारिकता निभा रहे हैं। सामाजिक सौहार्द को बनाए रखने के लिए प्रशासन को चाहिए कि वह तुरंत और सख्त कार्यवाही करे ताकि अवैध गतिविधियों पर रोक लगाई जा सके।
ट्रैफिक व्यवस्था में अव्यवस्था और प्रशासन की मूक भूमिका
दूसरी तरफ, शिवपुरी में ही ट्रैफिक पुलिस ने सड़क पर खड़ी 25 गाड़ियों को उठवाकर चालानी कार्यवाही की और 14 हजार रुपये का जुर्माना लगाया। सतह पर यह कार्यवाही सही प्रतीत होती है, लेकिन इससे एक और महत्वपूर्ण सवाल उभरता है: शहरवासियों को अपनी गाड़ियाँ पार्क करने के लिए स्थान कहां उपलब्ध है?
शिवपुरी के प्रमुख क्षेत्रों में पार्किंग की व्यवस्था लगभग न के बराबर है। पुराने सरकारी बस स्टैंड जैसे स्थान, जो पार्किंग के लिए निर्धारित हो सकते थे, वहां अवैध रूप से कार बाजार संचालित हो रहा है। यह कार बाजार ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन कर रहा है, लेकिन इसके बावजूद स्थानीय प्रशासन या ट्रैफिक थाना प्रभारी धनंजय शर्मा के द्वारा इस अवैध गतिविधि पर कोई कार्यवाही नहीं हो रही है।
क्या पुलिस की कार्यवाही पक्षपातपूर्ण है?
प्रश्न यह उठता है कि क्या यह अवैध कार बाजार ट्रैफिक पुलिस को दिखाई नहीं देता, या फिर इसके विरुद्ध कार्यवाही करने में प्रशासन असमर्थ है? यह स्पष्ट है कि आम नागरिकों को अपनी गाड़ियों को सड़क पर पार्क करने के लिए दंडित किया जा रहा है, जबकि अवैध रूप से संचालित कार बाजार प्रशासन की नजरों के सामने होने के बावजूद बिना किसी रोक-टोक के चल रहा है।
प्रशासन की दोहरी भूमिका
दोनों ही मामलों में प्रशासन की लचर कार्यवाही स्पष्ट रूप से दिखाती है कि अव्यवस्थाओं पर कोई ठोस और निष्पक्ष कदम नहीं उठाए जा रहे हैं। एक तरफ, मूर्तियों के अवैध रूप से रखे जाने पर केवल समझाइस दी जा रही है, और दूसरी तरफ, ट्रैफिक पुलिस केवल आम लोगों पर चालान ठोक रही है, जबकि असली समस्याओं पर ध्यान नहीं दिया जा रहा।
शिवपुरी के नागरिकों को प्रशासन से यह उम्मीद है कि वे अवैध गतिविधियों पर सख्त कार्यवाही करें, न कि केवल दिखावे के लिए समझाइस और चालान की प्रक्रिया का सहारा लें। शहर की व्यवस्थाओं को सुधारने के लिए सख्त और निष्पक्ष कदम उठाने की आवश्यकता है, ताकि सामाजिक सौहार्द भी बना रहे और शहर की ट्रैफिक व्यवस्था भी सुचारू रूप से चल सके।
प्रशासन को अब समझाइस और औपचारिकता से आगे बढ़कर ठोस कदम उठाने की जरूरत है। चाहे वह अवैध रूप से मूर्तियां स्थापित करने का मामला हो या अवैध कार बाजार का, कानूनी कार्यवाही के बिना समस्याओं का समाधान संभव नहीं है। शिवपुरी के नागरिकों का विश्वास तभी प्रशासन में बना रह सकता है, जब वे निष्पक्ष और न्यायसंगत कार्यवाही होते देखेंगे।
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